Friday 12 February 2021

Tula rashi ka parichay / तुला राशि का संपूर्ण परिचय

Posted by Dr.Nishant Pareek

Tula rashi ka parichay



 तुला राशि का संपूर्ण परिचय

तुला राशि के अंतर्गत आने वाले नामाक्षर निम्न हैः- रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते। 

तुला राशि, राशिचक्र की सातवीं राशि है। सप्तम के अलावा इसे निम्न नामों से भी जाना जाता है- जूक, तौलि, धट, पिचु, यूक, वणिक, नैगम, आपणिक, तुुलाधर, धटगति, पण्याजीव, सार्थवाह, क्रय- विक्रयक, वणिगधिपति। अंगे्रजी में इसे लीब्रा कहते है। 

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तराजू के दो पलडे़ - तुला राशि का प्रतीक है। इस राशि का विस्तार राशिचक्र के 180 अंश से 210 अंश तक है। शुक्र ग्रह इसका स्वामी है। वायु तत्व है। इसके तीन द्रेष्काणों के स्वामी क्रमशः शुक्र, शनि तथा बुध है। इसके अंतर्गत चित्रा नक्षत्र के तीसरे चरण तथा चैथे चरण, स्वाती के चारों चरण तथा विशाखा के तीन चरण आते है। इन चारों चरणों के स्वामी क्रमशः इस प्रकार है-  चित्रा तीसरा चरण- मंगल शुक्र, चैथा चरण - मंगल मंगल, स्वाति पहला चरण- राहु गुरू, विशाखा पहला चरण - गुरू मंगल, दूसरा चरण - गुरू शुक्र, तीसरा चरण - गुरू बुध। इन चरणों के नामाक्षर इस प्रकार है - रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते। 

त्रिशांश विभाजन में 0 से 5 डिग्री मंगल मेष के, 5 से 10 डिग्री शनि कुंभ के, 10 से 18 डिग्री गुरू धनु के, 18 से 25 डिग्री बुध मिथुन के, और 25 से 30 डिग्री शुक्र तुला के है। 

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जिन लोगों के जन्म के समय निरयण चंद्रमा तुला राशि में भ्रमण करता है, उनकी राशि तुला होती है। उन्हें गोचर में अपने फल इसी राशि के अनुसार देखने चाहिये। जन्म के समय लग्न तुला राशि में होने से भी यह अपना असर दिखाती है। सायन सूर्य 23 सितंबर से 22 अक्टूबर तक तुला राशि में रहता है। यही समय शक संवत् के अश्विन मास का है। इन तिथियों में कुछ आगे पीछे जरूर हो सकता है। जिन लोगों की जन्म तारीख इस अवधि के बीच आती है, वे पश्चिमी ज्योतिष के अनुसार फलादेश तुला राशि का देख सकते है। निरयण सूर्य लगभग 18 अक्टूबर से 16 नवंबर तक तुला में रहता है। 



जिन लोगों की कुंडली नही है या जन्म विवरण पता नहीं है, वे अपने प्रसिद्ध नाम के पहले अक्षर के अनुसार अपनी राशि देख सकते है। 

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इस तरह तुला राशि के व्यक्तियों को हम चार भागों में विभाजित कर सकते है- चंद्र तुला, लग्न तुला, सूर्य तुला तथा नाम तुला। इन चारों भागों में तुला राशि की कुछ न कुछ प्रवृतियां जरूर मिल जाती है। ग्रह मैत्री चक्र के अनुसार तुला राशि बुध व शनि के लिये मित्र राशि, चंद्र व मंगल के लिये सम राशि तथा सूर्य व गुरू के लिये शत्रु राशि है। इस राशि में शनि अपनी उच्च अवस्था में तथा सूर्य अपनी नीच अवस्था में होता है। मंगल के लिये यह अस्त राशि है। 

