Tuesday 26 January 2021

Kanya rashi ke anya rashi walo ke sath vivah sambandh kaise rahenge, janiye is lekh me / कन्या राशि के अन्य राशि वालों से विवाह संबंध कैसे रहेंगे, जानिये

Posted by Dr.Nishant Pareek

 Kanya rashi ke anya rashi walo ke sath vivah sambandh kaise rahenge, janiye is lekh me



कन्या राशि के अन्य राशि वालों से विवाह संबंध कैसे रहेंगे, जानिये

 कन्या - मेष:- 

मेष अग्नि तत्व वाली राशि है तथा कन्य पृथ्वी तत्व वाली राशि है। दोनों के स्वभाव में आकाश पाताल का अंतर है। मेष जातक किसी काम के करने के ढंग और विस्तार की अधिक चिंता नहीं करता, जबकि कन्या जातक की ये स्वाभाविक प्रवृति होती है। अतः यह संबंध घातक हो सकता है। 

यदि मेष पति है और सिंह पत्नी है तो ऐसा पति वर्तमान में जीना पसंद करता है। जबकि पत्नी की एक आंख भविष्य पर लगी होती है। पति धन की बिल्कुल भी परवाह नहीं करता है। वह ये मानकर चलता है कि धन तो कहीं न कहीं से आ ही जायेगा। अपने काम को भी वह मन लगाकर तभी करता है जब उसकी रूचि हो। अतः उसके जीवन में उतार चढाव आते रहते है। इसके विपरीत कन्या पत्नी को हमेशा भविष्य की और आर्थिक सुरक्षा की चिंता रहती है। वह ऐसे काम पसंद करती है जिनमें कडी मेहनत भले ही हो, लेकिन स्थायित्व और सुरक्षा हो। पत्नी यदि पति से कठोर वचन कहती है तो पति प्रायः हंसकर टाल देता है। लेकिन जब बात उसकी सहन शक्ति से बाहर हो जाती है तो वह संबंध विच्छेद करने में भी पीडे नहीं हटता। 


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दोनों के भावनात्मक ढांचे में भी भारी अंतर होता है। स्थिति यह है कि कोई किसी के विचारों को नहीं बदल पाता। अतः इस युगल के लिये एक दूसरे को सहन करने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। भावनाओं का यह अंतर उनके यौन संबंधों में भी प्रकट होता है। 

यदि पत्नी मेष है और पति कन्या है हो तो भी उन्हें प्रेम पूर्वक रहने में भारी कठिनाई का सामना करना पडेगा। दोनों एक दूसरे के सुझावों को काटते रहेंगे जिससे उनके बीच विद्रोह की भावना पैदा होगी। इस प्रवृति पर प्रारंभ में ही अंकुश लगाना चाहिये। आर्थिक मामलों में भी दोनों के खींचतान रहने की संभावना होती है। पति बहुत सावधानी से पैसा खर्च करता है जबकि पत्नी का हाथ काफी खुला रहता है। लेकिन पत्नी जब बीमार पडती है तो उसे कन्या पति से अधिक देखभाल करने वाला दूसरा नहीं मिल सकता। जहां तक यौन संबंधों की बात है तो पत्नी बहुत शीघ्र बेचैनी और उबाउपन अनुभवन करने लगती है। 

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कन्या - वृषः- 

       पृथ्वी तत्व के पृथ्वी तत्व से मेल का अर्थ है कि अनेक बातों में दोनों का समान दृष्टिकोण है। दोनों व्यवहार कुशल, यथार्थवादी, सक्षम और व्यवस्थाप्रिय है। किन्तु उनकी भावनात्मक प्रकृति में काफी अन्तर है। वृष में गहरी अधिकार भावना और आवेश पाया जाता है। जबकि कन्या में भावनाएं अधिक नियंत्रित रहती है। दोनों के लक्ष्यों में काफी समानता है। दोनों ही भौतिक सफलता और सुरक्षा चाहते है। यदि धैर्य से काम ले तो यह एक आदर्श जोडी बन सकती है। 

यदि पत्नी वृष जातिका हो और पति कन्या जातक हो तो उनके जीवन में बच्चों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। यह जोडी आदर्श होने पर भी किसी को एकदम पूर्ण नहीं कहा जा सकता है। पति आफिस में या घर पर देर तक कठोर परिश्रम करता है और पत्नी उसके काम की सराहना करना तो दूर, उलटे उसके दावा करती है कि वह उससे बेहतर काम केवल आधे समय में कर देती है। इसी प्रकार जब पति अपने स्वभाव के अनुसार पत्नी के किसी काम की कडी आलोचना करता है तो वृष जातिका अपने दोषों सहज स्वीकार नहीं करती। यह दोनों के बीच तनाव का कारण बनता है। बहुत दिनों बाद उसकी समझ में आ जाता है कि ऐसी आलोचना पर ध्यान नहीं देना चाहिये। कन्या जातकों की अपनी एक चर्या और जीने के नियम होते है। वृष जातिकाओं में भी यह प्रवृति पाई जाती है। जिससे दोनों की पटरी बैठ जाती है। कन्या जातक के मन में कु वर्जनाएं होती है। जिससे दोनों की पटरी बैठ जाती है। कन्या जातक के मन कुटिलता होती है। लेकिन वृष जातिका उसके अधिक से अधिक गुणों को प्रकाश में लाने में समर्थ होती है। कन्या राशि का व्यक्ति यौन के विषय में भी अधिक सक्रिय नहीं होता। किन्तु वृष जातिका उसकी वर्जनाओं को दूर कर उसकी यौन वृत्तियां जगा देती है। 

