Tuesday 1 November 2022

कालसर्प योग किस उम्र में पीडा देगा ? जानिए इस लेख में / kalsarp yoga kis umar me pida dega , Janiye is lekh me

Posted by Dr.Nishant Pareek

 कालसर्प योग किस उम्र में पीड़ा देगा ? जानिए इस लेख में 





Kundli me kalsarp yoga kis umar me pida dega , Janiye is lekh me


सभी व्यक्तियों का संपूर्ण जीवन नवग्रहों के प्रभाव से ही संचालित है। हर घटना तथा हर गतिविधि, उपलब्धि, हानि, सुख, संताप, निन्दा अथवा सम्मान, मान, अपमान, व्याधि अथवा उत्तम स्वास्थ्य, व्यवसाय में प्रगति अथवा अवनति आदि सब व्यक्ति की कुंडली में विद्यमान ग्रहों पर ही आधारित होती है। 

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जब सभी ग्रह राहु और केतु के मध्य स्थित हों, तो इस तथ्य को इस प्रकार समझना चाहिए कि यह सभी सात ग्रह कालसर्प नामक योग के दुष्प्रभाव में जा रहे है। कालसर्प योग में ग्रहों का प्रभाव तो मिलता है परन्तु जिस तरह से विषैला सर्प शुभ प्रभावों को एक बार अपने भीतर रखकर उगल दे, उसी तरह से शुभ ग्रहों के प्रभाव में भी विष मिल जाता है जो उनकी दशाओं और अन्तरदशा समय-समय पर जीवन को अनेक प्रकार से पीडित करता रहता है। कभी संतान सुख प्राप्त नहीं होता, कभी अनेक पुत्रियों का जन्म होता है। पुत्र संतान की प्राप्ति नही होती है तो कभी पारिवारिक अशान्ति तथा कलह जीवन में दाम्पत्य सुख का अभाव उत्पन कर देती है। कभी स्वास्थ्य निरन्तर पीड़ित करता है तो कभी दरिद्रता, धनार्जन होते हुए भी धनाभाव से चिंता बनी रहती है तो कभी अकाल मृत्यु जैसे क्रूर तथा अशुभ फल प्राप्त होते हैं तथा यह सभी अशुभ प्रभाव जीवन की प्रसन्नता, हर्ष और उल्लास को तो ग्रहण लगाते ही हैं। 

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जब सभी ग्रह राहु और केतु के बीच आ जाते है तो उनकी दशाओं-अन्तरदशाओं में शुभता का अभाव तथा अशुभता का प्रभाव दिखाई देने लगता है।। जब राहु की महादशा व्यक्ति के जीवन में प्रवेश करेगी, तो राहु की महादशा का 18 वर्ष का समय अधिक अशुभ, कष्टप्रद, चिंताकारक, वेदनापूर्ण तथा दारुण दुःखों की वेदना प्रदान करने वाला सिद्ध होगा। इसी तरह से केतु की महादशा के भी 7 वर्ष भी असहनीय पीडादायक होते है। निरन्तर संघर्ष करना पडता है।। जीवन में अनेक प्रकार की बाधाएं आती है। पदोन्नति, प्रगति, विपत्तियों से घिर जायेंगी या निलम्बन अथवा पदच्युति की स्थिति भी उत्पन्न होने की संभावना होती है। केतु यदि आक्रान्त हो, मंगल अथवा शनि के साथ स्थित हो तथा अशुभ भावों में हो, तो मेरा अनुभव है कि केतु की दशा में आयकर, सी०बी०आई०, सेल्सटैक्स आदि की गंभीर चिंता उत्पन्न होती है। यहाँ तक कि छापा पड़ने की संभावना को भी निरस्त नहीं किया जा सकता। अनेक आरोप-प्रत्यारोप से व्यक्ति का जीवन सुचारु रूप से प्रगति नहीं करता। नींद नहीं आती, तो कभी प्रयास बार-बार विफल होते हैं। धन का अभाव होता है। जिन लोगों को ऋण दिया है उनसे ऋण वापस नहीं मिलता तथा जिनसे ऋण लिया है उनका निरन्तर दबाव कलह का स्थिति उत्पन्न करता है। न्यायालय में दोषी ठहराया जाना भी सम्भव है। जो त्रुटि नहीं की है उसका आरोप लगता है तथा जो कार्य सामान्यतः स्वयं ही पूरे हो जाने चाहिए, वह अपूर्ण पड़े रहते हैं इसलिए राहु और केतु की महादशा में कालसर्प योग का अधिकतम अशुभ प्रभाव दिखाई देता है। कई बार केतु की महादशा में यदि केतु सप्तमस्थ हो तो पत्नी की मृत्यु तक हो जाती है। ऐसा ही भयानक अभिशाप है कालसर्प योग।  

