Thursday 8 April 2021

Vrishchik rashi ka parichay / वृश्चिक राशि का संपूर्ण परिचय जानने के लिये क्लिक करे।

Posted by Dr.Nishant Pareek

Vrishchik rashi ka parichay


वृश्चिक राशि का संपूर्ण परिचयः-

वृश्चिक राशि के अंतर्गत आने वाले नामाक्षर निम्न हैः- तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू।

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वृश्चिक राशिचक्र की आठवीं राशि है। इसे अष्टम भी कहते हैं। इसके कुछ अन्य पर्याय इस प्रकार हैं- अलि, कीट कोर्पि, द्रौण, भृंग, द्विरेफ, भ्रमर, षडघ्रि, अस्र, सविष, चचरीक, पुष्पन्धय, मधुकर, सरीसृप । अंग्रेजी में इसे स्कोर्पियो कहते हैं।

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वृश्चिक राशि का प्रतीक इसके नाम से स्पष्ट है, बिच्छू या स्कोर्पियन है। मिस्र के प्राचीन निवासी गरुड़ या ईगल को भी इसका प्रतीक मानते थे। इस राशि का विस्तार राशि चक्र के २१० वें अंश से २४० वें अंश तक (कुल ३० अंश) है । इसका स्वामी मंगल है। पश्चिम के कुछ आधुनिक ज्योतिषी अब यम या प्लूटो को इसका स्वामी मानने लगे हैं। यह स्थिर और स्त्री राशि है। इसका तत्व जल है। वृश्चिक के तीन द्रेष्काण - दस-दस अंशों के तीन सम भागों के स्वामी क्रमशः मंगल-मंगल, मंगल-गुरु, और मंगल-चन्द्र हैं।

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 इस राशि के क्षेत्र में विशाखा नक्षत्र का चतुर्थ या अन्तिम चरण, अनुराधा नक्षत्र के चारों चरण और ज्येष्ठा नक्षत्र के चारों चरण आते हैं। प्रत्येक चरण ३°२० का है, जो नवांश के एक पद के बराबर है। इन चरणों के स्वामी क्रमशः इस प्रकार हैं - विशाखा चतुर्थ चरण - गुरु-चन्द्र,  अनुराधा प्रथम चरण- शनि सूर्य, अनुराधा द्वितीय चरण - शनि बुध, अनुराधा तृतीय चरण - शनि-शुक्र, अनुराधा चतुर्थ चरण - शनि मंगल, ज्येष्ठा प्रथम चरण - बुध -गुरु, ज्येष्ठा द्वितीय चरण - बुध - शनि, ज्येष्ठा तृतीय चरण - बुध शनि तथा ज्येष्ठा चतुर्थ चरण - बुध गुरु। इन चरणों के नामाक्षर क्रमशः तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू हैं ।

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इस राशि का एक अन्य विभाजन त्रिशांश चक्र के अनुसार है। जातक के लिए यह चक्र विशेष महत्व का है। राशि के प्रथम पांच अंश वृष के हैं। जिनका स्वामी शुक्र है। पांच अंश से बारह अंश तक कन्या के हैं जिनका स्वामी बुध है । बारह अंश से बीस अंश तक मीन के हैं जिनका स्वामी गुरु है। बीस अंश से पच्चीस अंश तक मकर के हैं जिनका स्वामी शनि है। पच्चीस अंश से तीस अंश तक वृश्चिक के हैं जिनका स्वामी मंगल है। जिन व्यक्तियों के जन्म के समय चन्द्र वृश्चिक राशि में संचरण कर रहा होता है, उनकी जन्म-राशि वृश्चिक मानी जाती है। उन्हें गोचर के अपने फलादेश इसी राशि के अनुसार देखने चाहिए। जन्म के समय लग्न में वृश्चिक राशि होने पर भी यह अपना प्रभाव दिखाती है।