 यदि पति वृष हो और पत्नी कन्या हो तो भी अनेक बातों पर दोनों का समान दृष्टिकोण होने से उनके बीच ठोस संबंधों का आधार तैयार होता है। दोनों पूरे विस्तार के साथ अपने भविष्य की योजना बनाते है। कन्या जातिका यद्यपि वृष जातिका की भांति गृहकार्य में दक्ष नहीं होती। परंतु वह घर तो कुशलता पूर्वक चलाती है। पति की सुख सुविधाओं का ध्यान रखती है। भावनात्मक दृष्टि से यद्यपि वृष जातक की भावनाएं अधिक गहरी होती है। तथापि कालान्तर में वह कन्या जातिका में अधिक गहरी भावनाएं पैदा करने में सफल होता है। उसकी ईष्र्या तनाव का कुछ कारण हो सकती है। किन्तु कन्या जातिका उसे इसके लिये अवसर नहीं देती। मतभेद का एक कारण पति का आलसीपन हो सकता है। जिसे पत्नी प्रायः क्षमा नहीं करती है। दूसरा खतरा उनके जीवन में गतिरोध और नीरसता आ जाने का है। 

इस जोडी का यौन जीवन भी बहुत सक्रिया रहेगा। वह अधिक लाग लपेट वाला नहीं होगा। पत्नी में इतनी बुद्धि अवश्य होगी कि पति के किसी सुझाव का विरोध न करे। पति पत्नी दोनों एक दूसरे के लिये जीने का प्रयास करे। 

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कन्या - मिथुनः- 

यद्यपि वायु तत्व का पृथ्वी तत्व के साथ मेल नहीं है तथापि बुध इन दोनों राशियों का स्वामी होने के कारण साधक का काम कर सकता है। दोनों में से किसी राशि में अतिभावुकता नहीं है। अतः व्यावहारिकता, सामाजिक बौद्धिक या व्यापारिक हित अनेक समान आधार बन सकते है। यथार्थ और योजनाबद्ध काम में विश्वास रखने वाला कन्या जातक सदा मिथुन जातक की योजनाओं की भीड या उखडे उखडे विचारों का साथ नहीं देगा। कन्या जातक एक दिशा में अपना ध्यान अधिक केन्द्रित करता है। 

मिथुन जातिका आरंभ में कन्या जातक की ठोस छवि की ओर आकर्षित होगी। वह यह भी अनुभव कर सकती है यह ऐसा व्यक्ति है तो अपनी पे्रमिका के लिये कुछ भी करने को तैयार होगा, जो उसकी बुद्धि को बढावा और अभिव्यक्ति का अवसर दे सकता है। लेकिन बाद में उसका समझदारी वाला दृष्टिकोण और उसके नए विचारों में साथ देने में असमर्थता देख उसे चिढ लगने लगेगी। पैसे को दांत से पकडने के उसके दृष्टिकोण से भी मिथुन जातिका मे रोष पैदा होगा। कन्या पति पत्नी के मूड में आकस्मिक परिवर्तन का कारण जानने का प्रयास करेगा। वह ऐसा महसूस कर सकता है कि यह सामान्य नहीं है। उसकी प्रतिक्रिया से पत्नी में और रोष जागेगा। वह पति पर कटु आलोचक, ठंडा, और पुराणपंथी होने का भी आरोप लगा सकती है। निराशा के दौर में वह काबू से बाहर हो सकती है। धीरे धीरे पत्नी के पे्रम पर पति का विश्वास घटने लगता है और वह अपने को असुरक्षित महसूस करने लगता है। 

प्रारंभ में दोनों के बीच प्रबल यौनाकर्षण रह सकता है। जब मिथुन जातिका अपने व्यक्तित्व के लिये खतरा देखती है तो वह पति की ओर से मुंह मोडने लगती है। जब कन्या पति उसकी इस उपेक्षा पर कोई ध्यान नहीं देता तो यह अन्यत्र सहारा देखने लगती है। 

