Singh rashi ka sampurn parichay
सिंह राशि का संपूर्ण परिचय
सिंह राशि के अंतर्गत आने वाले नामाक्षर निम्न हैः- मा, मी, मू, मे, मो टा, टी, टू, टे।
सिंह राशि राशिचक्र की पांचवीं राशि है। पंचम के अतिरिक्त इसके अन्य पर्याय इस प्रकार हैं
लेय, हरि, इनभ, केशरी, द्विपारि, मृगारि, मृगेन्द्र, रविभ, वनभ इभरिपु, कंठीरव, करिरिपू, चित्रकाय, काननेश, नखायुध, पंचनख, पंचानन. पुंडरीक, मृगाशन, इभ जिघांसु, पाणिजायुध, वनजीवन, सिंधुवैरिराशि । अंग्रेजी में इसे लियो कहते हैं।
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इस राशि का प्रतीक सिंह है। यह स्थिर राशि है। इसका विस्तार राशिचक्र के १२० अंश से १५० अंश तक है। इसका स्वामी सूर्य है। इसका तत्व अग्नि है । इसके तीन द्रेष्काणों के स्वामी क्रमशः सूर्य, गुरु तथा मंगल हैं। इसके अन्तर्गत मघा नक्षत्र के चारों चरण, पूर्वा फाल्गुनी के चारों चरण तथा उत्तरा फाल्गुनी का प्रथम चरण आते हैं । इन चरणों के स्वामी क्रमशः इस प्रकार हैं-मघा प्रथम चरणः केतु-मंगल, द्वितीय चरणः केतु-शुक्र, तृतीय चरणः केतु-बुध, चतुर्थ चरणः केतु-चन्द्र । पूर्वा फाल्गुनी प्रथम चरणः शुक्र-सूर्य, द्वितीय चरण शुक्र-बुध, तृतीय चरणः शुक्र-शुक्र, चतुर्थ चरणः शुक्र-मंगल । उत्तरा फाल्गुनी प्रथम चरणः सूर्य-गुरु । इन चरणों के नामाक्षर क्रमशः इस प्रकार हैं - मी मू मे मी टा टी टू टे।
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त्रिंशांश विभाजन में ००-५° मंगल (मेष) के, ५-१०° शनि (कुम्भ) हैं। १०-१८° गुरु (धनु) के, १८-२५° बुध (मिथुन) के और २५-३० (तुला) के हैं।
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जिन व्यक्तियों के जन्म के समय निरयण चन्द्र सिंह राशि में संचरण कर रहा होता है, उनकी जन्म राशि सिंह मानी जाती है। उन्हें गोचर फलादेश इसी राशि के अनुसार देखने चाहिए। जन्म के समय लग्न सिंह राशि में होने से भी यह अपना प्रभाव दिखाती है। सायन सूर्य २३ जुलाई से २२ अगस्त तक सिंह राशि में रहता है। यही अवधि शक संवत् के श्रावण मास की है। ज्योतिषियों के मतानुसार इन तिथियों में दो-एक दिन का हेरफेर हो सकता है। जिन व्यक्तियों की जन्म तिथि इस अवधि के बीच है, वे पश्चिमी ज्योतिष के आधार पर फलादेशों को सिंह राशि के अनुसार देख सकते हैं। निरयण सूर्य लगभग १८ अगस्त से १७ सितम्बर तक सिंह राशि में रहता है।
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जिन व्यक्तियों के पास अपनी जन्म कुंडली नहीं है अथवा वह नष्ट हो चुकी है, तथा जिन्हें अपनी जन्म तिथि और जन्मकाल का भी पता नहीं है, वे अपने प्रसिद्ध नाम के प्रथम अक्षर के अनुसार अपनी राशि स्थिर कर सकते हैं। सिंह राशि के नामाक्षर हैं- मा मी मू मे मो टा टी टू टे।
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इस प्रकार सिंह-जातकों को भी हम चार वर्गों में बांट सकते हैं: चन्द्र- सिंह, लग्न-सिंह सूर्य-सिंह तथा नाम-सिंह। इन चारों वर्गों में सिंह राशि की कुछ न कुछ प्रवृत्तियां अवश्य पाई जाती हैं।
