Tuesday 23 July 2019

तो मरने के बाद ये लोग बनते है भूत प्रेत, और ऐसे लोगों के शरीर में घुसते है।\ to marne ke baad ye log bante hai bhoot pret, or ese logo ke sharir me ghuste hai .

Posted by Dr.Nishant Pareek


 भूत  का कोई वर्तमान नहीं होता , सिर्फ भूतकाल या अतीत होता है, वही भूत कहलाता है। भूतकाल  में अटकी  आत्मा भूत बन जाती है। क्योकि  जीवन न तो अतीत में है और न ही भविष्य में है ,वह तो  सदा वर्तमान में है। जो व्यक्ति वर्तमान में रहता है वह मुक्ति की ओर अग्रसर रहता है।

प्राणी की आत्मा के तीन रुप माने गए हैं। 1 -जीवात्मा, 2 -प्रेतात्मा और 3-सूक्ष्मात्मा। वह आत्मा जो भौतिक शरीर में निवास करती है उसे जीवात्मा कहते हैं। जब इस जीवात्मा का वासना और कामनामय शरीर में निवास होता है तब उसे प्रेतात्मा कहते हैं। यह आत्मा जब सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेश करता है, उस उसे सूक्ष्मात्मा कहते हैं।
भूत-प्रेतों की गति एवं शक्ति अपार होती है। इनकी विभिन्न जातियां होती हैं और उन्हें भूत, प्रेत, राक्षस, पिशाच, यम, शाकिनी, डाकिनी, चुड़ैल, गंधर्व आदि कहा जाता है।

भूत- प्रेत कितने प्रकार के-
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सनातन धर्म में गति और कर्म अनुसार मरने वाले लोगों का विभाजन उनके कर्मों के अनुसार किया है- भूत, प्रेत, पिशाच, कूष्मांडा, ब्रह्मराक्षस, वेताल और क्षेत्रपाल। उक्त सभी के उप भाग भी होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार 18 प्रकार के प्रेत होते हैं। भूत सबसे शुरुआती पद है या कहें कि जब कोई आम व्यक्ति मरता है तो सर्वप्रथम भूत ही बनता है। बाकि आगे के पद मिलने के अलग कर्म है। 

आदमी की तरह जब कोई स्त्री मरती है तो उसे अलग नामों से जाना जाता है। माना गया है कि प्रसुता, स्त्री या नवयुवती मरती है तो चुड़ैल बन जाती है और जब कोई कुंवारी कन्या मरती है तो उसे देवी कहते हैं। जो स्त्री बुरे कर्मों वाली है उसे डायन या डाकिनी करते हैं। इन सभी की उत्पति अपने पापों, व्याभिचार से, अकाल मृत्यु से या श्राद्ध न होने से होती है। जो कि अलग अलग कर्मों से अलग अलग पद प्राप्त करती है। 

भिन्न भिन्न चौरासी लाख योनियां =
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जीव योनि, पशुयोनि, पक्षीयोनि, मनुष्य योनि आदि में जीवन यापन करने वाली आत्माएं मरने के बाद अदृश्य भूत-प्रेत योनि में चले जाते हैं। आत्मा के प्रत्येक जन्म द्वारा प्राप्त जीव रूप को योनि कहते हैं। ऐसी चौरासी  लाख योनियां है, जिसमें कीट-पतंगे, पशु-पक्षी, वृक्ष और मानव आदि सभी शामिल हैं।

मरने के बाद प्रेतयोनि में जाने वाले लोग अदृश्य और बलवान हो जाते हैं। लेकिन सभी मरने वाले इसी योनि में नहीं जाते और सभी मरने वाले अदृश्य तो होते हैं लेकिन बलवान नहीं होते। यह आत्मा के कर्म और गति पर निर्भर करता है। बहुत से भूत या प्रेत योनि में न जाकर पुन: गर्भधारण कर मानव योनि में वापस आ जाते हैं।
प्रत्येक वर्ष पितृ पक्ष में हिन्दू अपने पितरों का तर्पण करते हैं। इससे सिद्ध होता है कि पितरों का अस्तित्व आत्मा अथवा भूत-प्रेत के रूप में होता है।

हिन्दू ग्रन्थ गरुड़ पुराण में भूत-प्रेतों के विषय में विस्तृत वर्णन मिलता है। श्रीमद्‍भागवत पुराण में भी धुंधकारी के प्रेत बन जाने का वर्णन आता है।

