Monday, 27 February 2017

विवाह में बाधक योग

Posted by Dr.Nishant Pareek
विवाह में बाधक योग :-

                           कुंडली में विवाह योग विद्ध्मान होने के बाद भी कुछ विवाह में बाधा  डालने वाले योग होते है।  जो या तो विवाह में बाधा डालते है अथवा विवाह होने ही नही देते।  कुछ विवाह में बाधक योग इस प्रकार
 है :-

  •  यदि सप्तम भाव का स्वामी पाप प्रभाव में हो तो विवाह में अवश्य बाधा आती है।  
  • यदि सप्तम भाव पर शनि की दृष्टि हो तथा शनि सप्तमेश न हो तो विवाह २८ वर्ष की आयु के बाद होता है। 

  • यदि शनि सप्तम भाव में हो परंतु सप्तमेश न हो तो ३४ वर्ष की आयु में विवाह होता है।  
  • गुरु अथवा सप्तमेश को कोई  पाप ग्रह पीड़ित करता है तो विवाह देरी से होता है।  
  • यदि सप्तमेश  या  गुरु किसी त्रिक भाव में बैठा हो तो विवाह में बाधा आती है।  
  • यदि सप्तम भाव पर  कोई शुभ ग्रह का प्रभाव न हो तथा कोई  पापी ग्रह बैठा हो तो विवाह में देरी होती है।  
  • यदि सप्तमेश या गुरु किसी कोई दो पाप ग्रहों के बीच में हो तो विवाह में देरी होती है।  
  • यदि चन्द्र से सातवें भाव में शुक्र हो व सप्तम का स्वामी ११ वे  भाव में हो तो २७ वर्ष के बाद विवाह होता है।  
  • यदि कुंडली में सप्तम भाव , सप्तमेश , गुरु , व शुक्र , अधिक पाप प्रभाव में हो तथा दूसरे भाव का स्वामी किसी त्रिक भाव में गया हो तो विवाह लगभग असम्भव होता है।  
  • सूर्य , चन्द्र , शुक्र , एक ही नवांश  में होकर त्रिक  भाव में हो तो भी विवाह देर से होता है।  
  • लग्न , दूसरे , व सातवें भाव में यदि पाप ग्रह हो और सूर्य कोई शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो विवाह हो तो जाता है परन्तु आफत ही कटती है। .
  • यदि सप्तमेश  व शुक्र अस्त हो अथवा पाप प्रभाव में हो तथा सप्ततम भाव में राहु अथवा शनि हो तो भी विवाह नही होता परन्तु व्यक्ति के सम्बन्ध जरूर किसी महिला से होते है  . 
  • यदि कुंडली में गुरु व शुक्र निर्बल हो तथा सप्तमेश भी पाप प्रभाव में हो एवम २,५,७,९,११, भाव भी निर्बल हो तो विवाह मुश्किल होता है।  
  • यदि सप्तम भाव में शुक्र व बुध अस्त होकर बैठे हो तो जातक अविवाहित रहता है।  
  • यदि शुक्र , गुरु ,  के साथ सूर्य चन्द्र भी निर्बल हो तथा  सप्तमेश नीचस्थ राशि के साथ पूर्ण बली  शनि की शत्रु दृष्टि सप्तम भाव पर हो तो विवाह नही होता है।  
Powered by Blogger.