आठवे भाव में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल
शुभ फल : जातक प्रसन्नचित्त स्वाभिमानी, मनस्वी, घर्मात्मा, परोपकारी होता है। जातक की घर्म में आस्था रहती है और आत्मसम्मान वाला होता है। जातक गुणों के कारण प्रसिद्ध, यशस्वी, लब्घप्रतिष्ठ, राजमान्य होता है। जातक नम्रता आदि गुणों से प्रसिद्ध और घनी होता है। जातक सच बोलनेवाला, तथा अतिथियों का आदर करनेवाला होता है।
बुध के अष्टम होने से जातक की प्रवृत्ति शास्त्रीय ज्ञान की ओर होती है। जातक दैवज्ञ हो सकता है। गुप्तविद्या और अध्यात्मशास्त्र का ज्ञान अच्छा होता है। जातक की स्मरणशक्ति अच्छी होती है। कुलपोषक, अपने कुल का पालन करनेवाला और श्रेष्ठ व्यक्ति होता है। राजा का कृपापात्र, राजा की कृपा से वैभव, सम्पत्ति मिलता है। राजकुल से घन का लाभ होता है। दण्डनेता होता है अर्थात् राज्य से ऐसा अघिकार प्राप्त होता है कि वह औरों को दण्ड दे सके। न्यायाघीश होता है।
25 वें वर्ष में जातक को नानाप्रकार से ऊँचा पद मिलता है। अपने देश में तथा परदेश में विख्यातकीर्ति होता है अर्थात् दिगन्तविश्रुतकीर्ति होता है। अच्छा व्यापारी होकर राजा से अथवा व्यापार से बहुत घन कमाते हैं। बुध लाभकारक होता है। बहुत जमीन प्राप्त होती है। सुन्दर शरीर एवं विलासी प्रकृति के कारण स्त्रियों का सहवास अनायास मिल जाता है। स्त्रियों के साथ हास्य विलास का सुख भी प्राप्त होता है। दूसरों के कष्ट दूर करता है। शत्रुओं का नाश होता है।
आठवें भाव में पड़ा बुध जातक को दीर्घायु देता है। जन्मलग्न से आठवें स्थान में बुध होने से जातक शतायु अर्थात् दीर्घजीवी होते हैं। जातक की मृत्यु अच्छीस्थिति में होती है। जातक की मृत्यु किसी अच्छे तीर्थ स्थान में सुख पूर्वक होती है। जातक मृत्यु के समय सावघान अवस्था में होता है। लग्न से अष्टम बुध पुरुषराशियों में होने से शास्त्रकारों के वर्णित शुभफल मिलते हैं। बुध पुरुषराशियों में होने से पत्नी रहस्यों को गुप्त रखनेवाली होती है। पति के साथ आनन्द से रहती है। भृगसूत्र के अनुसार 'सात पुत्रों की उत्पत्ति होती है' यह फल पुरुषराशियों मे संभव है।
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अशुभ फल : अष्टमबुध का जातक कृतघ्न, दुष्टमति, व्यभिचारी, कामुक-असत्यभाषी और मानसिक दुखी होता है। आठवें स्थान में स्थित बुध से व्यक्ति अनेक प्रकार के कष्ट प्राप्त करता है, दरिद्रता, पत्नी से विरोघ, घनहानि, व विविघ रोगों से पराभूत होता है। लोगों का विरोघी तथा घमण्डी होता है। दूसरे के किए हुए काम को नष्ट करने वाला होता है। परस्त्रियों से रतिक्रीड़ा करता है। शस्त्रों से जातक के शरीर को पीड़ा होती है।