यदि पति मिथुन हो और पत्नी कन्या जातिका हो तो भी दोनों के संबंध अधिक टिकाउ नहीं हो सकते। अधिक आयु वाली कन्या जातिका मिथुन जातक की बचकाना हरकतों पर दया करके उसे अपना सकती है। वह सोच सकती है कि ये प्रवृत्तियां समय के साथ स्वयं ही समाप्त हो जायेगी। बाद में वह महसूस करती है यह हरकतें उसके स्वभाव का अंग है। वह पति को बदलने का प्रयास करेगी लेकिन पति उसके प्रयासों का विरोध करेगा। 

पत्नी की व्यवस्थाप्रियता और पति की अराजकताप्रियता दोनों के बीच झडपों का कारण बनेगी। दोनों में कोई बौद्धिक समझौता ही उनके विग्रह को रोक सकता है। यौन संबंधों में नित्य चिक चिक पत्नी के लिये समर्पण कठिन बना सकती है। उधर मिथुन पति को ऐसी पत्नी चाहिए जो उसके प्रस्तावों पर ध्यान दे और उसे नवीनता तथा उत्तेजना प्रदान करे। यह प्रायः निश्चय है कि पत्नी को क्रोध और निराशा में छोडकर पति अन्यत्र इसकी तलाश करेगा। 

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कन्या - कर्कः-

जल का धरती से मेल है। फिर भी, कन्या जातक जल्दबाजी में उलटे-सीधे ढंग से किए गए काम को पसन्द नहीं करता। उसे हर काम करीने से चाहिए। कर्क जातक के अति-संवेदनशील होने के कारण उसके मन को जरा-सी बात पर चोट पहुंचती है। इसलिए कन्या जातक को कर्क जातक की गलती पर उसकी आलोचना से बचना चाहिए। कर्क जातक को भी महसूस करना चाहिए कि प्रेमाभिव्यक्ति में कन्या जातक अधिक दिखावटी नहीं होता।

यदि पत्नी कर्क जातिका हो और पति कन्या जातक तो पति पत्नी के घरेलू गुणों को सराहेगा। इससे उसे सुरक्षा का अनुभव होगा, लेकिन मित्रों तथा सम्बन्धियों के आते रहने से उसे चिढ़ लग सकती है। सम्बन्धियों के प्रति कन्या जातक का इतना लगाव नहीं होता जितना कर्क जातक का । आर्थिक मामलों में कर्क पत्नियां समझदार होती हैं, किन्तु कन्या पत्नियों की भांति आलोचना नहीं करतीं। दोनों चाहते हैं कि उनका विशेष ध्यान रखा जाए, साथ ही अपने प्रियजनों से बात करते समय शब्दों पर संयम नहीं रख पाते। इससे वे अपना जीवन असह्य बना सकते हैं।

उनके जीवन में यौन-सम्बन्ध प्रमुख भूमिका नहीं निभाएंगे, क्योंकि दोनों में से किसी की यौन-भूख प्रबल नहीं होती है। फिर भी इससे उनके जीवन में कोमलता आएगी । इस बात की भी सम्भावना रहती है कि छोटे-मोटे झगड़े उनके सम्बन्धों की मधुरता को नष्ट कर दें।

यदि पति कर्क जातक है और पत्नी कन्या जातिका, तो एक ओर जहां पति अपनी रंगीली भावनाओं में डूबा रहेगा वहां पत्नी पर उसकी बुद्धि हावी रहेगी। इससे उनका जीना दूभर हो जाएगा। पत्नी को पति का भावनात्मक उत्साह निरर्थक और भीतकारी प्रतीत होगा। पति के माता-पिता तथा बहनों के प्रति अनुरक्ति भी दोनों के बीच विवाद का कारण हो सकती है। दो बातें अवश्य दोनों में समान होंगी-आर्थिक मामलों में फूंक-फूंककर कदम रखना और घर से प्यार ।

यौन सम्बन्धों में भी कर्क पति की अति-संवेदनशीलता समस्याएं पैदा कर सकता है। पत्नी को इतना उत्साही न पाकर वह उसे ठण्डी और संवेदनारहित समझ सकता है।

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कन्या - सिंहः- 

अग्नि राशि सिंह बहिर्मुखी है और अपनी प्रमुखता चाहती है । पृथ्वी राशि कन्या विनम्र और झुककर चलने वाली है। इस जोड़ी की सफलता इस बात पर निर्भर है कि कौन पति है और कौन पत्नी। व्यापार सम्बन्धों में सिंह जातक का अधिकारी तथा कन्या जातक का सहायक होना ठीक रहता है । सिंह जातक की तीव्र भावनाएं कभी-कभी आत्म संयमी कन्या जातक के लिए अधिक तेज हो सकती हैं, किन्तु वह शायद ही कभी अपने मन की बात कहता हो।

