Monday 10 February 2020

tisre bhav me mangal ka shubh ashubh fal / तीसरे भाव में मंगल का शुभ अशुभ फल

Posted by Dr.Nishant Pareek

कुंडली के तीसरे भाव से पराक्रम, छोटे भाई बहन, साहस , व्यापार , उद्यम का विचार किया जाता है।



शुभ फल : तीसरे स्थान में मंगल होने से जातक साहसी और पराक्रमी होता है। सभी स्थानों पर विजयी, धनी, सुखी और विलासी होता है। समाज में प्रसिद्ध, शूरवीर, धैर्यवान्, साहसी, सर्वगुणी, बलवान्, प्रदीप्त होता है। विधिपूर्वक तपश्चर्या-भगववदाराघन, अनुष्ठानादिक धार्मिक कार्य भी करता है। अपने पूर्ण भुजबल से बलवान् होता है, और अपने बाहुबल से ही विष्णु प्रिया लक्ष्मी को अपने घर में स्थायी रूप से स्थान देता है।

जातक मतिमान् तथा अपार पराक्रमी होता है। गुणी, धनी, सुखी और शूर होता है। कोई दूसरा दबा नहीं सकता। जातक सुखवान्, धनवान्, पराक्रमवान् तथा ऐश्वर्यवान् होता है। जातक उदार तथा अच्छा पराक्रमी होता है। धनी होता है। राजा की कृपा का पात्र बनता है उत्तम सुख मिलता है। जातक धन, ऊँट, जवाहिरात, रत्न, तंबू कनात आदि से युक्त रहता है। रोग आदि से रहित होता है। पराक्रमी, खूबसूरत, और धन की आमदनी करने वाला होता है।
 जातक प्रतापी, सुशील, रणशूर, राजमान्य तथा संसार में प्रसिद्ध होता है। शूर, अजेय, हृष्ट, सर्वगुणयुक्त और विख्यात होता है। तृतीय स्थान में पापग्रह होने से तथा मंगल होने से, अथवा उसकी पूर्ण दृष्टि होने से पहिले कन्या होती है फिर पुत्र होता है। पुरुषग्रह की राशि में होने से बहनों का सुख मिलता है।

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 अशुभफल : तीसरे भवन में पाप ग्रह से पीड़ित मंगल जातक को रोगी तथा विपत्तिग्रस्त बनाता है। स्वभाव आग्रही और क्रोधी होता है। बुद्धिमान् किन्तु हलके हृदय का होता है। आय के साधन नगण्य होते और व्यय के अनेक होते हैं। तृतीयस्थ मंगल से कटुभाषी, शठबुद्धि होता है। जातक के भाई को कष्ट अधिक होता है। छोटे भाइयों का सुख नहीं मिलता है। एक शास्त्रीय सूत्र है-"आदी जातान् रविर्हन्ति पश्चात् जातान् तु भूसूत:" छोटे भाई की मृत्यु से दु:ख होता है। बड़े और छोटे भाई के लिए तृतीय भौम मारक होता है। दो सुंदर बहिनें होती है, किन्तु उनकी मृत्यु होती है। दो भाइयों का भी शास्त्रादि के द्वारा निधन होता है। भाई से कपट करता है-दु:खी होता है।

गाड़ी, रेल, वाहन, इनसे भय होता है। पड़ोसियों से तथा संबंधियों से झगड़ा होता है। किसी दस्तावेज पर दस्तखत करने से, वा गवाही देने से भयंकर आपत्ति आती हैं। हड्डी टूटना, विषवाधा, जलने से दाग रहना' ये फल मंगल के हैं। तीसरे मंगल होने से जातक की अपनी स्त्री व्यभिचारिणी होती है। निर्धनता होती है।   

 मकर के सिवाय अन्य राशियों में मंगल होने से मस्तक शूल, या चिप्त भ्रम हो सकता है।  नीच, पापग्रह या शत्रुराशि में होने से जातक सर्वथा भरपूर होता हुआ भी धनहीन, सुखहीन-जनहीन और उत्तम गृहहीन होता है अर्थात् सभी सुखनष्ट हो जाते हैं।   

 तृतीय मंगल पुरुषराशि में होने से माता की मृत्यु होती है-सौतेली माता आती है।   पुरुषराशि में होने से छोटा भाई बिलकुल नहीं होता। बहिन होती है। अथवा गर्भाघात होता है। छोटी बहिन के बाद छोटा भाई हो तो जीवित रह सकता है। भाई के साथ वैमनस्य रहता है। बटवारा की परिस्थिति बन जाती है किन्तु अदालत तक नौबत नहीं आती।  पुरुषराशि में मंगल होने से झगड़ा अदालत में जाता है बाद में बटवारा हो जाता है।
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