चौथे भाव में गुरु का शुभ अशुभ सामान्य फल
शुभ फल : चौथे स्थान में बृहस्पति होने से जातक रूपवान्, बली, बुद्धिमान्, अच्छे हृदयवाला तथा मेधावी होता है। वाक्पटु, महत्वाकांक्षी और शुभकर्म करनेवाला होता है। जातक उद्यमी, कार्यरत, उद्योगी, यशस्वी और कुल में मुख्य होता है। लोक में आदर पानेवाला होता है। सब लोग जातक की प्रशंसा करते हैं। ब्राह्मणों का आदर-सम्मान करने वाला होता है। गुरुजनों का भक्त होता है। नौकरों-चाकरों और सवारी का सुख मिलता है। नानाप्रकार के वाहन आदि की प्राप्ति से सदैव आनंद मिलता है। कई प्रकार के वाहन चलाने की योग्यता रखता है। घर के दरवाजे पर बँधे हुए घोड़ों की हिनहिनाहट सुनाई देती है।
जातक के पास सवारी के लिए घोड़ा होता है। जातक का घर बड़ा विस्तृत और सुख-सुविधा युक्त होता है। राजा द्वारा दिए गए घर (राजकीय आवास) के सुख से युक्त होता है। जातक के घर पर पाण्डित्य पूर्ण शास्त्रार्थ-वाद-विवाद होते हैं। माता का सुख एवं स्नेह का पात्र बनता है। माता-पिता की सेवा करने वाला होता है। माता-पिता पर भक्ति होती है। और उनसे अच्छा लाभ होता है।
बृहस्पति अपरिमित सुख देता है। माता, मित्र, वस्त्र, स्त्री, धान्य आदि का सुख प्राप्त होता है।जातक को भूमि का सुख मिलता है। राजा की कृपा से (सरकार से) जातक को धन मिलता है। जातक के पास अच्छा दूध देने वाले दुधारू पशु होते हैं। अर्थात् यह पशु-धन संपन्न होता है। मित्रों से सुख मिलता है। वचपन के मित्र प्राप्त होते हैं। उत्तम वस्त्र और पुष्पमालाएँ प्राप्त होती हैं। आयु के अंतिमभाग में विजय प्राप्त होती है। पुरुषराशियों में शुभफल मिलते हैं। गुरु बलवान् होने से पिता की स्थिति बहुत अच्छी होती है। पिता सुखी होते हैं।
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अशुभफल : सन्तानाभाव के कारण दुखी रहता है। जातक का अन्तष्करण चिन्तायुक्त रहता है। वैद्यनाथ ने "जातक कपटी होता है" ऐसा अशुभफल कहा है। पूर्वजों की संपत्ति का नाश-अथवा अभाव, परिश्रम और कष्ट से स्वयं धन का उपार्जन, उत्तर आयुष्यकुछ अच्छा, आयु के पूर्वार्ध में कष्ट, पूर्वाजित संपत्ति का नाश अपने ही हाथों से होना, अथवा किसी ट्रस्टी द्वारा इसका हड़प हो जाना। पितृसुख शीघ्रनष्ट होता है।
मातृजीवन में भाग्योदय नहीं होता है। माता-पिता जीवित रहें तो इन्हें पुत्रोपार्जित धन का सुख नहीं मिलता- जातक स्वयं भी प्रगतिशील नहीं होता-नौकरी हो तो इसमें शीघ्र उन्नति नहीं होती। व्यापार हो तो प्रगति बहुत धीमी होती है। जातक उतार-चढ़ाव के चक्र में पड़ा रहता है-कभी 12 वर्ष अच्छे, तो कभी 12 वर्ष बुरे बीतते हैं।
मेष, सिंह या धनु में चतुर्थभाव का गुरु होने से घर-बाग-बगीचा हो ऐसी प्रबल इच्छाएँ होती हैं, किन्तु इस विषय में व्यक्ति चिंताग्रस्त ही रहता है। आयु के अंत में घर तो हो जाता है किन्तु अन्य इच्छाएँ बनी रहती हैं, पूर्ण नहीं होती है। चतुर्थेश के साथ पापग्रह होने से, या पापग्रहों की दृष्टि होने से घर और वाहन नहीं होते। दूसरे के घर रहना पड़ता है-जमीन नहीं होती माता की मृत्यु होती है। भाई-बंधुओं से द्वेष होता है।