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 पश्चिम के ज्योतिषी गोचर के फलादेश सायन सूर्य की स्थिति के अनुसार कहते हैं अर्थात् जन्म के समय सायन सूर्य किस राशि में संचरण कर रहा था। अब कुछ भारतीय ज्योतिषी भी ऐसा करने लगे हैं। सायन सूर्य २३ अक्तूबर से २१ नवम्बर तक वृश्चिक राशि में संचरण कर रहा होता है। ज्योतिषियों के मतानुसार इन तिथियों में दो-एक दिन हेर-फेर भी हो सकता है। अतः जिन व्यक्तियों की जन्म-तिथि इस अवधि के बीच हैं वे पश्चिमी ज्योतिष पर आधारित फलादेशों को वृश्चिक राशि के अनुसार देख सकते हैं। भारतीय ज्योतिषी निरयण पद्धति अपनाते हैं। निरयण सूर्य लगभग १७ नवम्बर से १६ दिसम्बर तक वृश्चिक राशि में रहता है। जिन व्यक्तियों के पास अपनी जन्म कुण्डली नहीं है, अथवा वह नष्ट हो चुकी है तथा जिन्हें अपनी जन्म-तिथि और जन्मकाल का पता नहीं है, वे अपने प्रसिद्ध नाम के प्रथम अक्षर को फलादेश जानने के लिए राशि का आधार मान सकते हैं । 

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इस प्रकार हम वृश्चिक जातकों को भी अन्य राशियों के जातकों की भांति चार वर्गों में बांट सकते हैं-चन्द्र-वृश्चिक, लग्न-वृश्चिक, सूर्य-वृश्चिक तथा नाम-वृश्चिक । इन चारों वर्गों में कुछ प्रवृत्तियां समान रूप से पाई जाती हैं, किन्तु कुछ प्रवृत्तियां हर वर्ग की अपनी अलग-अलग भी हो सकती हैं। वृश्चिक राशि में चन्द्र नीच का होता है । ग्रह-मैत्री चक्र के अनुसार सूर्य, चन्द्र, गुरु के लिए यह मित्र राशि है। शुक्र और शनि के लिए यह सम राशि है। तथा बुध के लिए शत्रु राशि । ताजिक के अनुसार चन्द्रमा इस राशि में प्रसुप्ति अवस्था में होता है। शुक्र के लिए यह अस्त राशि है। बिच्छू और गरुड़ के इस राशि का प्रतीक होने से यह अनुमान लगाना सहज है कि इससे सम्बन्धित व्यक्तियों में प्रायः बिच्छू की भांति डंक मारने की अथवा गरुड़ की भांति झपटकर अपने शत्रु पर प्रहार करने की प्रवृत्ति पाई जाती है।

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प्रकृति और स्वभाव:-

वृश्चिक जल तत्व वाली राशि है। जल त्रिकोण (कर्क, वृश्चिक, मीन) की यह दूसरी राशि है । इसका स्वामी मंगल है जो अग्नि-ग्रह है। जल और अग्नि का यह संयोग जल को भाप में बदलने में सहायक है। यह शांत, स्थिर जल में भारी हलचल ला सकता है । भाप ऊर्जा का एक प्रमुख स्रोत भी है। वृश्चिक जातकों में ऊर्जा का असीम भंडार मिलता है।

वृश्चिक स्थिर राशि भी है । उसका यह गुण वृश्चिक जातकों को अत्यन्त कर्मठ और लगनशील बना देता है । वे हर समय किसी-न-किसी काम में लगे रहते हैं और एक बार जो संकल्प मन में ठान लेते हैं उसे पूरा किए बिना चैन से नहीं बैठते । उनकी ऊर्जा का पूरा लाभ उठाने के लिए यह आवश्यक है कि उन्हें उनकी प्रभुत्व शक्तियों का भान करा दिया जाए। मंगल की दूसरी राशि मेष के जातकों और वृश्चिक जातकों में एक बड़ा अन्तर यह है कि मेष जातक स्वयं को जन्म-जात नेता समझते हैं और किसी की अधीनता में काम करने में वे कठिनाई अनुभव करते हैं । उनमें स्थिरता का भी प्रायः अभाव होता है और अपनी शक्तियों का दुरुपयोग या अपव्यय करने की प्रवृत्ति पाई जाती है। इसके विपरीत वृश्चिक जातकों की प्रवृत्ति रचनात्मक कार्यों की ओर अधिक होती है।

वृश्चिक सम या स्त्री राशि है । स्त्री राशियां सौम्य मानी गई हैं इस राशि वाले दूसरों से तब तक उलझना पसन्द नहीं करते जब तक उन्हें इसके लिए विवश न किया जाए। किन्तु जब उन्हें एक बार छेड़कर उत्तेजित कर दिया जाता है तो वे अपने शत्रु को नीचा दिखाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते। महिलाओं का रूप तो उस समय घायल सिंहनी जैसा होता है।

