Friday 17 February 2017

यज्ञ से भौतिक लाभ

Posted by Dr.Nishant Pareek

                                                       
                                            यज्ञ से भौतिक लाभ

प्राचीनकाल से मनुष्य सदैव ही सुख सुविधा के लिए प्रयासरत रहा है वह जीवन को सुखी तथा शांतिपूर्ण बनाने के लिए सदा क्रियाशील रहता है. आज के आधुनिक युग में व्यक्ति के पास सब कुछ है परंतु मानसिक शांति तथा शारीरिक स्वस्थता नहीं है. क्योंकि वह आध्यात्म तथा प्राचीन परम्परो से दूर होता जा रहा है. तथा आधुनिक संसाधनों के साथ कामवासना आदि विषयों में लिप्त होता जा रहा है.. वह भौतिक पदार्थों को ही जीवन का आनंद समझ कर उनमें रमता जा रहा है. व्यक्ति को जीने के लिए जल, वायु, भोजन, आदि की जरुरत होती है. ये शुद्ध मिलेंगे तो व्यक्ति का जीवन भी शुद्ध, शरीर स्वस्थ ,तथा दीर्घायु होगा. यदि शरीर रोगी होगा तो सुख साधनों का उपभोग भी अच्छे से नहीं भोग पायेगा. दूषित वातावरण हमारे लिए हानिकारक भी है. अब प्रश्न यह उठता है कि वातावरण शुद्ध कैसे किया जाये. प्रदूषण मानसिक तथा शारीरिक, दोनों तरह का है. इन दोनों प्रकार के पर्यावरणों को शुद्ध करने का एकमात्र उपाय यज्ञ क्रिया है. प्रतिदिन किये जाने वाले यज्ञ से मानसिक तथा शारीरिक शुद्धि हो जाती है.
 वातावरण की शुद्धता:- यदि चारों तरफ का वातावरण शुद्ध होuगा तो सभी स्वस्थ रहेंगे यज्ञ का प्रयोजन वायु को वायु को शुद्ध और सुगन्धित करना ही है. इस प्रयोजन की सिद्धि घर में सुगंधित पदार्थ केसर कस्तूरी इत्र तथा पुष्प आदि रखने से या चंदन आदि घिस कर लगाने भी हो सकती है. परंतु यह सफल प्रयोग नहीं है. क्योंकि जब तक अशुद्ध वायु बाहर नहीं निकलेगी तब तक शुद्ध वायु का प्रभाव नहीं होगा. यज्ञ की अग्नि जब दूषित वायु को गर्म करके बाहर निकाल देगी तब ही शुद्ध वायु घर में प्रवेश करेगी.
 
यज्ञ से रोग निवारण:- प्राचीन ऋषियों ने वेदों के रहस्यों को जान कर यज्ञ का अविष्कार किया. यज्ञ के हव्य पदार्थों में ओषधि युक्त वनस्पतियाँ भी होती है यज्ञ की अग्नि में जब इनकी आहुति दी जाती है तो इनके जलने से धुंआ निकलता है. उससे रोग के कीटाणु मर जाते है. जहा ओषधि से व्यक्ति विशेष को लाभ मिलता है  वही यज्ञ करने से संपूर्ण वातावरण रोगाणु मुक्त हो जाता है.अतः स्वास्थ्य लाभ के लिए यज्ञ क्रिया सर्वोत्तम उपाय है.
वर्षा कारक यज्ञ:- वायु प्रदुषण से जल भी दूषित होता है. बारिश के साथ यह दूषित जल धरती पर गिरता है. इससे जल भंडार भी दूषित हो जाते है. चारो वेदों में ऐसे मंत्र प्रतिपादित है जो वर्षा करवा सकते है. यज्ञ क्रिया द्वारा उनका उपयोग करके अनावृष्टि का निवारण किया जा सकता है.
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