Tuesday 2 June 2020

Satve bhav me shani ka shubh ashubh samanya fal / सातवें भाव में शनि का शुभ अशुभ सामान्य फल

Posted by Dr.Nishant Pareek

Satve bhav me shani ka shubh ashubh samanya fal 


 सातवें भाव में शनि का शुभ अशुभ सामान्य फल  

शुभ फल: सप्तमस्थ शनि से पति की मृत्यु पत्नी से पहले होती है।  राशिबली और शुभ संबंध में शनि अशुभफल नहीं देता प्रत्युत शनि के विकसित गुणों से संयुक्त पत्नी मिलती है। विवाह से भाग्योदय होता है। सप्तमभाव का शनि मेष, सिंह, मिथुन, कर्क, वृश्चिक, धनु तथा मीन में होने से एक विवाह होने का योग होता है। पति-पत्नी मे परस्पर प्रेम बना रहता हैं। वाग्युद्ध भी होता है तो भी प्रेम बना रहता है। एक शब्द में संसारयात्रा के लिए गृहस्थ का पूर्णरूपेण व्यवहार चलाने के लिए बहुत अच्छी पत्नी प्राप्त होती है। गार्हस्थ्य जीवन अच्छा चलता है। वृष, कन्या तथा मकर में शनि होने से जातक की पत्नी का रूप रंग ऊपर से विपरीत होता है। वृष, कन्या, मकर, कुंभ में शनि होने से जातक के दो विवाह होते हैं। दूसरे विवाह के अनन्तर भाग्योदय होता है। किन्तु पत्नी अनुकूल स्वभाव की नहीं होती अतरू अच्छा पत्नीसुख नहीं मिलता। शनि राशि बली और शुभ संबंध में होने से विवाह से धन और इस्टेट का लाभ होता है। शनि उच्च या स्वगृही होने से जातक अनेक स्त्रियों का उपभोग करता है।  शनि मेष, मिथुन, सिंह, धनु, मकर तथा कुंभ में होने से शिक्षा उत्तम, वकील-मैजिस्ट्रेट आदि के रूप में अच्छी सफलता मिल सकती है।   

अशुभ फल: सप्तमभाव के शनि के आचार्यो ने अशुभफल ही वर्णित किए हैं। जातक ढ़ोंगी, अंगहीन और मित्रों से मायाबी व्यवहार करनेवाला होता है। गन्दे कपड़ों वाला, पापी और नीचकर्म करनेवाला होता ळें जातक दूसरे के भाग्य का खाता है अर्थात् स्वयं निकम्मा और नखट्टू होता है। कौए की तरह दूसरों के टुकड़ों पर पलता है। पत्नी वियोग (या वैधव्य) का निश्चित योग होता है। सप्तम शनि से जातक विधुर होता है और उसे दूसरा विवाह करना होता है। स्त्री अथवा सन्तान का नाश होने का योग भी होता है। सप्तम में शनि के होने से जातक को बोझा उठाना पड़ता है, बोझा उठाकर दूरतक चलने की थकावट से मन में दुरूख होता है। जातक निर्धन होता है। मार्ग चलनेवाला और दुरूखी होता है। प्राचीनकाल में पैदल चलना या यात्रा करना कष्ट का लक्षण माना जाता था। सप्तमभाव में शनि के होने से जातक का शरीर दोषयुक्त रहता है। सप्तमभाव में शनि हाने से जातक खराब चालवाला, थोड़ा बोलनेवाला, निर्बुद्धि और पराधीन होता है। अपनी वास्तविक आयु से बड़ा प्रतीत होता है।

 शनि के सप्तमभाव में स्थित होने से जातक रोगों से पीडि़त अतएव निर्बल देह हो जाता है। जातक का चित्त स्थिर नहीं होता है। जातक कार्य मात्र में अनुत्साही, देह में अत्यन्त कृशता, शीघ्र ही रोगों की अधिकता और बुद्धि चंचंल होती है। उत्साहहीन होने से दुरूखी रहता है। जातक का मन छोटा रहता है। जातक का मन सदा घबड़ाया हुआ रहता है। क्रोधी, भ्रमणशील, आलसी, स्त्रीभक्त, विलासी एवं कामी होता है। जातक बहुत लोभी होता है। और दुष्ट प्रकृति का होता है। आजीविकाहीन होता है। यद्यपि जातक के पास गुजारे लायक धन रहता है। पत्नी और परिवार के दुरूख से दुरूखी रहता है हालांकि जातक अपनी ओर से पत्नी को प्रसन्न रखने की चेष्टा करता है। सुन्दर स्त्री, योग्य हितकारी शुद्ध हृदय मित्र, अधिक धन का सुख बहुत समय नहीं मिलता है। जातक की पत्नी (या पति) उदास, दुरूखी, निराश, कम बोलनेवाली होती है। जातक की पत्नी रोगिणी, चिड़चिड़े स्वभाव की, क्रोधवती, दुराचारिणी होती है। स्त्री कुलटा होती है। विवाहसुख ठीक नहीं मिलता। व्यभिचार की प्रवृत्ति होती है। जातक की पत्नी कृश होती है। सप्तम में शनि होने से जातक कुस्सित स्त्री अर्थात् बद चलन स्त्री में आसक्त रहता है। जातक वेश्यागामी होता है। जातक के सप्तमभाव में शनि होने से स्त्रियाँ निरादर करती हैं।
 सातवें स्थान में शनि होने से जातक प्रमेह जैसे रोग से ग्रस्त होता है। जातक को पेट (आंत) या मूत्र संबंधी दीर्घ रोग (लंबे समय तक चलने वाले) होते हैं। स्त्रीसुख गृहसुख तथा धन का सुख नहीं मिलता है। जातक का संसर्ग तथा संपर्क नीचवृत्ति के लोगों से रहता है। बदमाश, झूठ बोलनेवाले विश्वासघाती लोगों से एकदम शत्रुता होती है। साझीदारी में नुकसान होता है। कानून-कचहरी के मामलों में असफलता होती है। दूसरों के साथ किए हुए व्यवहारों में बेकार झगड़े होते हैं-तकलीफ होती हैं। सप्तम शनि के प्रभाव से जातक दु:ष्टस्त्री-रत, दु:ष्ट मित्रयुक्त, अन्याय-उपार्जितधनयुक्त, अति तृष्णाभिभूत होता हुआ संसार में उन्मतवत् व्यवहार करता हुआ भटकता फिरता है और मन अशान्त रहता है  अशांतस्य कुतः सुखम  अशुभफलों का अनुभव वृष, कन्या, मकर, तुला तथा कुम्भराशियों में होता है।

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