वृश्चिक-जातकों में दूसरों को अपनी ओर आकर्षित करने की असाधारण शक्ति होती है। बचपन में वे प्रायः कोमल होते हैं और औसत से अधिक रोगों के शिकार होते हैं । इक्कीसवें वर्ष के बाद उनमें रोगों से लड़ने की शक्ति आ जाती है । रोगों में उन्हें प्रायः गुप्त रोगों और श्वास रोगों का करना होता है। वे दुर्घटनाओं के भी कुछ अधिक ही शिकार होते हैं । शायद ही कोई वृश्चिक जातक उनसे बच पाता हो । ये दुर्घटनाएं उनके शरीर पर स्थायी निशान छोड़ जाती हैं।

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यदि लग्न पर पाप ग्रहों की कुदृष्टि न हो अथवा अन्य कुयोग न हों तो वृश्चिक जातकों का शरीर सुडौल होता है। उनके हाथ औसत से अधिक लम्बे, चेहरा चैड़ा, आकर्षक व्यक्तित्व, छोटे घुंघराले बाल और मांसल शरीर होते हैं। वृश्चिक-कन्याओं के हाथ-पांव में एक खास अल्हड़ता और मादकपन होता है जो बरबस अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। वृश्चिक जातक आवश्यकता पड़ने पर अपनी इस मोहिनी का सदुपयोग अथवा दुरुपयोग भी कर सकते हैं।

वृश्चिक-जातक जिस धन्धे या व्यवसाय में लगे होते हैं, उसमें तो जी-तोड़ परिश्रम करते ही हैं, उनका मस्तिक भी शैतान का घर होता है। उनमें उर्वर कल्पना-शक्ति व तीव्र बुद्धि होती है, किन्तु अत्यधिक कल्पनाशीलता प्रायः उन्हें अपने जाल में उलझाए रखती है और वे उसका वांछित लाभ नहीं उठा पाते । इसका एक कारण उनमें तीव्र ईष्र्या-भाव का होता है। मित्रों की मजाक में कही एक छोटी सी बात भी उनके मन को बुरी तरह से झकझोर देती है। वे ऐसी-ऐसी बातें सोचने लगते हैं जिनसे बाद में उनका अहित ही होता है। उदाहरण के लिए यदि किसी मित्र ने उससे कह दिया कि उसने उसकी पत्नी को बाजार में अमुक व्यक्ति के साथ देखा था, तो वृश्चिक-जातक का ईष्र्यालु मन अपनी पत्नी के उस व्यक्ति के साथ सम्बन्धों को लेकर तत्काल उल्टी-सीधी बातें सोचने लगेगा। इसका परिणाम पारिवारिक शांति में विस्फोट के रूप में भी सामने आ सकता है।

वृश्चिक जातकों की एक बड़ी कमजोरी यह है कि वे जिसके सम्पर्क में आते हैं और जिसे अपना विश्वास दे बैठते हैं उसी के अनुरूप स्वयं को ढालने का प्रयास करते हैं। फलस्वरूप उन्हें भी अपने विश्वास पात्र के दोषों के लिए भुगतना होता है । यदि उनके मन में यह बैठ जाए कि उनका मित्र या स्वामी उन्हें नीचा दिखाने का प्रयास कर रहा है तो वे तत्काल उनसे बदला लेने को कमर कस लेंगे। उनमें एक दुहरा जीवन जीने की भी प्रवृत्ति होती है। एक दुनिया को दिखाने के लिए, दूसरा अपने लिए। ऊपर से मुंहफट दिखाई देते हुए भी वे उपयुक्त अवसर के लिए कोई-न-कोई महत्वपूर्ण भेद अपने मन में छिपाए रखते हैं।

वृश्चिक जातक दूसरों के मामलों में हस्तक्षेप करना पसंद नहीं करते। उनमे तभी दिलचस्पी लेते हैं जब उनका अपना सम्बन्ध उनसे हो । वे व्यर्थ की बातें करना और धोखाधड़ी का सहारा लेना पसन्द भी नहीं करते। जहां तक हो, कम बोलते हैं। उनके शब्द भी नपे-तुले होते हैं।

राशि-स्वामी मंगल उनमें आत्म-विश्वास, आवेश में काम करने की प्रवृत्ति, साहस, संकल्प, स्वतन्त्रता, उत्तेजना, दबंगपन जैसे गुण प्रदान करता है। वे जिसे पसन्द करते हैं, मन से पसंद करते हैं या जिससे घृणा करते हैं, मन से घृणा करते हैं। वे अतिवादी होते हैं । बहुत शीघ्र आवेश में आ जाते हैं। दूसरों के सामने झुकने को तैयार नहीं होते । अकेले पड़ जाएं, तब भी नहीं। अपनी लड़ाई स्वयं लड़ते हैं अपना मार्ग स्वयं चुनते हैं।

