देर से संतान प्राप्ति योग :-
अनेक कुंडलियों में संतान का योग होता तो है परंतु उन्हें जल्दी संतान का सुख नही मिलता। तब योग सोचते है कि उनमे कोई कमी है और वो चिकित्सक के पास इलाज के लिए चले जाते है , जबकि वो ये नही जानते कि उनके देर से संतान प्राप्ति का योग है. जो समय आने पर ही फलित होगा। कुछ ऐसे योग इस प्रकार है :-
अनेक कुंडलियों में संतान का योग होता तो है परंतु उन्हें जल्दी संतान का सुख नही मिलता। तब योग सोचते है कि उनमे कोई कमी है और वो चिकित्सक के पास इलाज के लिए चले जाते है , जबकि वो ये नही जानते कि उनके देर से संतान प्राप्ति का योग है. जो समय आने पर ही फलित होगा। कुछ ऐसे योग इस प्रकार है :-
- यदि लग्नेश , पंचमेश, और नवमेश , किसी शुभ ग्रह के साथ त्रिक भाव में बैठे हो तो देर से संतान प्राप्त होती है।
- यदि पंचम भाव में सभी पाप ग्रह तथा दशम भाव में शुभ ग्रह हो तो भी संतान देर से होती है।
- यदि पापी ग्रह अकेले अथवा गुरु के साथ चतुर्थ भाव अथवा पंचम भाव में हो तथा अष्टम भाव में चन्द्रमा हो तो २९-३० वर्ष की आयु में संतान होती है ,
- यदि पंचम भाव का स्वामी नीच राशि में हो तथा नवम भाव का स्वामी लग्न में और बुध के साथ केतु पंचम भाव में हो तो बहुत देर से संतान पैदा होती है.
- यदि राहु मंगल तथा सूर्य पंचम भाव में हो तो संतान विलम्ब से होती है.
- यदि नवम भाव में गुरु और पंचम भाव में शुक्र के साथ लग्नेश हो तो ४० वर्ष की आयु में संतान होती है।
- गुरु के साथ पंचमेश किसी केंद्र भाव में हो तो ३५ वर्ष की आयु के बाद संतान होती है।
- यदि ग्यारहवें भाव में शनि हो लेकिन शनि लग्नेश न हो तो भी संतान विलम्ब से होती है।
- यदि पंचम भाव में गुरु हो तथा पंचम भाव का स्वामी शुक्र के साथ हो तो ३२ वर्ष के बाद संतान होती है।
- यदि ग्यारहवें भाव में राहु हो तो अधिक उम्र में संतान होती है।
- यदि लग्न में कोई पाप ग्रह पाप ग्रह की राशि में, सूर्य कमजोर हो तथा मंगल किसी सम राशि में हो तो ३० वर्ष की आयु में संतान होती है।
- यदि चन्द्रमा कर्क राशि में किसी पाप ग्रह के साथ हो तथा सूर्य शनि को देखता हो तो ५० वर्ष की आयु में संतान होती है ,