Monday, 6 March 2017

संतान बाधक योग

Posted by Dr.Nishant Pareek
संतान बाधक योग 
              
                         जिस प्रकार से कुंडली में संतान प्राप्ति के योग होते है उसी प्रकार संतान बाधक योग भी होते है। विवाह निश्चित करने से पूर्व लड़के लड़की की कुंडली में ये योग देख लेना आवश्यक है।  अथवा यदि किसी के संतान उतपन्न नही हो रही हो तो भी उन दम्पत्ति की कुंडली में संतान बाधक योगों का सूक्ष्म विचार करना जरुरी है।  जिससे उनकी समस्या का समाधान किया जा सके।  संतान बाधक योग इस प्रकार है :-


  • यदि तीसरे भाव का मालिक और चन्द्रमा यदि १,४,६,८,१०,१२, वें भाव में हो तो संतान नही होती।  
  • यदि पाचवें भाव में शनि या मंगल सिंह राशि में हो तथा पाचवें भाव का स्वामी आठवें भाव में गया हो तो संतान होने मे परेशानी होती है।  
  • यदि लग्नेश और बुध चौथे , सातवें या दसवें भाव में हो तो संतान बाधा होती है। 
  • यदि पांचवे आठवें या बारहवें भाव में पाप ग्रह होतो संतान सम्बन्धी परेशानी आती है।  
  • यदि लग्न में चन्द्रमा व गुरु की युति हो तथा सप्तम भाव में शनि या मंगल हो तो संतान का अभाव होता है।  
  • यदि लग्न में मंगल, पंचम में सूर्य , तथा अष्टम में शनि हो तो वंश नष्ट होता है।  
  • यदि चतुर्थ भाव में पाप ग्रह हो, सप्तम भाव में शुक्र तथा दशम भाव में चन्द्रमा हो तो वंश नाशक योग होता है।  
  • यदि पंचमेश कमजोर हो तथा लग्नेश पंचम में बैठा हो तथा चतुर्थ में चन्द्रमा व लग्न में कोई पाप ग्रह हो तो वंश नाश होता है।  
  • पंचम भाव में गुरु के साथ चन्द्रमा हो तथा चतुर्थ , अष्टम, व द्वादश भाव में पाप ग्रह हो और सप्तम भाव में बुध व शुक्र हो तो भी संतान नही होती।  
  • यदि पहले भाव का स्वामी मंगल की किसी राशि में हो तथा पंचमेश छठे भाव में गया हुआ हो तो संतान पीड़ित रहती है।  
  • यदि पंचमेश छठे आठवे या बारहवें भाव में हो तथा लग्नेश किसी पापी ग्रह के साथ हो तो पुत्र की मृत्यु होती है। 
  • यदि पंचम भाव का स्वामी लग्न में अथवा सप्तम भाव में बली षष्टेश के साथ हो तो संतान की अकाल मृत्यु होती है।  
  • यदि लग्न में सूर्य और पंचम में मंगल हो तो पुत्र नही होता है।  
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