छठे भाव में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल
शुभ फल : छठे स्थान में बुध होने से जातक विवेकी, परिश्रमी, आत्मविश्वासी और पुरुषार्थी होता है। जातक विवेकी, तार्किक, विनोदी होता है। बुध हो तो सन्यासियों के साथ ज्ञान की वार्ता करता है और इस ज्ञानचर्चा से ज्ञानप्राप्ति होती है।सन्यासियों से अर्थात् ब्रह्मज्ञानियों से ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होती है। "अनिला नां रोघ:" 'प्राणायाम' करता है या 'प्राणायाम आदि द्वारा वायु को रोकता है। जातक अच्छे कामों में द्रव्य का व्यय करता है और अपने बाहुबल से घन संचय करता है। उत्तम रत्नादि के व्यापार से घन का लाभ भी होता है।
घार्मिक शुभकामों में घन का व्यय करता है। राजमान्य, बहुश्रुत और लेखक होता है। विद्वान् होता है।नौकरी से फायदा होता है। स्वतंत्र व्यापार में लाभ नहीं होता। रसायनशास्त्रज्ञ या पत्र-लेखक होता है। प्रिटिंग पै्रस से संबंघ होता है।जातक लोगों के साथ विरोघ करता है। शत्रुओं को आगे बढ़ने से रोकता है। शत्रुसमूह को आगे आने से रोकता है। 30 वें वर्ष राजा से अच्छी मित्रता होती है। षष्ठभाव में बुध पुरुषराशियों में होने से शुभफल देता है।
अशुभ फल : षष्ठभाव में बुध होने से झगड़ालू, ईर्ष्यालु, दांभिक, निठुर(कठोरवचन बोलने वाला) तथा आलस करने से चिंतित होता है। वादी, कलहप्रिय, आलसी, अभिमानी होता है। वाद-विवाद करने में जातक बहुत जल्दी और बहुत अघिक क्रोघी हो जाता है। वाद विवाद में और झगड़े में नित्य पराजित होता है और सदा अपमानित होता है।
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जातक आप्तों (बंघु-बांघवों) का विरोघी, बन्घु-बान्घवों पर उपकार न करनेवाला होता है। जातक का चित्त सदा संतप्त रहता है। जठर वायु के रोघ से, रुकावट से बद्धकोष्ठता वातशूल आदि रोग होते हैं। बुध के दूषित होने से गुह्यरोग, उदररोग, रहस्यदेशरोग, वायुरोग, कुष्ठरोग, मंदाग्निरोग, वातशूलरोग तथा संग्रहणी रोग होते हैं। नाभि के पास व्रण होता है। छाती दुर्बल होती है। क्षय या श्वास के रोग हो सकते हैं। मानसिक दु:ख से पीड़ा होती है। मन पर आघात होने से मृत्यु होती है।
37 वें वर्ष शत्रुओं का भय होता है। परदारारति एवं कामुकता जातक के स्वभाव के अंग बने रहते हैं। पत्नी कर्कश स्वभाव वाली, कुटिल अथवा आचरणहीन होती है अथवा पति वियोग भी सम्भव होता है। शिक्षा में विघ्न आता है। राजा का बिरोघी होता है। मामा को कन्याएँ अघिक होती हैं। पुत्र अल्प होते है। बदमाश नौकरों से कष्ट होता है। छठे स्थान में बुध अस्त, वक्री, या नीचराशि में होने से शत्रुओं से कष्ट होता है। षष्ठभाव में निर्बल बुध होने से असमय में मृत्यु होती है या मृत्युतुल्य संकट आता है।
शुभ फल : छठे स्थान में बुध होने से जातक विवेकी, परिश्रमी, आत्मविश्वासी और पुरुषार्थी होता है। जातक विवेकी, तार्किक, विनोदी होता है। बुध हो तो सन्यासियों के साथ ज्ञान की वार्ता करता है और इस ज्ञानचर्चा से ज्ञानप्राप्ति होती है।सन्यासियों से अर्थात् ब्रह्मज्ञानियों से ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होती है। "अनिला नां रोघ:" 'प्राणायाम' करता है या 'प्राणायाम आदि द्वारा वायु को रोकता है। जातक अच्छे कामों में द्रव्य का व्यय करता है और अपने बाहुबल से घन संचय करता है। उत्तम रत्नादि के व्यापार से घन का लाभ भी होता है।
घार्मिक शुभकामों में घन का व्यय करता है। राजमान्य, बहुश्रुत और लेखक होता है। विद्वान् होता है।नौकरी से फायदा होता है। स्वतंत्र व्यापार में लाभ नहीं होता। रसायनशास्त्रज्ञ या पत्र-लेखक होता है। प्रिटिंग पै्रस से संबंघ होता है।जातक लोगों के साथ विरोघ करता है। शत्रुओं को आगे बढ़ने से रोकता है। शत्रुसमूह को आगे आने से रोकता है। 30 वें वर्ष राजा से अच्छी मित्रता होती है। षष्ठभाव में बुध पुरुषराशियों में होने से शुभफल देता है।
अशुभ फल : षष्ठभाव में बुध होने से झगड़ालू, ईर्ष्यालु, दांभिक, निठुर(कठोरवचन बोलने वाला) तथा आलस करने से चिंतित होता है। वादी, कलहप्रिय, आलसी, अभिमानी होता है। वाद-विवाद करने में जातक बहुत जल्दी और बहुत अघिक क्रोघी हो जाता है। वाद विवाद में और झगड़े में नित्य पराजित होता है और सदा अपमानित होता है।
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37 वें वर्ष शत्रुओं का भय होता है। परदारारति एवं कामुकता जातक के स्वभाव के अंग बने रहते हैं। पत्नी कर्कश स्वभाव वाली, कुटिल अथवा आचरणहीन होती है अथवा पति वियोग भी सम्भव होता है। शिक्षा में विघ्न आता है। राजा का बिरोघी होता है। मामा को कन्याएँ अघिक होती हैं। पुत्र अल्प होते है। बदमाश नौकरों से कष्ट होता है। छठे स्थान में बुध अस्त, वक्री, या नीचराशि में होने से शत्रुओं से कष्ट होता है। षष्ठभाव में निर्बल बुध होने से असमय में मृत्यु होती है या मृत्युतुल्य संकट आता है।