नवें भाव में गुरु का शुभ अशुभ सामान्य फल
शुभ फल : नवम भाव मे गुरु होने से जातक धार्मिक, सच बोलनेवाला, नीतिमान्, विचारी और माननीय होता है। जातक स्वभाव से शान्त और सदाचारी होता है-ऊँचे बिचारों का होता है। तीर्थाटन और देवता-गुरू व ब्राह्मणों में श्रद्धा देता है तथा जातक को पुण्यकर्मा बनाता है। जातक साधुओं के संगति में रहनेवाला, भक्त, योगी, वेदान्ती, शास्त्रज्ञ, इच्छारहित और ब्रह्यवेत्ता होता है। जातक तपस्वी अर्थात् तपश्चर्या करनेवाला होता है। यह ज्ञानी, सर्वशास्त्रज्ञ, विद्वान, स्वकुलाचारपरायण और कुल को बढ़ाने वाला होता है। सभी शास्त्रों और कलाओं में पूर्णतया अभ्यस्त, व्रती और देवपितृभक्त होता है। जातक तीर्थयात्रा और धर्मिक कार्यों में प्रेम रखने वाला होता है। पराक्रमी, यशस्वी, विख्यात, मनुष्यों में श्रेष्ठ, भाग्यवान, साधुस्वभाव का होता है। जातक बहुत यज्ञ करता है। 35 वें वर्ष में देवयज्ञ करता है।
नवम बृहस्पति अध्यात्मज्ञान, और योगाभ्यास का द्योतक है। अन्तर्ज्ञान या भविष्य का ज्ञान प्राप्त होता है। न्यायकार्य, लेखन आदि के लिए गुरु शुभ है। जातक को मकान का सुख पूर्ण रूप से मिलता है । जन्मलग्न से नवेंस्थान में बृहस्पति होने से जातक का घर चारखण्ड (चारमंजिल) या चार चौक का होता है। बृहस्पति नवमभाव में होने से जातक का मकान पीला-लाल-हरे रंग से चित्रित चौकोर चारमन्जिल का होता है। जातक राजा का प्रेमपात्र होता है। जातक पर राजा की बहुत कृपा रहती है। जातक राजमंत्री, राजमान्य, नेता, या प्रधान होता है और बहुतों का स्वामी अर्थात् पालक होता है। राज्य और समाज में सम्मानित होता है और प्रसिद्ध होता है। धनवान्, धनाढ़्य होता है। सभी प्रकार की संपत्ति बढ़ती है। राजा जैसा ऐश्वर्य मिलता है। जीवनभर सुख मिलता है। और स्त्रियों को प्रिय होता है। जातक का पिता दीर्घायु होता है, अच्छे काम करता है, अत एव बहुत आदर और सम्मान पाता है।
नवम स्थान में स्थित बृहस्पति से हाथी-घोड़ों (वाहन) का सुख होता है। जातक भाई वंद और सेवकों से युक्त होता है। जातक के भाई-बन्धु जातक के प्रति विनीत और विनम्र व्यवहार करते हैं। जातक को कानून के काम, क्लर्क का काम, धार्मिक विषय, वेदांत, दूर के प्रवास से लाभ होता है। विवाह सम्बन्ध से जो नए रिश्तेदार होते हैं उनसे अच्छा सुखप्राप्त होता है। नवमभाव का गुरु भाइयों की कुटुम्ब में एकत्र स्थिति के अनुकूल नहीं है-एकत्र स्थिति में दोनों भाई प्रगतिशील नहीं होंगे। गुरु मेष, सिंह, धनु या मीन में होने से जातक एम.ए., एल.एल.बी., पी.एच.डी. आदि ऊची पदवियां प्राप्त करता है इस व्यक्ति को प्रोफेसर उपकुल गुरु आदि पद प्राप्त होते हैं।
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अशुभफल : जातक किसी भी कार्य को प्रारम्भ से अन्त तक ले जाने के पहले ही छोड़ देता है। किसी भी विषय को थोड़ा ज्ञान होने पर आलस्य एवं प्रमादवश छोड़ बैठना जातक का स्वभाव होता है। जातक आलस्य से धर्म में उदासीन होता है, अर्थात् नित्यकर्म संध्यावंदनादि मे भी आलस्य करता है। गुरु पीडि़त होने से ऊपरी दिखावा, वृथा अभिमान बहुत होता है। वाहियात वर्ताव से जातक की बेइज्जती होती है।
नवमस्थान का गुरु पुत्र-चिन्ता बनाए रखता है। पुत्र होता नहीं-लड़की होती है-पुत्र चिन्ता बनी रहती है। पुत्र होता है, जीवित नहीं रहता है पुत्र चिन्ता बनी रहती है। जीवित तो रहता है किन्तु उच्छृख्ंल तथा विरुद्धाचारी होता है, पुत्र चिन्ता बनी रहती है। सुशिक्षित तो होता है किन्तु बरताव अच्छा नहीं करता, पुत्रचिन्ता बनी रहती है। नवमस्थान पितृस्थान है। किन्तु 'माता की मृत्यु होती है' बृहद्यवनजातक का यह फल भी सम्भव है। माता-पिता दोनों की मृत्यु भी सम्भव है। गुरु पुरुष राशि में होने से भाई-बहिनों के लिए नेष्ट है-भाई-बहनें थोड़ी होती हैं। पुरुषराशि का गुरु अल्प संतति(पुत्र) दाता है-एक या दो पुत्र, कन्याओं के बाद होते हैं।