Saturday 16 January 2021

Kanya rashi ka parichay / कन्या राशि का संपूर्ण परिचय

Posted by Dr.Nishant Pareek

 Kanya rashi ka parichay



कन्या राशि का संपूर्ण परिचयः-

 कन्या राशि के अंतर्गत आने वाले नामाक्षर निम्न हैः- टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो।

कन्या राशिचक्र की छठी राशि है। षष्ठ या षष्ठी के अतिरिक्त इसके अन्य नाम इस प्रकार हैंः-

स्त्री, कान्ता, तन्वी, नारी, बाला, भीरू, योषा, रामा, वधू, वसा, वामा, सुता, अंगना, अबला, एणाक्षी, कामिनी, कुमारी, तरुणी, दयिता, दारिका, पाथेय, पाथोन, प्रमदा, भामिनी, महिला, मानिनी, मृगाक्षी, युवती, रमणी, ललना, वधूटी, वनिता, वर्णिनी सुन्दरी, सुमुखी, अभिरामा, जलजाक्षी, नितम्बिनी, सीमन्तिनी सुलोचना, सुवासिनी, वामलोचना, प्रतीपदर्शिनी।  अंग्रेजी में इसे वर्गो कहते हैं।

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इस राशि की प्रतीक हाथ में फूल की डाली लिए कन्या है। इसका विस्तार राशिचक्र के १५० अंश से १८० अंश तक है। इसका स्वामी बुध है। इसका तत्व पृथ्वी है। इसके तीन द्रेष्काणों के स्वामी क्रमशः बुध, शनि तथा शुक्र हैं। इसके अन्तर्गत उत्तरा फाल्गुनी के द्वितीय, तृतीय तथा चतुर्थ चरण, हस्त के चारों चरण तथा चित्रा के प्रथम दो चरण आते हैं। इन चरणों के स्वामी इस प्रकार हैं-उत्तरा फाल्गुनी द्वितीय चरण- सूर्य-शनि, तृतीय चरण- सूर्य-शनि, चतुर्थ चरण- सूर्य-गुरु, हस्त प्रथम चरण- चन्द्र-मंगल, द्वितीय चरण- चन्द्र-शुक्र, तृतीय चरण- चन्द्र-बुध, चतुर्थ चरण- चन्द्र-चन्द्र, चित्रा प्रथम चरण- मंगल सूर्य, द्वितीय चरण- मंगल-बुध। इन चरणों के नामाक्षर इस प्रकार हैं -टो पा पी पू ष ण ठ पे पो।

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त्रिशांश विभाजन में ०-५° शुक्र (वृष) के, ५-१२° बुध (कन्या ) १२-२०° गुरु (मीन) के, २०-२५° शनि (मकर) के तथा २५-३० मंगल (वृश्चिक) के हैं।

जिन व्यक्तियों के जन्म के समय निरयण चन्द्र कन्या राशि में संचरण कर रहा होता है, उनकी जन्म राशि कन्या मानी जाती है। उन्हें गोचर के अपने फलादेश इसी राशि के अनुसार देखने चाहिएं। जन्म के समय लग्न कन्या राशि में होने पर भी यह अपना प्रभाव दिखाती है। सायन सूर्य २३ अगस्त से २२ सितम्बर तक कन्या राशि में रहता है। यही अवधि शक संवत् के भाद्र मास की है। ज्योतिषियों के मतानुसार इन तिथियों में दो-एक दिन का हेर-फेर हो सकता है। जिन व्यक्तियों की जन्म तिथि इस अवधि के बीच है, वे पश्चिमी ज्योतिष के आधार पर फलादेशों को कन्या राशि के अनुसार देख सकते हैं। निरयण सूर्य लगभग १८ सितम्बर से १७ अक्तूबर तक कन्या राशि में रहता है।

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जिन व्यक्तियों केे पास अपनी जन्म कुण्डली नहीं है अथवा वह नष्ट हो चुकी है, तथा जिन्हें अपनी जन्मतिथि और जन्मकाल का भी पता नहीं है, वे अपने प्रसिद्ध नाम के प्रथम अक्षर के अनुसार अपनी राशि स्थिर कर सकते हैं। कन्या राशि के नामाक्षर हैं-टो पा पी पू ष ण ठ पे पो।

