Thursday, 30 September 2021

Kundli ke in bhavon me bana kalsarp yog deta hai santanhinta, kahi aap bhi to nahi hai iske shikar ?/ कुंडली के इन भावों में बना कालसर्प योग देता है संतानहीनता। कहीं आप भी तो नहीं है इसके शिकार ? जानिए इस लेख में

Posted by Dr.Nishant Pareek

 Kundli ke in bhavon me bana kalsarp yog deta hai santanhinta, kahi aap bhi to nahi hai iske shikar ?



 कुंडली के इन भावों में बना कालसर्प योग देता है संतानहीनता। कहीं आप भी तो नहीं है इसके शिकार ? जानिए इस लेख में,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

काल और सर्प शब्द के मिलने से जो योग बनता है, वह कालसर्प योग कहलाता है। जो कि किसी की भी कुंडली में सर्वाधिक चर्चित बिन्दुओं में से एक है। स्वाभाविक है कि ज्योतिषशास्त्र के आरंभ से वर्तमान समय तक कालसर्पयोग विभिन्न रूपों में व्यक्ति के मन को उद्विग्न करता आ रहा है। इस परिदृश्य में सत्य और असत्य, पाखण्ड आदि भी सम्मिलित हो ही जाते है। क्योंकि इससे फिर कुछ फर्जी ज्योतिषी फायदा भी उठाने लग जाते है। और लूटने लग जाते है। जिसके कारण वास्तविक ज्योतिषी भी बदनाम होते है और जो लोग वास्तव में कालसर्प योग से परेशान है, वो भी इसका उपाय कराने से पीछे हटने लग जाते है और जीवनभर परेशान भी रहते है। परंतु वह उपाय नहीं कराते है। क्योंकि उनको अपने साथ धोखा होने का डर रहता है। और विधि विधान में कुछ गलत होने पर अशुभ होने का डर होता हैै, वो अलग। इसलिये लोग इस योग के अशुभ फल को जीवनभर झेलते ही रहते है। 

राहु केतु को छायाग्रह माना गया है। जो कि कालसर्पयोग के दो ध्रुव हैं। इसलिये सबसे पहले  इनका प्रारंभिक ज्ञान आवश्यक है। जब समस्त ग्रह राहु और केतु की धुरी के एक ओर हों तथा शेष भाग ग्रह से रिक्त हो तो कालसर्पयोग का निर्माण होता है। राहु और केतु हमेशा एक दूसरे से सात राशि की दूरी पर रहते है।  इनमें 180 अंश का अन्तर होता है। राशि चक्र 360 अंश का होता है। यदि सभी ग्रह 180 अंश के क्षेत्र, अर्थात् राहु एवं केतु की धुरी के एक तरफ हों, तो दूसरा 180 अंश का क्षेत्र खाली होगा। कुंडली में इस ग्रह स्थिति को ही कालसर्पयोग कहते है।

कालसर्प योग का नाम सुनते ही मन में एक अजीब सा भय व्याप्त हो जाता है। मन में तरह तरह के विचार आने लगते है। फिर जीवन की सभी परेशानियों का कारण वह कालसर्प योग ही प्रतीत होने लगता है। परंतु ऐसा नहीं होता। जीवन में परेशानियां भी बहुत है और उनके कुंडली में दोष भी बहुत होते है। कोई एक ही दोष सभी समस्याओं का कारण नहीं होता है।  

यदि कुंडली में कालसर्प योग विद्यमान हो, तो इसे पूर्व जन्म के किसी पाप का अनिवार्य अशुभ फल मानना चाहिये। क्योंकि किए हुये कर्म का फल अवश्य भुगतना होता है। चाहे शुभ हो या अशुभ फल हो।  यदि सन्तान न हो, तो उसका कारण भी कालसर्प योग बन जाता है। मात्र पुत्रियों का ही जन्म हो तथा पुत्र सुख से वंचित हों, या पुत्र जन्म के पश्चात् उसकी हानि हो, तो उसका कारण कालसर्प योग को ही समझना चाहिए। परन्तु, ऐसा तभी सम्भव है जब काल सर्प योग में राहु पंचम भाव में स्थित हो तथा केतु एकादश भाव में। राहु के साथ शनि अथवा मंगल या सूर्य स्थित हो तथा पंचमेश क्रूर ग्रहों के प्रभाव में हो। यह कालसर्प योग तभी प्रभावी होगा, जब शेष ७ ग्रह षष्ठ भाव से लेकर दशम भाव तक या पंचम भाव से लेकर एकादश भाव तक स्थित होंगे।


इस प्रकार की ग्रह स्थिति होने पर यह कालसर्प योग संतान के विषय में चिंतित रखता है। संतान होने में परेशानी आती है अथवा संतान होती ही नहीं है। यदि इस प्रकार की ग्रह स्थिति में कुछ कमी हो, एक या दो ग्रह राहु केतु से बाहर निकल रहें हो तो इस योग का प्रभाव कुछ कम हो जाता है। परंतु प्रभाव रहता अवश्य है। यदि संतान संबंधी परेशानी हो तो अपनी जन्मपत्रिका में कालसर्प योग का विचार किसी अच्छे ज्योतिषी से अवश्य करवा लेना चाहिये और समय रहते उसका उपाय भी कर लेना चाहिये। जिससे संतान उत्पत्ति में किसी तरह की बाधा न आये। 
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Tuesday, 21 September 2021

kalsarp yog se kaisi pareshani aati hai ?/ कालसर्प योग से कैसी परेशानी आती है ? जानिए इस लेख में

Posted by Dr.Nishant Pareek

kalsarp yog se kaisi pareshani aati hai ?



कालसर्प योग से कैसी परेशानी आती है ? जानिए इस लेख में 

कालसर्प योग जीवन में अनेक प्रकार की बाधा और दुर्भाग्य उत्पन्न करता है। यह मानना अनुचित नहीं है। यदि किसी भी व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प योग बन रहा हो रही हो तथा अन्य ग्रह योगों के कारण कालसर्प योग प्रभावहीन न हो रहा हो, तो व्यक्ति को अनेक प्रकार के अवरोध, विसंगतियों और दुर्भाग्य से जीवनपर्यन्त संघर्ष करना पड़ता है। उसके जीवन में पग पग पर बाधा आती रहती है। किस प्रकार की बाधा व अवरोध उस व्यक्ति के जीवन को बाधित करेगी, यह तथ्य ग्रहों की जन्मांग में संस्थिति पर निर्भर करता है।

सूक्ष्मता से देखें तो संतानहीनता, पारिवारिक विसंगतियाँ, कलहपूर्ण दाम्पत्य जीवन, आर्थिक विषमता अथवा विपन्नता, धन हानि, स्वास्थ्य, निरन्तर अथवा असाध्य व्याधि से पीड़ा, व्यवसाय तथा व्यापार में अवनति, हानि अथवा प्रगति का अवरुद्ध हो जाना भी कालसर्प योग का प्रतिफल है। कुटुंब में सम्पत्ति सम्बन्धी कलह, विवाह में विलम्ब अथवा विवाह में अवरोध, सन्ततिहीनता, धनहीनता तथा व्यवसायहीनता आदि से सम्बन्धित दुर्भाग्य कालसर्प योग के परिणाम के अन्तर्गत आता है। इस विषय में एक महत्त्वपूर्ण परामर्श यह है कि कालसर्प योग की शान्ति के अतिरिक्त जन्मांग में विद्यमान धनहीनता, सन्तानहीनता अथवा अन्य प्रकार की बाधाओं के शमन हेतु समुचित तथा अनुकूल मंत्र चयन करने के पश्चात् सम्बन्धित अनुष्ठान किसी योग्य, अनुभवी और विद्वान् आचार्य द्वारा सम्पन्न कराना चाहिए अथवा संपुटित मंत्रों का जप स्वयं विधिविधान सहित करना चाहिए। इसी कारण इस कालसर्प योग सीरीज के अन्त में कालसर्प योग शमन विधान के पश्चात् मैं विभिन्न विसंगतियों, अवरोधों, विषमताओं, वैवाहिक विलम्ब, धनहीनता आदि की अशुभता को निर्मूल करने हेतु अनेक मंत्र तथा सम्बन्धित प्रयोग आदि का उल्लेख अवश्य करूंगा। इसलिये आप निरंतर जुडे रहिये। 

यह भी देखने में आता है कि शनिकृत पीड़ा अथवा व्याधि अथवा अथवा मंगली दोष के कारण उत्पन्न होने वाली विघटनकारी स्थितियाँ, जैसे- वैधव्य कारक व्याधियों का भी कारण कालसर्प योग को ही मान लिया जाता है। यह उचित जन्मांग के भलीभाँति अध्ययन करने के पश्चात् यह सुनिश्चित करना चाहिए कि समस्या का कारण क्या है तथा उसका समाधान कैसे होगा। यदि शनिकृत वेदना जीवन में बाधा कर रही है तथा उसकी प्रगति, प्रतिष्ठा और प्रफुल्लता, अवरुद्ध हो गयी है तो कालसर्प योग की शान्ति के पश्चात् भी व्यक्ति की परेशानी में न्यूनता नहीं आयेगी। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए जीवन में उत्पन्न होने वाले अवरोधों के शमन और निवृत्ति हेतु सम्बन्धित विषयों तथा उनके समाधान का उल्लेख भी इसी क्रम में आने वाले लेखों में किया जायेगा।

