Tuesday 21 April 2020

Shakuni ke pase uska kahna kyo mante the. janiye rahasya / शकुनि के पासे उसका कहना क्यों मानते थे ? जानिये रहस्य

Posted by Dr.Nishant Pareek

शकुनि के पासे उसका कहना क्यों मानते थे ? जानिये रहस्य

Shakuni ke pase uska kahna kyo mante the. janiye rahasya 


क्या आपको पता है कि शकुनि के पासे उसके कहने में चलते थे ? नहीं जानतें। तो आज हम आपको बताते है कि शकुनि के पासे उसके कहने में चलते थे। जितनी संख्या शकुनि मांगता था, उतनी ही संख्या वे पासे उसे देते थे। जिससे उसने पांडवों का सब कुछ जीत लिया था।

वास्तव में झगडे की शुरूआत द्रोपदी के कारण हुई थी। युधिष्ठिर द्वारा किए गए राजसूय यज्ञ के दौरान दुर्योधन को यह नगरी देखने का मौका मिला। महल में प्रवेश करने के बाद एक विशाल कक्ष में पानी की उस भूमि को दुर्योधन ने गलती से असल भूमि समझकर उस पर पैर रख दिया और वह उस पानी में गिर गया। यह देख पांडवों की पत्नी द्रौपदी उन पर हंस पड़ीं और कहा कि श्एक अंधे का पुत्र अंधा ही होता हैश्। यह सुन दुर्योधन बेहद क्रोधित हो उठा।

इस अपमान का बदला लेने के लिये दुर्योधन और शकुनि ने पासों का खेल खेलने की योजना बनाई। शकुनि ने कहा कि तुम इस खेल में पांडवों को हराकर अपने अपमान का बदला ले सकते हो। खेल के जरिए पांडवों को मात देने के लिए शकुनि ने बड़े प्रेम भाव से सभी पांडु पुत्रों को खेलने के लिए आमंत्रित किया।
अपने पासों पर शकुनि का इतना हाथ सिद्ध था कि वह जो अंक चाहता वे अंक पासों पर आते थे। एक तरह से उसने पासों को सिद्ध कर लिया था कि उसकी अंगुलियों के घुमाव पर ही पासों के अंक निश्चित थे।  शुरुआत में पांडवों का उत्साह बढ़ाने के लिए शकुनि ने दुर्योधन को आरंभ में कुछ पारियों की जीत युधिष्ठिर के पक्ष में चले जाने को कहा जिससे कि पांडवों में खेल के प्रति उत्साह उत्पन्न हो सके। धीरे-धीरे खेल के उत्साह में युधिष्ठिर अपनी सारी दौलत व साम्राज्य जुए में हार गए।

शकुनि के पासे उसके कहने में क्यों चलते थे ?

यह बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि शकुनि के पास जुआ खेलने के लिए जो पासे होते थे वह उसके मृत पिता के रीढ़ की हड्डी के थे। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात शकुनि ने उनकी कुछ हड्डियां अपने पास रख ली थीं। शकुनि जुआ खेलने में पारंगत था और उसने कौरवों में भी जुए के प्रति मोह जगा दिया था।

ऐसा भी कहा जाता है कि शकुनि के पासे में उसके पिता की आत्मा वास कर गई थी जिसकी वजह से वह पासा शकुनि की ही बात मानता था। कहते हैं कि शकुनि के पिता ने मरने से पहले शकुनी से कहा था कि मेरे मरने के बाद मेरी हड्डियों से पासा बनाना, ये पासे हमेशा तुम्हारी आज्ञा मानेंगे, तुमको जुए में कोई हरा नहीं सकेगा।

शकुनि की बदले की भावना कि इस कहानी का वर्णन वेदव्यास कृत महाभारत में नहीं मिलता है। यह कहानी लोककथा और जनश्रुतियों पर आधारित है कि उसके परिवार को धृतराष्ट्र ने जेल में डाल दिया था जहां उसके माता, पिता और भाई भूख से मारे गए थे। बहुत से विद्वानों का मत है कि शकुनि के पासे हाथीदांत के बने हुए थे। शकुनि मायाजाल और सम्मोहन की मदद से पासो को अपने पक्ष में पलट देता था। जब पांसे फेंके जाते थे तो कई बार उनके निर्णय पांडवों के पक्ष में होते थे, ताकि पांडव भ्रम में रहे कि पासे सही है।

इस प्रकार शकुनि ने अपने पासों से पांडवों और कौरवों, दोनों को ही बरबाद कर दिया।

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