यदि पत्नी सिंह जातिका है और पति कन्या जातक, तो दोनों के आर्थिक चिन्तन में भारी अन्तर रहने की सम्भावना है । कन्या पति पैसे को फूंक-फूंककर खर्च करना चाहता है और इससे सिंह पत्नी की उदारता को चोट पहुंच सकती है। पत्नी का रवैया यह रहता है कि खर्च अब करो, उसकी चिन्ता बाद में करो। अपने अहम् की तुष्टि के लिए पत्नी की किसी खर्चीली खरीद पर पति कडी आलोचना ही कर सकता है। इससे उसके मन को गहरी चोट पहुंचना स्वाभाविक है। 

मनोरंजन के प्रति उनके दृष्टिकोण में भी अन्तर होता है। पति के लिये यह समय की बर्बादी है जब कि पत्नी के जीवन का वह महत्वपूर्ण अंग है। पत्नी को अपने प्रियजनों को खिलाना-पिलाना बहुत भाता है। पति बिल भरना होता है तो उसकी त्योरियां चढ़ना स्वाभाविक है। काम के बारे में भी यही बात है। पति प्रशंसा या आर्थिक लाभ के बिना चैदह-चैदह घंटे लगातार काम करता रहेगा और पत्नी उससे आधे समय में ही धन तथा यश दोनों कमा लेगी। उनके यौन सम्बन्ध भी निराशापूर्ण रहेंगे।

यदि पति सिंह जातक है और पत्नी कन्या जातिका तो काम-ज्वर उतरने पर उनके अन्तर उभरने लगेंगे। पति पत्नी से चापलूसी और प्रशंसा चाहेगा और पत्नी के लिए यह कठिन होगा। पति के अहम् पर चोट लगने पर उसके उदण्ड हो उठने की सम्भावना है । आर्थिक मामलों में भी अन्तर दिखाई देने लगेगा। पति का खुले हाथ से खर्च करना तथा उसकी उदारता पत्नी में हठ तथा कंजूसी की भावना पैदा करेंगे। दोनों बात-बात पर लड़ने लगेंगे।

पति के कभी-कभी निष्क्रियता के दौरे भी पत्नी की समझ से बाहर रहेंगे। उसकी लानत-मलामत का भी कोई प्रभाव नहीं होगा । होगा तो यही कि पति उसे झगड़ालू समझकर उसमें रुचि लेना बन्द कर देगा और अपनी भावनाओं की तुष्टि के लिए इधर-उधर झांकने लगेगा।

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कन्या - कन्या- 

वैसे तो धरती का धरती से मेल ठीक ही रहता है, किन्तु इसमें एक कठिनाई यह आ सकती है कि दोनों अपनी-अपनी निश्चित सोच पर चलना पसन्द करेंगे। भावनात्मक टकराव होने की सम्भावना नहीं के बराबर है। हां, उन्हें एक-दूसरे की आलोचना करने और एक-दूसरे में दोष खोजने से बचना होगा।

इस मेल में पति-पत्नी दोनों आदर्शवादी होंगे। रुपए-पैसे के प्रति दोनो का दृष्टिकोण समान होगा। वे समझदारी से खर्च करेंगे और आपात काल के लिए कुछ पैसा बचाए रखने में विश्वास करेंगे। जब तक दोनों अपनी-अपनी वृत्ति अपनाए रहेंगे, सब कुछ ठीक चलेगा। लेकिन दोनों एक-दूसरे को आलोचनात्म दृष्टि से देख सकते हैं, अतरू उचित यही रहे कि उन्हें एक-दूसरे के दोषों के सोचने का कम-से-कम अवसर मिले । वे अपना हर काम पूरे विस्तार से चाहे खाना पकाना हो या धोबी का हिसाब रखना हो। इसके कारण उनक का अनुपात बिगड सकता है।

प्रारम्भ में उनमें प्रबल यौनाकर्षण रहेगा, किन्तु उनमें से कोई भी एकदूसरे की जरा-सी गलती की भी कड़ी आलोचना किए बिना नहीं रहेगा। उनके सम्बन्धों का आधार यौन रहने की सम्भावना कम है । उनका अधिकांश समय कुछ और बातों का सुधार करने में बीतेगा। आमतौर से उनके बीच प्रेमपूर्ण सम्बन्ध रहने चाहिए।

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कन्या - तुला-

दोनों राशियों के स्वामी, मस्तिष्क तथा भावना के प्रतिनिधि, बुध तथा शुक्र एक-दूसरे के पूरक होने के कारण इस योग में पृथ्वी तत्व और वायु तत्व का बेमेलपन अधिक नहीं खटकेगा। दोनों पूर्णता प्राप्त करना चाहते हैं। तुला जातक का लक्ष्य सन्तुलन तथा सौन्दर्य की खोज है, अतः वह कन्या जातक के आलोचक पक्ष से नहीं टकराएगा।