कालसर्प योग के कारण उत्पन्न होने वाली विसंगतियाँ तथा दुर्भाग्य की परिकल्पना परिसीमित है तथा उसकी अवधि और परिधि का सम्यक् ज्ञान नितान्त अनिवार्य है जिसका शास्त्रसंगत उल्लेख अगले लेख कालसर्प योग और संतानहीनता, में किया जायेगा। 


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Rahu kaal kya hota hai, kab hota hai, jainye is lekh me / राहुकाल क्या होता है ? कब होता है ? जानिए इस लेख में

Posted by Dr.Nishant Pareek

Rahu kaal kya hota hai, kab hota hai, jainye is lekh me 


राहुकाल क्या होता है ? कब होता है ? जानिए इस लेख में

राहुकाल  

भारतवर्ष में राहु काल का अत्यधिक महत्त्व है। इसे राहुकालम् भी कहते है।  खासकर दक्षिण भारत में। दिन के इस समय  को अशुभ माना जाता है और कोई भी शुभ कार्य राहुकाल में सम्पन्न करने का परामर्श नहीं दिया जाता। अर्थात् राहुकाल प्रत्येक शुभ कार्य के लिए त्याज्य है। राहुकाल का समय तिथि और स्थान के हिसाब से अलग अलग होता है। समय का यह अंतर उस स्थान के समय क्षेत्र की गणना के अनुसार होता है। इसका समय 90 मिनट से 120 मिनट तक का होता है। प्राचीन मान्यता अनुसार इस काल में कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिये। 

राहुकाल सप्ताह के सातों दिन निश्चित समय पर लगभग 90 मिनट का होता है। इसका कारण यह है की सूर्य के उदय होने का समय विभिन्न स्थानों के अनुसार अलग होता है। इस सूर्य के उदय के समय व अस्त के समय के काल को निश्चित आठ भागों में बांटने से ज्ञात किया जाता है। सप्ताह के पहले दिन सोमवार के प्रथम भाग में कोई राहु काल नहीं होता है। यह सोमवार को दूसरे भाग में, शनिवार को तीसरे भाग में, शुक्रवार को चौथे भाग में, बुधवार को पांचवें भाग में, गुरुवार को छठे भाग में, मंगलवार को सातवें भाग में तथा रविवार को आठवे भाग में होता है। यह प्रत्येक सप्ताह में दिन के हिसाब से निश्चित रहता है।

इस गणना में सूर्याेदय के समय को प्रातः 6 बजे (भा.स्टै.टा) बजे का मानकर एवं अस्त का समय भी सांयकाल 6 बजे का माना जाता है। इस प्रकार मिले 12 घंटों को बराबर आठ भागों में बांटा जाता है। इन बारह भागों में प्रत्येक भाग डेढ घण्टे का होता है। यहां इस बात का ध्यान रखा जाता है कि वास्तव में सूर्य के उदय के समय में प्रतिदिन कुछ परिवर्तन होता रहता है और इसी कारण से ये समय कुछ खिसक भी सकता है। अतः इस बारे में एकदम सही गणना करने हेतु सूर्याेदय व अस्त के समय को पंचांग से देख आठ भागों में बांट कर समय निकाल लेते हैं जिससे समय निर्धारण में ग़लती होने की संभावना भी नहीं रहती है।

  दिन..............................................................राहुकाल 

रविवार...............................................सायं -४.३० से ६.०० तक।

सोमवार.............................................प्रातः 7ः30 से 9ः00 बजे तक 

मंगलवार...........................................दोपहर 3 बजे से 4ः30 बजे तक 

बुधवार..............................................दोपहर 12ः00 से 1ः30 बजे तक 

बृहस्पतिवार......................................दोपहर 1ः30 से 3ः00 बजे तक 

शुक्रवार............................................प्रातः 10ः30 से 12ः00 बजे तक 

शनिवार............................................रात्रि 9ः00 से 10ः30 बजे तक 

यह समय सूर्याेदय से सूर्यास्त के समय को, जिसे दिनमान कहते हैं, को विशिष्ट अनुपात में विभाजित करके निश्चित किया जाता है। ऋतुओं तथा स्थान के अनुसार राहुकाल की समयावधि में थोडा बहुत परिवर्तन होता रहता है।


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Monday, 6 September 2021

Mangal ka kanya rashi me gochar aapke liye kaisa rahega, janiye is lekh me /मंगल का कन्या राशि में गोचर आपके लिये कैसा रहेगा ? जानिए इस लेख में

Posted by Dr.Nishant Pareek

Mangal ka kanya rashi me gochar aapke liye kaisa rahega, janiye is lekh me


मंगल का कन्या राशि में गोचर आपके लिये कैसा रहेगा ? जानिए इस लेख में 


मेषः-

इस अवधि में मंगल चन्द्रमा की ओर से आपके छठे भाव में होता हुआ गोचर करेगा । यह शुभ समय का सूचक है । आप पाएँगे कि इस काल में आप धन, स्वर्ण, मूँगा, ताँबा प्राप्त करेंगे, धातु व अन्य व्यापार में आपको अप्रत्याशित लाभ होगा । यदि आप कहीं सेवारत हैं तो आप जिस पदोन्नति व सम्मान की इतनी प्रतीक्षा कर रहे हैं, वह आपको अपने कार्यालय में प्राप्त होगा । आपमें से अधिकांश को अपने कार्य में सफलता मिलेगी ।  हर ओर आर्थिक दशा में सुधार से आप सुरक्षा, शान्ति व सुख अनुभव कर सकते हैं । आपको इन दिनों पूर्ण मानसिक शान्ति मिलेगी व आपको लगेगा कि आप भयमुक्त हैं ।  यह शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने का भी समय है । यदि आपके ऊपर कोई कानूनी मुकदमा चल रहा है तो फैसला आपके पक्ष में हो सकता है । आपके अधिकांश शत्रु पीछे हट जाएँगे और विजय आपकी होगी । समाज में आपको सम्मान व प्रतिष्ठा प्राप्त होगी । आपमें से कुछ इस समय दान-पुण्य के कार्य भी करेंगे ।  इस काल में स्वास्थ्य अच्छा रहेगा । सारे पुराने रोगों व पीड़ाओं से मुक्ति मिलेगी । 



वृषः-

    इस अवधि में मंगल चन्द्रमा से आपके पाँचवें भाव में होता हुआ गोचर करेगा । यह जीवन में क्षुब्धता व अस्त-व्यस्तता का प्रतीक है । अपने व्यय जितना सम्भव हो, कम करना बुद्धिमतापूर्ण होगा क्योंकि इस काल में धन और व्यय का नियंत्रण आपके हाथ से निकल सकते हैं ।  बच्चों का विशेष ध्यान रखें क्योंकि वे रोग-ग्रस्त हो सकते हैं । अपने और अपने पुत्र के बीच अनबन न होने दें क्योंकि यह कष्टकारक हो सकती है। शत्रुओं से सावधानीपूर्वक भली भाँति निपटें और नए शत्रु न बन जाएँ, इसके प्रति विशेष सतर्कता बरतें । शत्रु इस विशेष अवधि में आपके और अधिक संताप का कारण बन सकते हैं ।  स्वास्थ्य के प्रति विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है । आप उत्साहहीन, कमजोरी व हरारत अनुभव कर सकते हैं । आपमें से कुछ किसी ऐसे रोग से ग्रस्त हो सकते हैं जिसकी पूरी जाँच करानी पड़ेगी । अपनी भोजन सम्बन्धी आदतों पर भी ध्यान दें ।  आपमें से कुछ के व्यवहार में परिवर्तन आ सकता है । आपमें से कुछ क्रोधी, आशंकित व अपने प्रियजनों के प्रति उदासीन हो सकते हैं जो आपकी सामान्य प्रकृति के विरुद्ध है । आपमें से कुछ अपनी शान व प्रसिद्धि भी गँवा सकते हैं । व्यर्थ की आवश्यकताओं का उभरकर आना व कुछ अनैतिक कार्यों का प्रलोभन आपमें से कुछ को परेशानी में डाल सकता है । आप इस दौरान परिवार के सदस्यों से झगड़ा करने से बचें 

 

