श्राद्ध के दिन किस प्रकार तैयारी करनी चाहिए। कार्य को कैसे आरम्भ करना। यह भी बहुत जरुरी जानकारी है।
सबसे पहले श्राद्ध करने वाली जगह और जिन बर्तनों में श्राद्ध का भोजन और पूजन होगा ,उन्हें गोबर से शुद्ध कर लेना चाहिए। देवता , ब्रह्मचारी, सन्यासी, और बालक को पिंडदान होने तक भोजन नहीं देना चाहिए। छोटे बच्चों को दूसरे के घर से भोजन लेकर करवाना चाहिए। जिस जगह श्राद्ध करना है , उस जगह तिल बिखेरने चाहिए। श्राद्ध का सारा भोजन खुद ही बनाना चाहिए। यदि खुद न बनाये तो किसी शुद्ध स्त्री से बनवाना चाहिए। शुद्ध स्त्री न हो तो अपने बंधुओं, अपने गोत्र वालों से ,सपिण्ड वालों से, अच्छे गुण वाले मित्रों से बनवाना चाहिए।
जारिणी , बंध्या , विधवा , दूसरे गोत्र में उत्पन्न , श्राद्ध करने वाले के माता पिता के वंश में नही जन्मने वाले से खाना नहीं बनवाना चाहिए। पुत्री ,गर्भवती ,दुर्मुखी , से खाना नहीं बनवाना चाहिए।
खाना बनाने वाले बर्तन सोना , चांदी , तांबा , और कांसी , के होने चाहिए। मिटटी के बर्तन हो तो नवीन खरीदने चाहिए। लोहे के बर्तन में श्राद्ध का भोजन कभी नहीं बनाना चाहिए। बना हुआ खाना लकड़ी के बर्तन में भी रख सकते है। गृह्यग्नि पर या लौकिक अग्नि पर श्राद्ध का भोजन पकाना चाहिए। और जिस अग्नि पर भोजन बनाया है , उसी अग्नि से हवन करना चाहिए।
श्राद्ध कर्ता और ब्राह्मण के लिए नियम -
श्राद्ध करने वाले के द्वारा ब्राह्मण को निमंत्रण देने के दिन से श्राद्ध पूर्ण होने वाले दिन तक यजमान और ब्राह्मण से लिए शास्त्रों में कुछ नियम बताएं गए है। जिनका पालन करना आवश्यक है।
इस काल में सम्भोग , दूसरे भोजन , झूठ बोलना , पढ़ाना , जुआ खेलना , परिश्रम करना , बोझा उठाना , हिंसा , दान , प्रतिग्रह , चोरी , रस्ते पर चलना , दिन में सोना, झगड़ा करना , आदि कर्म नहीं करने चाहिए।
यजमान को श्राद्ध के दिन और उससे एक दिन पहले सम्भोग करना , पान खाना , दाढ़ी बनवाना , तेल लगाना , मंजन करना , ये सब नहीं करना चाहिए।
भोजन करने वाले ब्राह्मण को तेल की मालिश , दाढ़ी बनवाना, साबुन लगाना , ये नहीं करना चाहिए। इस प्रकार श्राद्ध करने से हमारे पितृ प्रसन्न होकर हमें धन धान्य की पूर्ति करते है।
सबसे पहले श्राद्ध करने वाली जगह और जिन बर्तनों में श्राद्ध का भोजन और पूजन होगा ,उन्हें गोबर से शुद्ध कर लेना चाहिए। देवता , ब्रह्मचारी, सन्यासी, और बालक को पिंडदान होने तक भोजन नहीं देना चाहिए। छोटे बच्चों को दूसरे के घर से भोजन लेकर करवाना चाहिए। जिस जगह श्राद्ध करना है , उस जगह तिल बिखेरने चाहिए। श्राद्ध का सारा भोजन खुद ही बनाना चाहिए। यदि खुद न बनाये तो किसी शुद्ध स्त्री से बनवाना चाहिए। शुद्ध स्त्री न हो तो अपने बंधुओं, अपने गोत्र वालों से ,सपिण्ड वालों से, अच्छे गुण वाले मित्रों से बनवाना चाहिए।
जारिणी , बंध्या , विधवा , दूसरे गोत्र में उत्पन्न , श्राद्ध करने वाले के माता पिता के वंश में नही जन्मने वाले से खाना नहीं बनवाना चाहिए। पुत्री ,गर्भवती ,दुर्मुखी , से खाना नहीं बनवाना चाहिए।
खाना बनाने वाले बर्तन सोना , चांदी , तांबा , और कांसी , के होने चाहिए। मिटटी के बर्तन हो तो नवीन खरीदने चाहिए। लोहे के बर्तन में श्राद्ध का भोजन कभी नहीं बनाना चाहिए। बना हुआ खाना लकड़ी के बर्तन में भी रख सकते है। गृह्यग्नि पर या लौकिक अग्नि पर श्राद्ध का भोजन पकाना चाहिए। और जिस अग्नि पर भोजन बनाया है , उसी अग्नि से हवन करना चाहिए।
श्राद्ध कर्ता और ब्राह्मण के लिए नियम -
श्राद्ध करने वाले के द्वारा ब्राह्मण को निमंत्रण देने के दिन से श्राद्ध पूर्ण होने वाले दिन तक यजमान और ब्राह्मण से लिए शास्त्रों में कुछ नियम बताएं गए है। जिनका पालन करना आवश्यक है।
इस काल में सम्भोग , दूसरे भोजन , झूठ बोलना , पढ़ाना , जुआ खेलना , परिश्रम करना , बोझा उठाना , हिंसा , दान , प्रतिग्रह , चोरी , रस्ते पर चलना , दिन में सोना, झगड़ा करना , आदि कर्म नहीं करने चाहिए।
यजमान को श्राद्ध के दिन और उससे एक दिन पहले सम्भोग करना , पान खाना , दाढ़ी बनवाना , तेल लगाना , मंजन करना , ये सब नहीं करना चाहिए।
भोजन करने वाले ब्राह्मण को तेल की मालिश , दाढ़ी बनवाना, साबुन लगाना , ये नहीं करना चाहिए। इस प्रकार श्राद्ध करने से हमारे पितृ प्रसन्न होकर हमें धन धान्य की पूर्ति करते है।