कन्या पत्नी को तुला पति अत्यन्त आकर्षक, मिलनसार और रूमानी प्रतीत होगा। वह प्रशंसा से पत्नी का सहज में ही दिल जीत लेगा, लेकिन पत्नी यह समझने में असफल रहेगी कि उससे इस प्रकार की प्रशंसा प्राप्त करने वाली वह इस वर्ष की बीसवीं महिला है। कुछ दिन तक वह अपना भ्रम पाले रहेगी, किन्तु कभी-न-कभी तो उसे तथ्यों का सामना करना ही होगा। उसी समय से उनके सम्बन्धों में मोड़ आने लगेगा। पत्नी द्वारा अपने व्यक्तित्व की बहुत अधिक छीछालेदार किए जाने से तुला पति की न्याय-भावना आहत होगी। कन्या पत्नी के मन में उसकी इस भावना के प्रति जरा भी सहानुभूति नहीं जागेगी। वह भावना से नहीं, बुद्धि से काम लेना चाहती है। पति के किसी बहस में पड़ने से इन्कार करने पर पत्नी को निराशा हो सकती है।

तुला जातक की यौन-भावना नित्य बदलती रहती हैं। एक दिन उसके मन में पत्नी के प्रति अचानक प्यार उमड़ आएगा और दूसरे दिन वह उसे घण्टों तक बहकाता रहेगा। कन्या जातिका प्रेम-प्रदर्शन के मामले में अधिक सीधी होती है और उसे यह सब नाटक लगता है।

यदि पति कन्या जातक है और पत्नी तुला जातिका, तो पति की नकारात्मक दृष्टि से परेशान होने की बारी पत्नी की है। तुला पत्नी अपने पति से अधिक सामाजिक होगी। पति इसे उसकी उत्तरदायित्वहीनता समझ सकता है। दोनों का प्रेम-प्रदर्शन का ढंग भी अलग-अलग होगा। पति चाहेगा कि पत्नी उसके कार्यों से उसके प्रेम को समझे न कि बातों से । पत्नी के स्वभाव को इससे निराशा होगी।

कन्या पति एक-एक पैसे के खर्च का हिसाब चाहेगा। यदि उसे सन्देह हो गया कि पत्नी फिजूलखर्ची कर रही है तो वह उसे एक पैसा नहीं देगा। पत्नी के पालतू पशु-पक्षियों को पति तब तक सहन करेगा जब तक वे शान्त रहेंगे, अन्यथा इस प्रश्न पर भी वह बखेड़ा खड़ा कर सकता है। ऐसे भी अवसर आ सकते हैं जब पत्नी घण्टों खर्च कर शानदार भोजन तैयार करे और प्लेट में एक जरा-सी दरार पति का सारा मूड बिगाड़ दे।

यौन-सम्बन्धों के प्रति पति-पत्नी के अन्तर को पाटना अत्यन्त कठिन होगा। पति के लिए यह एक सामाजिक कर्तव्य है, जबकि पत्नी के लिए जीवन का आवश्यक अंग । यह मेल अच्छा नहीं कहा जा सकता।

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कन्या - वृश्चिक-

व्यावहारिक या बौद्धिक क्षेत्रों में पृथ्वी और जल का यह मेल ठीक से काम करेगा। लेकिन भावनात्मक दृष्टि से दोनों कोसों दूर होंगे। वृश्चिक जातक अपनी गहन भावनाओं और बलवती इच्छाओं का दास होता है जबकि कन्या जातक उन्हें नियन्त्रण में रखने में विश्वास करता है।

फिर भी, कन्या पत्नी और वृश्चिक पति में एक गुण समान होता है। दोनों जन्मजात आलोचक होते हैं और बेहिचक अपने असन्तोष को व्यक्त कर देने में विश्वास करते हैं। पर जब आलोचना अपनी ही हो रही हो तो उसकी त्योरियां चढ़ जाती हैं। ऐसी स्थिति में कन्या पत्नी लानत-मलामत शुरू कर देती है जबकि वृश्चिक पति मौन होकर अपने नथुने फड़काने लगता है।

कन्या पत्नी के लिए वृश्चिक पति के जटिल स्वभाव को समझ पाना कठिन है-उसकी इच्छा-अनिच्छा, उसकी भावनात्मक असुरक्षा। पत्नी कितने ही मन से प्रेम करे, पति की अकारण ईष्या का पात्र बने बिना नहीं रह सकती। उसके स्पष्ट विचार सहन कर पाना भी पत्नी के लिए कठिन होता है। वह बहस करना चाहती है, लेकिन पति इसके लिए सक्षम नहीं होता। पति कहीं से मार खाकर घर लौटता है और पत्नी कहती है-हो सकता है, इसमें तुम्हारा है गलती हो । पत्नी के ऐसे व्यवहार पर उसका रोष स्वाभाविक है। रुपये-पैसे का सोच-समझकर खर्च करने पर दोनों में आमतौर से सहमति रहती है ।

