पांचवें भाव में मंगल का शुभ अशुभ फल:-
कुंडली का पांचवां भाव विद्या, बुद्धिमत्ता, तथा संतान का कारक होता है
शुभ फल : पंचमभाव में मंगल स्त्रीराशियों में (मकर को छोड़कर) शुभफल देता है। जन्मलग्न से पंचमभाव में मंगल होने से जातक की उदराग्नि प्रबल हो जाती है पाचन शक्ति तीव्र हो जाती है इतनी भूख लगती है कि क्षुधा शान्ति होती ही नहीं। यदि मंगल पंचमभाव में हो तो जठराग्नि प्रबल होती है अर्थात् अधिक भोजन खाता है और पचा भी लेता है। धन सुख, सट्टे में लाभ आदि मिलता है। स्त्री का सुख मिलता है। ज्ञानी, किन्तु प्रत्यक्षवादी, संसारवादी, तीक्ष्णबुद्धि होता है। धन सन्तति, कीर्ति प्राप्त होते हैं।
पंचमभाव में मंगल होने से जातक भोगी और धनी होता है। संक्षेप में पाँचवें भाव में मंगल होने से जातक उग्रबुद्धि, बुद्धिरहित, चंचलमति, कू्रर, कपटी, व्यसनी, रोगी, उदररोगी, कफ-वात-व्याधिवान्, कृशशरीरी, गुप्तांगरोगी, चंचल, एवं सन्तति-क्लेशयुक्त, सुखहीन, धनहीन, पुत्रहीन, मित्रसुख, स्त्रीसुख से हीन, घुमक्कड़ दूसरा धर्म अपनानेवाला, पिशुन, अनर्थकारी,खल, विकल और नीच होता है।
अशुभफल : जातक के गर्भपात होने की संभावना भी रहती है। पांचवें स्थान में मंगल की स्थिति से जातक सन्तान सुख से वंचित रहता है। पांचवें भाव में बैठा हुआ अकेला ही मंगल जातक की उत्पन्न तथा गर्भस्थित सन्तान को नष्ट करता रहता है। जातक की पुत्र संतान जीवित नहीं रहती है-और जीवित रहे भी तो रोगी रहती है। सन्तान का सुख नही होता। पंचम भाव में मंगल होने से सन्तान अच्छी नहीं होती, सन्तान होती है किन्तु मरजाती है। सन्तति जन्मते ही मर जाती है-बहुत दु:खी होता है।
पांचवे भाव का मंगल जातक के पित्त को तीव्र करता है। बहुत खाने पर भी पुष्ट शरीर वाला नहीं होता। जन्मलग्न से पंचमभाव में मंगल होने से कफ और वात से व्याकुलता होती है। गुल्म और पेट के विकार हुआ करते हैं। स्वयं सदैव रोगी रहता है। अग्नि से, या शस्त्र से दाहिने पैर मे जख़्म होता है। तीव्र आवेश आता है और बड़ी जल्दी आक्रामक हो जाता है। आवेश में अंधा होकर जातक विवेक खो देता है, इसलिए पापकर्म करने में भी नहीं हिचकता। दूसरों के काम विगाड़ने वाली बुद्धि रहा करती है। इच्छाएँ प्रबल होती जाती हैं तृप्ति होती नहीं परिणम यह होता है कि जातक अन्तरात्मा में संतप्त रहता है-जैसे उपलों की आग पर रखा हुआ दूध अंदर ही अंदर जलता रहता है इसी प्रकार जातक अपने मन में अन्दर-अन्दर जलता रहता है। हृदय संताप और बुद्धि बड़ी होती है।
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धनसन्चय नहीं हो सकता है अर्थात् निर्धन ही रहता है। धन का अभाव रहता है। जातक को स्त्री-मित्र तथा का सुख नहीं होता है। जातक बुद्धिमान् नहीं होता और चुगुलखेर होता है। बन्धुओं से वैमनस्य होता है, तथा दीन होता है। स्त्री, मित्र तथा शत्रुओं से कष्ट होता है। पाराशरमत से पंचम मंगल पिता का मारक है। पंचमभाव के मंगल होने से जातक दरिद्री, पुत्रहीन, दुराचारी, राजकोप का पात्र होता है। जातक को बुरी वासनाएँ होती है। शत्रुओं से कष्ट होता है। बुद्धिभ्रंश आदि रोग होते हैं। पंचम स्थान में-मंगल हो तो अल्प धन की प्राप्ति होती है किन्तुं कीर्ति प्राप्त होती है।
पंचम मंगल यदि शत्रुग्रह की राशि में, नीच राशि में, पापग्रह से युक्त वा दृष्ट हो तो पुत्र की मृत्यु नियम से होती है। अशुभग्रह की दृष्टि होने से पुत्र उद्धत होते हैं। उनके अकस्मात् मरने का डर होता है। पंचमभाव में मंगल के पुरुषराशियों तथा मकर राशि में होने से उपर दिये अशुभ फल अधिक मिलते हैं। पापग्रह की राशि में या उससे युक्त हो तो पुत्रनाश होता है। अशुभग्रह की दृष्टि होने से सट्टे के व्यापार में बहुत नुकसान होता है। अशुभग्रह की दृष्टि होने से शराब का व्यसन होता है। कुटुम्ब में शान्ति नहीं रहती। स्वभाव खर्चीला होता है। बहुत प्रवास होता है।