दरिद्र योग :-
आज के समय में दरिद्रता एक श्राप है। इस समय तो बिना धन के अपने परिवार वाले भी साथ खड़े नही होते। चाहे वो बीवी बच्चे हो या और कोई। धन की कमी अधिकता , दोनों ही व्यक्ति के जीवन को पूरी तरह प्रभावित करती है। इसलिए धन को अधिक महत्व् दिया जाता है। यदि कुंडली में धन की स्थिति ठीक नही होगी तो व्यक्ति विवाह के बाद परिवार का पालन कैसे करेगा। इसलिए विवाह तय करने से पूर्व दोनों की कुंडली में धन की स्थिति पर अवश्य विचार करना चाहिए।
आज के समय में दरिद्रता एक श्राप है। इस समय तो बिना धन के अपने परिवार वाले भी साथ खड़े नही होते। चाहे वो बीवी बच्चे हो या और कोई। धन की कमी अधिकता , दोनों ही व्यक्ति के जीवन को पूरी तरह प्रभावित करती है। इसलिए धन को अधिक महत्व् दिया जाता है। यदि कुंडली में धन की स्थिति ठीक नही होगी तो व्यक्ति विवाह के बाद परिवार का पालन कैसे करेगा। इसलिए विवाह तय करने से पूर्व दोनों की कुंडली में धन की स्थिति पर अवश्य विचार करना चाहिए।
- कुंडली में यदि लग्नेश निर्बल , धनेश नीच , अथवा अस्त और केंद्र में पाप ग्रह हो तो व्यक्ति दरिद्र होता है।
- यदि अष्टमेश से नवमेश ज्यादा बली होगा तो व्यक्ति को धन में बहुत कम रूचि होगी।
- यदि लग्न में कोई स्थिर राशि हो तथा केंद्र में या त्रिकोण में पाप ग्रह हो तो व्यक्ति निर्धन होता है.
- यदि गुरु लग्नेश होकर केंद्र में न हो तथा धनेश निर्बल अस्त या नीच का हो तो भी व्यक्ति निर्धन होता है।
- यदि आय भाव का स्वामी किसी त्रिक भाव में हो तथा साथ ही किसी पापी ग्रह के प्रभाव में हो तो व्यक्ति धन की कमी से परेशान रहता है।
- यदि शुक्र गुरु चन्द्र व मंगल क्रम से पहले दसवें नवें सातवें अथवा पंचम में नीच का हो तो व्यक्ति दरिद्र होता है।
- गुरु छठे भाव या बारहवें भाव में हो परंतु स्वराशि में न हो तो भी व्यक्ति दरिद्र होता है।
- धन भाव में पापी ग्रह हो तथा उन पर पाप ग्रहो की दृष्टि हो तथा धनेश नीच अथवा अस्त हो तो व्यक्ति दरिद्र होता है।
- यदि धन भाव का स्वामी किसी त्रिक भाव में हो तथा धन भाव में कोई पाप ग्रह बैठा हो तो व्यक्ति दरिद्र होता है।
- यदि धन भाव में पाप ग्रह हो तथा धनेश भी पाप ग्रह के मध्य हो तो जातक को संपत्ति तो मिलती है परन्तु वह उसे अपने हाथो से नष्ट कर देता है।
- यदि बारहवें भाव का स्वामी नीच का हो तथा उसके साथ सप्तम भाव का स्वामी हो और उस पर पापी ग्रह की दृष्टि हो तो जातक अपने जीवनसाथी के कर्मों से बर्बाद होता है।
- यदि धन या आय भाव के स्वामी पर पाप प्रभाव हो अथवा नीच राशि में किसी त्रिक भाव में हो तथा उस पर दशम के स्वामी की दृष्टि हो तो जातक सरकारी सजा के कारण दरिद्र हो जाता है।
- धन भाव या बारहवें भाव के स्वामी एक दूसरे के भाव में हो तो व्यक्ति अपराध की सजा के कारण दरिद्र हो जाता है।
- यदि ग्यारहवे भाव में पाप ग्रह हो तथा भाव का स्वामी पाप ग्रहों के मध्य होकर अस्त या नीच का हो तो व्यक्ति बहुत मेहनत के बाद भी दरिद्र ही रहता है।
- यदि लग्नेश कमजोर होकर पाप ग्रह के साथ हो तथा बारहवें भाव में सूर्य के साथ धनेश हो तो किसी के जबरदस्ती खर्च करवाने के कारण व्यक्ति दरिद्र होता है।
- यदि व्यय भाव का स्वामी कोई पाप ग्रह हो तथा पापी ग्रह के साथ नीच होकर बैठा हो तथा भाग्य व धन भाव के स्वामी कमजोर हो तो भी व्यक्ति दरिद्र होता है।
- यदि धन कारक गुरु से कोई पाप ग्रह २,४ या ५ वें भाव में हो तो व्यक्ति दरिद्र होता है.
- यदि सूर्य और चन्द्र दोनों ही कुम्भ राशि में हो तथा शेष ग्रह निर्बल हो तो कन्या कितनी भी धनवान हो शादी के बाद निर्बल हो जाती है।