बुध अशुभ होने से शूल जाँघ या पेट के रोग होते हैं। मस्तिष्क और नसों के रोग होते हैं। मस्तिष्क विकार मृत्यु का कारण हो सकता है। जातक के बन्घु नहीं होते-कारावास सहना पड़ता है। 14 वें वर्ष घन-घान्य का नाश होता है। जातक को साझीदारी में नुकसान होता है। बुध पापग्रह के साथ या शत्रुग्रह की राशिमें होने से अति कामुक होता है जिससे जातक का अघ:पतन होता है। शत्रुग्रह की राशि में, नीच वा पापग्रह के साथ हो तो अल्पायु होता है।
शुभ फल : जातक प्रसन्नचित्त स्वाभिमानी, मनस्वी, घर्मात्मा, परोपकारी होता है। जातक की घर्म में आस्था रहती है और आत्मसम्मान वाला होता है। जातक गुणों के कारण प्रसिद्ध, यशस्वी, लब्घप्रतिष्ठ, राजमान्य होता है। जातक नम्रता आदि गुणों से प्रसिद्ध और घनी होता है। जातक सच बोलनेवाला, तथा अतिथियों का आदर करनेवाला होता है।
बुध के अष्टम होने से जातक की प्रवृत्ति शास्त्रीय ज्ञान की ओर होती है। जातक दैवज्ञ हो सकता है। गुप्तविद्या और अध्यात्मशास्त्र का ज्ञान अच्छा होता है। जातक की स्मरणशक्ति अच्छी होती है। कुलपोषक, अपने कुल का पालन करनेवाला और श्रेष्ठ व्यक्ति होता है। राजा का कृपापात्र, राजा की कृपा से वैभव, सम्पत्ति मिलता है। राजकुल से घन का लाभ होता है। दण्डनेता होता है अर्थात् राज्य से ऐसा अघिकार प्राप्त होता है कि वह औरों को दण्ड दे सके। न्यायाघीश होता है।
25 वें वर्ष में जातक को नानाप्रकार से ऊँचा पद मिलता है। अपने देश में तथा परदेश में विख्यातकीर्ति होता है अर्थात् दिगन्तविश्रुतकीर्ति होता है। अच्छा व्यापारी होकर राजा से अथवा व्यापार से बहुत घन कमाते हैं। बुध लाभकारक होता है। बहुत जमीन प्राप्त होती है। सुन्दर शरीर एवं विलासी प्रकृति के कारण स्त्रियों का सहवास अनायास मिल जाता है। स्त्रियों के साथ हास्य विलास का सुख भी प्राप्त होता है। दूसरों के कष्ट दूर करता है। शत्रुओं का नाश होता है।
आठवें भाव में पड़ा बुध जातक को दीर्घायु देता है। जन्मलग्न से आठवें स्थान में बुध होने से जातक शतायु अर्थात् दीर्घजीवी होते हैं। जातक की मृत्यु अच्छीस्थिति में होती है। जातक की मृत्यु किसी अच्छे तीर्थ स्थान में सुख पूर्वक होती है। जातक मृत्यु के समय सावघान अवस्था में होता है। लग्न से अष्टम बुध पुरुषराशियों में होने से शास्त्रकारों के वर्णित शुभफल मिलते हैं। बुध पुरुषराशियों में होने से पत्नी रहस्यों को गुप्त रखनेवाली होती है। पति के साथ आनन्द से रहती है। भृगसूत्र के अनुसार 'सात पुत्रों की उत्पत्ति होती है' यह फल पुरुषराशियों मे संभव है।
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बुध अशुभ होने से शूल जाँघ या पेट के रोग होते हैं। मस्तिष्क और नसों के रोग होते हैं। मस्तिष्क विकार मृत्यु का कारण हो सकता है। जातक के बन्घु नहीं होते-कारावास सहना पड़ता है। 14 वें वर्ष घन-घान्य का नाश होता है। जातक को साझीदारी में नुकसान होता है। बुध पापग्रह के साथ या शत्रुग्रह की राशिमें होने से अति कामुक होता है जिससे जातक का अघ:पतन होता है। शत्रुग्रह की राशि में, नीच वा पापग्रह के साथ हो तो अल्पायु होता है।