वृश्चिक पति के लिए अपने को व्यक्त कर पाना कठिन होता। उसका यौन-व्यवहार पशुओं जैसा रहता है और असुरक्षा महसूस होने पर भूख और भी बढ़ जाती है । पत्नी आम तौर से शान्त महिला होती है और पति को सन्तोष नहीं दे पाती।

कन्या पति और वृश्चिक पत्नी होने पर भी भावनात्मक रूप से उनका जीवन कठिन होगा। पत्नी के लिए हर दिन एक नए भावनात्मक अनुभव का होगा जबकि पति के दिन अपने बौद्धिक सुधार में कटेंगे। पत्नी के नाटकीय प्रदर्शनों का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, जो पत्नी के मन में रोष पैदा करेगा। लेकिन वृश्चिक पत्नी कन्या पति के परिश्रमी स्वभाव और रुपये-पैसे के प्रति व्यावहारिक दृष्टिकोण को पसन्द करेगी। सम्भवतः यही एक उनका समान मिलन बिन्दु होगा।

उनकी यौनेच्छा में अन्तर रहेगा। पति प्रायः पत्नी के मन में उबाल खाती इच्छाओं को शान्त करने में असमर्थ रहेगा। फलस्वरूप पत्नी किसी अन्य पुरुष का आश्रय ले सकती है अथवा कोई अन्य आत्मघाती कदम उठा सकती है।

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कन्या - धनु-

कन्या जातक सावधान, व्यवस्थाप्रिय, संयमी तथा विश्लेषक होता है । आग्नेय धनु जातक आवेशी, जल्दबाज, स्वच्छन्द और कभी-कभी अतिव्ययी हो सकता है। कन्या जातक एक दिशा में अपना ध्यान केन्द्रित कर सकता है, छोटी-छोटी बातों का विस्तार से ध्यान रख सकता है और वर्तमान में जीता है। धनु जातक का मानसिक दृष्टिकोण व्यापक तथा आशावादी होता है, वह सदा भविष्य की ओर देखता है। इन दो राशियों की आत्माभिव्यक्ति बहुत भिन्न मार्गों से होती है।

कन्या पत्नी के प्रायः ईर्ष्यालु न होने पर भी धनु पति उसमें ईर्ष्या भाव जगा सकता है। वह उससे एकांगी प्रेम की उपेक्षा करती है जबकि धनु पति के लिए प्रेम का अर्थ बंधना नहीं होता। पत्नी के लिए आर्थिक सुरक्षा महत्वपूर्ण है। पति के लिए भविष्य की चिन्ता में समय बिताना सम्भव नहीं है। अपने इस स्वभाव के कारण वह असम्भव स्वप्न पालता है और कभी-कभी सफल भी होता है। पत्नी पति के ऐसे भाग्योदय से प्रसन्न होती है, किन्तु उसे इस विचार से चिढ़ भी लगती है कि थोड़े-से आर्थिक लाभ के लिए वह स्वयं दिन भर खटती रहती है।

घर से बाहर के कुछ कार्यकलापों में और यात्रा के शौक में दोनों के मिल सकते हैं। लेकिन ये बहुत छोटी बातें हैं । प्रायः पति कहीं क्लब में खेल रहा होता है और पत्नी घर पर अपनी शामें अकेली बाद में पत्नी स्वयं पति को इसके लिए प्रोत्साहित कर सकती है अन्यथा पति समय मिलने पर अन्य सुन्दर महिलाओं के चक्कर काटने लग सकता है।

आमतौर से कन्या पत्नी शारीरिक भूख को अधिक महत्व नहीं देती, किन्तु धनु पति रति में सिद्ध होने के कारण पत्नी के स्वभाव के इस पक्ष को चेतन कर सकता है। अन्य महिलाओं की समस्या फिर भी बनी रहेगी। पत्नी के सामने दो ही विकल्प रहते हैं इससे समझौता करे या पति को भूल जाए।

यदि पति कन्या जातक हो और पत्नी धनु जातिका तो जूता दूसरे पांव में ठीक बैठने लगता है। उनका कभी एक-दूसरे को समझ पाना कठिन ही है । उनके विरोधी आर्थिक दृष्टिकोणों में कभी मेल नहीं हो सकेगा। धनु पत्नी की गतिविधियां कन्या पति को चिढ़ाने वाली होंगी। शाम को वह दफ्तर के कुछ कागजों का अध्ययन करना चाहेगा और तभी अचानक बिना सूचना के पत्नी के आधा दर्जन मित्र आ जुटेंगे। समस्याओं पर विचार करने से मतभेद और उभरकर ही सामने आएंगे।

पति के लिए पत्नी की यौन भूख को शांत कर पाना सम्भव नहीं होगा। उनका यौन जीवन शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का उदाहरण नहीं रहेगा। पति पत्नी को अतिकामी तथा उन्मत्त समझ सकता है।