मिथुनः-

   इस अवधि में मंगल चन्द्रमा से आपके चतुर्थ भाव में होता हुआ गोचर करेगा । यह आपके जीवन के कुछ भागों में कठनाई उत्पन्न करेगा । आपमें से अधिकांश को पुराने शत्रुओं को नियंत्रित रखने में कठिनाई का सामना करना पड़ेगा । कुछ नए शत्रुओं से भिड़ने की भी संभावना है जो आपके परिवार व मित्रों की परिधि में ही होंगे । आपमें से कुछ की दुष्टजनों से मित्रता हो सकती है जिनके कारण बाद में कष्ट झेलने पड़ सकते हैं । अपने व्यवहार पर नजर रखें क्योंकि इस काल में यह क्रूर हो सकता है ।  फिर भी आपमें से कुछ का शत्रुओं से किसी प्रकार का समझौता हो जाएगा ।  स्वास्थ्य के प्रति अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि इस समय आपको ज्वर होने अथवा छाती में बेचैनी होने की संभावना है । आपमें से कुछ रक्त व पेट के रोगों से ग्रस्त हो सकते हैं ।  मानसिक रुप से आप चिन्तित रह सकते हैं तथा विषाद के दौर से गुजर सकते हैं ।  इस काल में रिश्ते आपसे विशेष अपेक्षा रखेंगे । अधिक कठोर होने से बचंे और अपने परिवार व अन्य सम्बन्धियों से शान्तिपूर्ण व्यवहार रखें । अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा व सम्मान को किसी प्रकार की ठेस न लगने दें ।  इस समय भूमि व अन्य जायदाद सम्बन्धी मामलों से दूर ही रहें । 


कर्कः-

  इस अवधि में मंगल चन्द्रमा से आपके तृतीय भाव में होता हुआ गोचर करेगा । यह शुभ समय का प्रतीक है, विशेष रुप से धन लाभ हेतु । इस काल में आप अपने व्यापार व व्यवसाय से अच्छा धन कमाएँगे । इस समय आपके मूल्यवान आभूषण क्रय करने की भी संभावना है ।  कार्य सरलतापूर्वक सम्पन्न होंगे व महत्तवपूर्ण मामलों में सफलता की संभावना है । नए प्रयासों में भी आपको सफलता मिलेगी । यदि आप सेवारत हैं तो अधिक अधिकार व प्रतिष्ठा वाले पद पर पदोन्नत हो सकते हैं । सफलता के फलस्वरुप आपके आत्मविश्वास व इच्छाशक्ति को अत्यंत बल मिलेगा ।  स्वास्थ्य अच्छा रहेगा और आप शक्ति व स्वास्थ्य से दमकते रहेंगे । आपका उत्साह चरम सीमा पर होगा और पूर्व की समस्त भ्रांतियों और बाधाओं से आपको मुक्ति मिल सकती है । यह समय अत्यंक सुस्वादु भोजन के सेवन के अवसर प्रदान कर सकता है ।  शत्रुओं की पराजय होगी और आपको मानसिक शान्ति मिलेगी ।  विदेश यात्रा से बचें क्योंकि इस समय वांछित परिणाम प्राप्त होने की संभावना नहीं है । 


सिंहः-    

  इस अवधि में मंगल चन्द्रमा से आपके दूसरे भाव में होता हुआ गोचर करेगा । यह हानि उठाने का समय है । अपने धन व मूल्यवान वस्तुओं की सुरक्षा पर ध्यान केन्द्रित करें क्योंकि इस काल में चोरी की संभावना है । कार्यस्थल पर कुछ अप्रिय धटनाओं के कारण निराशा का दौर रहेगा । विवाद से दूर रहें । किसी के भी सामने बोलने से पहले अपने शब्दों को तोल लें । यदि आपने सावधानी नहीं बरती तो यह बुरा समय आपमें से कुछ को पद से हटा भी सकता है ।  पुराने शत्रुओं से सतर्क रहें व नए न बनने दें । आपमें दूसरों के लिए ईर्ष्या जैसी नकारात्मक प्रवृत्तियाँ उभर सकती हैं । अपने अधिकारी व सरकार के क्रोध के प्रति सचेत रहें । इस विशेष समय में आप कुछ दुष्ट लोगों से मित्रता करके अपने परिवार व प्रियजनों से झगड़ा मोल ले सकते हैं । 


कन्याः-

  इस अवधि में मंगल आपके प्रथम भाव में होता हुआ गोचर करेगा । यह कठिनाइयों का सूचक है । व्यापार और व्यवसाय के लिए यह समय काँटों भरी राह का है । आपको अपनी परियोजना समय पर सफलतापूर्वक समाप्त करने में कठिनाई आ सकती है  । अच्दा हो इन दिनों आप कोई नया कार्य आरम्भ न करें । यदि आप सेवारत हैं तो वरिष्ठ सदस्यों, अधिकारियों व सरकारी विभाग से विवाद एवम् गलतफहमियों से बचें । आपमें से कई को अपने पद में परिवर्तन झेलना पड़ सकता है। शत्रुओं पर नजर रखें क्योंकि वे इस समय आपके लिए समस्याएँ उत्पन्न कर सकते हैं ।  आपको कुछ अनचाहे खर्चे करने पड़ सकते हैं अतः धन के सम्बन्ध में विशेष सावधानी बरतें । धन व्यय करने की ललक पर नियंत्रण रखें ।  इस अवधि में यात्रो के अनेक अवसर हैं । अतः आप विवाहित हैं तो जीवनसाथी व बच्चों से दूर रहने का योग है ।  स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है । आप दैनिक जीवन में बुझा-बुझा सा व उत्साहहीन अनुभव कर सकते हैं । आपमें ज्वर तथा रक्त व पेट से सम्बन्धित कष्ट पनप सकते हैं। आप हथियार, अग्नि, विषैले जीव अर्थात् ऐसी हर वस्तु से दूर रहें जो जीवन के लिए खतरा बन सकती है । अपने आप को चुस्त-दुरुस्त रखने का प्रयत्न करें क्योंकि इसमें आपको विषाद, घबराहट व व्यर्थ के भय के दौरे से पड़ सकते हैं । 


तुलाः-

 इस अवधि में मंगल चन्द्रमा की ओर से आपके बारहवें भाव में होता हुआ गोचर करेगा । यह शारीरिक व्याधि व पीड़ा का द्योतक है । यदि आप सावधानी नहीं बरतेंगे तो यह समय तनावपूर्ण रहेगा । स्वास्थ्य के सम्बन्धित सभी पहलुओं पर विशेष ध्यान दें क्योंकि इस समय आपमें रोग पनप सकता है, विशेष रुप से नेत्र व पेट सम्बन्धी व्याधियाँ उभर सकती हैं । पैरों का भी ध्यान रखें । इन दिनों शारीरिक सक्रियता वाली गतिविधियों से बचें क्योंकि जीवन को खतरा हो सकता है । आपमें से कुछ को भयानक स्वप्न या दुरूस्वप्न आ सकते हैं ।  आपका कार्यक्षेत्र सफलता प्राप्त करने के प्रयास में अत्यधिक दबावपूर्ण व अधिक कार्य के कारण कठोर हो सकता है । यदि आप सावधानी नहीं बरतेंगे तो आपमें से कुछ को अपमान व अवमानना झेलनी पड़ सकती है जिससे पद खतरे में पड़ सकता है ।  वित्त सम्बन्धी सावधानियाँ बरतें तथा अपव्यय से बचें ।  घर पर पति/पत्नी, संतान, भाई बहन, संतान और रिश्तेदारों से मधुर सम्बन्ध रखें । उनसे विवाद में न पड़ें । शत्रुओं से टकराव से बचें व नए शत्रु न बने इसके प्रति सावधानी बरतें ।  आपको विदेश यात्रा के अवसर मिल सकते हैं । किन्तु आपमें से कुछ को यात्रा के फलस्वरुप वांछित परिणाम नहीं मिलेंगे और यूँ ही निरुद्देश्य भटकते रहेंगे । 


वृश्चिकः-

   इस अवधि में मंगल चन्द्रमा की ओर से आपके ग्यारहवें भाव में होता हुआ गोचर करेगा । यह आप व आपके परिवार के लिए सुखद समय लाएगा । इस समय आपको भूसम्पत्ति की प्राप्ति होगी एवम् व्यवसाय व व्यापार में लाभ होगा । संतान पक्ष से भी आपमें से कुछ को लाभ प्राप्त होने की संभावना है । सेवारत व्यक्तियों हेतु भी समय शुभ है । आपमें से कुछ की वेतनवृद्धि व पदोन्नति हो सकती है । आपके समस्त प्रयास व उद्यम सफल होंगे व अधिक लाभ प्राप्त होगा ।  इस समय आप केवल व्यवसाय में ही नहीं वरन् अपने दैनिक जीवन में भी सुधार देखेंगे । आपका सामाजिक स्तर, सम्मान व प्रतिष्ठा सभी में वृद्धि की संभावना है । आपकी उपलब्धियों से आपके व्यक्तित्व में और अधिक निखार आएगा ।  आपमें से कुछ परिवार में शिशु जन्म से सुख व शान्ति में वृद्धि होगी । संतान व भाई-बहनों से और भी अधिक सुख मिलेगा ।  अच्छे स्वास्थ्य व रोगमुक्त शरीर के कारण आप प्रसन्न्ता अनुभव करेंगे । आप अपने को पूर्णतया इतना निर्भीक अनुभव करेंगे जैसा पहले कभी नहीं किया होगा ।


