Kalyan Varma/ कल्याण वर्मा
यह तो सर्व विदित है कि ज्योतिष शास्त्र वेदांगों में सर्वश्रेष्ठ शास्त्र है। इस शास्त्र के अनुसार ही विश्व का शुभाशुभ ज्ञात हो सकता है। इस शास्त्र के तीन भाग हैं
होरा, सिद्धान्त (गणित), संहिता।
इन तीनों भागों से जीवन में होने वाली घटनाओं का सटीक फल कहना सम्भव है। श्री कल्याण वर्मा के द्वारा रचित प्रमुख ज्योतिष ग्रंथ सारावली होरा शास्त्र के रूप में ही है। होरा शास्त्र किसे कहते हैं? -
होरार्थ शास्त्रम होरा, तामहोराविकल्पमेके वांछन्ति।
अहश्च रात्रिश्च अहोरात्रो होरा शब्देनोच्यते।
अहोरात्र के पूर्व वर्ण (अ) तथा पर वर्ण (त्र) का लोप करने से होरा शब्द बनता है। पुनः यह जिज्ञासा होती है कि अहोरात्र शब्द से ही होरा शब्द क्यों बनता हैं, उत्तर बनता है कि एक दिन और एक रात में एक अहोरात्र बनता है और एक अहोरात्र में बारह राशियां नभमंडल में विचरण करती है। इसलिये ही होरा का निर्माण होता है। एक होरा लग्न का रूप बनाता है और जन्म कालीन लग्न के अनुसार ग्रह स्थिति के अनुसार ही उनके नक्षत्रों का विवेचन करने से जातक का फलादेश किया जाता है। सारावली के रचयिता कल्याण वर्मा रीवा जिला के बघेल खण्ड में बघेल राजपूत परिवार में जन्मे थे। कल्याण वर्मा का पूर्व नाम कर्ण देव था और इनका जन्म विक्रमी संवत 1245 के आस पास का माना जाता है।
सारावली:- कल्याण वर्मा द्वारा रचित सारावली में ज्योतिष का जो रूप प्रस्तुत किया गया है, उसके द्वारा हमें पूर्ण रूप से भूत काल, वर्तमान काल और भविष्य काल का ज्ञान करने में सरलता होती है। ज्योतिष की जानकारी के लिये सारावली में कल्याण वर्मा ने जो कथन अपनी लेखनी से संवत 1245 में (आज से 820 साल पहले) किया था, वह आज भी देश काल और परिस्थिति के अनुसार शत प्रतिशत खरा उतरता है। इनके द्वारा लिखे गये ग्रंथ सारावली में 54 अध्यायों में सम्पूर्ण ज्योतिष शास्त्र समाहित है। भले ही यह सारावली अन्य देश, काल, और परिस्थिति के अनुरूप सही मिले, पर भारतीय परिस्थितियों में यह फलादेश करने पर सही उतरता है। इस ग्रंथ में हर वैदिक ग्रंथ की तरह पहले अध्याय में मंगलाचरण का समावेश किया गया है और दूसरे अध्याय से ज्योतिष की प्रत्येक बात सूक्ष्मता से बताई है।