Gyarve bhav me shani ka shubh ashubh samanya fal
ग्यारहवें भाव में शनि का शुभ अशुभ सामान्य फल
शुभ फल: प्राचीन लेखकों ने लाभभावगत शनि के फल बहुत शुभ बतलाए हैं। शनि एकादशभाव में होने से जातक बड़ा दयालु, उपकारी, मधुरभाषी, दुबला, संतोषी और शत्रुन्जय होता है। एकादशभाव में शनि होने से जातक दीर्घायु, शूर और स्थिरबुद्धि वाला होता है। जातक विचारशील, भाग्यवान, भोगी, तथा संतोषी होता है अर्थात् थोड़े में ही सन्तुष्ट रहता है। जातक सब विद्याओं में प्रवीण, राजमान्य होता है। जातक शिल्प से युक्त, सुखी एवं लोभहीन होता है। दीर्घकाल स्थायी रोग नहीं होते-अर्थात् रोग होते हैं तो शीघ्र ही शान्त भी हो जाते हैं और जातक शीघ्र नीरोग हो जाता है। संग्राम में विशेष पराक्रमी होता है।
लाभभाव में शनि होने से बहुत धन-सम्पन्न होता है। सम्पत्ति-जमीन आदि स्थिर रहती है। राजा की कृपा से प्रभूत धन प्राप्त करता है। खेती से धन-धान्य मिलता है और समृद्ध होता है। एकादशभाव में शनि होने से श्यामवर्ण के घोड़े, नीलम रत्न, ऊन, अनेक सुन्दर वस्तु, और हाथी का लाभ होता है। लाभस्थ शनि की कृपा से पशुधन बहुत होता है। राजा से सम्मान प्राप्ति, भूमि का लाभ व धनलाभ, पण्डितों से विद्यालाभ और भी कई प्रकार के लाभ होते हैं। धनप्राप्ति का प्रमाण अच्छा होता है और संचय भी होता है। एकादश में शनि हाने से जातक यशस्वी होता है। जातक को अच्छे मित्रों की संगति मिलती है। जातक भोगी होता है अर्थात् नाना प्रकार के उपभोग प्राप्त होते हैं। जातक के घरपर दास-दासियाँ होते हैं। जातक भाग्यवान और वाहन सम्पन्न होता है। अन्यराशियों में संतान होती है। लाभभावस्थित शनि तुला, मकर या कुम्भ में शुभ सम्बन्धित होने से आयु के उत्तरार्ध में सांपत्तिक सुख बहुत अच्छा मिलता है।
शनिकृत कष्टों के निवारण हेतु सरल उपाय
अशुभ फल: जातक सैकड़ों मनुष्यों से अधिक प्रपंची (जाली) होता है अर्थात् रागद्वेषादि में निुपुण होता है। काम में विघ्न होते हैं। बचपन में बहुत रोग होते हैं। आग से भय और शरीर में दुरूख होता है। शनि संतति के लिए अनुकूल नहीं है। स्त्री बन्ध्या होती है, अथवा देर से संतति होती है, या होकर नष्ट होती है। संतति से कष्ट होता है। जातक की सन्तान स्थिर नहीं रहती अर्थात् सन्तति का नाश होता है। जातक की पहली सन्तान मृत होती है। पुत्रसुख नहीं होता है अर्थात अपुत्र ही रहता है। यदि पुत्र सन्तान हो तो परस्पर वैमनस्य रहता है-बाप-बेटा एकत्र नहीं रहते। अलग-अलग रहते हैं। पूर्ववय में परिस्थिति अच्छी नहीं होती। उत्तरवय में स्त्री-पुत्रों से कष्ट होता है। मेष, मिथुन, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु तथा मीन के अतिरिक्त अन्य राशियों में अशुभ फल का अनुभव प्राप्त होता है।