वृश्चिक जातकों का एक प्रमुख गुण यह है कि वे अपनी भावना के वशीभूत होते हैं केवल प्रेम सम्बन्धों में ही नहीं, अन्य सभी कार्यों में भी। यदि उन्हें उच्च भावनात्मक स्तर पर रहने का अवसर न मिले तो वे निराश हो जाते हैं और अनेग मनोवैज्ञानिक व्याधियां उन्हें घेर लेती हैं। वे अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए कोई भी क्षेत्र चुन सकते हैंै। सामाजिक-राजनीतिक अन्याय का, वित्तीय शोषण का, अपर्याप्त आवास व्यवस्था का। अन्याय के प्रतिकार के लिए वे अपनी पूरी शक्ति लगा देंगे। इन लोगों का अतीन्द्रिय ज्ञान भी अद्भुत होता है। अनेक अप्रत्याशित घटनाओं का उन्हें पूर्वाभास हो जाता है और वे सही पक्ष में जाकर खड़े हो जाते हैं।

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यह सही है कि वृश्चिक जातकों में बिच्छू की भांति डंक मारने की क्षमता होती है । बदले में यदि कोई उन्हें चोट पहुंचाए तो वे इसे आसानी से नहीं भूलते । लेकिन थोड़ा-सा भी दुःख या खेद प्रकट कर देने पर आमतौर से उनका क्रोध उतर जाता है। और वे तत्काल अपने शत्रुओं को क्षमा कर देते हैं।

आर्थिक गतिविधियां तथा कार्यकलाप:-

वृश्चिक जातकों में असीम ऊर्जा होती हैं। वे उस इंजन के समान है जिसका बेकार पड़ा रहना उसे बिगाड़ देगा। यदि उन्हें अपनी ऊर्जा के उपयोग का अवसर न मिले तो इसका उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है । व मानसिक परेशानियों के भी शिकार हो सकते हैं।

यह भी सच है कि छोटे-मोटे या महत्वहीन कामों से उन्हें संतोष नहीं होता। यदि वे ऐसा अनुभव करें कि वे मशीन का छोटा और अनावश्यक पुर्जा बनकर रह गए हैं तथा उनकी शक्ति का अपव्यय हो रहा है तो उनका काम करने का सारा उत्साह भंग हो जाता है । वे नए सिरे से काम में जुटने का उपक्रम करने लगते हैं।

वृश्चिक जातकों को प्रायः अन्वेषक की संज्ञा दी जाती है । वे हर समस्या की जड़ तक पहुंचने का प्रयास करते हैं। उनमें तर्क करने की भी उत्तम शक्ति होती है तथा अद्भुत अतीन्द्रिय ज्ञान होता है । अपने धंधे के प्रति उनमें भारी लगन और कर्तव्य-भावना होती है । इन गुणों के कारण वे उत्तम डाक्टर, सर्जन, उपदेशक और वक्ता बनते हैं। अपने मौलिक विचारों के कारण वे व्यापार, राजनीति, साहित्य आदि में भी आमतौर से सफल रहते हैं।

उनका भाषा पर अच्छा अधिकार होता है। वक्ता के रूप में श्रोताओं को प्रभावित करके वे उन्हें मनचाही दिशा में मोड़ सकते हैं । लेखन में वे प्रायः आलोचना का क्षेत्र चुनते हैं, या फिर ऐसे विषय जिनमें वे दूसरों के गुण-दोषों को परख सकें। वैज्ञानिक विषयों में भी उनकी रुचि हो सकती है। उनकी वर्णन-शैली अत्यन्त नाटकीय रहती है । देर-सवेर वे गुप्त विद्याओं में दिलचस्पी लेने लगते हैं । वे दूसरों के चरित्र को बहुत अच्छी तरह से देख-पढ़ सकते हैं।

सघन विश्लेषण करने और तथ्यों की तह तक पहुंचने की प्रवृत्ति के कारण वे अच्छे पुलिस अधिकारी बनते हैं, विशेषकर अपराधों की जांच-पड़ताल करने वाले पुलिस अधिकारी । विडम्बना यह है कि इस क्षेत्र में उनका पाला अपने ही वर्ग के लोगों, वृश्चिक जातकों, से पड़ने की काफी सम्भावना रहती है । गलत प्रवृत्तियों का शिकार होने पर वे अपराधी-वृत्ति भी अपना सकते हैं ।