अतृप्त आत्माएं बनती है भूत
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कोई प्राणी या व्यक्ति यदि भूखा, प्यासा, संभोगसुख से विरक्त, राग, क्रोध, द्वेष, लोभ, वासना आदि इच्छाएं और भावनाएं लेकर मरता है, वह अवश्य ही भूत बनकर भटकता है। और जो व्यक्ति दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या आदि से मरा है वह भी भू‍त बनकर भटकता है। ऐसे व्यक्तियों की आत्मा को तृप्त करने के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। जो लोग अपने स्वजनों और पितरों का श्राद्ध और तर्पण नहीं करते वे उन अतृप्त आत्माओं द्वारा परेशान होते हैं। उसे पितृ दोष भी कहते है। 

यम नामक वायु=
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ईश्वर प्रदत्त वेद अनुसार मृत्युकाल में 'यम' नामक वायु में कुछ काल तक आत्मा स्थिर रहने के बाद पुन: गर्भधारण करती है। जब आत्मा गर्भ में प्रवेश करती है तब वह गहरी सुषुप्ति अवस्था में होती है। जन्म से पूर्व भी वह इसी अवस्था में ही रहती है। जो आत्मा ज्यादा स्मृतिवान या ध्यानी है उसे ही अपने मरने का ज्ञान होता है और वही भूत बनती है।

पुनर्जन्म  चक्र=
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दैनिक जीवन में जिस तरह सुषुप्ति से स्वप्न और स्वप्न से आत्मा जाग्रति में जाती हैं उसी तरह मृत्युकाल में वह जाग्रति से स्वप्न और स्वप्न से सु‍षुप्ति में चली जाती हैं फिर सुषुप्ति से गहन सुषुप्ति में। यह चक्र चलता रहता है। इसे ही पुनर्जन्म कहते है।

भूत प्रेतों की इच्छा भावना=
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मरने के बाद भूतों को खाने की इच्छा अधिक रहती है। इन्हें प्यास भी अधिक लगती है, लेकिन तृप्ति नहीं मिल पाती है। संतुष्ट नहीं हो पाते। ये बहुत दुखी और चिड़चिड़ा होते हैं। यह हर समय इस बात की खोज करते रहते हैं कि कोई मुक्ति देने वाला मिले। ये कभी घर में तो कभी जंगल में भटकते रहते हैं। परन्तु हर कोई इन्हें देख नहीं पाता और इनके संकेतों को समझ नहीं पाता।

भूत की स्थिति=
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भूत प्रेत आदि किसी भी तरह के ज्यादा शोर, उजाला और मंत्र उच्चारण से यह दूर रहते हैं। इसीलिए इन्हें कृष्ण पक्ष ज्यादा पसंद है और तेरस, चौदस तथा अमावस्या को यह मजबूत स्थिति में रहकर सक्रिय रहते हैं। भूत-प्रेत प्रायः उन स्थानों में दृष्टिगत होते हैं जिन स्थानों से मृतक का अपने जीवनकाल में संबंध रहा है या जो एकांत में स्थित है। बहुत दिनों से खाली पड़े घर या बंगले जहाँ पूजा हवन नहीं होते।  वहां भूतों का वास हो जाता है।
इसलिए अपनी सभी निर्मित सम्पत्तियों में नियमित पूजा हवन जरूर कराएं। 

भूत प्रेतों की ताकत=
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सभी भूत प्रेत आदि अदृश्य होते हैं। भूत-प्रेतों के शरीर धुंधले  तथा वायु से बने होते हैं अर्थात् वे शरीर-विहीन होते हैं। इसे सूक्ष्म शरीर कहते हैं। आयुर्वेद अनुसार यह 17 तत्वों से बना होता है। कुछ भूत अपने इस शरीर की ताकत को समझ कर उसका इस्तेमाल करना जानते हैं तो कुछ ये नहीं समझ पातेन कि  इसका उपयोग कैसे किया जाएँ। 

शक्तिशाली कुछ भूतों में स्पर्श करने की ताकत होती है तो कुछ में नहीं। जो भूत स्पर्श करने की ताकत रखता है वह बड़े से बड़े पेड़ों को भी उखाड़ कर फेंक सकता है। ऐसे भूत यदि बुरे हैं तो खतरनाक होते हैं। यह किसी भी देहधारी (व्यक्ति) को अपने होने का अहसास करा देते हैं। और उससे बात तक करते है। 

