पांचवें भाव में गुरु का शुभ अशुभ सामान्य फल
शुभ फल : पंचमस्थ बृहस्पति होने से जातक दर्शनीय रूपवाला होता है, आखें बड़ी होती हैं। पाँचवें भाव में बृहस्पति होने से जातक आस्तिक, धार्मिक, शुद्धचित्त, दयालु तथा विनम्र होता है। जातक बुद्धिमान्, पवित्र और श्रेष्ठ होता है। वृत्ति न्यायशील होती है। महापुरुषों से पूजित योगाभ्यासी होता है। जातक उत्तम कल्पना करनेवाला, कुशल तार्किक, ऊहापोह-तर्क-वितर्क करनेवाला नैयायिक होता है। जातक की वाणी कोमल और मधुर होती है। वह उत्तम वक्ता, धाराप्रवाह बोलने वाला, तर्कानुकूल उचित बोलनेवाला, कुशल व्याख्यानदाता होता है।जातक धीर होता है, संघर्षो से मुख न मोड़ कर विपत्तियों से जूझना इसकी विशेषता मानी जाती है। वह चतुर और समझदार होता है। महान् कार्य करने वाला होता है। इसका हस्ताक्षर (हस्त लेख) बहुत दिव्य और सुंदर होता है। उत्तम लेखक होता है अर्थात् स्वप्रज्ञोद्भावित-भावपूर्णगंभीरलेख लिखने वाला होता है, अथवा एक उच्चकोटि का ग्रंथकार होता है। जातक ज्योतिष मे रुचि, कल्पनाशील, प्रतिभावान एवं नीतिविशारद होता है। अनेक विध, विद्या और विद्वानों का समागम होता है। अनेक शास्त्रों का ज्ञाता होता है। जातक उत्तम मंत्रशास्त्र का ज्ञाता होता है। जातक की बुद्धि विलास में अर्थात् आनन्द प्रमोद में रहती है। अर्थात् जातक बृहस्पति के प्रभाव से आरामतलब होता है। बहुत पुत्र होते हैं। सुखी और सुन्दर होते हैं।
पांचवे स्थान में बृहस्पति स्थित होने से जातक को गुणी और सदाचारी पुत्रों की प्राप्ति होती है। जातक के पुत्र आज्ञाकारी, सहायक होते हैं। जातक बुद्धिमान् और राजा का मंत्री होता है। विविध प्रकारों से धन और वाहन मिलते हैं। जातक की संपति सामान्य ही रहती है। अर्थात् अपने का्यर्यानुसार ही प्राप्ति होती है, अधिक प्राप्ति नहीं होती है। अर्थात् जातक की जीवनयात्रा तो अच्छी चलती हैं, किन्तु धन समृद्धि नहीं होती है, और यथा लाभ संतुष्ट रहना होता है। स्थिरधन से युक्त और सदा सुखी होता है। मनोरंजक खेल, सट्टा, जुआ, साहसी (रिस्की)काम, रेस, प्रेम प्रकरणों आदि में विजयी होता है। जातक के मित्र अच्छे होते हैं। बुद्धि शुभ होती है। अपने कुल का प्रेमी, अपने वर्ग का मुख्य अर्थात कुलश्रेष्ठ होता है। अच्छे वस्त्राभूषण पहनता है। जातक पुत्र के कमाये धन पर आराम करने वाला रहता है। धनु में होने से कष्ट से संतति होती है। ग्रंथकारों ने पंचम भावगत गुरु के शुभ फल वर्णित किये हैं। इनका अनुभव पुरुषराशियोें में प्राप्त होता है।
ALSO READ--गुरू के शुभ फल प्राप्त कीजिये इन आसान उपायों से
अशुभफल : पुत्र और कन्या का सुख नहीं होता है। अर्थात् संतानसुख नहीं होता है। पंचम भाव का गुरू कर्क, मीन, धनु तथा कुंभ में होने से पुत्र न होना अथवा थोड़े पुत्रों का होना और उनका रोगी होना" ऐसे फल का अनुभव आता है। पुत्रों के कारण क्लेशयुक्त होता है। 1. पुत्र उत्पन्न न होना भी क्लेश है, पुत्र का अभाव भी पुत्रक्लेश है। 2. पुत्र उत्पन्न होने पर नष्ट हो जावें यह भी पुत्रों से क्लेश है। 3. पुत्रों के आचरण से, व्यवहार से क्लेश उठाना पड़े, वा मन को क्लेश हो यह भी पुत्रों से क्लेश है।
बुढ़ापे में पुत्रों से कदाचित् ही सुख मिलता है। धन लाभ के समय विरोध खड़ा हो जाता है। राज्यसम्बन्धी कारण से कचहरी में धन का खर्च होता है। कार्य की फलप्राप्ति के समय इसे कुछ विघ्न प्राप्त हो जाते हैं। अर्थात् अपने किए हुए काम का पूरा फल नहीं मिलता है। पंचमस्थ गुरु निष्फल होता है' यह मत वैद्यनाथ (जातक पारिजात) का है। वृष, कर्क, कन्या, मकर, मीन तथा धनु राशियों में पंचमस्थ गुरु होने से निष्फलता का अनुभव संभव है। पंचमेश बलवान् ग्रहों से युक्त न होने से, या पापग्रह के घर में होने से, या शत्रु तथा नीचराशि में होने से पुत्र नाश होता है। अथवा एक ही पुत्रवाला होता है। पंचमेश के साथ या गुरु के साथ राहु-केतु होने से सर्प के शाप से पुत्रनाश होता है।