Sunday, 5 March 2017

संतान प्राप्ति योग

Posted by Dr.Nishant Pareek
संतान प्राप्ति योग :-

                 संतान सुख के बिना वैवाहिक जीवन पूर्ण नही होता।  अनेक विवाह सम्बन्ध संतान नही होने के कारण टूट जाते है।  अथवा घर में प्रतिदिन झगड़े होते रहते है।  पुराने ज़माने में तो लोग बाँझ स्त्री का मुख भी नही देखते थे।  विवाह के बाद बहुत समय तक यदि सन्तान न हो तो दाम्पत्य सुख में कमी आने लगती है।  यदि विवाह से पहले ही कुंडली मिलते समय इस बात का विचार कर लिया जाये तो आगे आने वाली परेशानी से बचा जा सकता है।

  • यदि कुंडली में पंचम भाव का स्वामी गुरु बलवान हो तथा लग्नेश की गुरु पर दृष्टि हो तो जातक के संस्कारी संतान होती है।  
  • यदि पंचमेश बली होकर लग्न , पंचम , सप्तम , अथवा नवम , भाव में बैठा हो और कोई पापी ग्रह का प्रभाव न हो तो संतान प्राप्त होती है। 
  • यदि पंचम में गुरु या  शुक्र बैठे  हो तथा पंचमेश शुभ ग्रह के साथ अथवा उससे देखा जाता हो तो संतान का पूर्ण सुख मिलता है।  
  • यदि लग्नेश पंचम भाव में हो तथा गुरु व पंचम भाव का स्वामी बलवान हो तो विवाह के तुरन्त बाद पुत्र होता है।  
  • पंचम भाव में गुरु हो तथा किसी पाप ग्रह का प्रभाव न हो तो जातक के पहला पुत्र होता है।  
  • पंचमेश यदि उच्च राशि का हो तथा कोई पाप ग्रह का प्रभाव न हो तो विवाह के बाद जल्दी ही सन्तान होती है। 



  • यदि सूर्य मंगल या गुरु पंचमेश हो तथा बली होकर विषम राशि के नवांश में हो तो पुत्र योग होता है।  
  • यदि पंचम अथवा नवम भाव में चन्द्र वृष या तुला राशि में हो तो पुत्र योग होता है। 
  • लग्न में पाप ग्रह हो तथा पंचम में चन्द्र व शुक्र हो तो पहली कन्या सन्तान होती है।  
  • यदि चन्द्र मंगल और शुक्र द्विस्वभाव राशि में हो तो पहले पुत्र होता है।  
  • पंचम भाव में यदि चन्द्रमा कर्क राशि में हो तो कम संतान होती है।  
  • यदि लग्नेश पहले दूसरे या तीसरे भाव में हो तो पहले पुत्र की सम्भावना होती है।  
  • यदि पंचम भाव में बुध हो तथा उस पर चन्द्रमा या शुक्र की दृष्टि हो तो कन्या सन्तान अधिक होती है।  
  • यदि वृष राशि का चन्द्रमा चौथे या पांचवे भाव में हो तो भी कन्या सन्तान अधिक होती है।  
  • यदि पंचम भाव का स्वामी दूसरे या आठवें भाव में हो तथा पांचवे भाव पर चन्द्र बुध या शुक्र की दृष्टि हो तो भी कन्या संतान होती है।  
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