Thursday 23 November 2017

नारद पुराण में ज्‍योतिष

Posted by Dr.Nishant Pareek
                     पुराणों में जनसामान्‍य हेतु अनेक प्रमुख विद्याओं का वर्णन है। जिनमें ज्‍योतिष और वास्‍तु महत्त्‍वपूर्ण हैं। मुख्‍यत: अग्निपुराण, गरुड पुराण तथा नारद पुराण में इनका वर्णन है। इन विद्याओं का वर्णन इनके प्रतिपादक मौलिक ग्रन्‍थों के आधार पर किया गया है। परन्‍तु यह प्रामाणिक है। पुराणों में इन विद्याओं के आचार्यो के नाम भी दिये गये है। जो कि अज्ञात अथवा अल्‍पज्ञात है। अत: संस्‍कृत के वैज्ञानिक साहित्‍य का भी परिचय पुराणों के गम्‍भीर अध्‍ययन से सर्वथा सुलभ है। इसी दृष्टि से भी पुराणों का अध्‍ययन लोकोपकारी तथा कल्‍याणकारी है।        
                     नारद पुराण में चार लाख श्‍लोक वाले त्रिस्‍कन्‍ध ज्‍योतिष का बहुत ही विस्‍तृत रूप में वर्णन है। इसके विषय में कहा गया है कि मनुष्‍य को इसके ज्ञान मात्र से ही धर्म की सिद्धि हो सकती है। इस ज्‍योतिष शास्‍त्र के तीन स्‍कन्‍ध बतायें है - 1. गणित, जातक, संहिता। परन्‍तु कुछ विद्वानों ने इन्‍हें पञ्च स्‍कन्‍ध माना है, जिनमें स्‍वर और सामुद्रिक शास्‍त्र की सम्मिलित किया है। परन्‍तु मुख्‍य रूप से इस शास्‍त्र के तीन ही स्‍कन्‍ध है।
                                     नारद पुराण में ज्‍योतिषास्‍त्र के तीनों प्रमुख स्‍कन्‍धों की पृथक-पृथक विस्‍तृत व्‍याख्‍या है। सर्वप्रथम गणित स्‍कन्‍ध का वर्णन है, जिसमें परिकर्म, ग्रहों के मध्‍यम एवं स्‍पष्‍ट करने की क्रिया, देश, दिशा तथा काल का ज्ञान, चन्‍द्रग्रहण, सूर्यग्रहण उदय, अस्‍त छायाधिकार, चन्‍द्र श्रृङ्गोन्‍नति, ग्रहयुति तथा सूर्य-चन्‍द्रमा के (महापात) क्रान्तिसाम्‍य का वर्णन है।      





तत्‍पश्‍चात् जातक स्‍कन्‍ध है, जिसमें राशि भेद, ग्रहयोनि (ग्रहों के जाति, रूप, गुण, आदि) वियोनिज (मानवेतर जन्‍मफल), गर्भाधान, जन्‍म, अरिष्‍ट, आयुर्दाय, दशाक्रम, आजीविका, अष्‍टकवर्ग, राजयोग, नाभसयोग, चन्‍द्रयोग, प्रव्रज्‍यायोग, राशिशील, ग्रहदृष्टिफल, ग्रहों के भावफल, आश्रययोग, प्रकीर्ण अनिष्‍ट योग, स्‍त्री-जातक फल, मृत्‍यु विषयक विचार, नष्‍ट-जन्‍म विधान (अज्ञात जन्‍मकाल को जानने की क्रिया) तथा द्रेष्‍काणों के स्‍वरूप का वर्णन है।

                                      इसके बाद संहिता स्‍कन्‍ध का वर्णन है। उसमें ग्रहचार (ग्रहों की गति) वर्ष लक्षण, तिथि, दिन, नक्षत्र, योग, करण, मुहूर्त्त, उपग्रह, सूर्य-संक्रान्ति, ग्रह गोचर, चन्‍द्रमा तथा तारा का बल, सम्‍पूर्ण लग्‍नों का बल, तथा ऋतु दर्शन का विचार, गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्‍तोन्‍नयन, जातकर्म, नामकरण, अन्‍नप्राशन, चूडाकरण, कर्णवेध, उपनयन, वेदारम्‍भ, क्षुरिकाबन्‍धन, समावर्तन, विवाह, प्रतिष्‍ठा, ग्रहलक्षण, यात्रा, गृहप्रवेश, तत्‍काल वृष्टिज्ञान, कर्मवैलक्षण्‍य तथा उत्‍पत्ति के लक्षण का विचार किया गया है।
       
 इस प्रकार नारद पुराण में त्रिस्‍कन्‍ध ज्‍योतिष शास्‍त्र का सम्‍पूर्ण वर्णन प्राप्‍त होता है। जिसके अध्‍ययन से हमारे समक्ष ज्‍योतिषशास्‍त्र पूर्णरूप से पारदर्शी हो जाता है।
Powered by Blogger.