बारहवें भाव में गुरु का शुभ अशुभ सामान्य फल
शुभ फल : बारहवें स्थान में बृहस्पति के स्थित होने से जातक संसार में पूज्य, धार्मिक आचरण करने वाला होता है। जातक मितभाषी, योगाभ्यासी, परोपकारी, उदार, शास्त्रज्ञ, सदाचारी, विरक्त स्वभाव का होता है। आध्यात्म और गूढ़शास्त्रों में रुचि होती है। पुरानी रीतियों के बारे में आदर होता है। निर्भीक प्रकृति का और सुखी होता है।
द्वादशस्थान का सम्बन्ध परोपकार तथा विश्वप्रेम से हैं। अत: बड़े-बड़े दान देने की प्रवृत्ति भी होती है। मरणान्तर सद्गति प्राप्त करने वाला होता है। स्वर्गलोक प्राप्त होता है। मितव्ययी, द्रव्य व्यय अच्छे कामों में,धर्म में खर्च करता है। वैद्य, धर्मगुरु, वेदज्ञानी, लोकसेवक, सम्पादक आदि के लिए यह गुरु शुभ है। देशत्याग, अज्ञातवास तथा दूरप्रदेशों में प्रवास से कीर्ति तथा लाभ प्राप्त होते हैं। शत्रु द्वारा लाभ होता है।
आयु का मध्य तथा उत्तरार्ध अच्छा जाता है। अन्न की कमी नहीं होती। वस्त्र, गौएँ, धन, सोना और सम्पत्ति प्राप्त होते हैं। सेवा करने में चतुर होता है। भ्रमणशील (प्रवासी) होता है। विदेश-यात्रा तथा प्रवास संभव है। पिता के धन से धनी होता है। पिता के भाई सुखी रहते हैं। गणित जाननेवाला होता है। पुत्र संतति थोड़ी होती है। गुरु से विपुल धन प्राप्त होता है। गुरु विजय प्राप्त कराता है। गुरु उच्च या स्वगृह में होने से लोकहितकारी और देशसेवक होता है। गुरु के बलवान् होने से दानाध्यक्ष, सार्वजनिक संस्थाओं में कार्यकर्ता, अस्पताल, धार्मिक संस्थाएँ आदि के व्यवस्थापक के रूप में लाभ होता है।
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अशुभफल : बारहवें भाव का बृहस्पति शुभ नहीं होता। जातक दुबला पतला और पीड़ा युक्त होता है। जातक उद्वेग, चिंता, पाप और कोप से युक्त होता है। निर्लज्ज, मानहीन और अपमानित होता है। चित्त उद्विग्न रहने से क्रोध बहुत आता है। दुर्बुद्धि, दुष्ट तथा दुष्टों की सहायता करनेवाला होता है। अधिक अहंकारी होता है। गुरु तथा बंधुजनों का उपकार करने में शिथिलता होती है। व्यर्थ ही खर्च की अधिकता और सदा दूसरे के धन का अपहरण करने में बुद्धि व्यग्र रहती है। भाई-बंधुओं का वैरी, और गुरुजनों से द्वेष करने वाला होता है। किसी सार्वजनिक संस्था के आश्रय से जीवन बितानेवाला होता है। जातक से दूसरे लोग द्वेष करते हैं। लोगों के साथ द्वेष करने वाला होता है। बुरे शब्द बोलनेवाला, संतानहीन, पापी, आलसी और सेवक (नौकर) होता है। अपने कुल का परित्याग करके अन्य कुल में जाने वाला होता है।
जातक नेत्ररोगी होता है। हृदयरोग, गुप्त रोग, क्षयरोग होता है। ग्रंथिव्रण होता है। जातक का धन चोर ले जाते हैं। जातक नीचों की सेवा करने वाला, लोगों से झगड़ने वाला होता है। जातक को वाहन, भूषण, वस्त्र, घोड़े, चामर आदि की चिन्ता होती है। जातक बढ़-चढ़कर खर्च करता है। ब्राह्मणी और गर्भिणी स्त्री से सहवास और संगम करता है। अपने लोगों से झगड़े होते हैं, दु:ख होता है। चार्वाकमतानुयायी होता है। चार्वाकमत संक्षेप में 'खाओ पीओ मौज उड़ाओ' है। परलोक को नहीं मानता है। राजा से (सरकार से) भय होता है। बोलने में अल्हड़, सेवक और भाग्यहीन होता है। उचित दान नहीं करनेवाला होता है। जातक के शत्रु बहुत होते हैं। कल्याण और पृथ्वी पर यश नहीं होता है। गुरु पीडि़त या अशुभ सम्बन्ध में होने से विवाह में कुछ गड़बड़ होती है। पापग्रह से युक्त होने से नरक में जाता है। गुरु पीडि़त होने से जातक व्यसनी, लोभी, मूर्ख, आलसी, विवेकहीन, शास्त्रों और देवताओं की निन्दा करने वाला होता है।