Tuesday 28 April 2020

Bharat me ghunghat pratha kaise aai ? janiye rahasya / भारत में घूंघट प्रथा कैसे आई ? जानिये रहस्य

Posted by Dr.Nishant Pareek

Bharat me ghunghat pratha kaise aai  ? janiye rahasya 

भारत में घूंघट प्रथा कैसे आई ? जानिये रहस्य

सिर पर घूँघट डालना अपने से बड़ों के सम्मान के रूप में देखा गया है, इसलिए महिलाएं अपनों से बड़ों के सामने अक्सर घूँघट करती हैं। शहरों में यह कुछ कम देखने को मिलता है मगर गांवों में आज भी महिलाएं अपने सर, चेहरा और गर्दन को पुरुषों से घूंघट के माध्यम से ढक कर रखती हैं।

http://www.jyotisham.in/2020/04/bharat-me-ghunghat-pratha-kaise-aai.html

लेकिन इसका चलन कब और कैसे हुआ, ये जानिये

भारत के संदर्भ में ईसा से पांच सौ वर्ष पूर्व रचित निरूक्त ग्रंथ में इस तरह की प्रथा का वर्णन कहीं नहीं मिलता। निरुक्त में संपत्ति संबंधी मामले निपटाने के लिए न्यायालयों में स्त्रियों के आने जाने का उल्लेख मिलता है। न्यायालयों में उनकी उपस्थिति के लिए किसी पर्दा व्यवस्था का विवरण ईसा से दो सौ वर्ष पूर्व तक नहीं मिलता। इस काल के पूर्व के प्राचीन वेदों तथा संहिताओं में पर्दा प्रथा का विवरण नहीं मिलता।

अजंता और सांची की कलाकृतियों में भी स्त्रियों को बिना घूंघट दिखाया गया है। मनु और याज्ञवल्क्य ने स्त्रियों की जीवन शैली के संबंध में कई नियम बनाए हुए हैं, परंतु कहीं भी यह नहीं कहा है कि स्त्रियों को पर्दे में रहना चाहिए। ज्यादातर संस्कृत नाटकों में भी पर्दे का उल्लेख नहीं है। यहां तक कि दसवीं शताब्दी के प्रारंभ काल के समय तक भी भारतीय राज परिवारों की स्त्रियां बिना पर्दे के सभा में तथा घर से बाहर भ्रमण करती थीं,

वास्तव में घूंघट हिंदुस्तान पर आक्रमण करने वाले मुगल तथा अन्य आक्रमणकारियों की ही देन है।
 पहले राज्यों में आपसी लड़ाइयां और फिर मुगलों का हमला। इन दो कारणों ने भारत में पूजनीय दर्जा पाने वाले महिला वर्ग को अपनी सुंदरता छिपाने पर मजबूर कर दिया।
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भारत में हिन्दुओं में पर्दा प्रथा मुगलो की देन है।  आक्रमण के समय मुगल सैनिकों से बचाव के लिये हिन्दू स्त्रियाँ भी घूंघट करने लगीं। जिससे वे बलात्कार और अपहरण से सुरक्षित रहने लगी।  भारतीय महिलाओं की सुंदरता से प्रभावित आक्रमणकारी अत्याचारी होते जा रहे थे। महिलाओं के साथ बलात्कार और अपहरण की घटनाएं बढने लगीं तो महिलाओं की सुंदरता को छिपाने के लिए घूंघट का इजाद हो गया। पहले यह आक्रमणकारियों से बचने के लिए था, फिर परिवार में बड़ों के सम्मान के लिए और धीरे धीरे इसने अनिवार्यता का रूप धारण कर लिया। आक्रमणकारी चले गए, देश आजाद हो गया लेकिन महिलाओं का अपनी सुंदरता को छिपाये रखने का सिद्धान्त अब भी कायम है।

