Sunday, 23 September 2018

श्राद्ध से जुड़ी आपकी सभी जिज्ञासाओं को शांत कीजिये इस शास्त्र प्रमाणित विस्तृत लेख से। इस तरह श्राद्ध कीजिये , बरसने लगेगी आपके पितरों की कृपा।

Posted by Dr.Nishant Pareek
                             श्राद्ध के विषय में लोगों में बहुत जिज्ञासा रहती है कि अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्राद्ध किस प्रकार किया जाये , जिससे कि वे हमें सुख शांति का आशीर्वाद प्रदान करते रहे।  सभी लोग अपनी मन मर्जी अथवा अपनी सुविधा के अनुसार श्राद्ध को सम्पन्न करते है। श्राद्ध कोई सुबह निकलता है तो कोई दोपहर में तो कोई शाम को। किसी भी व्यक्ति को श्राद्ध खिला देते है , और समझ लेते है कि हमारा कार्य पूर्ण हुआ और हमारे पितृ प्रसन्न हो गए। जबकि ऐसा नहीं है। जब तक शास्त्रोक्त विधि से श्राद्ध सम्पन्न नहीं होता , तब तक पितृ प्रसन्न नहीं होते। और उनका आशीर्वाद नहीं मिलता। जिसके फलस्वरूप हमारे घर में अनेक प्रकार की परेशानियां बनी रहती है। कोई न कोई मुसीबत हमेशा खड़ी रहती है। इसका कारण यह होता है कि सामान्य लोगों को शास्त्र पढ़ने का मौका नहीं मिलता है या उन्हें कोई सही विधि बताने वाला नहीं होता। इस कारण वे खुद के हिसाब से श्राद्ध करके निवृत हो जाते है।
                            तो आज मैं आपकी श्राद्ध संबंधी सभी जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए प्रस्तुत हुआ हूँ।  श्राद्ध के परिचय से लेकर श्राद्ध के भेद, अर्थ , स्थान , उचित समय , उचित ब्राह्मण , काम में आने वाले पदार्थ, नहीं  काम में आने वाले पदार्थ , ऐसे सभी प्रकार के प्रश्नों का शास्त्रोक्त विवेचन इस लेख क्रम में दिया जायेगा। यह विषय बहुत विस्तृत है।  इसलिए एक बार में पूरा विवरण नहीं आयेगा।  इसलिए यह जानकारी आपको अनेक भागों में , अनेक लेखों में प्राप्त होगी।  आप जुड़े रहिये और श्राद्ध के पावन माह में प्रमाणित श्राद्ध विधि से अपने पितरों का विधि पूर्वक श्राद्ध करके उनकी कृपा प्राप्त कीजिये।  धन्यवाद।
                                                                                                             " डॉ निशान्त पारीक"


श्राद्ध का अर्थ:-
                            मृत पूर्वजों को उद्देश्य करके विहित काल और देश (स्थान) में  पक्वान , द्रव्य आदि का विधि पूर्वक दान करना ही श्राद्ध कहलाता है। इसमें अग्नौ करण , पिंडदान , और ब्राह्मण भोजन मुख्य है। इसलिए यह भी कहा है कि होम , पिंडदान , ब्राह्मण भोजन , ये तीन कर्म मिलकर जो विशेष कर्म होता है। वह श्राद्ध कहलाता है। यजुर्वेदियों का पिंडदान श्राद्ध होता है। ऋगवेदियों का ब्राह्मणों का पूजन ही श्राद्ध है। और सामवेदियों का पिंडदान और ब्राह्मण पूजन ही श्राद्ध है।
और पितर नहीं है , ऐसा कहकर अश्रद्धा से श्राद्ध नहीं करने वाले मनुष्य के पितर रक्त पीते है।
                                                                                          (धर्म सिंधु तृ.परि.उत्तरार्ध , भाग -३)

सामान्य भाषा में कहें तो अपनी शुद्ध भावना से अपने पितरो  के प्रति हवन और ब्राह्मण भोजन करवाना ही श्राद्ध कहलाता है। इससे अपने पितरो को संतुष्टि और पुष्टि प्राप्त होती है। और वे संतुष्ट होकर अपने परिवार जनों को धन धान्य से परिपूर्ण करते है।




 श्राद्ध के भेद :-  
                           श्राद्ध चार प्रकार का होता है।-
  1. पार्वण श्राद्ध- पिता , पितामह और प्रपितामह अर्थात अपने पिता , अपने दादाजी और अपने परदादाजी को लक्ष्य करके तीन पिंडों से किया गया श्राद्ध पार्वण श्राद्ध कहलाता है। 
  2. एकोद्दिष्ट श्राद्ध- किसी एक के उद्देश्य से एक पिंड से किया गया श्राद्ध एकोदिष्ट श्राद्ध कहलाता है।
  3. नांदी श्राद्ध- पुत्र जन्म , विवाह , आदि में करने वाला वृद्धि श्राद्ध नान्दी श्राद्ध कहलाता है। यहाँ प्रत्येक शुभ कार्य में अवश्य किया जाना चाहिए।
  4. सपिंडीकरण श्राद्ध- मृतक का बारहवाँ दिन जो श्राद्ध किया जाता है , वह सपिंडीकरण श्राद्ध कहलाता है। 

श्राद्ध करने का स्थान :-
                                  श्राद्ध करने के लिए शास्त्रों में शुद्ध और पवित्र स्थान निश्चित किया है। कहा है कि दक्षिण दिशा में नीची , गोबर से लीपी हुई , कीड़ा , हड्डी , बाल , कफ , आदि से वर्जित , कृत्रिम पृथ्वी से वर्जित , रजस्वला स्त्री की छाया से वर्जित , ऐसी शुद्ध भूमि पर श्राद्ध करना चाहिए। पवित्र स्थानों  में कुरुक्षेत्र, प्रभास , पुष्कर , प्रयाग , काशी , गंगा , यमुना , नर्मदा ,आदि नदियों के किनारे , नैमिषारण्य , गंगाद्वार , गयाजी ,अक्षयवट आदि में किया गया श्राद्ध बहुत फल देता है। 

अर्थात - जिस भूमि पर श्राद्ध किया जाये वह दक्षिण दिशा में नीची होनी चाहिए। गोबर से लीपी हुई हो।  भूमि पर कोई कीड़ा , हड्डी , बाल या कफ बिखरा नहीं होना चाहिए। वह स्थान कच्ची मिटटी का  बना हुआ हो , और गोबर से लीपा हुआ हो।  किसी तरह की टाइल , या सीमेंट का बनावटी फर्श नहीं होना चाहिए। स्थान शुध्द करने के बाद उस स्थान के आस पास भी रजस्वला स्त्री नहीं जानी चाहिए। ऐसा स्थान श्राद्ध के लिए उत्तम होता है।

अगले लेख में जानिए श्राद्ध करने का शुभ समय , श्राद्ध में उत्तम अर्थात श्राद्ध में कैसे ब्राह्मण बुलाने चाहिए।  
                     
                 
                             
     
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