धनुः-

   इस अवधि में मंगल चन्द्रमा की ओर से आपके दसवें भाव में होता हुआ गोचर करेगा । यह सफलता के बीच ऊबड़-खाबड़ मार्ग का द्योतक है । इसमें अनेक मिली-जुली मुसीबतें आ सकती हैं जैसे अफसरों का अभद्र व्यवहार, प्रयासों में विफलता, दुरूख, निराशा, थकान आदि । फिर भी आपको अपने कार्यक्षेत्र में अन्त में सफलता मिल सकती है । आपसे कुछ तो पहले से भी अच्छा कार्य सम्पन्न करेंगे । हाँ कार्य की माँग के अनुसार आपमें से कुछ को यहाँ-वहाँ जाना पड़ सकता है। इस काल में आपको प्रतिष्ठा, पद व अधिकार में वृद्धि दिए जाने की संभावना है । आपका नाम अपने अधिकारियों के विशेष कृपा-पात्रों की सूची में आ सकता है तथा अच्छे मित्रों का दायरा भी बढ़ सकता है ।  आपका महिमामंडित गौरव आपके जीवन में कुछ नए मित्र ला सकता है ।  किन्तु स्वास्थ्य आपका ध्यान अपनी ओर अवश्य खींचेगा । ध्यान रखिए कि आप क्या खा रहे हैं व स्वस्थ मानसिकता बनाए रखें ।  आपमें से कुछ को चिंताओं से मुक्ति मिलने व शत्रुओं पर विजय पाने की संभावना है । कुछ भी हो, शत्रुओं को कम न समझें व शस्त्रों से दूर रहें । 


मकरः-

   इस अवधि में मंगल चन्द्रमा की ओर से आपके नवम् भाव में होता हुआ गोचर करेगा । यह समय छोटे से बड़े तक शारीरिक कष्ट व पीड़ा का है । इस में आपको निर्जलन (डीहाइड्रेशन) तथा कमजोरी व शारीरिक शक्ति में क्षीणता का सामना करना पड़ सकता है । आप मांस-पेशियों में दर्द अथवा किसी शस्त्र से लगे घाव से भी पीड़ित हो सकते हैं ।  मानसिक रुप से अधिकतर आप चिंतित व निराश रहेंगे । आपमें से कुछ को विदेश जाकर कष्टपूर्ण जीवनयापन करना पड़ सकता है ।  धन का विशेष ध्यान व सुरक्षा रखें क्योंकि विशेष रुप से इस समय थोड़ा बहुत हाथ से निकल सकता है । आपके व्यावसायिक जीवन को भी सही ढ़ंग से व परिश्रम से काम करने की अपेक्षा है । आपमें से कुछ को कुछ समय के लिए कष्टदायक परिस्थितियों में काम करना पड़ सकता है । अपने कार्यालय या व्यावसायिक क्षेत्र में अपना पद व गरिमा बनाए रखने के लिए परिश्रम करें ।  घर में शान्ति व सामन्जस्य बनाए रखें तथा प्रिय स्वजनों के बीच छद्मवेशी शत्रु पर नजर रखें । आपमें से कुछ को कोई ऐसा काम करने की तीव्र लालसा हो सकती है तो धर्म के मापदण्ड पर स्वीकार करने योग्य न हो ।    


कुंभः-

    इस अवधि में मंगल चन्द्रमा की ओर से आपके आठवें भाव में होता हुआ गोचर करेगा । यह अधिकतर शारीरिक खतरों का सूचक है । अपने जीवन, स्वास्थ्य व देह-सौष्ठव के प्रति अत्यधिक सतर्कता इस समय विशेष की माँग है । रोगों से दूर रहें साथ ही अच्छे स्वास्थ्य के लिए किसी भी प्रकार के नशे व बुरी लत से दूर रहें । आपमें से कुछ को रक्त सम्बन्धी रोग जैसे एनीमिया (रक्त की कमी), रक्त स्त्राव अथवा रक्त की न्यूनता से उत्पन्न बीमारियाँ हो सकती हैं । इस समय शस्त्र व छद्मवेशी शत्रु से दूर रहें । जीवन को खतरे में डालने वाला कोई भी कार्य न करें ।  आर्थिक मामलों पर नजर रखना आवश्यक है । यदि सावधानी नहीं बरती जो आपमें से अधिकांश को आय में भारी गिरावट का सामना करना पड़ सकता है । जो भी ऋण लेने से बचें व स्वयं को ऋण-मुक्त रखने की चेष्टा करें ।  यदि अपने कार्य/व्यवसाय में सफल होना चाहते हैं तो अतिरिक्त प्रयास करें । अपने पद व प्रतिष्ठा पर पकड़ मजबूत रखें क्योंकि यह कठिनाईपूर्ण घटिया स्थिति भी गुजर ही जाएगी ।  आपमें से अधिकांश को विदेश यात्रा पर जाना पड़ सकता है । यहाँ तक कि काफी समय के लिए परिवार से दूर रहकर उनका विछोह झेलना पड़ सकता है । 


मीनः-

 इस अवधि में मंगल चन्द्रमा की ओर से आपके सातवें भाव में होता हुआ गोचर करेगा । स्वास्थ्य सम्बन्धों की दृष्टि से यह कठिन समय है ।  आपके स्वयं की पति/पत्नी की अथवा किसी नजदीकी व प्रियजन के स्वास्थ्य की समस्या अत्यधिक मानसिक चिन्ता का कारण बन सकती है । आप थकान महसूस कर सकते हैं तथा नेत्र सम्बन्धी कष्ट, पेट के दर्द या छाती की तकलीफ का शिकार हो सकते हैं । आपको अपने जीवनसंगी के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना पड़ सकता है। आप व आपकी पत्नी/पति को कोइ गहरी मानसिक चिन्ता सता सकती है ।  आपमें से अधिकांश की किसी सज्जन, व्यक्ति से शत्रुता होने की संभावना है । आप व आपके पति/पत्नी के बीच व्यर्थ अनुमानित अलग सोच के कारण गलतफहमी न हो जाय, इसका ध्यान रखें व इससे बचें । यदि बुद्धि चातुर्य से कुशलतापूर्वक इससे नहीं निपटा गया तो ये आप दोनों के बीच एक बड़े झगड़े का रुप ले सकता है । अपने मित्रों व प्रियस्वजनों से समझौता कर लें । आपके सम्बन्धी आपकी मनोव्यथा का कारण बन सकते हैं । अपने व्यवहार को नियंत्रित रखों क्योंकि अपनी संतान तथा भाई-बहनों के प्रति आप क्रोध कर सकते हैं व अपशब्दों का प्रयोग कर सकते हैं ।  धन सम्बन्धी मामलों के प्रति भी सचेत रहें । व्यर्थ की प्रतियोगिता के चक्कर में आप व्यर्थ गँवा सकते हैं । रंगरेलियों पर व्यय न करके अच्च्छे भोजन व वस्त्रों पर ध्यान दें । 

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Thursday, 2 September 2021

Shukra ka tula rashi me gochar aapke liye kaisa rahega ? शुक्र का तुला राशि में गोचर आपके लिए कैसा रहेगा ? जानिए इस लेख में

Posted by Dr.Nishant Pareek

Shukra ka tula rashi me gochar aapke liye kaisa rahega ?


शुक्र का तुला राशि में गोचर आपके लिए कैसा रहेगा ? जानिए इस लेख में 

                 विलासिता का कारक, महान ग्रह शुक्र 5 सितंबर की मध्यरात्रि 12ः50 मिनट पर अपनी नीच राशि कन्या कन्या से निकलकर स्वयं की राशि तुला में प्रवेश कर रहे हैं। इस राशि पर ये 2 अक्टूबर प्रातः 9ः46 मिनट तक रहेंगे उसके बाद वृश्चिक राशि में प्रवेश कर जाएंगे। जिन जातकों की जन्मकुंडलियों में ये केंद्र और त्रिकोण में भ्रमण कर रहे होंगे उनके लिए तो किसी वरदान से कम नहीं है। अपनी राशि में पहुंचकर ये पञ्चमहापुरुष योगों में से महान मालव्य योग का निर्माण करेंगे। जिनकी जन्मकुंडली में अशुभ भाव में रहेंगे उनको शुभ फल कम मिलेंगे। 

शुक्र विलासितापूर्ण जीवन, ऐश्वर्य, जैविक संरचना, फिल्म उद्योग, स्त्री जाति, कॉस्मेटिक, केंद्र अथवा राज्य सरकार के विभागों में उच्चपद दिलाने वाले ग्रह हैं। ये वृषभ और तुला राशि के स्वामी हैं। कन्या राशि इनकी नीच राशि तथा मीन राशि उच्च राशिगत संज्ञक है। तुला राशि में इनके प्रवेश का अन्य राशियों पर कैसा प्रभाव पड़ेगा इसका ज्योतिषीय विश्लेषण करते हैं।