ऐसे भूतों की मानसिक शक्ति इतनी बलशाली होती है कि यह किसी भी व्यक्ति का दिमाग पलट कर उससे अच्छा या बुरा कार्य करा सकते हैं। ये किसी भी व्यक्ति के शरीर का इस्तेमाल करना भी जानते हैं। कि उसे किस तरह काम में लिया जाएँ। 
इनका कोई शरीर नहीं होता। धुआं होती है और उसमे ठोसपन न होने के कारण ही भूत को यदि गोली, तलवार, लाठी आदि मारी जाए तो उस पर उनका कोई प्रभाव नहीं होता। भूत में सुख-दुःख अनुभव करने की क्षमता अवश्य होती है। क्योंकि उनके वाह्यकरण में वायु तथा आकाश और अंतःकरण में मन, बुद्धि और चित्त संज्ञाशून्य होती है इसलिए वह केवल सुख-दुःख का ही अनुभव कर सकते हैं। और उसके अनुसार ही व्यवहार भी  करते है। 

भली और बुरी आत्मा में अंतर =
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सेक्स और वासना के अच्छे और बुरे भाव के कारण मृतात्माओं को भी अच्छा और बुरा माना गया है। जहां अच्छी मृतात्माओं का वास होता है उसे पितृलोक तथा बुरी आत्मा का वास होता है उसे प्रेतलोक आदि कहते हैं।
अच्छे और बुरे स्वभाव की आत्माएं ऐसे लोगों को तलाश करती है जो उनकी वासनाओं की पूर्ति कर सकता है। बुरी आत्माएं उन लोगों को तलाश करती हैं जो कुकर्मी, अधर्मी, वासनामय जीवन जीने वाले लोग हैं। फिर वह आत्माएं उन लोगों के गुण-धर्म -कर्म, स्वभाव के अनुसार अपनी इच्छाओं की पूर्ति करती है। और सम्भोग करके अपनी प्यास को शांत करती है।
 
जिन्दा व्यक्ति जिस मानसिकता, प्रवृत्ति, कुकर्म, सत्कर्मों आदि के लोग होते हैं उसी के अनुरूप आत्मा उनमें प्रवेश करती है। अधिकांशतः लोगों को इसका पता नहीं चल पाता। अच्छी आत्माएं अच्छे कर्म करने वालों के माध्यम से तृप्त होकर उसे भी तृप्त करती है और बुरी आत्माएं बुरे कर्म वालों के माध्यम से तृप्त होकर उसे बुराई के लिए और प्रेरित करती है। इसीलिए अपने धर्म के अनुसार अच्छे कर्म के अलावा धार्मिकता और ईश्वर भक्ति होना जरूरी है तभी आप दोनों ही प्रकार की आत्मा से बचे रहेंगे। और आत्माओं के लपेटे में नहीं आएंगे। 


ये व्यक्ति बनते  है भूत प्रेत का शिकार=
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सनातन धर्म और संस्कृति के नियम अनुसार जो लोग तिथि और पवित्रता को नहीं मानते हैं, जो ईश्वर, देवता और गुरु का अपमान करते हैं और जो पाप कर्म में ही सदा रत रहते हैं मांस मदिरा का सेवन करते है। सदा नशे में रहते है। जो स्त्रियां अपवित्र रहती है।  या पीरियड्स के समय चौराहे, श्मशान, किसी पुराने पेड़ के आस पास जाती है। शाम के समय बाल खोलकर या मीठा खाकर या दूध आदि सफ़ेद वस्तु खाकर घर की छत पर या बाहर जाती है। ऐसे लोग आसानी से भूतों के चंगुल में आ सकते हैं। वास्तव में उनका शरीर भूतों का निवास स्थान होता है।   कुछ लोगों को पता ही नहीं चल पाता है कि हम पर शासन करने वालाया हमारे शरीर में कोई भूत है। जिन लोगों की मानसिक शक्ति बहुत कमजोर होती है उन पर ये भूत सीधे-सीधे शासन करते हैं। या यूँ कहे कि ऐसे लोग भूत प्रेत के नियंत्रण में जल्दी आते है। 
कुछ तांत्रिक टाइप जो लोग रात्रि के कर्म और अनुष्ठान करते हैं और जो निशाचारी हैं वह आसानी से भूतों के शिकार बन जाते हैं। हिन्दू धर्म अनुसार किसी भी प्रकार का धार्मिक और मांगलिक कार्य रात्रि में नहीं किया जाता। रात्रि के कर्म करने वाले भूत, पिशाच, राक्षस और प्रेतयोनि के होते हैं। वे सदा भटकते रहते है।  उन्हें कभी शांति नहीं मिलती। 
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