प्रकृति और स्वभाव:-  

तुला सौन्दर्य और सन्तुलन की राशि है। रूप और सौन्दर्य का राजा शुक्र ग्रह इस राशि का स्वामी है। अतः सौन्दर्य की साधना तुला जातक का मूल गुण है। यों शुक्र के स्वामित्व वाली एक अन्य राशि वृष भी है। किन्तु वृष के शुक्र में और तुला के शुक्र में भारी अन्तर है। जहां वृष में शुक्र का भौतिक प्रेम वाला पक्ष उभरकर आगे आता है, वहां तुला में उसका कलात्मक पक्ष मुखर होता है । तुला जातक एक सुन्दर वृक्ष को या मनोरम प्रकृति को देखकर, एक सुन्दर चित्र का अवलोकन कर अथवा एक मनोहारी गीत सुनकर उसी प्रकार आकर्षित होता है जिस प्रकार एक सुन्दर नारी की रूप मोहिनी से। यही कारण है कि तुला जातक को अपने आस-पास सदा एक सुरम्य वातावरण चाहिए और वह न मिलने पर उसका मन बुझा-बुझा-सा हो जाता है । यह वातावरण तुला के दोनों पलड़ों में सन्तुलन से ही आ सकता है । जरा-सा सन्तुलन बिगड़ा और सब कुछ अस्त-व्यस्त हुआ। वे जीवन को पूरे आनन्द के साथ भोगने में विश्वास करते हैं।

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मानसिक रूप से तुला जातक अच्छे न्यायाधीश, पंच, शांतिदूत हो सकते हैं। उनमें हर बात को तर्क की कसौटी पर कसने की प्रबल भावना है। इसमें वे स्वयं को भी नहीं बख्शते। इस प्रवृत्ति के कारण बड़ी संख्या में तुला जातक कानून के अध्ययन की ओर उन्मुख होते हैं। सार्वजनिक जीवन में भाग लेकर वे कानूनों की रचना में भी भाग ले सकते हैं । भाषा पर उनका पूरा अधिकार होता है। अपनी बात को वे प्रायः छोटे-छोटे वाक्यों में और बोधगम्य भाषा में कहने में विश्वास करते हैं।

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अपने में काफी कुछ सीमित रहते हुए भी तुला जातक अपनी मित्र मंडली में काफी लोकप्रिय होते हैं। वे विवादों-झगड़ों से यथासम्भव दूर रहते हैं । उनकी सुरुचि का परिचय उनके वस्त्रों से भी मिलता है। उदात्त आदर्शवाद और उच्च नैतिक सिद्धान्त उनके चरित्र का आधार हैं । स्वभावतः वे वर्तमान में ही जीना पसन्द करते हैं। उन्हें विगत की कम और भविष्य की भी कम चिन्ता होती है। एक बार अपना मार्ग चुन लेने पर वे सफलता की ओर अग्रसर होते जाते हैं। लेकिन तात्कालिक वातावरण तथा परिस्थितियों का उनके मन पर भारी प्रभाव पड़ता है और उनके अनुसार वे आशा तथा निराशा के झूले में झूलते रहते हैं।

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तुला जातकों में एक विशेष गुण यह होता है कि वे हर बात को करने से पहले उसके सभी पक्षों को अच्छी प्रकार से तोल लेना चाहते हैं। इसमें समय लगना स्वाभाविक है । यह बात उनके चिन्तन तथा आयोजन के बारे में भी है। फलस्वरूप, जो लोग त्वरित निर्णय लेने के पक्ष में होते हैं, वे इसे अनिर्णय भावना समझकर अधीर हो सकते हैं। साथ ही तुला जातकों में एक दुर्बलता यह पाई जाती है कि वे चाहे जब तुला के एक पलड़े से दूसरे पलड़े में कूदकर अपना पक्ष बदल सकते हैं। अभी-अभी उनका ध्यान किसी एक बात पर केन्द्रित हो और अभी वे उसे एकदम भूलकर भिन्न दृष्टिकोण अपनाने लगें।