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कन्या - मकर-

दोनों राशियां पृथ्वी तत्व वाली हैं । अतः दोनों जातकों के पांव धरती पर रहते हैं और वे जीवन तथा कार्य के व्यावहारिक पक्ष को समझ सकते हैं । दोनों में कर्तव्य तथा उत्तरदायित्व की भावना विद्यमान रहती है, किन्तु उन्हें मनोरंजन के बिना काम ही काम वाले ढर्रे से बचना चाहिए। कन्या के स्वामी बुध तथा मकर के स्वामी शनि की जोड़ी व्यापार तथा व्यावहारिक मामलों के लिए बहुत ठीक है, लेकिन उसमें प्रेम की भावनाओं तथा रूमानी चमक का अभाव हो सकता है।

वैसे कन्या पत्नी तथा मकर पति के बीच प्रबल शारीरिक आकर्षण विद्यमान रह सकता है । आर्थिक मामलों पर समान दृष्टिकोण इस बंधन को और पक्का कर सकता है। कन्या पत्नी इस बात को समझती है कि पति की वृत्ति दोनों के लिए सर्वोपरि महत्व की है । किन्तु कन्या पत्नी के मूड बदलते रह सकते हैं । कभी-कभी पति पर कई दिन तक निराशा की भावना छाई रहती है। पत्नी के विचार से उसे वह भावना निकाल बाहर करनी चाहिए। ऐसे में लानत मलामत से बचना चाहिए, क्योंकि इससे पति की मानसिक दशा और बिगड़ सकती है। वह आत्मघाती तक हो सकता है। वह दो-चार दिन के लिए घर छोड़कर भी जा सकता है। पत्नी को इस मूड की भनक पहले ही लग सकती है और वह जड़ पकडे इससे पहले ही अपनी सांत्वना तथा प्यार से उसे बढ़ने से रोक सकती है । 

पति पत्नी के बीच विवाद का मुख्य कारण पति के मित्र हो सकते हैं, जिनसे उसकी मित्रता पैसे या पद के कारण ही होती है । पत्नी इसे पसन्द नहीं कर सकती है।

यौन भावनाएं दोनों में प्रायः समान होती हैं । यौन सम्बन्धों को उनमें से कोई अधिक महत्व नहीं देता। पति की निराशा के समय उनमें कुछ सुधार हो सकता है क्योंकि तब वह पत्नी की इच्छाओं के अनुरूप स्वयं को ढालने की स्थिति में अधिक होता है।

कन्या जातक और मकर जातिका के बीच भी प्रेम के अंकूर शीघ्र पनपने की सम्भावना रहती है । कन्या जातक पर प्रायः रूखे व्यवहार का आरोप लगाया जाता है, किन्तु मकर जातिका के प्रति ऐसा नहीं होगा। उसकी वृत्ति में वह विशेषकर भारी रुचि प्रदर्शित करेगा और उसकी सहायता भी करेगा। आर्थिक मामलों में कन्या पति तथा मकर पत्नी के बीच पूर्ण सहमति रहने की सम्भावना है क्योंकि दोनों ही भविष्य के लिए रुपया-पैसा बचाने में विश्वास करते हैं । उनका सामाजिक जीवन जटिल रहने की सम्भावना नहीं है। किसी भोज में जाने के बजाय वे घूमना और किसी खेल आदि को देखना पसन्द करेंगे। अपने घर का उनके लिए भारी महत्व है। यह सम्बन्ध काम की अपेक्षा मित्रता तथा पारस्परिक हितों पर निर्भर रहने की सम्भावना अधिक है। यौन की भूख दोनों में लगभग समान होगी और उनके यौन सम्बन्ध सीधे-सादे रहेंगे।

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कन्या - कुम्भ-

दोनों राशियों में मौलिक असमानताएं हैं। कन्या जातक समझदार, तर्कसंगत, विश्लेषक और कभी-कभी रूखे होते हैं। कुम्भ जातक उदासीन, विरक्त, वीतराग हो सकते हैं। कन्या जातक सावधान, आत्म-संयमी तथा परम्परावादी होते हैं किन्तु कुम्भ जातक रहस्यमय, मूडी तथा कभी-कभी परम्परा से हटकर हो सकते हैं। कन्या जातक के तार्किक मस्तिष्क के लिए कुम्भजातक के दिमाग की उलझन समझना सम्भव नहीं है।

कन्या पत्नी तथा कुम्भ पति दोनों को ही मानसिक प्रेरणा चाहिए, किन्तु जहा पत्नी रुचियों की समानता तथा वर्तालाप के द्वारा अपने सम्बन्धों की परिधि में ही इसे खोजती है. वहां पति को बाहरी कार्यकलापों से प्रेरणा मिलती है। हो सकता है एक शाम पत्नी पति के साथ कहीं जाने का कार्यक्रम बना रही हो और पति किसी मित्र की समस्या को लेकर घर में घुसे तथा पत्नी से बिना कुछ कहे बाहर चला जाए। एक-दो बार पत्नी इसे सहन कर सकती है, किन्तु फिर उका आपत्ति करना स्वाभातिक है। बोलने में वह तेज होती है। जिससे खासा दृश्य उपस्थित होने का खतरा पैदा हो सकता है। 

