Wednesday 3 October 2018

श्राद्ध में पितरों तक आपका भोग पहुंचते है सूर्य -चंद्र। जानिए कैसे

Posted by Dr.Nishant Pareek
श्राद्ध को लेकर अनेक लोग बहुत से कुतर्क करते है। ब्राह्मण भोजन के बारे में मजाक बनाते है। कहते है कि ब्राह्मण का मुख पोस्ट ऑफिस का डिब्बा है। जिसमें लेटर डाला और पहुंच गया। इन प्राचीन परम्पराओं का मजाक बना कर लोग खुद को मॉडर्न समझते है। लेकिन कुछ आधुनिक विद्वानों ने इस सभी बातों को निराधार साबित करके श्राद्ध के विषय में वैज्ञानिक तर्क प्रस्तुत किये है। जिनमें ग्रहों की प्रमुख भूमिका है। देव सृष्टि का मूल आधार सूर्य है। और पितृ सृष्टि का मूल आधार चन्द्रमा है। हमारा मूल आधार पृथ्वी है। मानव शरीर की रचना में भी ये ही तत्व विधमान रहते है। बाएं कंधे से कटि तक उत्तरायण , और  दायां भाग दक्षिणायन है जो सूर्य चन्द्रमा का द्योतक है। विषुव मेरुदंड है। सूर्य की परमा क्रांति के अंश 24 माने गए है। और हमारी पसलियां भी 24 ही है। मंगल आदि अन्य ग्रह भी शरीर के अलग अलग स्थानों पर अधिकार बनाये हुए है।  मरने के बाद पितृ प्राण चन्द्रमा से सम्बद्ध है।  चन्द्रमा के ऊपर वाले भाग से प्रेत पिंडों का अटूट संबंध है। उनको भौतिक पिंडदान द्वारा निश्चित रूप से तृप्त किया जा सकता है। श्राद्ध कर्म पार्वण , एकोदिष्ट, महालय आदि भेद से अनेक तरह के होते है। अमावस्या को प्रतिमास होने वाला श्राद्ध पार्वण श्राद्ध है। वार्षिक तिथि पर होने वाला श्राद्ध एकोदिष्ट है। पितरों की निवास भूमि चन्द्रमण्डल ही है। इसी क्रम में आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से अमावस्या तक कन्या का सूर्य में महालय श्राद्ध विशेष महत्त्व रखता है। भाद्रपद शुक्ल तेरस को गजच्छाया योग आरम्भ होता है। और उसी दिन से पितृ पृथ्वी पर आने लगते है। और कार्तिक कृष्ण अमावस्या को वापस लौट जाते है।



                                 प्रतिपदा से अमावस्या तक वेदविज्ञ ब्राह्मण को बुला के श्राद्ध सम्पन्न करने का विधान शास्त्रों में है। विद्वान् ब्राह्मण के शरीर में सर्वदेवमूर्ति सांतपन अग्नि विधमान होती है। पुत्र द्वारा श्रद्धा से दिया हुआ भोजन ब्राह्मण द्वारा पितृ तृप्ति का कारण बनता है। परलोक जाते हुए पितरों पर याम्य , श्याव ,शबल , नामक श्वा प्राणों का हमला होता है। कुत्ता , कौआ आदि इसलिए ही श्राद्ध कर्म के मुख्य पात्र माने जाते है। श्वान आदि की तृप्ति से पितरों के प्रति हिंसक भाव समाप्त हो जाता है। और पितृ तृप्त हो जाते है। प्रसन्न होकर हमें आशीर्वाद देते है।
                                 पुत्रत्व ही तभी सार्थक होता है , जब पुत्र अपने जीवित माता पिता की सेवा करते हुए मरने के बाद मृत्यु तिथि पर उनका श्राद्ध करे। गया में पिंड दान करे। चतुर्दशी विद्ध अमावस्या सिनीवाली होती है तथा प्रतिपदा विद्ध अमावस्या कुहू कहलाती है। श्राद्ध के लिए दर्श संज्ञका अच्छी मानी जाती है। चतुर्दशी को मरे हुए लोगो का श्राद्ध अमावस्या को होता है। और शस्त्र , सांप काटने से मरे , दुर्घटना , जहर खा कर, आत्महत्या आदि से मरे लोगों का श्राद्ध चतुर्दशी को होता है। चाहे वे किसी भी तिथि को मरे हो। पूर्णिमा को मरे हुए का श्राद्ध द्वादशी या अमावस्या को करना चाहिए। - ज्योतिष विज्ञान निर्झरी।
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