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अवसर के अनुरूप वे काफी नीति-कुशल हो सकते हैं, क्योंकि उनमें समस्या के दोनों पक्षों को देख पाने की योग्यता होती है। अपनी मोहिनी-शक्ति के साथ इस गुण का उपयोग कर वे अन्य लोगों द्वारा स्थिति को समझ पाने से पहले ही अपना लक्ष्य प्राप्त कर ले जाते हैं। उनमें प्रबल न्याय-भावना होती है और व अन्याय होते नहीं देख पाते।

कुवृत्तियों का विकास होने पर तुला जातक अनेक दिशाओं में भटकने लगते हैं और शायद ही किसी कार्य में सफलता प्राप्त करते है। जातिकाओं में भी प्रायः वे सभी गुण पाए जाते हैं जो तुला जातको में मिलते हैं। उनके सामने सबसे बड़ी कठिनाई यह होती है कि उनके मुंह से ना नहीं निकल पाता और इससे अनेक समस्याएं तथा तनाव पैदा हो जाते हैं।

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तुला राशिचक्र में मेष के सामने की राशि है। इस राशि में जन्म लेने वाले नेता जीवन भर लोकप्रिय बने रहेंगे, जबकि मेष जातक सुदिनों में ही सत्ता में आएंगे और कुदिनों में पता भी नहीं चलेगा, वे कहां हैं।


आर्थिक गतिविधियां और कार्यकलाप:-

भौतिक मामलों में तुला जातक प्रायः सफल रहते हैं। वे मकान या भूमि के रूप में सम्पत्ति अर्जित कर सकते हैं। वे चतुर व्यापारी बनकर धन और यश कमा सकते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे जो भी व्यवसाय या वृत्ति चुनें उसमें पूरा सामंजस्य रखते हैं । सुन्दर और भव्य वस्तुएं खरीदने में वे कितना भी धन खर्च कर सकते हैं। उनके लिए धन का अधिक महत्व नहीं होता। भारतीय ज्योतिष में इसे व्यापारी राशि भी कहा जाता है।

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ये लोग अच्छे वकील और न्यायविद् तो बनते ही हैं, उनमें से कुछ विशेष अध्ययन या शोध कार्य में अपना जीवन लगा सकते हैं। कुछ उत्तम वैज्ञानिक और डाक्टर बनते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी तुला जातक धन तथा यश दोनों कमाते देखे गए हैं। किन्तु बहुत कम ऐसे होते हैं जो बुढ़ापे अथवा भविष्य के लिए उसे बचा कर रख पाते हैं। कुछ उल्लेखनीय उदाहरण अभिनेत्री सारा बर्नहार्ट, नाटककार औस्कर वाइल्ड, श्रीमती एनीबेसेंट, भूतपूर्व प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री आदि के हैं। एक अन्य सुप्रसिद्ध तुला जातक के रूप में महात्मा गांधी का नाम लिया जा सकता है।

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औषधि-विक्रय, चित्रकारी, कहानी तथा नाटक लेखन, भवन-निर्माण, बायुसेना, बिक्री-एजेंसी आदि कुछ अन्य व्यवसाय हैं जिनमें तुला जातक सफल हो सकते हैं। उनके शौकों में फोटोग्राफी, बागवानी, चित्रकारी, कसीदाकारी, संगीत आदि हो सकते हैं। तुला चर राशि होने के कारण उनके शौक प्रायः बदलते रहते हैं।

मैत्री, प्रेम, विवाह-सम्बन्ध:-

तुला जातक अच्छे मित्र होते हैं। वास्तविकता यह है कि मित्र मंडली बना उनका जीवन दूभर हो जाता है। अपनी मित्र मंडली में वे लोकप्रिय भी बहुत होते हैं। 