वृश्चिक जातक अच्छे मनोविश्लेषक भी बनते हैं। सरकार में वे कूटनीतिज्ञ या वार्ताकार की भूमिका काफी सफलता से निभा सकते हैं । विवादों को निपटाने या शत्रुओं को एक स्थान पर लाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है । वे अच्छे सैनिक भी हो सकते हैं। आमतौर से वे अनुशासनप्रिय होते हैं, किन्तु ऐसे अनुशासन को उनकी शक्तियों की अभिव्यक्ति में बाधक नहीं होना चाहिए।

उनमें अक्सर खतरनाक और जोखिम के उद्यमों में लगने की प्रवृत्ति रहती हैं, जैसे गुप्त खजाने या खानों की खोज, अज्ञात स्थानों का अन्वेषण आदि । खेलों में भी वे जोखिम वाले खेल ही अधिक पसंद करते हैं। जैसे मुक्केबाजी, कराटे, जूडो आदि । तैरने में भी उनकी रुचि हो सकती है, लेकिन इसमें भी वे पानी में स्कीइंग, नौका दौड़ जैसे जोखिम भरे खेल ही अधिक पसंद करेंगे।

वृश्चिक जातकों को अपने मित्रों तथा परिचितों से प्रायः प्रेम और प्रशंसा मिलती है, लेकिन कुछ ही लोग जीवन में कभी-न-कभी घोटालों या बदनामी के शिकार होने से बच पाते हैं। उनकी आय के आमतौर से दो साधन होते हैं।

प्रारम्भिक वर्षों में उन्हें काफी परेशानियों तथा कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, किन्तु देर-सवेर उन्हें सफलता और यश दोनों मिलते हैं।

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वे दूसरों पर भरोसा कर आसानी से ऐसी योजनाओं में फंस जाते हैं जिनका कोई ठोस आधार नहीं होता। पैसे को दोनों हाथों से लुटाने में विश्वास करते हैं। पैसा उन्हें जेब में पड़ा काटता है। सहायता की पुकार होने पर वे अपने को रोक नहीं पाते, विशेषकर विपरीत लिंगियों की ओर से पुकार होने पर । यही कारण है कि वृश्चिक जातक कदाचित् ही धन जोड़कर रख पाते हैं।

मैत्री, प्रेम, विवाह-सम्बन्ध:-

वृश्चिक राशि कालपुरुष के गुह्यांगों का प्रतिनिधित्व करती है। इससे सातवीं राशि, जो विवाह तथा प्रेम-सम्बन्धों का व्यक्त करती है, वृषभ है । वृषभ का स्वामी शुक्र है जो शरीर-सारों में वीर्य-रज का स्वामी है। स्वयं वृषभ बलपौरुष का प्रतीक माना जाता है । वह मार्ग में इधर-उधर झूमता हुआ, मुंह मारता हुआ चलता है। किन्तु जब वह आपे से बाहर होता है तो उस पर नियंत्रण पाना सरल नहीं होता। सामने पड़ने वाली हर वस्तु को रौंद डालता है।

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इससे यह अनुमान लगाना कठिन नहीं कि राशि-मंडल में वृश्चिक सबसे अधिक कामबली राशि है । वृश्चिक जातकों की शक्ति का एक बड़ा भाग उनके प्रेम-सम्बन्धों पर खर्च होता है । अनेक वृश्चिक जातक दो-दो परिवार रखते भी पाए गए हैं।

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वे अत्यन्त भावुक होते हैं और उनके नए-नए प्रेम-सम्बन्ध जुड़ते देर नहीं लगती। साथ ही वे पुराने प्रेम-सम्बन्धों को भी आसानी से नहीं भूलते । उनके प्रेम-सम्बन्ध टूटने का सबसे बड़ा कारण उनका ईष्र्यालु स्वभाव होता है। अपने जीवन-साथियों से भी वे अधिकतम तृप्ति पाने की आकांक्षा रखते हैं । ऐसा न होने पर वे बेचैन हो उठते हैं और विवाहेत्तर सम्बन्ध जोड़ने का प्रयास करते हैं। उदासीन जीवन-साथी से उनकी नहीं पट सकती। अतः वृश्चिक जातक से विवाह सम्बन्ध जोड़ने वालों को यह समझ लेना आवश्यक है कि एक वृश्चिक पति अपनी पत्नी के साथ प्रेमी की भी भूमिका निभाना चाहता है। इसी प्रकार वृश्चिक पत्नी भी एक वृश्चिक पति के साथ प्रेमिका की भी भूमिका निभाना चाहेगी। तदनुसार आचरण करने से ही उनका वैवाहिक जीवन सुखमय हो सकेगा।