शुभ फल : चौथे स्थान में बृहस्पति होने से जातक रूपवान्, बली, बुद्धिमान्, अच्छे हृदयवाला तथा मेधावी होता है। वाक्पटु, महत्वाकांक्षी और शुभकर्म करनेवाला होता है। जातक उद्यमी, कार्यरत, उद्योगी, यशस्वी और कुल में मुख्य होता है। लोक में आदर पानेवाला होता है। सब लोग जातक की प्रशंसा करते हैं। ब्राह्मणों का आदर-सम्मान करने वाला होता है। गुरुजनों का भक्त होता है। नौकरों-चाकरों और सवारी का सुख मिलता है। नानाप्रकार के वाहन आदि की प्राप्ति से सदैव आनंद मिलता है। कई प्रकार के वाहन चलाने की योग्यता रखता है। घर के दरवाजे पर बँधे हुए घोड़ों की हिनहिनाहट सुनाई देती है।
जातक के पास सवारी के लिए घोड़ा होता है। जातक का घर बड़ा विस्तृत और सुख-सुविधा युक्त होता है। राजा द्वारा दिए गए घर (राजकीय आवास) के सुख से युक्त होता है। जातक के घर पर पाण्डित्य पूर्ण शास्त्रार्थ-वाद-विवाद होते हैं। माता का सुख एवं स्नेह का पात्र बनता है। माता-पिता की सेवा करने वाला होता है। माता-पिता पर भक्ति होती है। और उनसे अच्छा लाभ होता है।
बृहस्पति अपरिमित सुख देता है। माता, मित्र, वस्त्र, स्त्री, धान्य आदि का सुख प्राप्त होता है।जातक को भूमि का सुख मिलता है। राजा की कृपा से (सरकार से) जातक को धन मिलता है। जातक के पास अच्छा दूध देने वाले दुधारू पशु होते हैं। अर्थात् यह पशु-धन संपन्न होता है। मित्रों से सुख मिलता है। वचपन के मित्र प्राप्त होते हैं। उत्तम वस्त्र और पुष्पमालाएँ प्राप्त होती हैं। आयु के अंतिमभाग में विजय प्राप्त होती है। पुरुषराशियों में शुभफल मिलते हैं। गुरु बलवान् होने से पिता की स्थिति बहुत अच्छी होती है। पिता सुखी होते हैं।
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अशुभफल : सन्तानाभाव के कारण दुखी रहता है। जातक का अन्तष्करण चिन्तायुक्त रहता है। वैद्यनाथ ने "जातक कपटी होता है" ऐसा अशुभफल कहा है। पूर्वजों की संपत्ति का नाश-अथवा अभाव, परिश्रम और कष्ट से स्वयं धन का उपार्जन, उत्तर आयुष्यकुछ अच्छा, आयु के पूर्वार्ध में कष्ट, पूर्वाजित संपत्ति का नाश अपने ही हाथों से होना, अथवा किसी ट्रस्टी द्वारा इसका हड़प हो जाना। पितृसुख शीघ्रनष्ट होता है।
मातृजीवन में भाग्योदय नहीं होता है। माता-पिता जीवित रहें तो इन्हें पुत्रोपार्जित धन का सुख नहीं मिलता- जातक स्वयं भी प्रगतिशील नहीं होता-नौकरी हो तो इसमें शीघ्र उन्नति नहीं होती। व्यापार हो तो प्रगति बहुत धीमी होती है। जातक उतार-चढ़ाव के चक्र में पड़ा रहता है-कभी 12 वर्ष अच्छे, तो कभी 12 वर्ष बुरे बीतते हैं।
मेष, सिंह या धनु में चतुर्थभाव का गुरु होने से घर-बाग-बगीचा हो ऐसी प्रबल इच्छाएँ होती हैं, किन्तु इस विषय में व्यक्ति चिंताग्रस्त ही रहता है। आयु के अंत में घर तो हो जाता है किन्तु अन्य इच्छाएँ बनी रहती हैं, पूर्ण नहीं होती है। चतुर्थेश के साथ पापग्रह होने से, या पापग्रहों की दृष्टि होने से घर और वाहन नहीं होते। दूसरे के घर रहना पड़ता है-जमीन नहीं होती माता की मृत्यु होती है। भाई-बंधुओं से द्वेष होता है।