इस प्रकार कन्या जातकों को भी हम चार वर्गों में बांट सकते हैं-चन्द्रकन्या, लग्न-कन्या, सूर्य-कन्या तथा नाम-कन्या । इन चारों वर्गों में कन्या राशि की कुछ-न-कुछ प्रवृत्तियां अवश्य पाई जाती हैं ।

ग्रह-मैत्री चक्र के अनुसार कन्या राशि चन्द्र, शुक्र तथा शनि के लिए मित्र राशि है, सूर्य के लिए सम राशि और मंगल तथा गुरु के लिए शत्रु राशि । इस राशि में बुध अपनी उच्च अवस्था में होता है तथा शुक्र नीच अवस्था में । गुरु के लिए यह अस्त राशि है।

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प्रकृति और स्वभावः-

कन्या जातक कन्या की भांति ही लजीले और संकोची होते हैं, यहां तक कि यदि कोई उनका शरीर छू दे तो छुई-मुई की भांति सिकुड़ने लगते हैं। दूसरों के साथ यौनालाप करने में भी उन्हें भारी झिझक होती है। अपने इस स्वभाव के कारण वे प्राय बड़ी आयु तक अथवा आजीवन कुंवारे रहे आते हैं। कन्या की ही भांति कन्या जातक शांत, एकांतप्रिय, व्यवस्थित ढंग से करने वाले तथा व्यावहारिक होते हैं। अन्य राशियों के जातकों की अपेक्षा वे अधिक सेवाभावी होते हैं। हर निर्देश का वे सावधानी से और पूरे विस्तार से पालन करते हैं। उनमें अच्छे-बुरे की पहचान करने की क्षमता होती है। वे समस्याओं और परिस्थितियों की जड़ तक पहुंच सकते हैं।

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कन्या जातक जन्मजात आलोचक होते हैं। अतः बहुत सोच-समझकर अपने मित्रों का चुनाव करते हैं। उनका विश्लेषण स्पष्ट और निर्णय तथा राय वास्तविकता पर आधारित होती है। उनमें नए-नए विषयों का ज्ञान प्राप्त करने की सहज प्रवृत्ति होती है।। कन्या जातकों का एक अन्य गुण अपने हर काम को विस्तार से करना और उसके हर अंश पर उचित ध्यान देना है। इसीलिए कन्या जातक प्रायः महीन काम करना पसन्द करते हैं, जैसे घड़ियां बनाना, आभूषण गढ़ना, कसीदाकारी, सूक्ष्म यन्त्रों का निर्माण, सूक्ष्मदर्शक से विश्लेषण आदि।

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जब उनमें बुरी आदतों का विकास होता है तो वे निरन्तर दूसरों की बुराई तथा आलोचना करने लगते हैं। इससे उन्हें भलाई या प्रसन्नता नहीं मिल पाती। बेमेल वस्तुओं पर उनका ध्यान बड़ी जल्दी जाता है। वे अपने व्यक्तित्व को, अपने जीवन को और अपने घर को सुरुचिपूर्ण रखने में विश्वास करते हैं।

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कन्या जातकों में आश्चर्यजनक स्मरणशक्ति और प्रखर बुद्धि होती है। जिन कामों को दूसरे लोग पूरा करने में विफल रहते हैं उन्हें वे सफलता से पूरा कर देते हैं । जो लक्ष्य ठान लेते हैं, उसे पूरा किए बिना चैन से नहीं बैठते। आमतौर से उन पर हावी नहीं हुआ जा सकता और न उन्हें आसानी से धोखा दिया जा सकता है। वे पद और कानून का बहुत अधिक सम्मान करते हैं । उनकी बौद्धिकता मूलतः प्रगतिशील होती है। वे गम्भीर और विचारक होते हैं, अच्छे वक्ताओं को सुनना पसन्द करते हैं, स्वयं भी भाषा पर उनका अच्छा अधिकार होता है, फिर भी वे प्रचार से प्रायः दूर ही रहते हैं। कर्मठ होने के कारण वे बड़ी आयु तक युवा रहे आते हैं । उनके चेहरे से उनकी आयु का अनुमान लगाना कठिन होता है। वे छोटी-छोटी बातों पर चिढ़ जाते हैं, लेकिन रक्तपात से घृणा करते हैं । वे अच्छे मध्यस्थ और प्रतिनिधि का काम कर सकते हैं।