वृश्चिक जातिका के लिए आदर्श पति वृश्चिक जातक ही हो सकता है।  मीन अथवा कर्क जातक के साथ भी उसका जीवन सुखमय रहेगा।  कन्या या मकर जातक से भी उसकी पट सकती है । वृषभ पति अपनी वृश्चिक पत्नी को प्रसन्न रखने का पूरा प्रयास करेगा। जहां तक हो सकेगा, घर की बात को बाहर नहीं जाने देगा। वृषभ जातक को सबसे अधिक ध्यान अपने सम्मान और पारिवारिक प्रतिष्ठा का रहता है। लेकिन वृश्चिक पत्नी के साथ सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि वह अकस्मात् आपे से बाहर हो जाती है । उस समय उसे कुछ भी ध्यान नहीं रहता-न पति की स्थिति का, न और किसी बात का। बाद में आवेश समाप्त हो जाने पर वह अपने व्यवहार पर पछताती भी है। यों वृश्चिक पत्नियां अत्यन्त परिश्रमी और सीधी-सच्ची होती हैं। यही बात वृश्चिक पतियों के लिए भी सही है।

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जहां तक मित्रता की बात है, वृश्चिक जातक जब किसी को मित्र बनाते हैं तो बहुत शीघ्र उसके साथ घनिष्ठ हो जाते हैं । लेकिन उनकी यह मित्रता बहुत कम स्थायी रह पाती है। जब दोनों के बीच किसी बात को लेकर विवाद हो जाता है तो फिर वृश्चिक जातकों से बुरा शत्रु भी दूसरा नहीं होता। वृश्चिक जातक अपने मित्रों से बहुत अधिक आशा करते हैं। छोटी-छोटी बातों पर उन्हें कुरेदते रहते हैं, किन्तु वे उदार भी बहुत होते हैं। मित्रों को अच्छे से-अच्छे होटलों-रेस्तरांओं में ले जाते हैं। उनके स्वागत-सत्कार पर अन्य प्रकार से भी व्यय करते हैं। उन्हें यह चिन्ता नहीं होती कि उनका मित्र धनी है या निर्धन । उनके उपकार का प्रतिदान दे पाएगा अथवा नहीं। आवश्यकता पड़ने पर वे धन देकर भी मित्रों की सहायता करते हैं।

वृश्चिक माता-पिता प्रारम्भ में बच्चों को अत्यन्त प्यार करते हैं, किन्तु जब वे बड़े होने लगते हैं तो उन पर कठोर अनुशासन लादने का प्रयास करते हैं। माता पिता की अपेक्षा अधिक संतुलित होती है। कठोर अनुशासन के कारण बच्चों के मन में अपने माता-पिता के प्रति भय की भावना भी पनप सकती है । आयु के साथ-साथ उनके विचारों का अन्तर बढ़ता जाता है और यह पीढ़ियों के अंतर के रूप में प्रकट हो सकता है। वृश्चिक बच्चों के लालन-पालन में बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है । वे दृढ़ व्यक्तित्व वाले और प्रायः जिद्दी भी होते हैं। उन्हें अपनी हर जिज्ञासा का पूरा समाधान चाहिए। यदि माता-पिता इसमें असफल रहते हैं, तो वे उनके समाधान के लिए अपने मार्ग खोजने लगते हैं और गलत प्रवृत्तियों के भी शिकार हो सकते हैं। यदि समय रहते इन्हें नहीं रोका गया तो वे जीवन-भर उनका पीछा नहीं छोड़तीं। इसके अनेक दुष्परिणाम हो सकते हैं।

वृश्चिक बच्चों में जो सबसे बुरी प्रवृत्ति के विकसित होने का डर होता है, वह है ईष्र्या - भाव की। यह ईष्र्या-भाव छोटे भाई-बहनों के प्रति भी हो सकता है । छात्रावास में वे मित्रों के साथ मनोरंजन के गुप्त साधन जुटाने में प्रवृत्त हो सकते हैं।