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उनके जीवन में प्रेम का सर्वोपरि महत्व होता है। बुढ़ापे तक प्रेम में उनकी रुचि बनी रहती है। उनके साथ एक वास्तविक भय यह रहता है कि जहां कोई सुन्दर महिला देखी, उसी से प्रेम का प्रस्ताव न कर बैठे। बाद में कभी उन्हें पछताना पड़ सकता है। प्रायः उनके अनेक प्रेम-प्रसंग चलते रहते हैं। यौन की उनके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका रहती है, किन्तु उससे ३. धेक आनन्द उन्हें प्रेम का नाटक रचने में आता है। उनका यह नाटक छोटी आयु से ही प्रारम्भ हो जाता है।

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वैसे प्रेम सम्बन्धों में वे बहुत दिखावा करने वाले नहीं होते, बल्कि बाल की खाल निकालने वाले होते हैं। उन्हें तौलते समय वे यह भूल जाते हैं कि प्यार के पंखों को सूक्ष्मदर्शक यन्त्र से नहीं देखा जाता। फलस्वरूप वे प्रायः भ्रम और निराशा के शिकार होते हैं। वे अपने प्रेम-पात्रों को अधिक समय तक सन्तुष्ट रखने या बांधे रखने में विफल रहते हैं। तुला-प्रेमी अपने प्रेम-पात्र के साथ ऐसा व्यवहार करता है मानो वह कोई गुलदस्ता हो या कोई सुन्दर चित्र हो। कौन इसे स्वीकार करेगा ?

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अतः तुला जातक की पत्नी को अपने पति के रंगीलेपन पर सदा चैकसी रखनी होगी और स्वयं भी आकर्षक बने रहना होगा। ऐसा जीवन साथी मिल जाने पर फिर सुखमय वैवाहिक सम्बन्धों की अनन्त सम्भावनाएं खुल जाती हैं। तालमेल बनाए रखने के लिए तुला जातक या जातिका कोई भी त्याग कर सकती है।


स्वास्थ्य और खानपान:-

तुला जातकों का स्वास्थ्य उत्तम रहता है, शर्त यह है कि उनका संतुलन बना रहना चाहिए। संतुलन बिगड़ जाने पर उनको अनेक स्नायु रोग हो सकते हैं और शरीर का गठन भी बिगड़ सकता है। उनका मुंह हृदय की शकल का होता है और उस पर मुसकान खेलती रहती है। ठोडी में गड्ढा होता है। शरीर लम्बा और सुगठित होता है। खाया-पीया लगने पर भी उसमें मोटापा नहीं होता। हाथ पैर पतले किन्तु दृढ़ होते हैं। नासिका तोते जैसी होती है । बुढ़ापे में सिर के बाल उड़ने लगते हैं।

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तुला जातिका का शरीर मध्यम आकार का और लोचदार होता है। उसके वक्ष बड़े, टांगें सुडौल, बाल हलके भरे, जबड़ा वर्गाकार, आंखें पीली तथा मुंह हृदय की शक्ल का होता है। गालों में गड्ढे पड़ते हैं। इन लोगों का स्वर सुरीला और हंसी गुंजायमान होती है। उनकी त्वचा प्रायः गोरी होती है।

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कालपुरुष के शरीर में तुला राशि गुर्दो, कटि तथा रीढ़ के निचले भाग का प्रतिनिधित्व करती है। तुला जातकों को अपेंडीसाइटिस तथा कमर में दर्द जैसे रोगों की आशंका रहती है। जिन व्यक्तियों की कुंडली में शनि तुला राशि में स्थित हो उन्हें गुर्दे में पथरी बनने का रोग हो सकता है। नैराश्य की स्थिति में इन लोगों को अपने भोजन का विशेष ध्यान रखना चाहिए और काव्य, संगीत, अथवा अन्य किसी कला में अपना ध्यान लगाना चाहिए।

