Wednesday, 12 February 2020

chhathe bhav me mangal ka shubh ashubh fal/ छठे भाव में मंगल का शुभ अशुभ फल

Posted by Dr.Nishant Pareek
छठे भाव में मंगल के शुभ अशुभ फल:-


कुंडली के छठे भाव से रोग, कर्जा, शत्रु आदि का विचार किया जाता है।
शुभ फल : छठे स्थान का प्रबल मंगल व्यक्ति को धनी और शत्रुहन्ता बनाता है। छठे घर में मंगल के रहने से व्यक्ति कुलदीपक, वीर, रिपुमर्दन करने वाला और विजेता होता है। राज्य में उसका सम्मान और प्रभाव बना रहता है। 

छठे भाव में हो तो जातक प्रबल जठराग्नि, बलवान्, धैर्यशाली, कुलवन्त, प्रचण्ड शक्ति, शत्रुहन्ता, पुलिस अफसर होता है। जिसके छठवें स्थान में मंगल हो वह जातक मनीषी अर्थात् विचारबुद्धि सम्पन्न होता है, सुखी भी होता है। छठवें मंगल के प्रभाव से इसका धन नष्ट होता है किन्तु दुबारा फिर से धनलाभ होता है। जातक तथा इसके मामा को विष, अग्नि, तथा शास्त्रों का भय होता है। लोगों की कदर करने वाला, अपने कुूल में श्रेष्ठ, होता है। सत्संगी तथा धार्मिक होता है-अपने कुटुम्बियों की उन्नति करता है। शत्रुओं को जीतनेवाला होता है। शत्रुओं का नाश करता है। शत्रु शान्त होते हैं। श्रीमान्, प्रसिद्ध, विजयी, राजा होता है। धन-धान्य सम्पन्न,धनवान्, यशस्वी, तथा बलवान् होता है। कीर्ति प्राप्त होती है। कार्य करने का सामर्थ्य होता है। काम करने की शक्ति बहुत होती है। पुत्र प्राप्ति होती है। 27वें वर्ष कन्या होती है। पशु, ऊँट घोड़े आदि (वाहन) होते हैं। बहुत स्त्रियों का उपभोग लेनेवाला, स्त्रीलोलुप, शुभकर्मी, तथा बलवान होता है। 

जन्मकाल में छठेभाव में मंगल हाने से भूख तेज होती है पाचनशक्ति (उदराग्नि)तीव्र होती है। जातक का मेल-जोल सज्जनों के साथ होता है। अपने संबन्धियों पर अधिकार होता है-ग्राम-जनसमूह में मुखिया होता है। जातक सुन्दर स्वरूप और दीर्घदेह होता है। पुष्टदेह, तथा शुभ अंत: करण का होता है।  

 अशुभफल : पापग्रहों से पीड़ित मंगल  व्यक्ति को चर्मरोग और रक्त सम्बन्धी कष्ट इसके होते रहते हैं। जातक अतिव्ययी होता है। जातक की कमर में शस्त्र अथवा पत्थर से आघात लगने की सम्भावना रहती है। रोगी, क्रोधी, ऋणी, व्रण और रक्तविकारयुक्त एवं अधिक व्यय करनेवाला होता है। हल्के दर्जे के नौकरों से तकलीफ होती है। जातक के बहुत शक्तिशाली शत्रु होते हैं किन्तु ये शत्रु सन्मुख ठहर नहीं सकते हैं प्रत्युत पीठ दिखा कर भाग जाते हैं। मातृपक्ष के लिए-मामा-मामी आदि के लिए सुखदायक नहीं होता है। प्रत्युत कष्टकारक होता है। जातक को हर समय क्रोध चढ़ा रहता है। जातक के शत्रुगण शान्त हो जाते है। जातक कामुक होता है।
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छठे भाव में मंगल होने से जातक की कामाग्नि तीव्र होती है। छठवें भाव में मंगल होने से युद्ध से जातक की मृत्यु होती है। बहुत क्रोधी होता है। मामा को दु:ख देता है। षष्ठ मंगल वाले अधिकारी रिश्वत लेते हैं-तो भी पकड़े नहीं जाते । पहला वा दूसरा पुत्र धनोपार्जन करने की आयु में मरता है, जिससे महान् शोक होता है। कीर्ति प्राप्त करने के पहिले षष्ठस्थ मंगल के जातक को संघर्षमय परिस्थिति में से गुजरना होता है।       द्विस्वभावराशि में हो तो छाती अहौर फेफड़ों के रोग होते हैं।     
 षष्ठ स्थान में मंगल पुरुषराशि में होने से कामुकता बहुत होती है। एकाघ पुत्र होता है, कितु मृत्यु होती है। पंचमभाव में पुरुषराशियों मे मंगल होने से प्राय: अशुभ फल मिलते हैं।      मंगल पापग्रह के साथ, उसकी राशि में, या दृष्टि हो तो पूरा फल अशुभ होता है। वात तथा शूल रोग होते हैं।  मेष, सिंह तथा धनु राशियों में होने से शत्रु, अग्नि वा विष से भय होता है।
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