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कन्या बुध के स्वामित्व वाली दूसरी राशि है। प्रथम राशि मिथुन है । किन्तु दोनों राशियों के जातकों में आकाश-पाताल का अन्तर होता है। मिथुन का जातक जहां हवा के घोड़े पर सवार रहता है वहां कन्या के जातक के पांव दृढ़ता से भूमि के साथ जुड़े रहते हैं। कन्या जातक के स्वभाव में एक विशेष बात यह पाई जाती है कि अपने निवास स्थान अथवा काम को लगातार बदलते रहते हैं।

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आर्थिक गतिविधियां और कार्यक्षेत्रः-

कन्या जातक उत्तम वकील और वक्ता बन सकते हैं। अपने परिश्रमी स्वभाव, इच्छाशक्ति और संकल्प के कारण वे वैज्ञानिक खोज और व्यापार में भी सफल होते हैं । साहित्य-समीक्षक और कला-समीक्षक के रूप में वे प्रायः अत्यन्त कुशल रहते हैं । आर्थिक दृष्टि से वे अत्यन्त सावधान और अल्पव्ययी स्वभाव के होते हैं। मकानों, भूमि आदि में पूंजी लगाना उनके लिए लाभ कारक रहता है । वे अच्छे साहूकार और लेखाकार भी बनते हैं। वे प्रायः परदे के पीछे काम करते रहते हैं और उनके हिस्से का यश कोई दूसरा ही ले जाता है। आर्थिक लाभ से अधिक उन्हें काम के प्रति लगाव होता है । वे अपना समय और शक्ति निःशुल्क भी दे सकते हैं । किन्तु उनकी उदारता को भी सीमा होती है और जब वे उसे पार होते देखते हैं तो ना कहना भी जानते हैं। उनका सेवा-भाव उन्हें डाक्टरी या नर्स के पेशे में भी ले जा सकता है। यात्रा के समय कन्या जातक अपने रुपए-पैसे का कुछ भाग एक जेब में रखेंगे और कुछ भाग दूसरी जेब में। खर्च न करने के विचार से कुछ अतिरिक्त धन अपने सूटकेस में रख सकते हैं।

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मैत्री, प्रेम, विवाह-सम्बन्धः-

कन्या जातक स्वयं को भावनाओं में नहीं बहने देते। वे अपने मित्रों का भी बेलाग विश्लेषण कर सकते हैं और अपनी स्पष्टवादिता से उन्हें प्रायः नाराज कर देते हैं। वे शारीरिक भूख तथा तीव्र भावनाओं के प्रति उदासीन रहते हैं। प्रेम के विषय में उन्हें समझ पाना अत्यन्त कठिन है। उनके मन में प्रेम का बहुत गहरा भाव हो सकता है, किन्तु वे भावुकता या दिखावे से दूर रहते हैं। उनमें इगो की प्रवृत्ति मिलना भी असम्भव नहीं है। इस राशि के जातकों में बस अच्छे और सबसे बुरे, दोनों प्रकार के स्त्री-पुरुष पाए गए हैं। प्रारम्भिक वर्षों में प्रायः सभी नेक और साफ दिल वाले होते हैं। लेकिन जब बदलते हैं तो सहसा से बदलते हैं। इस स्थिति में भी वे अपनी भावनाओं को छिपाने में सफल होते है। कुछ लोग शराब और मादक द्रवों का आश्रय भी लेने में सफल रहते हैं। कुछ लगते हैं।

