किस धातु के बर्तन में खाना खाने से क्या फायदा और नुकसान होता है...जानिए इस लेख में
स्वर्ण (सोना):-
स्वर्ण (सोना) एक गर्म धातु है। इससे बने बर्तन में खाना बनाने और खाने से शरीर के आन्तरिक और बाहरी दोनों अंग मजबूत , कठोर, बलवान, ताकतवर बनते है और साथ साथ स्वर्ण आँखों की रौशनी भी तेज करता है।
चाँदी:-
चाँदी एक शीतल धातु है, जो शरीर को शीतलता पहुंचाती है। शरीर व मन को शांत रखती है इसके बर्तन में खाना बनाने और खाने से दिमाग तेज होता है, आँखों स्वस्थ रहती है, आँखों की रौशनी बढती है और इसके अलावा पित्तदोष, कफ , बी पी और वायुदोष नियंत्रित रहता है।
कांसा:-
किसी भी काँसे के बर्तन में खाना बनाने व खाने से बुद्धि तेज होती है, रक्त में शुद्धता आती है, रक्तपित शांत रहता है और भूख बढ़ती है। लेकिन काँसे के बर्तन में खट्टी चीजे नहीं परोसनी चाहिए खट्टी चीजे इस धातु से क्रिया करके विषैली हो जाती है जो नुकसान देती है। कांसे के बर्तन में खाना बनाने से केवल ३ प्रतिशत ही पोषक तत्व नष्ट होते हैं। इसलिए यह बहुत लाभदायक है।
तांबा:-
तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से व्यक्ति रोग मुक्त बनता है, रक्त शुद्ध होता है, चर्म रोग ठीक होते है। स्मरण-शक्ति अच्छी होती है, पेट और लीवर संबंधी समस्या दूर होती है, तांबे का पानी शरीर के विषैले तत्वों को खत्म कर देता है इसलिए इस पात्र में रखा पानी स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है. तांबे के बर्तन में दूध नहीं पीना चाहिए इससे शरीर को नुकसान होता है। इसमें दूध डालते ही जहरीला बन जाता है। ताम्बे के बर्तन में पानी डालकर किसी लकड़ी की टेबल पर रखना चाहिए। जिससे जमीन से उसकी अर्थिंग न हो। तब वह फायदा करता है।
पीतल:-
किसी पीतल के बर्तन में खाना पकाने और खाने से कृमि अर्थात कीड़े का रोग, कफ और वायुदोष की बीमारी नहीं होती। पीतल के बर्तन में खाना बनाने से केवल ७ प्रतिशत पोषक तत्व नष्ट होते हैं। इसलिए यह बहुत फायदे का काम है।
लोहा:-
किसी भी लोहे के बर्तन में खाना बनाने और खाने से शरीर में आयरन की मात्रा व शक्ति बढती है, लोह्तत्व शरीर में जरूरी पोषक तत्वों को बढाता है। लोहा कई रोग को खत्म करता है, पांडू रोग मिटाता है, शरीर में सूजन और पीलापन नहीं आने देता, कामला रोग को खत्म करता है, खून बढ़ाता है और पीलिया रोग को दूर रखता है. लेकिन लोहे के बर्तन में खाना नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसमें खाना खाने से बुद्धि कम होती है और दिमाग का नाश होता है। लोहे के पात्र में दूध पीना अच्छा होता है। दूध को लोहे के बर्तन में बहुत देर तक गर्म करना चाहिए। फिर पीना चाहिए।
स्टील:-
कोई भी स्टील के बर्तन हानिकारक नहीं होते क्योंकि ये ना ही गर्म से क्रिया करते है और ना ही अम्ल से. इसलिए हानिकारक नहीं होता है. इसमें खाना बनाने और खाने से शरीर को कोई फायदा नहीं पहुँचता तो नुक्सान भी नहीं पहुँचता। ये सिर्फ दिखने में अच्छे लगते है। बाकि कोई फ़ायदा नहीं है इनसे।
एलुमिनियम:-
यह एल्युमिनियम धातु बोक्साईट का बना होता है। इसमें बने खाने से शरीर को सिर्फ हानि के आलावा कुछ भी प्राप्त नहीं होता है। यह आयरन और कैल्शियम को सोखता है इसलिए इससे बने पात्र का उपयोग नहीं करना चाहिए। इससे हड्डियां कमजोर होती है. मानसिक बीमारियाँ होती है, लीवर और नर्वस सिस्टम को क्षति पहुंचती है। उसके साथ साथ किडनी फेल होना, टी बी, अस्थमा, दमा, बात रोग, शुगर जैसी गंभीर बीमारियाँ होती है। एलुमिनियम के प्रेशर कूकर से खाना बनाने से 87 प्रतिशत पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं। बस इसमें ईंधन कम लगता है। इसलिए यह अधिक लोकप्रिय है।
मिट्टी:-
किसी भी मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाने से ऐसे पोषक तत्व मिलते हैं, जो हर बीमारी को शरीर से दूर रखते थे। इस बात को अब आधुनिक विज्ञान भी साबित कर चुका है कि मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाने से शरीर के कई तरह के रोग ठीक होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, अगर भोजन को पौष्टिक और स्वादिष्ट बनाना है तो उसे धीरे-धीरे ही पकना चाहिए। भले ही मिट्टी के बर्तनों में खाना बनने में वक़्त थोड़ा ज्यादा लगता है, लेकिन इससे सेहत को पूरा लाभ मिलता है। दूध और दूध से बने उत्पादों के लिए सबसे उपयुक्त है मिट्टी के बर्तन। मिट्टी के बर्तन में खाना बनाने से पूरे १०० प्रतिशत पोषक तत्व मिलते हैं। और यदि मिट्टी के बर्तन में खाना खाया जाए तो उसका अलग से स्वाद भी आता है।इसलिए सबसे फायदेमंद बर्तन मिटटी के होते है। लेकिन आजकल इनको काम मे नहीं लेते।
आयुर्वेद के अनुसार
पानी पीने के पात्र के विषय में 'भावप्रकाश ग्रंथ' में लिखा है....
जलपात्रं तु ताम्रस्य तदभावे मृदो हितम्।
पवित्रं शीतलं पात्रं रचितं स्फटिकेन यत्।
काचेन रचितं तद्वत् वैङूर्यसम्भवम्।
(भावप्रकाश, पूर्वखंडः4)
पवित्रं शीतलं पात्रं रचितं स्फटिकेन यत्।
काचेन रचितं तद्वत् वैङूर्यसम्भवम्।
(भावप्रकाश, पूर्वखंडः4)
अर्थात् पानी पीने के लिए ताँबा, स्फटिक अथवा काँच-पात्र का उपयोग करना चाहिए। सम्भव हो तो वैङूर्यरत्नजड़ित पात्र का उपयोग करें। इनके अभाव में मिट्टी के जलपात्र पवित्र व शीतल होते हैं। टूटे-फूटे बर्तन से अथवा अंजलि से पानी नहीं पीना चाहिए। इससे दोष और रोग होते है।