 मेष- 

  इस अवधि में शुक्र चन्द्रमा से आपके सातवें भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह स्त्रियों के कारण उत्पन्न हुई परेशानियों के समय का द्योतक है । स्त्रियों के साथ किसी भी मुकदमेबाजी से दूर रहें व पत्नी के साथ मधुर सम्बन्ध बनाएं रखें । यह ऐसी महिलाओं के लिए विशेष रुप से अस्वस्थता का समय है जिनकी जन्मपत्री में शुक्र सातवें भाव में है । आपकी पत्नी अनेक स्त्री रोगों, शारीरिक पीड़ा, मानसिक तनाव आदि से ग्रसित हो सकती हैं ।  धन की दृष्टि से भी समय अच्छा नहीं है । वित्तीय नुकसान न हो अतःस्त्रियों के सम्पर्क से बचें ।  आपको यह आीास भी होसकता है कि कुछ दुष्ट मित्र आपका अनिष्ट करने की चेष्टा कर रहे हैं। व्यर्थ की महिलामंडली के साथ उलझाव संताप का कारण बन सकता है । यह भी संभावना है कि किसी महिला से सम्बन्धित झगड़े में पड़कर आप नए शत्रु बना लें ।  इस समय आपके मानसिक तनाव, अवसाद व क्रोध से ग्रसित होने की संभावना है । स्वास्थ्य का ध्यान रखें क्योंकि आप यौन रोग, मूत्र-नलिका में विकार अथवा दूसरे छोटे-मोटे रोगों से ग्रस्त हो सकते हैं ।  व्यावसायिक रुप में भी यह समय सुचारु रुप से कार्य - संचालन का नहीं है । दुष्ट सहकर्मियों से दूर रहें क्योंकि वे उन्नति के मार्ग में रोड़े अटका सकते हैं । आपको अपने उच्च पदाधिकारी द्वारा सम्मान प्राप्त हो सकता है । 



वृष-

    इस अवधि में शुक्र चन्द्रमा से आपके छठे भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह गोचर आपके लिए कुछ कठिन समय ला सकता है । आपके प्रयासों में अनेक परेशानियाँ आ सकती हैं । शत्रुओं के बढ़ने की संभावना है और आपका अपने व्यावसायिक साझेदार से झगड़ा हो सकता है । यह भी संभव है कि आपको अपनी इच्छा के विरुद्ध शत्रुओं से समझौता करना पड़े ।  इस दौरान पत्नी व बच्चों से किसी भी प्रकार के विवाद से बचें । आपको यह भी सलाह दी जाती है कि लम्बी यात्रा से बचें क्योंकि दुर्घटना की संभावना है । स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि आप रोग, मानसिक बेचैनी, भय तथा असमय यौन इच्छा से ग्रसित हो सकते हैं ।  समाज में प्रतिष्ठा व कार्यालय में सम्मान बनाए रखने का इस समय भरसक प्रयास करें नहीं तो आपको अपमान, व्यर्थ के विवाद व मुकदमेबाजी झेलना पड़ सकता है ।


मिथुन-

    इस अवधि में शुक्र चन्द्रमा से आपके पाँचवें भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह अधिकांश समय आमोद - प्रमोद में व्यतीत होने का सूचक है । वित्तीय रुप में भी यह अच्छा समय है क्योंकि आप अपने धन में वृद्धि कर सकेंगे ।  यदि आप राजकीय विभाग द्वारा आयोजित किसी परीक्षा में परीक्षार्थी हैं तो बहुत करके आपको सफलता मिलेगी ।  यदि सेवारत हैं तो पदोन्नति की संभावना है । आप सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि की भी आशा रख सकते हैं । आपके मित्रों, आपके बड़ों व अध्यापकों की भी आप पर कृपा दृष्टि रहेगी व आपके प्रति अच्छे रहेंगे ।  सम्बन्धों के मधुरता से निर्वाह होने की आशा है और अपने प्रिय के साथ अत्यधिक उत्तेजना व जोशीला परिणय रहने की आशा है । आप दाम्पत्य जीवन के सुख अथवा किसी विशेष विपरीत लिंग वाले से शारीरिक सम्पर्क की आशा कर सकते हैं । आप परिवार के किसी नए सदस्य से मिल सकते हैं । यहाँ तक कि नए व्यक्ति को परिवार में ला सकते हैं ।  इस समय स्वास्थ्य बढ़िया रहेगा । इस अवधि में आप अच्दे भोजन का आनन्द उठाएँगे, धन लाभ होगा और जिन वस्तुओं की आपने कामना की थी वे मिलेंगी । 


कर्क- 

    इस अवधि में शुक्र चन्द्रमा से आपके चतुर्थ भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह अधिकतर वित्तीय वृद्धि का द्योतक है । आप समृद्धि बढ़ने की आशा कर सकते हैं । यदि आप कृषि व्यवसाय में है तो यह कृषि संसाधनों, उत्पादों आदि पा लाभ मिलने के लिए अच्छा समय हो सकता है ।  घर में आपका बहुमूल्य समय पत्नी/पति व बच्चों के साथ महत्तवपूर्ण विषयों पर बातचीत करने में व्यतीत होने की संभावना है । साथ ही आप बढ़िया भोजन, उत्तम शानदार वस्त्र व सुगंधियों का आनन्द उठाएँगे ।  सामाजिक जीवन घटनाओं से परिपूर्ण रहेगा । आपकी लोकप्रियता बढ़ेगी व नए मित्र बनने की संभावना है । आपके नए - पुराने मित्रों का साथ सुखद होगा और आप घर से दूर आमोद - प्रमोद में कुछ आनन्दमय समय बिताने के बारे में सोच सकते हैं । इसमें विपरीत लिंग वालों के साथ का आनन्द उठाने की भी संभावना है ।  स्वास्थ्य अच्छा रहेगा और आप अपने भीतर शक्ति महसूस करेंगे । इस विशेष समय में ऐशोआराम के उपकरण खरीदने के विषय में आप सोच सकते हैं ।


सिंह- 

    इस अवधि में शुक्र चन्द्रमा से आपके तृतीय भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह आपके लिए सुख व संतोष का सूचक है । आप अपनी विवित्तीय स्थिति में लगातार वृद्धि की आशा व वित्तीय सुरक्षा की भी आशा कर सकते हैं ।  व्यवसाय की दृष्टि से यह समय अच्छा होने की संभावना है व आप पदोन्नति की आशा कर सकते हैं । आपको अधिक अधिकार प्राप्त हो सकते हैं । आपको आपके प्रयासों का लाभ भी मिल सकता है ।  सामाजिक दृष्टि से भी समय सुखद है और आपके अपनी चिन्ताओं व भय पर विजय पा लेने की आशा हैं । आपके सहयोगी व परिचातों का रवैया सहयोगपूर्ण व सहायतापूर्ण रहेगा । इस विशेष समय में मित्रों का दायरा बढ़ने की व शत्रुओं पर विजय पाने की संभावना है ।  अपने स्वयं के परिवार से आपका तालमेल अच्छा रहेगा और आपके भाई - बहनों का समय भी आपके साथ आनन्दपूर्वक व्यतीत होगा । आप इस समय अच्छे वस्त्र पहनेंगे व बहुत बढ़िया भोजन ग्रहण कर सकते हैं । आपकी धर्म में रुचि बढ़ेगी व एक मांगलिक कार्य आपको आल्हादित कर सकता है ।  स्वास्थ्य के अच्छे रहने की संभावना है । यदि विवाह योग्य है तो विवाह के सम्बन्ध में सोच सकते हैं क्योंकि यह समय आदर्श साथी खोजना का है । आपमें से कुछ परिवार में नए सदस्य के आगोचर की आशा कर सकते हैं ।  फिर भी संभव है यह समय इतना अच्छा न हो । आपमें से कुछ को व्यापार में वित्तीय हानि होने का खतरा है । शत्रु भी इस समय समस्याएँ पैदा कर सकते हैं । हर प्रकार के विवाद व गलतफहमियों से दूर रहें ।


कन्या-    

    इस अवधि में शुक्र चन्द्रमा से आपके द्वितीय भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह आर्थिक लाभ का समय है । इसके अतिरिक्त यह समय जीवनसंगी व परिवार के साथ अत्यंत मंगलमय रहेगा । यदि आप पर लागु हो तो परिवार में नए शिशु के आने की आशा की जा सकती है ।  आर्थिक रुप से आप सुख - चैन की स्थिति में होंगे व आपके परिवार की समृद्धि में निरन्तर वृद्धि की आशा है । व्यक्तिगत रुप से आप बहुमूल्य पोशाक व साथ के सारे साज सामान जिनमें बहुमूल्य रत्न भी शामिल हैं । अपने स्वयं के लिए क्रय कर सकते हैं । कला व संगीत में आपकी रुचि बढ़ेगी । आप उच्च पदाधिकारियों अथवा सरकार से अनुग्रह की आशा कर सकते हैं ।  स्वास्थ्य बढ़िया रहने की आशा है साथ ही सौंदर्य में भी वृद्धि हो सकती है