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कन्या जातक आसानी से प्रेम जाल में नहीं फंसता । उसका दिल पिघलने लगता है । लेकिन प्रेम के चक्कर में पड़ जाने पर वह पूरी निष्ठा का परिचय देता है। फिर भी उसका व्यवहार पशुवत् नहीं होता । यौन का उसके जीवन में अधिक महत्व नहीं होता और वह मुंह से प्रेम-प्रदर्शन नहीं कर पाता। उसका प्यार उसके कार्यों से प्रकट होता है, विशेषकर जब साथी अस्वस्थ हो जाए। उस समय उससे अधिक परिचर्या करने वाला दूसरा नहीं होता। स्त्री और पुरुष, दोनों ही अधिक बच्चे पसन्द नहीं करते, लेकिन जो जन्म ले लेते हैं उनकी आवश्यकताओं का पूरा ध्यान रखा जाता है। यदि जातक में बुरी प्रवृत्तियों का विकास हो गया है, तो उसे कोई जीवन-साथी पसन्द नहीं आता। उसकी आलोचनात्मक दृष्टि उसकी यौन-भावना को खिलने से पहले ही कुचल देती है। ऐसे व्यक्तियों में आत्म-पीड़न की भावना भी पैदा हो सकती है। अधिकांश कन्या जातक विवाह को कानूनी समझौता मानते हैं। यही बात कन्या जातिकाओं के बारे में है। 

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स्वास्थ्य और खान-पानः-

अपने शरीर का विशेष ध्यान रखने के कारण कन्या जातक का स्वास्थ्य प्रायः आजीवन बहुत अच्छा रहता है। वे लम्बी आयु भोगते हैं और बुढ़ापे में भी युवा जैसे दिखाई देते हैं। वे रोगों के अपेक्षाकृत कम शिकार होते हैं, किन्तु उनमें एक विचित्र बात यह पाई जाती है कि पत्र-पत्रिकाओं में रोगों के बारे में पढ़कर वे स्वयं के भी उनसे पीडित होने की कल्पना करने लगते हैं। भोजन के बारे में वे बहुत सुरुचिपूर्ण होते हैं। रुचि का भोजन न मिलने पर उनकी भूख मर जाती है। स्वयं पर काबू नहीं रख पाए तो उनमें शराब और मादक द्रव्यों के सेवन की भी प्रवृत्ति पैदा हो सकती है। उनके जीवन में तालमेल का भारी महत्व है। उसमें जरा-सी कमी होने पर ही उनकी स्नायु-प्रणाली पर प्रभाव पड़ता है और उनकी पाचन-शक्ति बिगड़ जाती है। भोजन में असावधानी बरतने पर अक्सर आमाशय में घाव हो जाते हैं। उन्हें फेंफड़ों की शिकायत हो सकती है अथवा कन्धों और भुजाओं की नसों में दर्द हो सकता है। उनके रोगों का कारण अधिकांशतः कठिन परिश्रम होता है। हलका सादा भोजन, ढेर पाना, ताजा हवा, धूप-स्नान, और निद्रा तथा विश्राम उनके स्वास्थ्य के लिए लाभकारी रहते हैं। यह उल्लेखनीय है कि कन्या राशि राशिचक्र में कालपुरुष के उदर भाग का प्रतिनिधित्व करती है।

कन्या जातक का शरीर प्रायः लम्बा और पतला-दुबला होता है। बाल और आंखें काली होती हैं। भौहों पर घने बाल होते हैं । स्वर महीन और तीखा होता है। वे तेज डग भरते हैं। उनका पेट शायद ही बाहर निकलता हो। नासिका सीधी होती है।

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द्रेष्काण, नक्षत्र, त्रिशांशः-

