Wednesday 27 May 2020

Pahle bhav me shani ka shubh ashubh samanya fal/ पहले भाव में शनि का शुभ अशुभ सामान्य फल

Posted by Dr.Nishant Pareek

Pahle bhav me shani ka shubh ashubh samanya fal


पहले भाव में शनि का शुभ अशुभ सामान्य फल 

शुभ फल : पुराने ग्रन्थकारों के अनुसार लग्न में शनि होने से एकान्तप्रियता, हठी, निश्चयी, उदासीनता, प्रपन्च से दूर रहना, जड़ता आदि फल होते हैं। लग्नस्थ शनि प्रभावित व्यक्तियों का पहली मुलाकात में अच्छा प्रभाव पड़ता है। जातक को राजा जैसा अधिकार मिलता है। जातक राजा जैसा गुणवान् तथा दीर्घायु होता है। जातक को राज्य अथवा राज्य के संसर्ग से लाभ मिलता है। जातक धन से परिपूर्ण अर्थात् बहुत सुखी, धनाढ़य, धनवान् होता है। धनधान्य की समृद्धि प्राप्त होती है। बलवान् शत्रुओं को भी नष्ट करनेवाला होता है। शत्रुओं को पराभूत करता है, शत्रुविजेता होता है। जातक दृष्टि से ही शत्रु का नाश करने वाला होता है। जातक की दृष्टि विषैली होती है। जातक राजा जैसा सम्पन्न, नगर या गांव का स्वामी (मुखिया), विद्वान् और सुन्दर होता है।  शनि शुभ सम्बन्ध में होने से भाग्योदय कराता है।  पूर्व आयु में संकट और मुसीबतें झेलकर भारी उद्योग से, आत्मविश्वास तथा धीरज से अन्त में सफलता प्राप्त होती है।

 वृष, कन्या, तुला, मकर, या कुम्भ में लग्नस्थ शनि होने से जातक नौकरी में अधिक सुख मानता है। यदि व्यवसाय किया तो बड़ी मिलों या फर्मों में स्वामी या अधिकारी होता है।  लग्न में शनि स्वगृह, उच्च, या गुरु की राशि में (धनु-मीन-मकर-कुंभ या तुला) में उत्तम फल प्रदान करता है। लग्न में वृद्ध ग्रह शनि होने से जातक प्रौढ़प्रकृति और लोकमान्य होता है। स्वगृह (मकर, कुंभ) मे शनि होने से जातक को पैतृकसम्पत्ति मिलती है। लग्नस्थ शनि स्वगृह, मूलत्रिकोण या उच्चराशि में होने से जातक देश या नगर का प्रमुख व्यक्ति होता है।

अशुभ फल : जातक अंगहीन (किसी अवयव में दोष युक्त ) होता है। बहुधा पैर में दोष होता है। शरीर कृश होता है। आलसी, मलिनदेह (स्नानादि से हीन) होता है। साधरणत: लगनस्थ शनि से प्रवृत्ति उदासीन, आलसी, निष्क्रिय, एकान्तप्रिय, लज्जाशील, एक ही बात पर अड़े रहने की मनोवृत्ति होती है। जातक को निराशा, कष्ट, कामों में विघ्न तथा जीवन में असफल होता है। धार्मिक आचार-विचार के बारे में जातक के विचार अजीव से होते हैं। सदा व्यग्र, क्रोधी, कंजूस, दुष्ट आचारवान्, पाप मति और शठ होता है। जातक मन्दगति, कामातुर, कामपीडि़त, केशहीन तथा दुर्बल शरीर होता है।

 प्रथम स्थान में शनि होने से जातक कामी होता है। दूसरों का उत्कर्ष देखकर जातक के चित्त में डाह पैदा होती है जिससे स्वयं दुरूखित होता है। जातक विषादी अर्थात् अप्रसन्न रहता है। असन्तुष्ट होता है। जातक स्थूलदृष्टि-मोटी बुद्धि वाला, अर्थात सूक्ष्म विचार न करनेवाला होता है। जातक को मानसिक व्यथा सदा लगी रहती है। सदैव अपने विषय में चिन्तित रहता है। तनुभाव का शनि जातक को व्यर्थ का झगड़ा करनेवाला बनाता है। जातक को धन प्राप्ति के लिए भारी तृष्णा बनी रहती है। जातक को व्यापार से लाभ नहीं होता, अच्छा रहे जातक किसी के साझे में व्यापार करे अथवा नौकरी करे। स्त्री वृद्ध जैसी होती है। शनि के समान (दोषयुक्त) दृष्टि से देखनेवाला, परोत्कर्षासहिष्णु और अनेक प्रकार की व्याधियों से दुर्बल शरीर वाला होता है। जन्म लग्न में शनि होने से जातक सदैव रोगी रहता है। बचपन में रोगों से पीडि़त होता है। वातजन्य रोगों से भी पीडि़त रहता है। कान के भीतर वातरोग पीड़ा सदैव होती रहती है। कफ प्रकृति होता है। शनि लग्न में होने से जातक के नाक में दोष रहता है। सारे शरीर में खुजली रहती है। जुकाम, गिरने से शिर को चोट लगना आदि कष्ट होते हैं। जातक के शिर में लोहा आदि के आघात से पीड़ा होती है। हृद्रोगयुक्त, या अण्डकोश संबंधी पीड़ा से युक्त होता हैं।
यदि आप किसी भी प्रकार के शनिकृत कष्टों से पीडित है तो शनि शांति के ये सरल उपाय आपके लिये है
      पृथ्वीराशि में और विशेषतरू वृषभ में शनि होने से विचारशून्यता, मंदता, नीचता, दुष्ट और दीर्घद्वेषी वृत्ति रहती है।  मकर में शनि होने से धूर्त, वाद-विवाद में कुशल, स्वार्थी, परिश्रमी, लोभी और कंजूस होता है। वृष, कन्या, तथा मकर में मूत्रकृच्छ, कफ-तथा उपदंश आदि रोग भी सम्भवित होते है।  वृष, कन्या, तुला, मकर, या कुम्भ में लग्नस्थ शनि होने से जातक का घरेलू जीवन ठीक नहीं होता-दो विवाह, पत्नी से छठा आठवाँ रहता है। जातक की दृष्टि विषयमयी होती है। जातक से प्रश्ंसित व्यक्ति शीघ्र ही नष्ट होता है। स्त्रियों से अवैध सम्बन्ध रखता है। पत्नीरुग्णा रहती है। वृष, कन्या, मकर, या कुम्भ में लग्नस्थ शनि होने से जातक वचपन में मातृ-पितृहीन होते हैं, प्रायरू पिता की मृत्यु होती है।  वृष, कन्या, मकर, तथा कुम्भ में जातक अपने स्वार्थ के लिए दूसरों का नुकसान करते पाए गए हैं। लग्नस्थ शनि के अशुभफल प्रायरू वृष, कन्या, मकर तथा कुम्भ राशियों में मिलते हैं ।

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