तुला-         

    इस अवधि में शुक्र चन्द्रमा से आपके प्रथम भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह आपके लिए भौतिक व ऐन्द्रिक भो विलास सुख का सूचक है । आप व्यक्तिगत जीवन में अनेक घटनाओं की आशा कर सकते हैं । यदि आप अविवाहित हैं तो आपको आदर्श साथी मिलेगा । आपमें से कुछ परिवार में ए कनए सदस्य के आने की आशा भी कर सकते हैं । सामाजिक रुप से नए लोगों से मिलने व विपरीत लिंग वालों का साथ पाने हेतु यह अच्छा समय है । समाज में आपको सम्मान मिलने व प्रतिष्ठा बढ़ने की संभावना है । आपको सुस्वादु देशी-विदेशी बढ़िया भोजन का आनन्द उठाने के ढ़ेर सारे अवसर मिलेंगे । इस दौरान जीवन को और ऐश्वर्ययुक्त व मादक बनाने हेतु आपको वस्तुएँ व अन्य उपकरण उपलब्ध होंगे । आप वस्त्र, सुगन्धियाँ (छत्रादि), सौंदर्य प्रसाधन व वाहन का भी आनन्द उठा सकते हैं ।  वित्तीय दृष्टि से यह समय निर्विघ्न है । आपकी आर्थिक दशा में भी सुधार होगा ।  यदि आप विद्यार्थी हैं तो ज्ञानोपार्जन के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने हेतु यह उत्तम समय है ।  आप इस समय विशेष में शत्रुओं के विनाश की आशा कर सकते हैं । ऐसे किसी भी प्रभाव से बचें जो आपमें नकारात्मक आक्रोश जगाए । 


 वृश्चिक-              

    इस अवधि में शुक्र चन्द्रमा से आपके बारहवें भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह जीवन में प्रिय व अप्रिय दोनों प्रकार की घटनाओं के मिश्रण का सूचक है । एक ओर जहाँ इस दौरान वित्तीय लाभ हो सकता है वहीं दूसरी ओर धन व वस्त्रों की अप्रत्याशित हानि भी हो सकती है । यह अवधि विदेश यात्रा पर पैसे की बर्बादी व अनावश्यक व्यय की भी द्योतक है ।  इस समय आप बढ़िया वस्त्र पहनेंगे जिनमें से कुछ खो भी सकते हैं । घर में चोरी के प्रति विशेष सतर्कता बरतें ।  यह समय दाम्पत्य सुख भोगने का भी है । यदि आप अविवाहित हैं तो विपरीत लिंग वाले व्यक्ति के साथ सुख भोग सकते हैं ।  मित्र आपके प्रति सहयोग व सहायता का रवैया अपनाएँगे व उनका व्यवहार अच्छा होगा ।  नुकीले तेज धार वाले शस्त्रों व संदेहात्मक व्यतियों से दूर रहें । यदि आप किसी भी प्रकार से कृषि उद्योग से जुड़े हुए हैं तो विशेष ध्यान रखें क्योंकि इस समय आपको हानि हो सकती है । 


धनु- 

इस अवधि में शुक्र चन्द्रमा से आपके ग्यारहवें भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह मूल रुप से वित्तीय सुरक्षा व ऋण से मुक्ति का द्योतक है । आप अपनी अन्य आर्थिक समस्याओं के समाधान की भी आशा कर सकते हैं ।  यह समय आपके प्रयासों में सफलता प्राप्त करने का है । आपकी लोकप्रियता बढ़ेगी व प्रतिष्ठा निरन्तर ऊपर की ओर उठेगी ।  आपका ध्यान भौतिक सुख, भोग - विलास के साधन व वस्तुएँ, वस्त्र, रत्न व अन्य आकर्षक उपकरणों की ओर रहने की संभावना है । आप स्वयं का घर लेने के विषय में भी सोच सकते हैं ।  सामाजिक रुप से यह समय सुखद रहेगा । मान - सम्मान में वृद्धि होगी तथा मित्रों का सहयोग मिलता रहेगा ।  विपरीत लिंग वालों के साथ सुखद समय व्यतीत होने की आशा कर सकते हैं । यदि विवाहित है तो दाम्पत्य जीवन में परमानन्द प्राप्त होने की आशा रख सकते हैं । 


मकर- 

    इस अवधि में शुक्र चन्द्रमा से आपके दसवें भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह समय मानसिक संताप, अशान्ति व बेचैनी लेकर आया है । इस दौरान शारीरिक कष्ट भोगना पड़ेगा । धन के विषय में विशेष सतर्क रहें तथा ऋण लेने से बचें क्योंकि इस पूरे समय आपकी ऋण में डूबे रहने की संभावना है । शत्रुओं से सावधान रहें तथा अनावश्यक व्यर्थ के विवाद से दूर रहें क्योंकि इससे कलह बढ़ सकता है व शत्रुओं की संख्या में वृद्धि हो सकती है । समाज में बदनामी व तिरस्कार न हो, इसके प्रति सचेत रहें ।  अपने सगे सम्बन्धियों व महिलाओं के प्रति व्यवहार में विशेष सतर्कता बरतें क्योंकि मूर्खतापूर्ण गलतफहमी शत्रुओं की संख्या बढ़ा सकती है । अपने वैवाहिक जीवन में स्वस्थ संतुलन बनाए रखने हेतु अपनी पत्नी/पति से विवाद से दूर ही रहें ।  आपको अपने उच्चाधिकारी अथवा सरकारजनित परेशानी का सामना करना पड़ सकता है । अपने समस्त कार्यों को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने हेतु आपको अतिरिक्त परिश्रम करना पड़ सकता है ।


कुम्भ- 

    इस अवधि में शुक्र चन्द्रमा से आपके नवम् भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह आपकी मंजूषा में नए वस्त्र संचित करने का सूचक है । इसके अतिरिक्त यह शारीरिक व भौतिक सुख व आनन्द का परिचायक है ।  वित्तीय लाभ व मूल्यवान आभूषणों का उपभोग भी इस समय की विशेषता है । व्यापार अबाध गति से चलेगा व संतोषजनक लाभ होगा ।  यह समय शिक्षा में सफलता भी इंगित करता है । स्वास्थ्य अच्छा रहेगा ।  घर परिवार में आपको भाई - बहनों का सहयोग व स्नेह पहले से भी अधिक मिलेगा । आपके घर कुछ मांगलिक कार्य सम्पन्न होंगे और यदि अविवाहित हैं तो विवाह करने का निर्णय ले सकते हैं । आपको आपका मनपसन्द जीवन साथी मिलेगा जो सौभाग्य लेकर आएगा ।  यह समय सामाजिक गतिविधियों के संचालन का है अतः आपके नए मित्र बनाने की संभावना है । आपको आध्यात्म की राह दिखाने वाला पथ - प्रदर्शक भी मिल सकता है । कला में आपकी अभिरुचि इस दौरान बढ़ेगी । आपके सद्गुणों सत्कृत्यों की ओर स्वतः ही सबका ध्यान आकृष्ट होगा । अतः आपकी सामाजिक प्रतिष्ठा में चार चाँद लगेंगे ।  इस समय मनोकामनाएँ पूर्ण होंगी व शत्रुओं की पराजय होगी । यदि आप किसी प्रकार के तर्क - वितर्क में लिप्त हैं तो आपके ही जीतने की ही संभावना है । आप इस दौरान लम्बी यात्रा पर जाने का मानस बना सकते हैं । 


मीन-

   इस अवधि में शुक्र चन्द्रमा से आपके आठवें भाव में होते हुए गोचर करेगा । यह अच्छे समय का प्रतीक है । इस विशेष समय में आप भौतिक सुख-साधनों की आशा कर सकते हैं तथा पूर्व में आई विपत्तियों पर विजय पा सकते हैं । आप भूमि जायदाद व मकान लेने के विषय में विचार कर सकते हैं ।  यदि आप अविवाहित युवक या युवती हैं तो अच्छी वधू / वर मिलने की आशा है जो सौभाग्य भी लाएगी / लाएगा । आप मनोहारी व सुन्दर महिलाओं का साथ पाने की आशा रख सकते हैं ।  स्वास्थ इस दौरान अच्छा रहेगा ।  यदि आप विद्यार्थी हैं तो और अधिक उन्नति करेंगे । आपकी प्रखरता की ओर सबका ध्यान जाएगा अत: सामाजिक वृत्त में  आपका मान व प्रतिष्ठा बढ़ेगी ।  व्यवसाय हेतु अच्छा समय है । व्यापार व व्यवसाय शुभ - चिन्तकों व मित्रों की सहायता से फूलेगा। किसी राजकीय पदाधिकारी से मिलने की संभावना है 


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Sunday, 29 August 2021

Rahu ketu ki drishti bhi hoti hai ya kalpana matra hi hai ? janiye is lekh me / राहु-केतु की दृष्टि भी होती है या कल्पना मात्र ही है ? जानिए इस लेख में

Posted by Dr.Nishant Pareek

Rahu ketu ki drishti bhi hoti hai ya kalpana matra hi hai ? janiye is lekh me


राहु-केतु की दृष्टि भी होती है या कल्पना मात्र ही है ?  जानिए इस लेख में 

 भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से ही राहु-केतु को नवग्रह में मानते आये हैं। इनका भाव गत प्रभाव है। विंशोत्तरी दशा में इनके दशा भोग काल के वर्ष हैं। इनकी स्थिति का प्रत्यक्ष प्रभाव अनुभव में आता है। राहु-केतु ठोस आकाशीय पिण्ड न होकर छाया ग्रह के नाम से सम्बोधित किये गये हैं। फिर भी इनका इतना महत्त्व है कि नवग्रहों में इनका पूजन होता है। सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि विद्वानों में राहु-केतु की दृष्टि के विषय में मतभेद है।