स्वास्थ्य और खान-पान:-

वृश्चिक राशि कालपुरुष के गुह्यांगों का प्रतिनिधित्व करती है । अतः उस पर पापग्रहों की कुदृष्टि होने से शरीर के इन्हीं अंगों के प्रभावित होने की सबसे अधिक सम्भावना रहती है । जहां तक यौन सम्बन्धों की बात है, वृश्चिक जातक प्रायः अति कामुक होते हैं, जिसका प्रभाव उनके मन और शरीर दोनों पर पड़ता है । वे बहुधा पित्ताशय में सूजन, गुर्दे में पथरी, भगन्दर, वृषणों का बढ़ जाना था उनमें पानी भर जाना, अन्य यौन रोग तथा जननेन्द्रिय के रोगों से ग्रसित होते हैं।

वृश्चिक से छठी राशि मेष है, अतः वृश्चिक जातक विभिन्न मस्तिष्क रोगों, अनिद्रा, मिरगी, श्वास रोगों आदि के भी शिकार हो सकते हैं। स्वास्थ्य के बारे में एक विशेष बात यह है कि वे बचपन में प्रायः नाजुक और औसत से अधिक बाल-रोगों के शिकार होते हैं । इक्कीस वर्ष की आयु के बाद उनमें रोगों से लड़ने की असाधारण शक्ति आ जाती है। खान-पान में वृश्चिक जातक प्रायः तामसिक भोजन पसन्द करते हैं। मांसाहारी जातक भोजन में शराब और जलजीवों के अधिक रसिक होते हैं। यह स्मरणीय है कि वृश्चिक के स्वामी मंगल का रस कटु है । अग्नि-ग्रह और जलतत्व से संस्कारित कटु पदार्थ वृश्चिक-जातकों को अधिक प्रिय होते हैं।

वृश्चिक के दूसरे भाव, सुख भाव में अग्नि-तत्व वाली धनु राशि स्थित होती है । उसके स्वामी गुरु का रस मधुर है। अतः वृश्चिक जातक जलेबी, बूंदी, इमर्ती आदि मिठाइयां भी प्रेम से खाते हैं। यह राशि ईख या गन्ने की भी कारक है। वृश्चिक-जातक अच्छे अतिथि-सत्कारक होते हैं और भोजन पर अतिथियों को निमंत्रित करने में आनन्द लेते हैं। उनके अतिथियों में विभिन्न क्षेत्रों के बड़े बड़े अधिकारी सम्मिलित रहते हैं । वृश्चिक अतिथि नए भोजनों के प्रति कुछ शंकालु होते हैं, किन्तु अपने मन पसंद पदार्थ पेट भर कर खाते हैं। फिर भी, दूसरों के मुंह से उनकी प्रशंसा सुनकर उनके मन में तत्काल ईष्र्या-भाव पैदा होने लगता है। वृश्चिक-जातकों के प्रेम-प्रसंग भी प्रायः ऐसे भोजों में अथवा बड़े-बड़े होटल, रेस्तराओं में जन्म लेते हैं।

द्रेष्काण, नक्षत्र, त्रिशांश:-

लग्न अथवा चन्द्र, इनमें से जो भी बली हो वह किस द्रेष्काण में हैं, किस नक्षत्र-पद या नवांश पद में है, अथवा किस त्रिंशांश में है, इसका भी जातक के चरित्र तथा स्वभाव पर भारी प्रभाव पड़ता है। हमारे विचार से इस सम्बन्ध में लग्न वृश्चिकों के लिए यह देखना उचित रहेगा कि लग्न किस द्रेष्काण में है। इसी प्रकार चन्द्र वृश्चिकों के लिए उनका नक्षत्र-पद देखना उचित रहेगा। नाम-वृश्चिकी का भी उनके नाम के पहले अक्षर के अनुसार केवल नक्षत्र-पद देखना सम्भव होगा । सूर्य-वृश्चिक के अनुसार गोचर का फलादेश करने की प्रणाली अधिकांशतः पश्चिमी देशों में है।

