Auspicious Results :
Generally, Sun in the first house signifies progress and good fortune. One has a tall height, pleasant eyes, a pronounced nose and a wide forehead. The person will be strong and healthy with a tendency of having gastric problems. One may suffer from a burning sensation in the stomach. One will be egoistic, confident, determined and may think on the higher level. One will be liberal at heart, may discard low quality work, be hard and judicious. One will believe in proper proof. One will be studious, intelligent, may not speak a lot and may settle or travel abroad. One will be famous in all fields and will independently attain a high position. The person will be cultured, knowledgeable and well behaved and will have a good character. One may be a frugal eater and brave. One may fight in the forefront in a battle. One may be interested in gardening.
One will be a scholar. One will attain fame.
One is highly ambitious, short tempered, desirous of lording over others, sober and not very talkative.
शुभ फल :
साधारणतया लग्न में रवि प्रगति तथा भाग्योदय का पोषक होता है। जन्मलग्न में सूर्य
होने से जातक लम्बे ऊंचे कद का, सुहावनी आँखोंवाला, उन्नत नासिका और विशाल ललाटवाला होता है। जातक बलवान्, नीरोग होता है - पित्त प्रकृति का होता है। उदर
उष्ण रहता है। जातक स्वाभिमानी, आत्मविश्वासी, दृढ़निश्चयवाला,
ऊँचे विचारों का, स्वाभिमानी होता है। उदार हृदय का, हल्के कामों का तिरस्कार करनेवाला, कठोर, न्यायी और प्रामाणिक होता है। जातक मेधावी, तीक्ष्ण बुद्धि, अल्पभाषी, जन्म से ही सुखी तथा प्रवासी या परदेश में जाने
वाला होता है। सब कामों में यशस्वी, स्वतंत्रता से ऊँची जगह पाने वाला होता है। सुशील, ज्ञान और आचार में मग्न, सदाचारी होता है। कम खानेवाला, शूरवीर, युद्ध में आगे होकर लड़नेवाला होता है।
लग्नस्थित सूर्य का जातक बाग-बगीचों का शौकीन होता है। स्त्री
राशि का रवि संसारिक रुप से सुखदायी होता है। रवि पृथ्वी राशि (2, 6, 10) में होने से जातक घमण्डी, दुराग्रही और सनकी होता है। दक्षिणायन रवि
(कर्क से धनु राशि तक) भाग्यवान् बनाता है। दैवी वृत्तियाँ बढ़ोत्री पाती हैं।
Inauspicious Results :
One may be exploited by the opposite sex, have wicked children, wander around in the market or gardens and may be charmed by prostitutes. One may be lazy at work, wicked and unforgiving. One may suffer from gastric problems and may have a weak physique. The person may be ailing in childhood. One may have some problems with one's eyes which will remain dry. Sun in the lagna brings ailments. Eye problems, headaches, gastric problems, blood infection, frequent urination and premature ejaculation may occur. One may travel abroad and lose money in business there. One's financial fortunes will fluctuate and one will at times be comfortable with money and at times face a shortage of money. The person may have a few children. Due to some extra-terrestrial influences, one may not have a son or a grandson. One may be weak and spoilt by the opposite sex. The person may work for lowly people. One does not stay at one place and is always wandering. One will be short tempered, callous, energetic and have a weak physique. One may have scanty hair. One may be troubled by one's spouse, son, family, friends and relatives.
Life may be slightly troublesome.
There may be eye ailments or night blindness.
One may suffer from fever in the third year. If the aspect of a benefic graha falls on the Sun, then fever will not occur.
There may be quarrels, conflicts and increase in selfishness. The desire to keep one's ego intact prevails.
अशुभ फल : जिसके
जन्मलग्न में सूर्य हो वह जातक स्त्रियों से दूषित, दुष्टसंतानवाला, बाजार और वाटिका में टहलनेवाला और वेश्या में
आसक्त रहनेवाला होता है। कार्य करने में आलसी, क्रूर और क्षमा न करने वाला होता है। शरीर
वात-पित्त की व्याधि से पीडि़त होता है। अत: कृशकाय होगा। बाल अवस्था में रोगी
होता है। जातक की आँखों के विकार होते हैं। नेत्र रूखे होते हैं।
रवि लग्न में रोगी बनाता है, चक्षुरोगी, सिर दर्द, वायु विकार, रक्तविकार, गुल्मरोग, वस्ति संबंधित रोग, वीर्य क्षय एवं बहुमूत्रता जैसे रोग प्रदान
करता है। परदेश में जाता है और विदेश में व्यापार से धन की क्षति होती है। अस्थिर
सम्पत्ति वाला अर्थात धन का सुख कभी उत्तम रहता है और कभी धन का कष्ट भी बढ़कर
रहता है। रवि लग्न में हो तो संतति कम होती है। दैववशात् पुत्र और पोैत्र नहीं
होते । लग्नस्थित सूर्य का जातक अशक्त, स्त्रियों से दूषित होता है। नीच लोगों की नौकरी करता है।
जातक एक जगह घर बसाकर नहीं रहता है और हमेशा भटकता फिरता है।
सूर्य मकर राशि में होने से जातक को हृदय रोग
होता है। सूर्य का पापग्रह के साथ
सम्बन्ध होने से अथवा शत्रुक्षेत्री वा नीचेक्षत्री हाने से जातक को तीसरे वर्ष
ज्वरपीडा़ होती है। यदि इस सूर्य पर शुभग्रह की दृष्टि हो तो ज्वरपीड़ा नहीं होती।
उत्तरायण (मिथुन से धनु तक) का रवि-लड़ाई-झगड़े, अपना स्वत्व कायम करने की प्रवृत्ति आदि
स्वार्थता को बढ़ावा देता है।