वैसे तो कालसर्प योग का प्रभाव जीवनपर्यन्त बना रहता है परन्तु राहु और केतु की महादशा में सर्वाधिक परेशान करता है।

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जब गोचर के राहु और केतु कुंडली में अशुभ भाव में भ्रमण करते हैं तब कालसर्प योग का प्रभाव और भी विषैला हो उठता है। उल्लेखनीय है कि राहु और केतु की धुरी पर गोचर के शनि का भ्रमण बहुत ही पीडादायक होता है। यदि राहु और केतु की धुरी पर सूर्य स्थित हो तथा उसके ऊपर से गोचर का शनि भ्रमण करे, तो परिस्थितियाँ और भी अधिक कष्टप्रद होती हैं। यदि राहु के साथ शनि तथा केतु के साथ मंगल अथवा राहु के साथ मंगल तथा केतु के साथ शनि स्थित हों तथा गोचर के शनि अथवा मंगल का भ्रमण इस धुरी पर से हो, तो दुर्घटना की संभावना अत्यधिक होती है तथा जिन राशियों तथा भावों में यह ग्रह स्थित हों, उन राशियों तथा भावों द्वारा प्रदर्शित शरीर के अंग को गोचर का मंगल रोग पीडा अथवा चोट करता है। इसी प्रकार से यदि उपर्युक्त संदर्भित ग्रह स्थिति के ऊपर से राहु के ऊपर से केतु तथा केतु के ऊपर से राहु का भ्रमण हो, तो कालसर्प योग के प्रभाव में वृद्धि होती है तथा यह अशुभता उस समय और भी बढ़ जाती है जब राहु और केतु या शनि के अंशों के ऊपर से गोचर के राहु और केतु का भ्रमण होता है।

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 गोचर के ग्रह कालसर्प योग के प्रभाव में कब और कैसे वृद्धि करते हैं तथा कितना अशुभ प्रभाव दे सकते हैं यह सब कुंडली में ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करता है। कालसर्प योग से पीडित कुंडलियों में गोचर के राहु और केतु का शुभ भ्रमण लाभप्रद स्थिति भले ही न उत्पन्न करे, परन्तु कालसर्प योग के प्रभाव में न्यूनता अवश्य लाता है। जहाँ पर कालसर्प योग विद्यमान हो तथा राहु तीसरे, छठे या ग्यारहवें भाव में भ्रमण कर रहा हो, तो कालसर्प योग का प्रभाव उस समय जीवन को आतंकित और भयभीत नहीं करता। घटना-क्रम को अवरुद्ध नहीं करता, बल्कि सामान्य स्थिति को बल प्रदान करता है। 

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राहु और केतु के गोचर के भ्रमण के वास्तविक प्रभाव के साथ जन्मकालीन ग्रह स्थितियों के साथ सम्बन्ध तथा प्रभाव के कारण किस तरह का फल प्रतिरूपित करेगा, किन घटनाओं को जन्म देगा तथा वे घटनाएँ जीवन के किस क्षेत्र को बल प्रदान करेंगी तथा किस क्षेत्र का हास करेंगी, यह अध्ययन करने हेतु गोचर के राहु ओर केतु के प्रभाव को भलीभाँति समझ लेना उचित होगा। यहाँ हम यह विश्लेषित करने का प्रयास करेंगे कि कालसर्प योग का अभिशाप गोचर के राहु ओर केतु से किस तरह प्रभावित होता है, कब कालसर्प योग के अशुभ प्रभाव शिथिल हो जाते हैं तथा कब उनका आतंक अधिक भयावह हो उठता है।

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कालसर्प योग यदि कुंडली के उत्तरार्ध में अर्थात् सप्तम भाव में राहु तथा लग्न में केतु स्थित हों तथा शेष ग्रह 8, 9, 10, 11 एवं 12 भावों में विद्यमान हों, तो 28वें वर्ष के पश्चात् कालसर्प योग का विशेष प्रभाव जीवन में परिलक्षित होता है तथा सप्तम से लग्न तक जिस काल सर्प योग का निर्माण होता है वह अधिक अशुभ कष्टप्रद सिद्ध होता है क्योंकि यहाँ पर कालसर्प योग कर्म भाव, भाग्य भाव, लाभ आदि सभी उन महत्त्वपूर्ण भावों को आक्रान्त तथा दूषित करता है। और यही भाव जीवन के महत्वपूर्ण पडाव में काम आते है। इसलिये कालसर्प दोष की अशुभता 28 वर्ष के पश्चात् अशुभ प्रभाव में वृद्धि करती है। 


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