विवाह में ग्रहों का महत्व
व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन पर ग्रहों का शुभ अशुभ प्रभाव जरूर पड़ता है तथा विवाह संस्कार पर यह प्रभाव जरूर देखने को मिलता है इसलिए यहाँ सरल भाषा में आप लोगों के लिए स्पष्ट किया जा रहा है कि विवाह में ग्रह अपना क्या प्रभाव दिखाते है. कुंडली में कौनसा ग्रह किस भाव में होने पर क्या प्रभाव डालता है।
विवाह में भूमिका निभाने वाले प्रमुख ग्रह :-
व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन पर ग्रहों का शुभ अशुभ प्रभाव जरूर पड़ता है तथा विवाह संस्कार पर यह प्रभाव जरूर देखने को मिलता है इसलिए यहाँ सरल भाषा में आप लोगों के लिए स्पष्ट किया जा रहा है कि विवाह में ग्रह अपना क्या प्रभाव दिखाते है. कुंडली में कौनसा ग्रह किस भाव में होने पर क्या प्रभाव डालता है।
विवाह में भूमिका निभाने वाले प्रमुख ग्रह :-
- लग्न व उसका स्वामी
- राशि व उसका स्वामी
- षष्ठ भाव व उसका स्वामी
- सप्तम भाव व उसका स्वामी
- मंगल शुक्र तथा गुरु
- दूसरा पांचवा चौथा आठवां तथा बारहवां भाव व इनके स्वामी
- लग्न :- बारह राशियों की तरह ही बारह लग्न भी होते है पहला भाव लग्न होता है यह पूर्व दिशा का कारक भी होता है लग्न से ही व्यक्ति के शरीर की बनावट स्वभाव तथा प्रकृति के विषय में ज्ञान होता है यदि इस पर किसी पापी ग्रह की दृष्टि हो या अथवा लग्न में कोई पापी ग्रह बैठा हो तो लग्न निर्बल होता है जिस व्यक्ति का लग्न निर्बल होता है वह व्यक्ति अधिकतर रोगी रहता है चिड़चिड़े स्वभाव का होता है यदि इसके दोनों और अर्थात दूसरे तथा बारहवे भाव में पाप ग्रह बैठे हो तो उसकी विद्या भी कमजोर होगी लग्न इतनी शुभ स्थिति में होगा तो वैवाहिक जीवन भी उतना ही सुखी होगा
- लग्नेश :- लग्न भाव के स्वामी को लग्नेश कहते है यह किसी भी प्रकृति का हो व्यक्ति को शुभ फल ही देगा यदि पापी ग्रह भी हो तो उस कुंडली के लिए शुभ ही होगा परंतु इसका भी पाप ग्रह से पूरी तरह मुक्त होना जरुरी है न तो इस पर पाप ग्रह की दृष्टि हो और न ही कोई पाप ग्रह इसके साथ बैठा हो। यदि ये पाप ग्रह से पीड़ित हुआ तो शुभ फल नही देगा
- राशि व उसका स्वामी :- जातक के जन्म के समय चन्द्रमा जिस राशि में होता है वही उसकी राशि होती है राशि तथा उसके स्वामी से भी व्यक्ति के आचार विचार का ज्ञान होता है प्रत्येक राशि तथा उसके स्वामी का अलग अलग स्वभाव और प्रभाव होता है जिनका व्यक्ति पर पूर्ण प्रभाव पड़ता है उससे जातक के स्वभाव के विषय में जान सकते है यदि राशि व उसका स्वामी पाप ग्रह से पीड़ित हुआ तो व्यक्ति के आचार विचार भी ख़राब होंगे राशि यदि लग्न में हो तो अधिक प्रभावशाली होती है सुखी दांपत्य जीवन के लिए राशि तथा उसके स्वामी का शुभ होना जरुरी है
- सप्तम भाव :- पहले भाव के सामने सातवां भाव होता है कुंडली में इससे जीवनसाथी वैवाहिक सुख यौन संबंधों का कारक माना जाता है इन भाव से ही व्यक्ति के वैवाहिक जीवन के बारे में जाना जाता है इस भाव का नैसर्गिक कारक शुक्र होता है किसी भी तरह से यदि ये भाव पीड़ित होता है तो इसका पूरा प्रभाव व्यक्ति के जीवन साथी पर पड़ता है यदि इस भाव पर शनि का प्रभाव हो तो जातक का विवाह विलम्ब से होता है जीवन में नीरसता होती है जीवनसाथी नपुंसक भी हो सकता है क्योकि शनि एक नपुंसक ग्रह है यदि मंगल का प्रभाव हो तो जीवनसाथी की उम्र कम करता है जीवनसाथी उग्र