यौन की भूख दोनों की लगभग समान ही होती है। किन्तु खतरा बाहरी प्रभावों से है। दुनिया की समस्याओं से पति का ध्यान हटाकर अपने यौन जीवन की ओर उन्मुख करने में पत्नी को काफी कठिनाई हो सकती है। इसमेें उसे अपने नारी सुलभ दांव पेंचों से काम लेना होगा। 

यदि पति कन्या जातक है और पत्नी कुंभ जातिका है तो जहां पत्नी दुनिया को सुधारने की बात सोचेगी वहां पति पत्नी को सुधारने का प्रयास करेगा। पति की आलोचक दृष्टि पत्नी को सबसे अधिक खटकने लगेगी। पति चाहेगा कि पत्नी घर की तरफ ध्यान दें और पत्नी चाहेगी कि पति भी घर के कामों में हाथ बढाये। पत्नी बजट बनाकर पैसा खर्च करने और एक एक पैसे का हिसाब देने से मना करेगी। जिससे पति का पारा चढने में देर नहीं लगेगी और दोनों में प्रायः बहस होगी। प्रबल शारीरिक आकर्षण के बजाय बौद्धिक कार्यकलाप और विचारों का आकर्षण इस संबंध की नींव होगी। एक ही बिस्तर पर दो आलोचकों की क्या स्थिति होगी, यह स्वतः ही सोचा जा सकता है। 

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कन्या - मीन:-

राशिचक्र में ये दोनों राशियां आमने सामने स्थित होकर एक दूसरे की पूरक हो जाती है। वैसे तो पृथ्वी का जल से मेल होता है। फिर भी दोनों के देखने का ढंग अलग अलग ही है। दोनों एक दूसरे के लिये रहस्य सिद्ध हो सकते है। कन्या जातक तर्क, विश्लेषण, तथ्यों और बुद्धि से परिपूर्ण पे्ररित होता है। मीन जाते भावनाओं तथा अतीन्द्रिया ज्ञान से निर्देशित होता है। कन्या जातक मीन जातक के पागलपन को व्यवस्थित करता है। मीन जातक के रूमानीपन तथा कल्पनाशीलता अन्य जातक के जीवन में रंग ला सकते है। 

मीन पति कन्या पत्नी के मूड में हर परिवर्तन का पूर्वानुमान लगा सकता है। वह उसके रूखे तथा आलोचक स्वभाव को भी समझ सकता है। लेकिन इन गुणों से आकर्षित नहीं होता और उनकी ओर से अपनी आंखें मूंद लेता है। वह हर निर्णय पत्नी पर छोड देता है। यदि वह कोई गलती करेगी तो उसका ध्यान आकर्षित करने से नहीं चूकेगा। आर्थिक मामले भी पत्नी को ही सम्हालने होंगे। मीन पति को पैसा काटता है और वह प्रयास करने पर भी व्यावहारिक नहीं हो पाता। कन्या पत्नी अपने मतभेदों पर चर्चा करना चाहेगी। मीन पति उससे कुछ नहीं बोलेगा। लेकिन अपने निजी निष्कर्ष निकालेगा और पत्नी को बता देगा। दोनों के बीच विचारों का आदान प्रदान कठिन होगा। कन्या औरत आमतौर पर भावनात्मक रूप से सरल होती है। किन्तु पति की निराशा या परेशानी के समय उसमें ममता उमड सकती है। 

यौन व्यवहार में मीन पति हर प्रकार की कल्पना कर सकता है। उसकी बातों या विचारों को पत्नी यौन विकार समझने लगती है। 

कन्या पति मीन पत्नी के लिये एक चुनौति बन सकता है। उसकी आलोचना का उत्तर वह उससे न बोलकर देगी। पति व्यवस्थित जीवन अपनाना पसंद करता है और पत्नी मूड के अनुसार चलती है। वह पति को पे्रम के अयोग्य भी समझ सकती है। क्योंकि कन्या पति के लिये अपने मन की भावनाओं को व्यक्त कर पाना कठिन होगा। आर्थिक मामलों में भी पत्नी की उदारता पति की सावधानी से टकरायेगी। 

यौन जीवन में पति के दिमाग और पत्नी के दिल के बीच टकराव होना निश्चित है। घडी देखकर काम करने का पति का स्वभाव उसके यौन व्यवहार में भी परिलक्षित होगा। पत्नी इस एकरसता से उबने लगेगी। उस समय उनके जीवन में किसी तीसरे व्यक्ति की संभावनाएं काफी बढ जायेगी। 





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