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ग्रह- मैत्रीचक्र के अनुसार सिंहराशि चन्द्र, मंगल, बुध तथा गुरु के लिए मित्र राशि और शुक्र तथा शनि के लिए शत्रु राशि है । इस राशि में न कोई ग्रह उच्चत्व को प्राप्त करता है और न नीचत्व को। शनि के लिए यह अस्त राशि है।
प्रकृति और स्वभावः-
सिंह राज राशि है। जिस प्रकार इसका प्रतीक वनराज या मृगराज के रूप में जाना जाता है उसी प्रकार इसका स्वामी सूर्य ग्रह मंडल का राजा है। अतः इस राशि के जातकों में यदि राजसी गुण पाए जाएं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
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यदि लग्न या सूर्य पर अन्य ग्रहों की कुदृष्टि न हो तो सिंह-जातक उदात्त भाव तथा आकर्षक व्यक्तित्व वाले होते हैं। उन्हें देखते ही दूसरों का ध्यान सम्मान के साथ उनकी ओर खिंचा जाता है। सिंह जातकों में नेतृत्व तथा संगठन का स्वाभाविक गुण होता है। आत्म-विश्वास से वे किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। सूर्य शालीनता और विशालता का प्रतीक है। अतः सिंह-जातक भी हर काम को शालीनता के साथ बड़े पैमाने पर करना पसन्द करते हैं। उनके विचार भी उच्च होते हैं । अन्य लोगों की तुच्छता या नीचता को सहन कर पाना उनके लिए कठिन होता है। वे स्पष्टवादी, खुले दिल वाले और महत्वाकांक्षी होते हैं। यदि उनमें इन गुणों का विकास नहीं हो पाता तो वे दिखावट पसंद बन जाते है।
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अभिमान और खुशामद पसंदी सिंह जातकों की कुछ बड़ी कमजोरियां हैं। ये प्रायः उनका मनचाहा न होने से उत्पन्न निराशा के कारण दूसरों को अपनी ओर आकर्षित करने का साधन होती हैं। सिंह जातक प्रशंसा और चापलूसी के बिना नहीं रह सकते । भड़कीले वस्त्र पहनना, आत्मश्लाघा, अहम्, अभिमान और छल-कपट उनके अन्य अवगुण हो सकते हैं।
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सिंह-जातक ऐसे पदों पर सबसे अधिक सफल रहते हैं जहां उन्हें संगठन तथा प्रशासनिक योग्यता दिखाने का अवसर मिले। वे दूसरों के अधीन काम करने के बजाय उनका मार्ग-दर्शन करना पसन्द करते हैं। सामाजिक क्षत्र में भी उन्हें लोकप्रियता चाहिए। अपनी जन्मजात योग्यताओं तथा आकर्षणशक्ति के कारण उनमें दूसरे व्यक्तियों पर, विशेषकर कमजोर वर्गों पर छा जाने की प्रवृत्ति पैदा होने लगती है। इससे उन्हें हानि भी होती है और वे अनेक शत्रु बना लेते हैं। अपने प्रियजनों के प्रति उनकी उदारता भी कभी-कभी हानिकारक हो जाती है।
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सिंह जातक दूसरों से आदेश सुनना पसन्द नहीं करते। उनसे काम लेने का सर्वोत्तम उपाय यह है कि उनकी क्षमता की प्रशंसा करते रहा जाए। फिर तो वे आपके पालतू हो जाएंगे। ये लोग जन्मजात आशावादी होते हैं और आसानी से निराशा के शिकार नहीं होते । वे आनन्द और भोग में विश्वास करते हैं और अपने अल्प साधनों को भी दूसरों के सामने इस प्रकार रखते हैं कि वे बड़े दिखाई देने लगते हैं। व्यक्तित्व, घर, सत्कार, व्यापारिक प्रबन्ध सब के बारे में यही बात है। सिंहजातक अन्य किसी राशि के जातकों से अधिक प्रदर्शन में विश्वास करते हैं। उनका घर चमकीले रंगों से सजा होगा और उसमें सजावट, कपडे, शीशे, झाड-फानूस फर्नीचर, सभी मालिक की रुचि का परिचय दे रहे होंगे।
