विवाह का सार्थक होना
विवाह के बिना कभी भी
परिवार या समाज की कल्पना भी नही कर सकते. विवाह संस्कार के बाद ही परिवार तथा
परिवार से समाज बनता है. लड़की शादी करके
वंश की वृद्धि करती है, उससे परिवार अनेक पीढियों तक चलता रहता है. यह
सब विवाह पर ही आधारित है. विवाह को अनेक रूपों में देखा जाता है. विवाह के द्वारा
लड़की किसी लड़के को पत्नी के रूप में प्राप्त होती है. वो लड़का उस
लड़की के साथ मिलकर परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाता है. लड़की को भी जीवन भर सुरक्षा
का भरोसा मिल जाता है. विवाह के
बाद जो परिवार बनता है . वही बच्चों का पहला विद्यालय होता है. परिवार में रह कर
ही बच्चा अच्छे संस्कार प्राप्त करता है. इस तरह विवाह को अनेक रूपों में देखा जाता है, समाज में विवाह के इतने महत्वपूर्ण होने पर ही
मान्यता प्रदान की गई है.
विचार किया जाये तो क्या
विवाह इसी तरह सार्थक होता है ? परिवार बनाना, बच्चे पैदा करना, से ही विवाह सार्थक नही
होता. विवाह के बाद व्यक्ति पर अनेक जिम्मेदारियां आ जाती है. उन सभी जिम्मेदारियों की अच्छे से पूर्ति करने पर ही
विवाह सार्थक होता है. विवाह के बाद व्यक्ति का आकलन इसी बात से किया जाता है कि
उसने अपनी जिम्मेदारियों की पूर्ति किस प्रकार
ईमानदारी से की है. ये जिम्मेदारियां माता पिता भाई बहन पत्नी बच्चों आदि से जुडी
होती है. विवाह के साथ ही वैवाहिक जीवन भी आरम्भ हो जाता है ये वैवाहिक जीवन व्यक्ति के विचार, कार्यप्रणाली, तथा व्यवहार को बहुत मात्रा में प्रभावित करता है. इसलिए
विवाह को जीवन का महायज्ञ भी कहा है. इसमें व्यक्ति अपने सभी व्यक्तिगत स्वार्थ
तथा विचारों की आहुति देता है. हिन्दू समाज में अग्नि के समक्ष फेरों का यही महत्व है.
अग्नि में ऐसी शक्ति होती है जिससे सभी दोष जल के नष्ट हो जाते है. विवाह के बाद
वैवाहिक जीवन में किसी भी तरह का
दोष नही जाये इसलिए अग्नि द्वारा दोनों की शुद्धि की जाती है. ब्राह्मण द्वारा
जो मंत्रों का उच्चारण किया जाता है उससे सभी दोषों का नाश होता है. दोनों से अनेक
वचन लिए जाते है. इस प्रकार विवाह की सार्थकता होती है