वैसे इस प्रथा की शुरुआत भारत में बारहवीं सदी में मानी जाती है।

 इसका अधिक प्रभाव राजस्थान के राजपूत जाति में दिखाई दिया। क्योंकि आंरभ से ही भारतवर्ष में महान राजपूत शासकों का साम्राज्य रहा है। वे ही सदैव अपनी जान जोखिम में डालकर संपूर्ण भारतवर्ष की, उसमें रहने वाली सभी जातियों की अपनी प्रजा के रूप में रक्षा करते थे। तो भारत पर होने वाले किसी भी शत्रु देश के हमले का मजबूती से जवाब संपूर्ण राजपूत समाज अपनी जी जान लगाकर देता था। और भारत को सुरक्षित रखता था। तो हर दुश्मन देश को भारत के राजपूत ही खटकते थे। उनको फूटी आंख नहीं सुहाते थे। तो शत्रु मुल्क राजपूतों तथा अन्य समाज की स्त्रियों की सुंदरता पर मोहित होकर राजपूतों से सीधी टक्कर लेने के बजाय उनकी बहु बेटियों या स्त्रियों को उठा ले जाते थे। और उनसे बलात्कार करते थे। जिससे बचने के लिये घूंघट प्रथा का सहारा लिया गया। जो कि उस समय भी कारगर और सहायक सिद्ध हुआ।

सुरक्षा के कारण से कुछ धर्मो में पर्दा रखना इसलिए जरुरी है, क्योंकि यह माना जाता है कि अगर महिलाएं खुद को पर्दे में रखेंगी तो वे अन्य पुरुषों से सुरक्षित रहेंगी। महिलाएं केवल अपने पति या पिता के सामने बेपर्दा हो सकती हैं।

इसका सबसे बड़ा उदहारण हैं चित्तौड़ की रानी पद्मिनी जिनकी खूबसूरती को देख कर अलाउददीन खिलजी ने उन्हें पाने के लिए चित्तौड़ पर आक्रमण कर था। लेकिन रानी पद्मिनी ने जौहर का प्रदर्शन किया और दुश्मन के चंगुल से बचने के लिए खुद को आग के हवाले कर दिया। तब से भारत में महिलाओं को पर्दे में रखने का रिवाज शुरू हो गया।

इसी प्रकार द्रौपदी की संुदरता और उसके बडबोलेपन के कारण महाभारत जैसा विशाल युद्ध हुआ। और युद्ध के पहले भी न जाने कितने लोगों ने द्रोपदी की सुंदरता पर मोहित होकर उसे पाने के चक्कर में अपनी जान से हाथ धोना पडा था।

आज के हालात देखें तो भी यही सिद्ध होता है कि जैसे जैसे घूंघट प्रथा कम होती जा रही है, वैसे वैसे बलात्कार भी बढते जा रहे है। स्वयं स्त्रियांे ने ही अपने शरीर को नुमाइश की वस्तु बना लिया है। वे स्वयं ही ऐसे कपडे पहनने लगी है, जिनको देखकर कोई भी व्यक्ति अपनी वासना पर नियंत्रण नहीं रख पाता। उनमें भी जो मानसिक रूप से कमजोर होते है, वे उस अर्द्धनग्न स्त्री को देखकर जगी वासना को शांत करने के लिये छोटी छोटी बच्चियों तक का बलात्कार कर देते है। जबकि बच्ची का कोई दोष नही होता। दोष तो अपने शरीर का प्रर्दशन करने वाली उस अर्द्धनग्न स्त्री का होता है, जो लोगों को अपना शरीर दिखाकर लोगों की भावनाओं को भडकाती है और बलात्कार जैसा जघन्य अपराध करने पर मजबूर करती है।

यही वे स्त्रियां है जिनके कारण आज समाज में बलात्कार जैसी घटनायें देखने को मिलती है। इसका खामियाजा कुछ मासूम बच्चियों को उठाना पडता है।

मुझे ज्ञात है कि आज की कुछ ज्यादा पढी लिखी, ओवर स्मार्ट, मोडर्न लेडिज को मेरी ये बात पसंद नहीं आयेगी। परंतु यदि वे ठंडे दिमाग से निष्पक्ष रूप से सोचेगी तो शायद उनको समझ में आ जाये।

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