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इन लोगों को सबसे अधिक भय अपने मित्रों से रहता है जो उन उदारता तथा अन्य गुणों का अनुचित लाभ उठाने का प्रयास करते हैं। ऐसे में अधिकांश वे चापलूस होते हैं जो चिकनी-चुपड़ी बातों से उन्हें बहका लेते है। इन लोगों में काम करने की अपार ऊर्जा होती है, किन्तु कभी-कभी सिंह की भांति उनको भी आलस के दौरे पड़ते हैं। उनका पक्षपातपूर्ण रवैया उनकी एक और बड़ी दुर्बलता होती है।
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सिंह जातिकाओं में भी सिंह-जातकों के समान ही लक्षण पाए जाते हैं । वे अति अभिमानी, भोगप्रिय, अच्छे कपड़े तथा आभूषणों की शौकीन और अपने रूप की साज-संवार पर काफी धन व्यय करने वाली होती है।
आर्थिक गतिविधियां और कार्यकलापः-
सिंह जातकों में कठोर परिश्रम करने की क्षमता होती है, किन्तु उनका काम करने का ढंग प्रायः त्रुटिपूर्ण और सहयोगियों को परेशानी में डालने वाला होता है। वे ऐसे छोटे-छोटे काम भी अपने हाथों से करने लगते हैं जो उन्हें नहीं करने चाहिए और अधीन स्तरों के लिए छोड़ देने चाहिए। इस प्रकार वे अपनी शक्ति का भारी अपव्यय करते हैं। कभी-कभी उनको निष्क्रियता के दौरे भी पड़ते हैं और वे अकस्मात सारा काम छोड़कर चुपचाप बैठ जाते हैं । दौरा समाप्त होने पर वे फिर अपने काम में जुट जाते हैं।
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सिंह-जातक आर्थिक मामलों में प्रायः भाग्यशाली समझे जाते हैं । ईमानदारी के किसी भी काम में उन्हें अच्छी सफलता मिल सकती है। पद और आयु में बड़े लोगों से लाभ मिलने की आशा है । सट्टेबाजी और विनियोग से भी लाभ मिल सकता है। वे बड़े पैमाने की आर्थिक योजनाओं में, जिन्हें जन-संरक्षण प्राप्त हो, अधिक सफल हो सकते हैं। उन्हें अपने खर्चीले स्वभाव पर अंकुश रखना चाहिए। सोना, पीतल तथा हीरे जवाहरात के व्यवसाय में अथवा सरकार तथा नगरपालिका सम्बन्धी कार्यों से सिंह जातकों को अच्छी आय हो सकती है।
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मैत्री, प्रेम, विवाह-सम्बन्धीः-
मित्रों के प्रति सिंह जातक अत्यन्त उदार होते हैं, किन्तु चापलूसी पसन्द होने के कारण वे प्रायः गलत मित्रों का चुनाव कर लेते हैं और हानि उठाते हैं। अपनी आर्थिक दशा अच्छी न होने पर भी वे मित्रों की मांगों को पूरा करने का प्रयास करते हैं। उनके लिए उनके मुंह से ना निकलता ही नहीं। सिंह जातक अपने प्रियजनों के लिए कोई भी कठिनाई झेल सकते हैं। सिंह जातिकाएं भी बहुत अच्छी मित्र सिद्ध होती हैं। अग्नि-त्रिकोण के मध्य में होने के कारण सिंह जातकों के हृदय में प्रेम की ज्वाला धधकती रहती है। अपने प्रेम सम्बन्धों में वे निष्ठावान रहते है। अपने प्रेम सम्बन्धों में वे पूर्ण निष्ठावान होते हैं। सिंह राशि काल पुरूष के हृदय की प्रतिनिधि होने के कारण उनका प्रेम सीधे हृदय से उपजता है और उसमें भावना की गहराई होती है। लेकिन अपनी संवेदनशीलता छिपाने के लिए प्रेम प्रदर्शन में वे प्रायः अकड का सहारा लेते हैं।
