Wednesday 27 May 2020

Dusre bhav me shani ka shubh ashubh samanya fal / दूसरे भाव में शनि का शुभ अशुभ सामान्य फल

Posted by Dr.Nishant Pareek

Dusre bhav me shani ka shubh ashubh samanya fal 

दूसरे भाव में शनि का शुभ अशुभ सामान्य फल 

शुभ फल : धन भाव में शनि के होने से जातक मधुरभाषी तथा न्यायशील होता है। परिवार को छोड़कर, स्वदेश में ही दूर-दूर स्थानों में शहरों तथा नगरों में, अथवा परदेश में जाकर सब अभीष्ट वस्तुओं का लाभ करता है। उत्तम-उत्तम वस्तुएँ प्राप्त होती है। जातक जीवन के उत्तरार्द्ध में अपना निवास स्थान छोड़कर किसी दूसरे स्थान पर चला जाता है और वहाँ पर धन, सवारी तथा सुख के साधन प्राप्त करता है। राजा का कृपापात्र होकर राजसम्मान पाता है। जातक मितव्ययी, होशियार तथा दीर्घदर्शी होने से सम्पत्ति का विनियोग बड़े-बडे़ सुरक्षित व्यवसायों के विकास में करता है। इससे सम्पत्ति में अच्छी वृद्धि होती है। देशान्तर में दो या दो से अधिक विवाह संभाव होते हैं। व्यवसायों के लिए पूँजी देने का काम (फाइनेन्सर) अनुकूल होता है। व्यवसाय की दृष्टि से धनभाव का शनि निम्नलिखित व्यवसायों में लाभदायक हैरू-लकड़ी, कोयला, लोहा, खनिजपदार्थ, धातु, पत्थर, चूना, बालू आदि।
शनि प्रभावित जातक लोहे का व्यापार करें तो अत्यधिक लाभ उठाते हैं। शत्रुभय नहीं होता है। मठाधीश हो सकता है। ग्रन्थकारों ने स्वदेश में अशुभफलों का होना तथा देशान्तर में शुभफलों का होना बतलाया है।       शनि शुभ सम्बन्ध में और विशेषतरू श्तुलाश् में होने से पैतृक सम्पत्ति अच्छी देता है। शनि वृष, कन्या तथा मकर में होने से पूर्वार्जित सम्पत्ति नहीं होती-हो तो उसका उपयोग नहीं होता। अपने श्रम तथा उद्योग से आजीविका करनी पड़ती है। यौवन सुखपूर्ण नहीं होता। विवाह एक होता है। जातक का व्यवहार घर के लोगों से मुसाफिरों जैसा होता है अर्थात् घर के कामों में और घर के लोगों की तरफ ये निरपेक्ष रहता है। जातक की लगन सार्वजनिक और राष्ट्रीय कामों में खूब होती है। जातक हठी और दुराग्रही होता हैं। जातक को अपने खाने-पीने तथा कपड़ों की भी फिक्र नहीं होती है। वृष, कन्या, तथा मकर में शनि होने से पश्चिम की ओर की ओर लाभ होता है।  शनि शुभ सम्बन्ध में होने से लोकोपयोगी कार्य, कम्पनियाँ, शेयर, सट्टा आदि में अच्छा लाभ होता है। अद्भुत चित्ताकर्षक चीजों तथा पुरानी चीजों के व्यापार से लाभ होता है। 

 अशुभ फल : अशुभ शनि दूसरे घर में होने से जातक का चेहरा देखने में अच्छा नही होता है। दृष्टि चंचल होती है। शनि द्वितीय भाव में होने से जातक आचारहीन, साधुद्वेषी, गुणहीन तथा लोभी होता है। जातक अशान्त और उद्विग्न और नास्तिक प्रकृति का होता है। बिना किसी प्रसंग के, व्यर्थ ही मित्रों से तीखे वचन बोलता है अर्थात् व्यर्थ ही कटुभाषण करता है। जातक अच्छा बोलने वाला नहीं होता है-जातक के वचन निष्ठुर अर्थात् कर्णकटु होते हैं। जातक संग्रही तथा चैर्यकर्मपरायण होता है। जातक झूठ बोलनेवाला, चपल, तथा ठग होता है। बुरे कामों से धन मिलता है। आंख पर किसी लकड़ी से लगने के कारण घाव या चोट का निशान होता है। आँखों के रोग होते हैं। द्वितीय भाव में शनि होने से जातक को मुख के रोग और दन्तरोग होते हैं।
यदि आप किसी भी प्रकार के शनिकृत कष्टों से पीडित है तो शनि शांति के ये सरल उपाय आपके लिये है
धनभाव में शनि के होने से जातक वात, पित्त, कफ तथा अस्थिरोग से पीडि़त होता है। शनि द्वितीयभाव में होने से जातक का मुख विकृत होता है। शनि पीडि़त और निर्बल होने से जीवन भर दरिद्री रहना पड़ता है। आर्थिक कष्ट होता रहता है। उदर निर्वाह भी बहुत कष्ट से होता है। व्यापार या व्यवसाय से हमेशा नुकसान होता है। बहुत श्रम करने पर भी लाभ नहीं होता है। धनभाव के शनि से धनहानि होती है तथा व्यापार में नुकसान होता है। द्वितीयभाव का शनि दुरूख देकर धन का नाश करता है। राजा के कोप से निर्धन होता है। जातक पराकाष्ठा का स्वार्थी होता है जो अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए दूसरों से मारकाट करने के लिए एकदम तैयार हो जाता है। जातक के परिवार के लोग, बन्धु वर्ग इसका परित्याग कर देते हैं। दूसरों के घर रहता है। अपने परिवार से किसी प्रकार का भी सुख प्राप्त नहीं करता है। जातक नीच विद्या का अभ्यास करता है। जातक के बहन की सन्तति जीवित नहीं रहती, गर्भपात होता है। घर और बच्चों की हानि होती है। जातक अन्याय मार्ग पर चलता है और धनहीन होता है। विपत्तियों से पीडि़त होता है। लोगों से कष्ट होता है। जातक के छोटे भाई नहीं होते हैं। भाइयों का सुख नहीं मिलता है। कोई उपभोग प्राप्त नहीं होता। शनि धनभाव में होने से जातक के दो विवाह होते हैं। खेती कम रहती है। अपने मित्रों से हानि उठाने वाला करता है। तुला के अतिरिक्त द्वितीय भाव में किसी अन्य राशियों में शनि स्थित होने से जातक व्यसनों से पीडि़त होता है।

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