Tuesday 28 November 2017

जानिए ज्‍योतिष एवं वास्‍तु का सम्‍बन्‍ध -

Posted by Dr.Nishant Pareek
  ज्‍योतिष तथा वास्‍तुशास्‍त्र परस्‍पर एक-दूसरे से जुडे हुये है। दूसरे शब्‍दों में हम यह कह सकते है कि दोनों एक दूसरे के अभाव में पूरक है। वास्‍तुशास्‍त्र तो पूर्णतया ज्‍योतिष पर ही आधारित है। ज्‍योतिषशास्‍त्र के अभाव में वास्‍तुशास्‍त्र की कल्‍पना भी नहीं की जा सकती। वास्‍तुशास्‍त्र का प्रारम्‍भ एवं समापन ज्‍योतिष से ही होता है। यथा - यदि हम गृह-निर्माण का विचार मात्र भी करते है तो वास्‍तुशास्‍त्र के अनुसार सर्वप्रथम दिक्साधन, मेलापक आयादि विचार करने के पश्‍चात् भूमि परीक्षण एवं शोधन कर भूमि पूजन करके गृहनिर्माण प्रारंभ किया जाता है। ग्रामवास, काकिणी, मेलापक, दिक्‍साधन आदि सभी विचार ज्‍योतिषशास्‍त्र पर ही आधारित है।



         गृहनिर्माण प्रारंभ होने के बाद भी ज्‍योतिष अपना कार्य करता है। द्वार-दिशा का निर्धारण, द्वार-स्‍थापन का मुहूर्त्त, आच्‍छादन मुहूर्त्त, आदि विभिन्‍न मुहूर्त्तो के पश्‍चात् गृह प्रवेश, वास्‍तु पूजन, वास्‍तुशांन्ति, इत्‍यादि कर्म भी ज्‍योतिष के आधार पर किये जाते है। अत: हम यदि यह कहे कि ज्‍योतिष के अभाव में वास्‍तुशास्‍त्र पंगु है, वह एक कदम चलने में भी असमर्थ है तो अतिश्‍योक्ति नहीं होगी। यदि कोई व्‍यक्ति वास्‍तुशास्‍त्र के विरूद्ध बने हुये भवन में निवास करता है तो वह व्‍यक्ति उन्‍नति करते हुये भी मानसिक तनाव एवं अन्‍य दु:खों से ग्रस्‍त रहेगा। जब उस व्‍यक्ति के ग्रह कमजोर होंगे तो वास्‍तु के विरूद्ध भवन में रहना उसको दु:ख देने वाला ही होता है। इसके विपरित यदि वही व्‍यक्ति वास्‍तुशास्‍त्र के नियमों के अनुसार बने हुये मकानों में निवास करता है एवं उसके ग्रह निर्बल होते है तो उसे ग्रह दोष के द्वारा जिन व्‍याधियों का सामना करना पड़ता है वह वास्‍तुशास्‍त्र के अनुकूल भवन में निवास करने से दुर्बल ग्रहों के दुष्‍परिणामों से बच सकता है।

भूमि का कारक मंगल ग्रह है और प्रत्‍येक व्‍यक्ति की जन्‍मपत्रिका का चौथा भाव भूमि एवं ग्रह से संबंध रखता है। गृह हेतु चौथे भाव का स्‍वामी केन्‍द्र त्रिकोण में होना आवश्‍यक है। इसके साथ ही जन्‍म पत्रिका में मंगल की स्थिति भी अच्‍छी होनी चाहिये।

        जन्‍मपत्रिका में चौथे भाव का स्‍वामी यदि दसवें भाव में तथा दशमेश चतुर्थ स्‍थान में हो और मंगल बलवान हो तो ऐसा व्‍यक्ति अनेक वास्‍तुओं का स्‍वामी होता है। तीसरे भाव के कारक मंगल के साथ चौथे भाव का स्‍वामी बैठा हो तो ऐसी स्थिति में अपने भाई से ही भूमि प्राप्‍त होती है। द्वितीय तथा एकादश भाव के स्‍वामी चौथे भाव में हो और चतुर्थ भाव का स्‍वामी शुभ ग्रहों से युक्‍त या दृष्‍ट हो तो ऐसे व्‍यक्ति को प्रचुर धन सहित उत्तम वास्‍तु का लाभ होता है। चतुर्थेश के नवांश का स्‍वामी जिस राशि में हो उसी राशि के स्‍वामी नवांश का स्‍वामी केन्‍द्र स्‍थान में हो तो वास्‍तु का लाभ मिलता है। लग्‍न का स्‍वामी चौथे भाव में हो और चतुर्थेश लग्‍न में हो तो यह योग गृहलाभ कराता है। चतुर्थेश अपनी राशि का हो और बलवान होकर दशम तथा एकादश भाव में शुभ ग्रहों से दृष्‍ट हो तो ऐसे व्‍यक्ति को प्रचुर मात्रा में भूमि की प्राप्ति होती है।
      चौथा और चौथे भाव का स्‍वामी यह दोनों शुभ ग्रहों से युक्‍त हो तो ऐसा व्‍यक्ति अनेक वास्‍तुओं का स्‍वामी होता है। स्त्रियों का कारक ग्रह शुक्र होता है। यही शुक्र सुख भाव में और सुख भाव के स्‍वामी सातवें स्‍थान में गया हो और यह दोनों आपस में मित्र ग्रह हो तो स्‍त्री द्वारा वास्‍तु की प्राप्ति होती है। लग्‍न तथा चौथे भाव का स्‍वामी दोनों चतुर्थ में हो तो अचानक वास्‍तु का लाभ होता है। यदि यह दोनों ही लग्‍न में हो और अपने उच्‍च तथा अपनी राशि में होकर शुभ ग्रह से दृष्‍ट हो तो उस व्‍यक्ति को अनायास ही वास्‍तु लाभ होता है। षष्‍ठ भाव का स्‍वामी चौथे भाव में और चौथे भाव का स्‍वामी छठें स्‍थान में

गया हो और छठे भाव के स्‍वामी से चतुर्थेश अधिक बलवान हो तो ऐसे व्‍यक्ति को शत्रु द्वारा वास्‍तु की प्राप्ति होती है। चतुर्थ भाव का स्‍वामी बलवान होकर केन्‍द्र में शुभ ग्रहों से दृष्‍ट हो तो ऐसे व्‍यक्ति को घर का लाभ मिलता है।

        इस प्रकार हम यह कह सकते है कि ज्‍योतिष तथा वास्‍तुशास्‍त्र में प्रगाढ़ सम्‍बन्‍ध है।

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