लग्न यदि प्रथम द्रेष्काण में हो तो जातक दुहरे बुध के प्रभाव में रहता है। उसमें कन्या राशि की प्रवृत्तियां अधिक प्रखरता से उभरी रहती हैं। दूसरे द्रेष्काण में लग्न होने पर बुध के साथ शनि का भी प्रभाव जातक को अधिक गम्भीर तथा महत्वाकांक्षी बनाता है। कभी-कभी उस पर निराशा भी हावी हो सकती है। तृतीय द्रेष्काण में लग्न होने पर बुध के साथ शुक्र का प्रभाव जहां जातक की कलाओं में रुचि पैदा करता है वहां उसे अधिक जिद्दी भी बना सकता है।

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चन्द्र या नामाक्षर उत्तरा फाल्गुनी के दूसरे चरण में होने पर जातक में अपनी वृत्ति के प्रति अधिक महत्वाकांक्षा पैदा होती है। तीसरा चरण उसे अस्थिर बनाता है और उसकी शक्तियां घर तया बाहर के बीच बंटती प्रतीत होती हैं। चैथा चरण उसके भावनात्मक पक्ष को प्रेरित कर उसे साहित्य की ओर उन्मुख कर सकता है अथवा अनुसंधान में प्रवृत्त कर सकता है। हस्त का प्रथम चरण उसे हठी और आवेशी बनाता है । द्वितीय चरण कलाओं में उसकी रुचि बढ़ाता है । तीसरा चरण उसकी कल्पनाशक्ति को तीव्र करता है। चैथा चरण उसमें भावुकता लाता है। चित्रा का प्रथम चरण उसमें अधिकार-भावना बढ़ता है। द्वितीय चरण उसकी कन्या राशि की प्रवृत्तियों में वृद्धि करता है।

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कन्या-जातिका की लग्न शुक्र के त्रिशांश (०-५) में होने पर वह सम्पन्नता से अपना जीवन व्यतीत करती है। बुध के त्रिशांश (५-१२) में होने पर परिवार में उसका वर्चस्व रहता है। गुरु के त्रिशांश (१२-२०) में होने पर पति के साथ उनके प्रेम-पूर्ण सम्बन्ध रहते हैं। शनि के त्रिशांश (२०-२५) होने पर उसमें अनेक यौन-विकृतियां पैदा हो सकती हैं। वह भाग्यहीन हो सकती है। मंगल के त्रिशांश (२५-३०°) में होने पर उसके अनेक पुत्र हो सकते हैं।

अन्य विशेष बातेंः-

भारतीय आचार्यों ने कन्या राशि का वर्ण चित्र रुचि (चितकबरा या विविध रंगों का मिश्रण) कहा है। इसके स्वामी बुध का वर्ण नवीन दूर्वा के सदृश हरित श्याम है । बुध का रत्न पन्ना है जिसे सोने या कांसे में धारण किया जाना चाहिए।

कन्या राशि दक्षिण दिशा की द्योतक है। इस राशि के स्वामी बुध का मूलांक ५ है। यह अंक परिवर्तन तथा अस्थिरता का प्रतीक है। कन्या जातक के जीवन में यह अंक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके प्रभाव से उसमें निवास स्थान तथा वृत्ति में बार-बार परिवर्तन करने की प्रवृत्ति भी पैदा होती है। वारों में कन्या राशि बुधवार का प्रतिनिधत्व करती है।

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कन्या राशि निम्न वस्तुओं, स्थानों तथा व्यक्तियों की संकेतक हैः-

उद्यान-वाटिकाएं, अन्न के खेत, खलिहान, रेस्तरां, बर्तन धोने के स्थान, फल-सब्जी की दूकानें, गोदाम, भंडार घर, पुस्तकों की अलमारियां, प्राथमिक चिकित्सा पेटी, डाक्टर की पेटी, पुस्तकालय, स्नानघर, गोशालाएं, आदि। स्वास्थ्य कर्मचारी, इंजीनियर, लेखा परीक्षक, शिक्षक, जहाजरानी या नौसैनिक कर्मचारी, कपड़ा मिल कर्मचारी, प्रेस-कर्मचारी, पत्रकार, प्रकाशक, लेखक, दलाल, लेखपाल, वकील, बीमा एजेंट, कलाकार, नानबाई, रेस्तरांकर्मचारी, गणितज्ञ, ज्योतिषी, आदि।


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