वृश्चिक के प्रथम द्रेष्काण पर दुहरे मंगल का प्रभाव है। भारतीय ज्योतिषियों ने इसे पाश द्रेष्काण की संज्ञा दी है। अतः राशि के प्रथम दस अंशों में लग्न की स्थिति होने पर जातक के स्वभाव में आवेश की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाने का सम्भावना है। अन्य नकारात्मक प्रवृत्तियों से भी उसे सावधान किया जाना चाहिए। मध्य द्रेष्काण में, राशि के दसवें अंश से बीसवें अंश तक लग्न की स्थिति होने पर गुरु मंगल की उग्र प्रवृत्तियों को एक बड़ी सीमा तक शांत करेगा और जातक अधिक संतुलित व्यवहार अपनाएगा। तीसरे द्रेष्काण में अर्थात् राशि के अन्तिम दस अंशों में, लग्न स्थित होने पर चन्द्र की शीतलता मंगल की उष्णता को कम करेगी। साथ ही, एक अग्नि-ग्रह तथा दूसरा जल-ग्रह होने से जातक अधिक ऊर्जा का परिचय देगा।  नक्षत्र-पदों में विशाखा का चतुर्थ चरण गुरु-चन्द्र का होने के कारण मंगल की उग्रता को कम करेगा। अनुराधा के सभी चरण राशि की दुष्प्रवृत्तियों को अधिक तीव्र करेंगे । ज्येष्ठा के प्रथम तथा चतुर्थ चरण जहां अपने शुभ प्रभाव डालेंगे वहां उसके द्वितीय तथा तृतीय चरणों का अशुभ प्रभाव पड़ने की आशंका है।

त्रिशांश के फल विशेष रूप से स्त्री जातकों के लिए कहे गए हैं। भारतीय ज्योतिषियों के अनुसार वृश्चिक, मंगल, बुध, शुक्र तथा शनि के त्रिशांशों के फल अच्छे नहीं कहे गए हैं। इनमें जन्म लेने वाली महिलाएं अधिक स्वेच्छाचारिणी और शीघ्र आवेश में आने वाली होती हैं। शनि त्रिंशांश में जन्म लेने पर सेवा-वृत्ति भी अपनानी पड़ सकती है। किन्तु गुरु के त्रिशांश में जन्म होने पर वह विभिन्न अच्छे गुणों से युक्त होती है।

अन्य ज्ञातव्य बातें:-

भारतीय आचार्यों ने वृश्चिक का कांचन (सुनहरा) वर्ण कहा है। पाश्चात्य मतानुसार वृश्चिक-जातक गहरे लाल या पाटल (मैरुन) रंगों को पसन्द करते हैं। उनके कमरों के पर्दे, फर्श आदि अधिकांशतः इन्हीं रंगों के मिलेंगे। उन्हें अधिक उत्तेजक बनाने के लिए वे उनमें काले तथा गहरे हरे रंग का मिश्रण भी करते हैं। कमरे की साज-सज्जा के लिए वे मोर-पंख, कृत्रिम फूल, बिलौरी जैसी विचित्र वस्तुएं और कामोत्तेजक चित्रों का उपयोग करते हैं। संगीत भी वे मादक धुनों वाला ही सुनना पसन्द करते हैं।

कालांतर में वृश्चिक जातक गुप्त विद्याओं की ओर भी आकर्षित होते हैं। उनके कमरे में अगरू या चन्दन की धूपबत्ती जलने पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए। वृश्चिक राशि उत्तर दिशा की द्योतक है। वृश्चिक राशि के स्वामी मंगल का मूलांक ६ है। कीरों के अनुसार यह अंक भारी उथल-पुथल का अंक माना जाता है। वृश्चिक जातकों के जीवन में यह अंक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। वारों में मंगलवार इसका प्रतिनिधित्व करता है। मंगलवार के अधिष्ठाता स्वामी कार्तिकेय हैं, जिनका वाहन मोर कहा जाता है।

वृश्चिक राशि निम्न वस्तुओं, स्थानों तथा व्यक्तियों की संकेतक हैंः-

विस्फोटक पदार्थ, बम, पटाखे, चाकू-छुरे, तलवारें, अन्य अस्त्र-शस्त्र, मद्य, रसायन, तेल, अम्ल, पेट्रोलियम, विष, मूंगफली, अलसी, सरसों, लोहा। कुएं, सांप-विच्छुओं के बिल, नालियां, नदी तटवर्ती खंडहर, रसोईघर, कसाई घर, मांस-मछली बाजार, आपरेशन कक्ष, शौचालय, लोहा-लंगड़ के भंडारण, चर्मशाला, रसायन शाला, श्मशान भूमि, शरद में पैदा होने वाली वस्तुएं ।

धनी, शक्तिशाली तथा प्रभावशाली व्यक्ति, निगमों के अध्यक्ष, विधायक यात्री, फिल्मी हीरो, चोर, चोर-बाजारिये, कर-वंचक, आदि ।


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