सबसे पहले यह ज्ञान होना आवश्यक है कि राहु-केतु क्या है ? आकाशीय पिण्डों के विषय में तो आधुनिक विज्ञान ने प्रचुर अन्वेषण कर लिया है और अभी भी प्रयासरत हैं किन्तु राहु-केतु दृश्यमान ग्रह नहीं हैं। यहाँ अमृत मंथन के समय को राहु द्वारा देवता के वेश में अमृतपान करने की पौराणिक कथा से समस्या का समाधान नहीं होगा। वह तो प्रतीकात्मक भाषा में एक गूढ़ आध्यात्मिक विषय है। दृष्टि के निर्णय के लिए वैज्ञानिक आधार चाहिए इसलिए खगोल की दृष्टि से राहु केतु क्या हैं यदि हम इस समझ लें, तो हमें इनकी दृष्टि समझने में सुविधा होगी।

खगोल की दृष्टि से राहु-केतु वे दो अदृश्य गणितागत बिन्दु हैं जहाँ चन्द्रमा की कक्षा क्रान्ति वृत्त को काटती है। इन दोनों बिंदुओं को राहु और केतु कहते हैं। चूंकि दिखाई नहीं देते इसलिए इन्हें छाया ग्रह या तमौ ग्रह कहा गया है। इस तथ्य का हमारे प्राचीन आचार्यों को सदा से ज्ञान था। यदि ज्ञान नहीं होता, तो सूर्य-चन्द्र ग्रहण की शुद्ध गणना कैसे करते। इसलिए इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि ये बिन्दु आधुनिक विज्ञान की खोज हैं, पूर्व के ज्योतिर्विदों को इनका ज्ञान नहीं था। ग्रहण में इनका अत्यन्त महत्त्व है। दूसरे शब्दों में ग्रहण के समय छाया के रूप में इनका दर्शन होता है। यह गणितागत कटान बिन्दु सदैव एक दूसरे से १८० अंश पर रहते हुए गतिशील हैं। ये वक्र गति में चलायमान हैं। इनकी एक निश्चित गति, ३ कला ११ विकला (मध्यममान) दैनिक है।

इस प्रकार यह स्पष्ट हो गया कि राहु-केतु ठोस आकाशीय पिण्ड नहीं हैं किन्तु ग्रहण के कारण, संवेदनशील, काल गणना के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। इसीलिए भारतीय मनीषियों ने अपनी दिव्यदृष्टि से इनके प्रभाव को समझ कर इन्हें नवग्रहों में स्थान दिया है। इनके स्थान परत्व फल भी दिये हैं।

यदि प्रकाश का प्रभाव है तो छाया का भी प्रभाव है, भले ही वह नकारात्मक हो। यदि प्रकाश जीवन, चेतना, क्रियाशीलता का प्रतीक है तो तम (अंधकार) इसका नकारात्मक पक्ष है। अंधकार का अर्थ है - प्रकाश का अभाव। सूर्य के प्रकाश से जीवन और चेतना प्राप्त होती है इसलिए सूर्य देव स्वरूप हैं। राहु ‘तम है इसलिए असुर है। जैसे वृक्ष सूर्य के प्रकाश में अवरोध उत्पन्न कर छाया का निर्माण करता है। इसीलिए वृक्ष की छाया तले दूसरे पौधे नहीं पनपते, पीले पड़ जाते हैं। ऐसे ही राहु कुण्डली के जिस भाव में स्थित होता है उस स्थान का विनाश करता है। कुछ ग्रन्थों में राहु-केतु की उच्च राशि का वर्णन आया है - वृषभ और एक मत से मिथुन राहु की उच्च राशि मानी गयी है। ऐसे ही स्वराशि का भी उल्लेख प्राप्त होता है किन्तु अनुभव में यही आता है कि यह चाहे जिस राशि में हो, जिस भाव में होता है उससे सम्बन्धित विषय वस्तुओं पर अपनी छाया का दुष्प्रभाव अवश्य डालता है। यहाँ यह शंका उत्पन्न होती है कि फिर महर्षि पराशर ने राहु को योगकारक (शुभ फलदायक) क्यों बताया ? जैसे- लघु पाराशरी में अंकित है -

तमौ ग्रहो शुभारूढावसम्बन्धेन केनचित्।

अन्तर्दशानुसारेण भवेतां योग कारकौ।। 

वे कौन सी परिस्थितियाँ हैं जब राहु शुभ फल दे जाता है इसे उपर्युक्त श्लोक में स्पष्ट किया है। “शुभ योग कारक ग्रह के साथ सम्बन्ध होने से शुभ फल देता है। योगकारक हो जाता है। जैसे त्रिकोणेश के साथ केन्द्र में बैठने से अथवा केन्द्र के स्वामी के साथ त्रिकोण में स्थित होने से, विशेष कर नवमेश के साथ दशम में या दशमेश के साथ नवम में होने से योगकारक हो जाता है।

इसी प्रकार हम राहु की वृष या मिथुन उच्च राशि मान लें तो उसमें भी हम शुभ फल की कल्पना कर सकते हैं। किन्तु कब? क्या सदैव शुभ फल प्राप्त होता रहेगा?

इसका निराकरण महर्षि पराशर ने इस प्रकार किया है। जब योगकारक ग्रह की महादशा में राहु की अन्तरदशा या राहु की महादशा में योगकारक ग्रह की अंतर्दशा होगी, उस काल खण्ड में शुभ फल दे जायेगा। हमेशा नहीं देगा। मूलरूप में अशुभ ही रहेगा। 

कुंडली के जिस भाव में राहु स्थित है उसे वृक्ष की छाया तले जमे पौधे की तरह पनपने नहीं देगा। उच्च राशि का होने पर भी यदि लग्न में है तो शरीर को अस्वस्थ करेगा। विचार स्थिर नहीं होंगे। दूसरे भाव में हो तो धन और कुटुंब वृद्धि में बाधक होगा, वाणी कठोर होगी। तीसरे भाव में साहस की वृद्धि तो होती है, परन्तु भाई के लिए अशुभ हो जायेगा। इसी प्रकार प्रत्येक भाव में अपना अशुभ प्रभाव प्रदान करेगा। इसलिए चाहे योगकारक हो, चाहे उच्च राशि में। पराशर के कथनानुसार अपनी दशा अन्तरदशा में ही शुभ फलों की झलक दिखायेगा। इसलिए कि कुछ काल के लिए शुभ ग्रह के अथवा उच्च राशि के प्रकाश से प्रकाशित हो गया है। शुभ प्रभाव के हटते ही वापस अपने मूलरूप अशुभता में आ जायेगा।

राहु-केतु के विषय में उपर्युक्त विवरण समझ लेना इसलिए आवश्यक है कि इससे राहु केतु की दृष्टि के विषय में निर्णय लेने में सुविधा होगी।

राहु-केतु की दृष्टि पर मतभेद का कारण यह है कि कुछ प्राचीन ग्रन्थों में (सब में नहीं) राहु-केतु की दृष्टि की चर्चा हुई है। जैसे -

सुतमदननवान्ते पूर्ण दृष्टि तमस्य। 

युगल दशम गेहें चार्द्ध दृष्टिं वदन्ति।। 

सहज रिपु गृहक्र्षे पाद दृष्टिं युनीन्द्रैः।

निज भवन उपेतो लोचनान्धः प्रदिष्टः।। 

उपर्युक्त श्लोक में राहु की पंचम, सप्तम, नवम, द्वादश पूर्ण दृष्टि बताई गयी है इसके अतिरिक्त पाद दृष्टि का उल्लेख है। 

सर्वार्थ चिन्तामणि में निम्नांकित श्लोक उपलब्ध है -

क्षीणेन्दु पाप संदृष्टो राहु दृष्टो विशेषतः 

जातो यम पुरं याति दिनैः कतिपयैः किल।

                                                                                    -सर्वार्थ चिन्तामणि अ० १०, श्लोक ६६ 

 श्री वैद्यनाथ दीक्षित ने लिखा है -

सिंहासक स्थिते मन्दे राहुणा च निरीक्षिते। 

शस्त्र पीड़ा भवेत्तस्य चायुः पंच दशाब्दकम्।। 

कर्काशंक स्थिते मन्दे केतु दृष्टि समन्विते। 

सर्प पीड़ा भवेत्तस्य षोडशाब्दान्मृति भवेत्।।

                                                                                   -जातक पारिजात अ० ४ श्लोक ५५-५६

             वेंकट और वैद्यनाथ ने यह कहीं नहीं लिखा है कि राहु-केतु की कौन सी दृष्टि होती है।

 ज्योतिष श्याम संग्रह में कहा है -

सुतस्ते शुभे पूर्ण दृष्टिं तमस्य तृतीये रिपौ पाद दृष्टिं नितान्तम्।

धने राज्य गेहेऽधं दृष्टिं बदन्ति स्वगेहे त्रिपादं तथैवाह केतोः।।

तात्पर्य यह है कि कुछ ग्रन्थों में राहु-केतु की दृष्टि का उल्लेख है और वे दृष्टियाँ पंचम, सप्तम और नवम बतायी गयी हैं। इसके अतिरिक्त एकपाद, द्विपाद और त्रिपाद दृष्टि भी मानी गयी हैं।

