Saturday, 30 May 2020

Pachve bhav me shani ka shubh ashubh samanya fal / पांचवें भाव में शनि का शुभ अशुभ सामान्य फल

Posted by Dr.Nishant Pareek

Pachve bhav me shani ka shubh ashubh samanya fal 


पांचवें भाव में शनि का शुभ अशुभ सामान्य फल

शुभ फल : पंचम भाव का शनि मिश्रित फल देता है। शुभ सम्बन्ध का शनि शुभ फलदाता और अशुभसम्बन्ध का शनि अशुभफलदाता होता है। इस तरह शुभ-अशुभ सम्बन्ध ही निर्णायक और नियामक मानने होंगे। पंचमभाव में शनि होने से जातक बुद्धिमान्, विद्वान्, उद्योगी तथा भ्रमणशील होता है। शनि पंचमभाव में होने से जातक प्रसन्न, चिरायु, सुखी, चपल, शत्रु समूह विजेता तथा धर्मात्मा होता है। कभी-कभी एक सन्तान के बाद दूसरी सन्तान 5।7।9।12 वर्षों के अन्तर से होती है। कभी कभी गोद लिए जाने के बाद औरस पुत्र की उत्पत्ति भी होती है। इसका योग पुरातन ग्रन्थकारों ने निम्नलिखित बतलाया है- पंचमेश  शनि के नवमांश में हो और गुरु-शुक्र स्वगृह में होने से पहिले दत्तक पुत्र होकर फिर औरस पुत्र होता है। 

पंचमस्थ शनि आपत्तियाँ झेलकर ही समृद्ध होने देता है। पूर्वार्जित सम्पत्ति प्राप्त होकर नष्ट हो सकती है।  वृष, कन्या-मकर में होने से जातक का स्वभाव सादा होता है। अपने काम से काम, दूसरे के काम में हस्तक्षेप नहीं करता है। मौजी-चैनी-मित्रप्रिय होता है।  उच्च, स्वगृह तथा मित्रगृह में होने से किसी प्रकार एक अच्छा पुत्र होता है।  स्वगृही शनि होने से कन्याएँ अधिक होती हैं।  शनि कुंभराशि में होने से पांच पुत्र होते हैं और शनि मकर में होने से तीन कन्याएँ होती है।  वृष, कन्या-मकर में होने से सन्तति सुख अल्प या होता ही नहीं पत्नी स्त्रीरोगों से रुग्णा रहती है। अतरू दूसरा या तीसरा विवाह करने पर बाध्य होते है।  बली शनि होने से जातक स्त्रियों से युक्त होता है। पंचमस्थ शनि वृष, कन्या-मकर में होने से शिक्षा कम होती है। वृष, कन्या, मकर में होने से प्राप्त हुई पूर्वार्जित सम्पत्ति नष्ट होती है। तदनन्तर किसी और की सम्पत्ति उत्तराधिकार के तौर मिलती है। 

  अशुभ फल : जातक सदैव रोगयुक्त होने से अतीव निर्बलशरीर होता है। पंचम भाव में शनि होने से जातक निरुद्यमी, आलसी होता है। जातक की बुद्धि शुद्ध नहीं होती है। अर्थात जातक निष्कपट हृदय नहीं होता है और सबके साथ कुटिलता से व्यवहार करता है। जातक शठ (शैतान) और दुराचारी, निर्बुद्धि, चिन्तायुक्त, दुष्टबुद्धिवाला होता है। बुद्धिहीन तथा हृदयहीन होता है। और मूर्ख होता है। जातक की पूर्ण श्रद्धा न देवताओं में होती है और ना ही अपने धर्म तथा धर्मिक पुस्तकों पर होती है। मन्त्रों में सिद्धि कम प्राप्त होती है। चूँकि जातक श्रद्धा और निष्ठा से अर्थात् पूर्णविश्वास से मन्त्र जाप आदि नहीं करता है तदनुसार सिद्धि भी कम ही होती है। जातक की विभूति-ऐश्वर्य अर्थात् सम्पत्ति स्थिर नहीं रहती है अर्थात् घटती-बढ़ती रहती है।

 लग्न से पंचमस्थान में शनि होने से निर्धन होता है। धनहीन होता है। सदैव दरिद्र होता है। धन तथा ऐश्वर्य थोड़ा होता है। धनहीनता से दुरूखी होता है। पंचम भाव में शनि होने से स्त्रियों के पेट में शूल होता है, ऋतु प्राप्ति के बहुत वर्षो बाद संतति होती है, दो संतानों में 5,7,9,11,13 वर्षों का दीर्घ अन्तर रहता है, प्रसूति का समय बहुत देर से होता है। जन्मलग्न से पंचमभाव में शनि होने से जातक सन्तान न होने से नित्य दुरूखी रहता है। अर्थात् पुत्र नहीं होता है। शनि सन्तान सुख में बाधा डालता है, पुत्रों के लिए कष्टकारक होता है। जातक की संतति दुखी रहती है। गुणहीन, अनीतिमान, तथा व्यसनयुक्त पुत्रों से जातक को भय रहता है क्योंकि ऐसे पुत्र पितृहंता भी हो सकते हैं। जातक वातरोगी, पेट की बीमारियों से पीडि़त रहता है। शस्त्र घात और गुल्म रोग होता हैं। विपत्तियों से ग्रस्त रहने के कारण चित्त विभ्रम, उन्माद रोग होता है। अपनी नासमझाी से जातक के कलेजे में पीड़ा होती है। जातक की मृत्यु हृदय विकार से, या डूबने से होती है। जातक का मित्र से वैर होता है। मित्रों के साथ कलह होता है।
 शनि होने से जातक श्अनंगहीनश् अर्थात ष्अतीव कामातुर नहीं होता हैष्। जातक को कामचेष्टा थोड़ी अर्थात कामेच्छा कम होती है। पंचमस्थ शनि से जन्मदाता माता-पिता का सुख नहीं होता दत्तक पुत्र बन जाने का योग सम्भावित होता है।

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