Tuesday 2 June 2020

Dasve bhav me shani ka shubh ashubh samanya fal / दसवें भाव में शनि का शुभ अशुभ सामान्य फल

Posted by Dr.Nishant Pareek

Dasve bhav me shani ka shubh ashubh samanya fal 

 

दसवें भाव में शनि का शुभ अशुभ सामान्य फल

शुभ फल: दसवें स्थान में शनि होने से जातक सर्वदा प्रसन्न, पुण्यकार्य करनेवाला, माननीय और स्नेह करनेवाला होता है। जातक नीतिज्ञ, नम्रस्वभाव, महत्वाकांक्षी, परिश्रमी और चतुर होता है। दशमस्थान में शनि होने से जातक स्वाभिमानी, शूर, अपने कुल में प्रभावशाली और श्रेष्ठ तथा शासक होता है। जातक मतिमान्, नेतृत्व के गुणों से युक्त होता है। नगर, गांव और जनसमूह का नेता होता है। जातक लोकसेवा करनेवाला, समाज के लिए काम करने वाला तथा विख्यात होता है। अपने पराक्रम से-अपने भुजबल से ही सब कुछ करनेवाला होता है। जीविका का सुख धीरे-धीरे मिलता है। कामों में प्रगति धीरे-धीरे कर पाता है। तात्पर्य यह है कि दशमभाव मे शनि होने से जातक सहसा उन्नत नहीं होता और नाही सहसा सुखी ही होता है। अच्छे गाँव, नगर और जनसमूह में प्रमुख अधिकारी होता है। राजकाज करने के लिए योग्य और निपुण होता है। दुष्टों का दमन करने के लिए दण्डाधिकार अर्थात् न्यायाधीश मैजिस्ट्रेट का पद मिलता है। चोरों, दगाबाजों आदि को कारावास आदि दंड देने की शक्ति प्राप्त होती है। राजा के घर मे कोषाध्यक्ष का पद प्राप्त होता है। राजमान्य, राजमंत्री या सेनापति होता है। जातक गांव का मुखिया, खेती-बाड़ी में रुचि रखनेवाला होता है। जातक धन से पूर्ण अर्थात् घनाढ़्य होता है। विदेश में जाकर राजप्रासादों में निवास करता है-अर्थात् विदेश में मान-प्रतिष्ठा से रहता है। भृत्यवर्ग में प्रेम रखता है-अर्थात् नौकरों से प्रेम तथा विश्वास से काम करवाता है। शत्रुओं से भय नहीं होता है। बहुत मित्र होते हैं और जातक आदरपात्र होता है। जातक 25 वें वर्ष गंगास्नान करता है। लड़ाई-झगड़े में, युद्ध में विजयी होता है।

दशमभावस्थ शनि के प्रभाव में आए हुए दो प्रकार के लोग देखे जाते हैं - (1) अत्यन्त कामासक्त, कामशास्त्र के उपदेशक। (2) वेदान्तशास्त्र के प्रवर्तक। इन दोनों प्रवृत्तियों के लोग कीर्ति और सम्मान पाते हैं-इन्हें धन भी मिलता है।  दशमभावस्थित शनि के शुभ फलों का अनुभव मेष, सिंह, धनु, मिथुन, कर्क, वृश्चिक, तथा मीन राशियों में आता है।  शुभ ग्रह साथ में होने से काम सफल होते हैं।  शनि तुला, मकर, कुम्भ या मिथुन में होने से या अन्य ग्रहों से शुभ संबन्धित होने से सत्ता, अधिकार, तथा भाग्य के लिए उत्कर्ष कारक होता है। दीर्घ उद्योग, परिश्रम, महत्वाकांक्षा, प्रामाणिकता, दूरदूष्टि, व्यवस्थितता आदि गुणों से जातक सहज ही महान् पद प्राप्त करता है। दूसरों की मदद के बिना अपने ही गुणों तथा परिश्रम से जातक की उन्नति होती है। अधिकारपद, बड़े उद्योगों के संचालक, बैंको के डाइरैक्टर आदि उत्तरदायित्वपूर्ण पदों के लिए योग्य जातक होता है।  दशम में बलवान् शनि कानून के क्षेत्र में अधिकार देता है। सबजज, जज, हाईकोर्ट के जस्टिस आदि होते हैं।  वृष, कन्या, मकर, कर्क, वृश्चिक, मीन, तुला और कुंभ में होने से जातक संन्यासी, धर्मप्रवर्तक, ज्योतिषी आदि होता है। 