सिंह जातकों में यौन की प्रबल भूख रहती है और उसके लिए वह सर्वोपरि महत्व की है। अपने प्रेम-प्रसंगों में वे जी-जान से जुटते हैं। महिलाएं उनके पौरुष से प्रबल रूप से आकर्षित होती हैं और उनकी चापलूसीप्रियता का लाभ उठाकर उनके दिल को जीत सकती हैं। विकारग्रस्त सिंह जातक प्रायः छोटे स्तर की महिलाओं से विवाह करते हैं जिससे उन्हें यह संतोष रहे कि कम से कम किसी से तो वे बड़े हैं। उनमें चरित्र को परखने की बुद्धि नहीं होती और वे केवल बाहरी रूप तथा सम्पत्ति से ही आकर्षित होते हैं। उनमें यौन की अपार और अनियंत्रित भूख होती है। ऐसे लोगों में हर प्रकार की यौन विकृतियां पाई जा सकती हैं।
सिंह जातिकाओं में भी यौन की प्रबल भूख रहती है, लेकिन वे सुखसुविधा का और मन-मर्जी का जीवन भी बिताना चाहती हैं। अपने में असीम विश्वास के कारण वे प्रायः गलत लोगों को अपना प्रेमपात्र चुन लेती हैं। इसका परिणाम उनका दिल टूटने में होता है। सिंह जातिकाओं के विगत जीवन को यदि कुरेदा जाए तो उनमें से अनेक भंग प्रेम-प्रसंगों, पति से अलगाव और तलाक की कहानी कहती सुनाई देंगी।
स्वास्थ्य और खान-पानः-
सिंह जातक के शरीर में एक राजसी आभा होती है। उसकी वाणी और चाल में शालीनता पाई जाती है और कंधे तथा कपाल चैड़े होते हैं । अधिकांश सिंह जातक लम्बे और सुगठित शरीर वाले होते हैं, किन्तु कद में छोटे होने पर भी भीड़ में अलग से पहचान लिए जाते हैं । नेपोलियन इसका उदाहरण है। वे धीरे-धीरे डग आगे बढ़ाते हैं। उनका डग औसत से अधिक लम्बा होता है। उनकी हंसी शेर की दहाड़-जैसी लगती है। सुगठित शरीर के कारण वे नृत्य के शौकीन हो सकते हैं।
सिंह जातक या तो असाधारण रूप से स्वस्थ होते हैं, अथवा रोग शैय्या पर पड़े रहते हैं। प्रतिकूल वातावरण व खंडित अभिमान और अवांछित प्रेमप्रसंग उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालते हैं। उनमें शीघ्र स्वस्थ होने की क्षमता होती है, किन्तु उनकी सबसे अच्छी दवा शांति, प्रेम और रुचिकर वातावरण है।
सिंह राशि कालपुरुष के हृदय का और रीढ़ के ऊपरी भाग का प्रतिनिधित्व करती है, अतः इन अंगों के प्रति सिंह जातकों को विशेष सावधान रहने आवश्यकता है। सिंह राशि या सूर्य पर शनि, मंगल या नेप्चून की कुदृष्टि होने से हदय में किसी प्रकार की दुर्बलता आ सकती है। सिंह राशि में मंगल की स्थिति दिल की धड़कन को तेज करती है। सिंह जातक जिन रोगों से प्रायः ग्रस्त होते है। उनमें कुछ इस प्रकार हैं- हृदय रोग, धड़कन तेज होना, लू लगना, गठिया वाला ज्वर, आदि। सिंह जातकों को शराब तथा अन्य नशीले पदार्थों के सेवन से बचना चाहिये और सन्तुलित तथा सात्विक भोजन करना चाहिए