बृहत्पाराशर होरा शास्त्र का श्लोक प्रक्षिप्त प्रतीत होता है। क्योंकि यदि यह मूल पाराशरी में होता, तो वराह मिहिर इसका उल्लेख अवश्य करते। उन्होंने बृहज्जातक के ग्रह भेदाध्याय में मात्र इन ग्रहों के नाम का उल्लेख किया है -

राहुस्तमोऽगुरसुरश्च शिखी च केतुः 

अर्थात् राहु के तम, अगु तथा असुर और केतु का शिखी नाम है। आगे पूरे अध्याय में राहु-केतु की कोई चर्चा नहीं है। 

महर्षि पराशर ने इनके विषय में कहा है -

यद्यद्भाव गतौवापि यद्यद्भावेश संयुतौ।

तत्तद् फलानि प्रबलौ प्रदिशेतां तमो ग्रहौ।। 

अर्थात् राहु केतु जिस-जिस भाव में हों तथा जिस-जिस भावेश के साथ हों, उसका फल प्रबल रूप से देते हैं। अर्थात् इनका स्थान अन्य दृश्यमान ग्रहों से भिन्न है। 

ऐसा ही सुश्लोक शतक में भी कहा है -

यद् ग्रहस्य तु सम्बन्धी तत्फलाय तमो ग्रहः। 

अदृश्य ग्रह होने से इन्हें किसी राशि का स्वामित्व नहीं प्राप्त है। राशियों के स्वामित्व की इनकी जो बात कही जाती है वह बाद की कल्पना है, संदेहास्पद है। वस्तुतः राशियों के गुण धर्म के अनुसार ग्रह का गुण धर्म देखते हुए केवल दृश्यमान ग्रहों को ही राशियों का स्वामित्व दिया गया है जो कि विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरता है। कक्षा के आधार पर जब सप्ताह के सात दिन निश्चित किये गये, तो दृश्यमान ग्रहों के ही किए गये। षड्बल गणित में राहु-केतु का दृक् बल और चेष्टा बल नहीं दिया जाता। अष्टक वर्ग में केवल यवन जातक ने इन्हें सम्मिलित किया, अन्य किसी ग्रन्थकार ने नहीं। पाराशरी के व्याख्याकार विद्वानों ने इनका दूसरे ग्रह से सह स्थान सम्बन्ध माना है दृष्टि का सम्बन्ध नहीं। यद्यपि कुछ विद्वानों ने राहु-केतु की स्व राशि की कल्पना की है जैसी आजकल यूरेनस, नेप्चयून और प्लूटो की की जा रही है किन्तु ज्योतिष के प्राचीन ग्रन्थों में राह-केतु की स्व राशि और ग्रहों के नैसर्गिक मैत्री चक्र में इन्हें स्थान नहीं दिया। इनके स्थान परक फल मात्र दिये हैं। ऐसी स्थिति में इन ग्रहों की ही है, यह कथन निम्नांकित आधारों पर संदेहास्पद हो जाता है

 राहु-केतु की तीन दृष्टियाँ पंचम, सप्तम, नवम और तीन पाद दृष्टियाँ इस प्रकार प्रत्येक की ६ दृष्टियाँ हुई। अर्थात् यह दोनों ग्रह मिलकर बारह स्थानों पर दृष्टियां देंगे। यदि नैसर्गिक अशुभ ग्रह शनि की भी ६ दृष्टियाँ तथा मंगल की भी ६ ले ली जायें, तो इन चार अशुभ ग्रहों की दृष्टियों का योग ६ ़ ६ ़ ६ ़ ६ =२४ हुआ। भाव कुल १२ होते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि कम से कम हर भाव पर एक अशुभ दृष्टि और कुल भावों पर एक से अधिक होगी। यदि फलों का विश्लेषण करें, तो प्रत्येक जातक का जीवन नारकीय हो जायेगा। गुरु और शुक्र

की शुभ दृष्टि अपनी शुभता से कुण्डली को कहाँ तक बचा पायेगी। यदि राहु-केतु की सातवीं दृष्टि मानते हैं तो एक विवाद उत्पन्न होता है। वह यह कि ये दोनों ग्रह सदा एक दूसरे से १८० अंश पर ही रहते हैं। तो इनके अपने गुण प्रभाव का निरूपण कैसे होगा। सुत मदन नवान्ते श्लोक में पंचम, सप्तम, नवम, द्वादश दृष्टि कही गयी है जिसके आधार पर कुछ विद्वान् राहु-केतु की पाँचवीं और नवीं दृष्टि मानते हैं किन्तु सातवीं को छोड़ देते हैं, क्योंकि उसमें रुकावट है। इसलिए या तो इस श्लोक को पूरा का पूरा माना जाए या बिल्कुल भी न माना जाये।

यदि यह सत्य है कि राहु-केतु की पंचम नवम दृष्टि है और वह अशुभ है तो सभी जन्मांगों में राहु से पांचवां और नवां भाव तथा वहां स्थित ग्रह अशुभ हो जाने चाहिये। परंतु वास्तव में ऐसा होता है क्या ? यह अपने ही किसी की कुंडली में हमें स्वयं अनुभव करके देखना चाहिये।

प्रत्येक ऐसा ज्योतिषी, जो राहु-केतु की दृष्टि के विवाद के विषय में किसी निर्णय पर पहुँचना चाहता है, पहले अपनी कुण्डली पर देखे, तत्पश्चात् अन्य कुण्डली बिना चयन के लेकर देखे कि इन जातकों के राहु और केतु से पाँचवे और नवें भाव तथा उनमें स्थित ग्रहों का क्या फल हुआ है। यदि अशुभ या शुभ फल हुआ, तो किसी अन्य ग्रह का उस पर प्रभाव तो नहीं है। अर्थात् मात्र राहु-केतु की दृष्टि ही देखें। इसके आँकड़े तैयार करें, प्रतिशत निकालें। यदि ९० प्रतिशत मात्र राहु-केतु की दृष्टि से अशुभ होते सिद्ध हों, तो इनकी दृष्टि मान लेनी चाहिए, यदि ऐसा न हो, तो नहीं माननी चाहिए।

अपने अध्ययन और अनुसंधान के आधार पर हम यही कह सकते है कि राहु और केतु की कहीं भी दृष्टि नहीं पड़ती। उनका शुभ अथवा अशुभ प्रभाव उनकी स्थिति और युति के अनुरूप सम्बन्धित भाव, भावाधिपति और संयुक्त ग्रहों को प्रभावित करता है। कल्याण वर्मा ने सारावली में सर्प योग का विस्तृत वर्णन किया है। शान्तिरत्नम् में भी कालसर्प योग की चर्चा की गयी है। जैन ज्योतिष में कालसर्प योग की संरचना का विवेचन विद्यमान है। माणिक चन्द्र जैन ने अपना संपूर्ण जीवन राहु और केतु के ऊपर शोध करने में ही व्यतीत कर दिया तथा उन्होंने यह सिद्ध किया कि ग्रहणकाल में सूर्य तथा चन्द्र के राहु और केतु की धुरी पर स्थित होने के कारण जिस प्रकार की स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं, उसी प्रकार की स्थिति कालसर्प योग में जन्म लेने वाले व्यक्ति के साथ भी पनपती है।

कालसर्प योग के सन्दर्भ में निम्नांकित कथन उद्धरणीय हैं 

अग्रे वा चेत पृष्ठतो, प्रत्येक पाश्र्वे भाताष्टके राहुकेत्वोन खेटः। 

योग प्रोक्ता सर्पश्च तस्मिन् जीतो जीतः व्यर्थ पुत्रर्ति पीयात्।।

राहु केतु मध्ये सप्तो विघ्ना हा कालसर्प सारिक।

सुतयासादि सकलादोषा रोगेन प्रवासे चरणं ध्रुवम् ।। 

कालसर्पयोगस्थ विषविषाक्त जीवणे भयावह पुनः पुनरपि शोक च योषने रोगान्ताधिकं पूर्वजन्मकृतं पापं ब्रह्मशापात् सुतक्षयः किचित धु्रवम्।।

प्रेतादिवशं सुखं सौख्यं विनश्यति।।

अर्थात् राहु केतु के मध्य समस्त ग्रह होने चाहिये। साथ ही एक भी स्थान खाली नहीं होना चाहिये, ऐसी स्थिति में ही कालसर्प योग बनता है। परंतु फिर भी अनेक मूर्धन्य विद्वान् कालसर्प योग की उपस्थिति से सहमत नहीं है। वे कहते है कि किसी भी प्राचीन ग्रंथ में कालसर्प योग का वर्णन नहीं है। 

इसमें एक विशेष बात यह भी है कि यदि राहु विशाखा नक्षत्र में हो और पूर्ण कालसर्प योग बन रहा हो तो भी उसका अशुभ प्रभाव नहीं पडता। कालसर्प योग प्रभावहीन हो जाता है। इसके अलावा अन्य अनेक ग्रहयोग है, जिनके प्रभाव से कालसर्प योग प्रभावहीन हो जाता है। जिनका आगे के लेखों में वर्णन करेंगे। 


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