  अशुभ फल:  जातक दुराचारी, दुर्बुद्धि तथा नीचकर्मकर्ता और नीचवृत्ति से युक्त होता है। जातक लोभी, क्रूर (बे-रहम), निर्दय, चंचल तथा झूठ बोलनेवाला और गुणहीन होता है। जातक के स्वभाव में उद्दण्डता और अभिमान रहता है। दुश्चिन्तायें, चित्तभ्रम होता है। जातक को शत्रुओं से भय रहता है। दशमभावस्थ शनि पिता के लिए घातक तथा मारक होता है तथा माता के लिए भी कष्टकारक होता है। शनि के कारण बचपन में ही माता-पिता का वियोग होने का योग बनता है। यह वियोग मृत्युरूपमें अथवा गोदीपुत्र बनकर दूसरे के घर जाने के रूप में होता है। अथवा विदेश में जाने से भी वियोग होता है। बाप-बेटा एकत्र नहीं रह सकते और यदि रहें तो पिता को सतत कष्ट का अनुभव होता है। पिता-पुत्र एक साथ प्रगति नहीं कर पाते। 

दशमस्थ शनि का बालक बड़ा होने पर माता-पिता से वैमनस्य रखता है। विदेश में भाग्योदय और प्रगति होती है-जन्मभूमि में भाग्योदय नहीं होता है। आजीविका नहीं चलती। बेकारी का शिकार होता है। अतएव अपमानित भी होता है। पैतृक संपत्ति नहीं मिलती-यदि मिली तो जब तक नष्टभ्रष्ट न हो किसी काम में सफलता नहीं मिलती। दशमस्थ शनि का जातक विषयासक्त रहता है। दशमस्थ शनि अशुभता और अति विपत्ति का कारण होता है। कष्टमय जीवन, जीविका की तंगी, पैतृक संपत्ति का न मिलना, नौकरी में बहुत उतार चढ़ाव, बहुतबार परिवर्तन आदि शनि के साधारण फल हैं। जीविका के लिए कठोर परिश्रम, और कष्टदायक काम करने पड़ते हैं। पीडि़त शनि से प्राप्त अधिकार का दुरुपयोग करता है। दुराचार, झूठे षडयंत्र, अप्रामाणिक व्यवहार से सत्ता प्राप्त होती है, अतरू अधरूपात भी जल्दी ही होता है। व्यवसाय बदलना, नुकसान होना, कारोवार का बन्द हो जाना, बेकार रहना, कर्ज न चुका सकना और कारावास आदि बातें होती हैं।

नौकरी में असफल होना, वरिष्ठ अधिकारी से झगड़ा होना, उच्चपद छोड़कर हल्के पद पर नियुक्त होना, पदावनति होना, ससपैंड होना आदि फल पीडि़त शनि से प्राप्त होते हैं। स्वतंत्र व्यवसाय में दिक्कतें आती हैं। निर्वासित होना, फौजदारी से जेल भुगतना, सामाजिक काम में नुकसान होना आदि कष्ट होता है। बेइज्ज्ती के अवसर बार-बार आते हैं। जातक पित्तपकृति होता है। पेट की बीमारी लगी रहती है। जंघा में रोग होते हैं। असाध्य रोगों से कष्ट होता है। जातक दुष्ट पुत्रों से युक्त होता है। श्दुष्टपुत्रश् से ऐसा पुत्र मन्तव्य है जो पिता की आज्ञा का पालन न करे, समृद्ध न हो, धार्मिक न हो और मूर्ख हो। जातक को शरीरसुख, वाहनसुख, मित्रों का सुख नहीं मिलता है।       

शनिकृत कष्टों के निवारण हेतु सरल उपाय

दशमभावस्थित शनि के अशुभ फल का अनुभव वृष, कन्या, तुला, मकर तथा कुंभ में मिलता है।  हर्षल, नेपच्यून, सूर्य, मंगल या गुरु से अशुभ संबंन्धित होने पर शनि बहुत अशुभ होता है।  दशमस्थ शनि का शुक्र और चन्द्र का अशुभ संबंध होने से जातक किसी अवस्था में बड़ी स्त्री से अवैधसंबंध जोड़ लेता है।  वृद्धावस्था में भी इसे स्त्रीसुख की इच्छा बनी रहती है।

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