द्रेष्काण, नक्षत्र, त्रिशांशः-
लग्न प्रथम द्रेष्काण में होने पर जातक दुहरे सूर्य के प्रभाव और उसमें सिंह राशि की प्रवत्तियां अधिक प्रखरता से उभरकर सामने आती हैं। द्वितीय द्रेष्काण में लग्न होने से जातक में आत्माभिमान के साथ-साथ स्वतन्त्रताप्रियता की मात्रा बढ जाती है। किन्तु तृतीय द्रेष्काण में लग्न होने से उसमें अधिक आवेग आ जाता है। उस समय उसको नियन्त्रण में रख पाना बड़ा कठिन होता है।
चन्द्र या नामाक्षर मघा के प्रथम चरण में होने पर जातक में आवेश की मात्रा अधिक हो जाती है। द्वितीय चरण उसकी सौन्दर्य भावना का विस्तार करता है । तृतीय चरण में चन्द्र या नामाक्षर होने से वह कल्पना की अधिक उड़ान भरने लगता है जबकि चतुर्थ चरण में होने से उसमें कल्पना-शक्ति का विकास होता है। पूर्वा फाल्गुनी का प्रथम चरण उसकी स्वाभाविक प्रवृत्तियों को और बढ़ाता है, द्वितीय चरण उसमें सौन्दर्य बोध देता है जबकि तृतीय चरण उसे रूप पिपासु तथा कामी बनाता है । चतुर्थ चरण उसके संकल्प में वृद्धि करने के साथ-साथ उसमें अपनी बात हर किसी से न कहने की प्रवृत्ति पैदा करता है। उत्तरा फाल्गुनी का प्रथम चरण पुनः उसे अपनी स्वाभाविक प्रवृत्तियों के साथ-साथ उसमें स्वच्छन्दता की भावना भरता है।
सिंह जातिका की लग्न मंगल के त्रिशांश (०°-५) में होने पर उसकी पुरुष के समान प्रकृति होती है। शनि के त्रिशांश (५-१०) में होने पर अनेक प्रकार के दुःख उठाने पड़ते हैं । गुरु के त्रिशांश (१०-१८) में होने पर उसे उच्च पद वाला पति मिलता है। बुध के त्रिशांश (१८-२५°) में होने से वह पुरुष जैसी चेष्टा वाली होती है। शुक्र के त्रिशांश (२५-३०) में होने से उसे निम्न पद वाला पति मिलता है तथा वह रोगिणी भी होती है।
अन्य ज्ञातव्य बातेंः-
भारतीय आचार्यों ने सिंह राशि का वर्ण पांडू या पीलापन लिए हुए श्वेत कहा है। इसके स्वामी सूर्य का वर्ण रक्त श्याम बताया गया है। इसका ताम्रवर्ण भी कहा गया है। सूर्य का रत्न माणिक है जिसे सोने या तांबे में धारण किया जाना चाहिए।
सिंह राशि पूर्व दिशा की द्योतक है। सिंह राशि के स्वामी सूर्य का मूलांक १ है। यह अंक व्यक्ति को दृढ़ संकल्प वाला तथा आत्मविश्वासी बनाता है। यूरेनस के मूलांक ४ के साथ इस अंक का विशेष सम्बन्ध है। सिंह जातक के जीवन में ये दोनों अंक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वारों में यह राशि रविवार का प्रतिनिधित्व करती है।
सिंह राशि निम्न वस्तुओं, रथानों तथा व्यक्तियों की संकेतक हैः-
मिर्च, बादाम, केसर, कंटीले वृक्ष, सुनहरी वस्तुएं, अंगूठी, स्वर्ण मुद्राएं, पीतल, औषधियां आदि।
ऊंची पहाड़ियां, वन्य पशुओं के निवास स्थान, वन, अरण्य, राजभवन, दुर्ग, प्रासाद, सरकारी भवन, क्लब घर, सिनेमा तथा नाटक घर, खेल के मैदान, जूआ घर, घुड़ दौड़ का मैदान, शेयर बाजार, स्वर्ण खाने, टकसाल, चूल्हा, चिमनी, रसोईघर, खुली छत आदि।
जौहरी, स्वर्णकार, निगमाध्यक्ष, प्रबन्धक, अधिकारी, सुपरिटेंडेंट, निदेशक, कप्तान आदि।