दाम्पत्य जीवन में ग्रह युति का फल :-
दाम्पत्य जीवन में अन्य ग्रह युतियों का भी बहुत प्रभाव पड़ता है। इसलिए वैवाहिक जीवन की पूर्ण सफलता के लिए इन ग्रह युतियों का अध्ययन करना भी बहुत आवश्यक है। :-
दाम्पत्य जीवन में अन्य ग्रह युतियों का भी बहुत प्रभाव पड़ता है। इसलिए वैवाहिक जीवन की पूर्ण सफलता के लिए इन ग्रह युतियों का अध्ययन करना भी बहुत आवश्यक है। :-
- शुक्र - मंगल युति:- शुक्र सौन्दर्य , भावनाएं , भोग , यौन सम्बन्ध , व वीर्य का प्रमुख कारक है। मंगल साहस शक्ति व तेज का मुख्य कारक है। तथा महिला में रज और पुरुष में वीर्य का अधिष्ठाता है। इसलिए इन दोनों की युति कुंडली में मुख्य भूमिका निभाती है। कुंडली मिलते समय भी इनका विशेष विचार करना चाहिए।
- मंगल - शनि युति :- कुण्डली में मंगली भाव अर्थात पहले चौथे सातवें आठवें तथा बारहवें में मंगल शनि की युति दाम्पत्य जीवन के लिए शुभ नही है। या इन्ही भावों में दोनों का एक दूसरे को देखना भी अशुभ होता है। सुखी वैवाहिक जीवन के लिए दोनों की कुंडली में ग्रहों का सन्तुलन होना बहुत आवश्यक है। नही तो जीवन भर कटुता रहती है।
- चन्द्र - शुक्र :- वैसे तो चन्द्र शुक्र की युति शुभ मानी जाती है परन्तु वैवाहिक जीवन में यह अशुभ प्रभाव भी देती है। इस युति के प्रभाव से दोनों के मध्य वैचारिक मतभेद असंतोष चिंता व मन का भटकाव आदि परेशानियां आती है। यदि इस युति पर कोई पाप ग्रह की युति या दृष्टि हो तो तलाक तक बात चली जाती है। यदि दोनों में से किसी एक की कुंडली लग्न , द्वितीय , अथवा सप्तम भाव में ये युति हो और दूसरे की कुंडली में भी इन्ही भावों में यह युति हो अथवा दोनों की आपस में दृष्टि हो तो फिर इस युति का प्रभाव नष्ट हो जाता है।
- गुरु - मंगल युति :- प्राचीन शास्त्रों के अनुसार यदि मंगल व गुरु की युति हो अथवा मंगल पर गुरु की दृष्टि हो तो मंगल दोष समाप्त हो जाता है। अनुभव सिद्ध बात है कि यदि यह युति किसी भी मांगलिक भाव में हो तो मंगल का प्रभाव समाप्त नही होता. क्योकि गुरु जिस भाव में बैठता है उसकी हानि करता है तथा मंगल भी अपना अशुभ प्रभाव देता है। यदि मंगल गुरु के सामने हो तो भी मंगल दोष में वृद्धि होती है। क्योकि मंगल की दृष्टि गुरु को दूषित करती है।
- मंगल - राहु युति :- कहते है कि राहु मंगल की युति होने पर मंगल दोष समाप्त हो जाता है। परन्तु अनुभव में देखा है कि सप्तम व अष्टम भाव में यह युति अधिक हानिकारक होती है। यदि किसी एक की कुंडली में राहु मंगल का योग हो तथा दूसरे की कुंडली में ठीक उसके विपरीत भाव में यह युति हो तो दोष समाप्त हो जाता है।