कुंडली के बारहवें भाव में मंगल का शुभ अशुभ फल:-
कुंडली के बारहवें भाव का कारक शुक्र है। इससे व्यय, हानि, भोग, मोक्ष, दरिद्रता, दण्ड, विदेश यात्रा पर विचार किया जाता है।
शुभ फल : जातक साहसी, हंसमुख, दृढ़शरीर, होता है। आँखें चंचल, बुद्धि चपल, और इच्छा घूमने-फिरने की होती है। गवाही देनेवाला और कामों को पूरा करनेवाला होता है। जातक, सत्यवादी, उदार, स्पष्टवक्ता और त्यागी होता है। दानी होता है। किसी संस्था का संस्थापक होता है। 26 वें वर्ष प्रसिद्धियोग बनता है। सदा विदेश जानेवाला होता है।
अशुभफल : जातक कुटिल, उग्र, क्रोधी, झगड़ालू, मूर्ख, व्ययशील एवं नीच प्रकृति का पापी होता है। मंगल द्वादशभाव में होने सेे जातक अपने कुटुम्बियों को कठोर वचन कहकर दु:खदेनेवाला, विशेष जुल्म करनेवाला और सदा परेशान रहनेवाला होता है। चुगुल और अधम होता है। वाणी कड़वी होती है। नास्तिक, निठुर-शठ और बकवासी होता है। अंगहीन, अंग (शरीर) में विकलता, अवयवों में हीनता, तेज की हानि होती है।
जातक क्रोधी, कामुक, आचारहीन, धर्मभ्रष्ट होता है। हिम्मत, हिंसकवृत्ति, अनैतिकता, और राजद्रोही प्रवृत्ति के कारण जातक अपराध करने की प्रवृत्ति होती है। जातक को शस्त्र या अन्य किसी वस्तु से चोट लग सकती है। शरीर में भी व्रण या चिन्ह हो जाते हैं। गिरपड़ना, विषबाधा होना, अपघात होना आदि का डर रहता है। बारहवें भाव में मंगल होने से नेत्ररोगी, आँखों में अधिक पीड़ा, उष्णता से आँखों का नाश, मोतियाविन्द होना इस मंगल के फल है। नेत्र व्याधि से युक्त बनाता है। सिरदर्द, रक्त विकार, गुह्यरोग, बुढ़ापे में अपचन आदि विकार होते हैं। कान और गले में तथा खून बिगड़ने से बहुत पीड़ा होती है।
बारहवें भाव का मंगल व्यक्ति को अपयश का भागी बनाता है। असफल होने के कारण कुण्ठित होना और मुर्खतावश धूर्तों के द्वारा छले जाना जातक की नियति होती है। जातक अपने अहंकार की तृप्न्ति के लिये असत्कार्यों में खर्च करने वाला होता है। जातक बुरे कामों में खर्च करता है। द्वादशभाव का मंगल धनहानि करता है। द्रव्य का नाश होता है। ऋणी, व्ययशील होता है। जातक को दूसरों के धन अपहरण करने की इच्छा होती है। चोरों से भय होता है। चोरों, डकैतों से द्रव्यहानि होती है। धनसंग्रह नहीं होता। कभी कोई पैसा उठा ले जाता है, कभी कोई उधार ले जाता है अथवा रुपया कहीं गुम हो जाता है। झगड़े हो जाते हैं, परस्पर कलह वा वैमनस्य हो जाता है। चोरी आदि का झूठा अपवाद लगता है। चुगुल झूठे कलंक लगाते हैं और झूठी अफवाहें फैलाते रहते हैं। जातक को कारावास में जाने का भय होता है। शत्रुग्रह के साथ होने से कैद होती है। कारगृहवास होता है। पराधीनताजन्य दु:ख होता है।
बारहवें भाव में मंगल हो तो स्त्रीनाशक, पत्नी घातक, स्त्रीहीन होता है। जातक परस्त्री से सम्बन्ध रखनेवाला होता है। परयुवतिगामी होता है। द्वादश भावगत मंगल का जातक प्राय: बहुभोजी तथा कामुक होता है किन्तु स्त्रीसुख कम मिलता है। एक पत्नी की मृत्यु होती है और दूसरी से विवाह करना होता है। स्त्री के बॉई ओर से किसी अवयव को आँख, काँन, पैर, या हाथ को अपघात होता है।
द्वादश भावगत मंगल भाई और संतति के लिए मारक है। संतति कम होती है। प्राय: पुत्र संतति नहीं होती। कहीं-कहीं वंशक्षयकारक भी होता है। भृगुसूत्र के अनुसार 28 वें वर्ष माता की मृत्यु होती है, तथा भाई को कष्ट होता है। जातक नौकरों के कारण दु:ख होता है। अपने मित्रों से बैर होता है। जातक मित्रों और बधुओं के साथ द्वेष करता है। जातक के चाचा की और फूफा की मृत्यु जल्दी होती है। लोगों में मान्यता नहीं मिलती। गुप्त शत्रुओं से भय होता है। मिथुन, तुला, कुंभ में अशुभ फल कुछ कम मिलते हैं। पापग्रह के साथ हो तो दाभिक होता है।
विशेष:- बारहवें भाव का मंगल व्यक्ति को प्रबल मांगलिक बनाता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति अपना जीवन स्वयं ही खराब कर लेता है।