स्वभाव का होता है राहु के प्रभाव से विवाह के बाद भी अन्य स्त्री से यौन सम्बन्ध बनाने से स्वास्थ्य प्रभावित होता है दो विवाह के योग बनाता है बुध के प्रभाव से भी नपुंसकता आती है शुक्र के प्रभाव से जीवनसाथी सम्भोग का अतिप्रिय होता है गुरु के प्रभाव से जीवनसाथी अच्छे आचार विचार वाला होता है सूर्य के प्रभाव से तलाक की स्थिति बनती है जीवनसाथी उग्र स्वभाव का होता है इसके अलावा यदि इस भाव में कोई शुभ ग्रह हो तो जीवन खुशियो से भरपूर होता है पाप ग्रह के प्रभाव से उसके स्वभाव के अनुसार विचारों में टकराव नोक झोक रोग पीड़ा अलगाव तलाक तथा मृत्यु भी हो जाती है यदि इसके दोनों ओर पाप ग्रह हो तो और भी अशुभ फल होता है
- सप्तमेश :- जिस तरह से सुखी वैवाहिक जीवन के लिये सप्तम भाव शुभ होना जरुरी है उसी तरह से सप्तम भाव के स्वामी का भी शुभ होना जरुरी है यदि सप्तमेश किसी पाप ग्रह से पीड़ित हो तो वैवाहिक जीवन सुखी नही हो सकता यदि सप्तमेश शुभ ग्रह के प्रभाव में होतो जीवन में सदा सुख बना रहता है
- षष्ठ भाव व षष्ठेश :- कुंडली में छठा भाव रोग और शत्रु का होता है इसलिए निरोगी रहने के लिए इस भाव का तथा उसके स्वामी का सूक्ष्म अध्ययन करना चाहिए यह भाव सप्तम भाव से बारहवां हो गया है किसी भी भाव के फल के लिए उससे बारहवे भाव को देखना चाहिए इसलिए वैवाहिक जीवन में सुख के लिए इस भाव तथा इसके स्वामी का शुभ होना आवश्यक है
- गुरु:- सुखी वैवाहिक जीवन के लिए लड़की की कुंडली में गुरु ग्रह का पाप ग्रह से मुक्त होना जरुरी है लड़की की कुंडली में गुरु विवाह संतान तथा पति का कारक होता है लड़के की कुंडली में गुरु विद्या तथा धन का कारक होता है गुरु के पाप पीड़ित होने पर सबसे पहले तो विवाह ही देर से होता है यदि सप्तमेश अथवा अन्य किसी कारण से विवाह समय पर हो गया तो संतान पक्ष बली करने के लिए तथा पति की लम्बी उम्र के लिए गुरु का पाप ग्रह से मुक्त होना जरुरी है
- शुक्र :- गुरु की तरह ही शुक्र का भी सुखी वैवाहिक जीवन के लिए शुभ होना जरुरी है शुक्र को वैवाहिक जीवन तथा यौन संबंधों का मुख्य कारक होता है शुक्र के किसी भी तरह से पाप प्रभाव में होने पर लड़के या लड़की का अवैध संबंधों की तरफ मन होता है यदि शुक्र बली हो तो दाम्पत्य जीवन पूर्ण रूप से सुखी होता है परंतु यदि शुक्र पाप पीड़ित है तो बहुत अशुभ होता है यदि शुक्र के साथ मंगल भी बैठा हो तो व्यक्ति अति कामुक तथा सम्भोग के समय हिंसक होता है राहु या केतु यदि शुक्र के साथ बैठे हो तो अतिरिक्त सम्बन्ध होने की भी सम्भावना होती है यदि शुक्र सूर्य बुध या शनि के साथ बैठा हो तो व्यक्ति की यौन शक्ति कम करता है इसलिए विवाह के समय शुक्र का अच्छे से विचार करना चाहिए
- मंगल :- विवाह हेतु कुंडली मिलान करते समय मंगल पर विशेष विचार किया जाता है मंगल का प्रभाव मांगलिक दोष के रूप में सामने आता है पहले चौथे सातवे आठवे बारहवे भाव में मंगल के होने पर व्यक्ति मांगलिक होता है उसमे भी आठवे भाव के मंगल का विशेष विचार करना चाहिए यह भाव जीवन साथी के लिए मारक होता है किसी लड़की की कुंडली में मंगल यदि अष्टम भाव में बैठा हो तो वह उसके लिए घातक होता है शास्त्रों के अनुसार अष्टम भाव का मङ्गल जीवन साथी की आयु कम करता है यदि कुण्डली में और भी अशुभ योग हो तो यह मंगल लड़की को विधवा अवश्य बनाता है इसलिए कुंडली मिलाते समय मंगल का सूक्ष्म विचार करना चाहिए