द्रेष्काण, नक्षत्र, त्रिशांश:-

प्रथम द्रेष्काण में लग्न होने पर उस पर शुक्र का दुहरा प्रभाव होता है। ऐसे व्यक्ति का सौन्दर्य-बोध विशेष रूप से विकसित होता है और वह कलाओं का पारखी होता है। द्वितीय द्रेष्काण में लग्न होने पर जातक शुक्र और शनि के दुहरे प्रभाव में होता है। उसकी प्रवृत्तियां व्यक्ति की अपेक्षा समाज की ओर अधिक उन्मुख होती हैं । तृतीय द्रेष्काण में लग्न होने पर जातक की कल्पना में मानसिकता की भी पुट आती है और वह एक अच्छा कवि, लेखक अथवा कलाकार बन सकता है।


चन्द्र अथवा नामाक्षर चित्रा के तृतीय चरण में होने पर जातक में भावावेश का भी कुछ पुट आता है। चैथा चरण उसे और अधिक आवेशमय आर आत्मपरक बनाता है। वह अपने मन की बात छिपाने का भी प्रयास करता है। राहु का प्रथम चरण उसकी स्वच्छन्दता में वृद्धि करता है। द्वितीय चरण उसे गंभीर बनाता है। तीसरा चरण उसमें परोपकार की भावना बढ़ाता है। चतुर्थ चरण उसे न्यायप्रियता के साथ कल्पनाशीलता भी प्रदान करता है। विशाखा का प्रथम चरण उसे महत्वाकांक्षी बनाता है। द्वितीय चरण उसे कवि अथवा साहित्यकार बना सकता है। तृतीय चरण भी उसकी मानसिकता में वृद्धि कर साहित्य के प्रति उसकी रुचि बढ़ाता है।

तुला जातिका का लग्न गंगल के त्रिशांश (०°-५) में होने पर उसका स्वभाव कलहप्रिय होता है। शनि के त्रिशांश (५-१०°) में होने पर पति के साथ सम्बन्ध विच्छेद की आशंका है अथवा सम्बन्ध टूटकर पुनः विवाह हो सकता है। गुरु के त्रिंशांश (१०-१८) में होने पर वह पति के प्रति अनुरक्त रहेगी। बुध के त्रिंशांश (१८-२५°) में होने पर वह विभिन्न कलाओं में प्रवीणता प्राप्त करेगी। शुक्र के त्रिंशांश (२५-३०) में होने पर वह रूपवती तथा लोकप्रिय होती है तथा उसका पति भी प्रतिष्ठित व्यक्ति होता है । 

अन्य ज्ञातव्य बातें:-

भारतीय आचार्यों ने तुला राशि का वर्ण नील कहा है। इसके स्वामी शुक्र का वर्ण कुर्बुर (मिश्रित) अथवा श्वेत है। शुक्र का रत्न हीरा है जिसे चांदी में धारण किया जाना चाहिए ।

तुला राशि पश्चिम दिशा की द्योतक है। तुला राशि के स्वामी शुक्र का मूलांक ६ है। यह अंक सौन्दर्य बोध तथा रुचि का प्रतीक है। तुला जातक के जीवन में यह अंक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इससे उसमें कलाओं के प्रति रुचि उत्पन्न होती है। वारों में तुला राशि शुक्रवार का प्रतिनिधित्व करती है।

तुला राशि निम्न वस्तुओं, स्थानों तथा व्यक्तियों की संकेतक है-कपास, सूती, रेशमी तथा टेरीलीन के वस्त्र, गेहूं, पटसन, गन्ना, अनाज, पशु, वाहन, विलास सामग्री आदि।

हवा चक्कियों के पास की भूमि, कोठियों के बाहरी क्वार्टर, अंतरग कमरा, पहाड़ियों के पार्श्व, शुद्ध हवा वाले स्थान, पर्वतों की चोटियां आदि।

वकील, न्यायाधीश, समीक्षाकार, औषधि-विक्रेता, चित्रकार, परिवहन अथवा नौसेना कर्मचारी, रेस्तरां मालिक, दुग्ध या दुग्ध पदार्थ विक्रेता, फल विक्रता, कहानी तथा नाटक लेखक, संगीतज्ञ, शिल्पी, सम्पर्क अधिकारी, स्वागत अधिकारी, सेल्समैन आदि ।


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