श्री रामचरित मानस के सिद्ध मन्त्र, जिनमें है हर बाधा का निवारणः-
सिद्ध करने का तरीका - श्रीरामचरितमानस के दोहे-चैपाईयों को जपने से पहले सिद्ध किया जाता है। तभी ये अपना चमत्कार दिखाते है। इन्हें सिद्ध करने का तरीका यह है कि अपनी राशि के अनुसार किसी शुभ दिन की रात को दस बजे के बाद अष्टांग हवन करके मन्त्र सिद्ध करना चाहिये। फिर जिस मनोकामना के लिये मन्त्र जाप करना हो, उस कार्य का संकल्प लेकर प्रतिदिन जप करना चाहिये।
अष्टांग हवन की दिव्य सामग्री- दस रूपये का चन्दन का बुरादा, बीस रूपये के तिल, तीस रूपये का गाय का शुद्ध घी, चालीस रूपये की चीनी, पचास रूपये की अगर, साठ रूपये की तगर, सत्तर रूपये की कपूर, अस्सी रूपये की शुद्ध केसर, नब्बे रूपये की नागरमोथा, सौ रूपये की पञ्चमेवा, एक सौ दस रूपये की जौ और एक सौ बीस चावल।
विशेष तथ्य -जिस संकल्प हेतु जो चैपाई, दोहा या सोरठा जप करना बताया है, उसको सिद्ध करने के लिये एक दिन हवन की सामग्री से उसके द्वारा (चैपाई, दोहा या सोरठा) एक सौ आठ बार हवन करना चाहिये। यह हवन केवल एक दिन करना है। शुद्ध मिट्टी की वेदी बनाकर उसे गुलाल आदि से सजाकर उस पर अग्नि रखकर उसमें आहुति देनी चाहिये। प्रत्येक आहुति में चैपाई आदि के अन्त में ‘स्वाहा’ जरूर बोलना चाहिये। यह आवश्यक है।
हर आहुति लगभग पौन तोले की (सब चीजें मिलाकर) होनी चाहिये। इस हिसाब से १०८ आहुति के लिये एक किलो (८० तोला) सामग्री बना लेनी चाहिये। कोई चीज कम या ज्यादा हो जाये तो कोई परेशानी नहीं। पंचमेवा में पिस्ता, बादाम, किशमिश (द्राक्षा), अखरोट और काजू उत्तम हैं। इनमें से कोई चीज न मिले तो उसके बदले मिश्री मिला सकते हैं। केसर शुद्ध ४ आने भर ही डालने से काम चल जायेगा।
हवन करते समय अपने हाथ में माला जरूर रखें। क्यांेकि आहूति गिनने के लिये माला की जरूरत पडेगी। आहुति एक सौ आठ देनी है। इसकी गिनती माला से करनी है। बैठने के लिये लाल आसन ऊन का या कुश का होना चाहिये। सूती कपड़े का हो तो वह धोया हुआ पवित्र होना चाहिये।
यदि लंकाकाण्ड की चैपाई या दोहा सिद्ध करना हो तो उसे शनिवार को सिद्ध करना चाहिये। दूसरे काण्डों के चैपाई-दोहे अपनी राशि के अनुसार किसी भी शुभ दिन हवन करके सिद्ध किये जा सकते हैं।
उपरी हवाओं से रक्षा हेतु सिद्ध की हुई रक्षा-रेखा की चैपाई एक बार बोलकर जहाँ बैठे हों, वहाँ अपने आसन के चारों ओर चैकोर रेखा जल या कोयले से खींच लेनी चाहिये। फिर उस चैपाई को भी ऊपर लिखे अनुसार १०८ आहुतियाँ देकर सिद्ध करना चाहिये। रक्षा-रेखा न भी खींची जाये तो भी आपत्ति नहीं है। दूसरे काम के लिये दूसरा मन्त्र सिद्ध करना हो तो उसके लिये अलग हवन करना होगा।
एक दिन हवन करने से वह मन्त्र सिद्ध हो जाता है। इसके बाद जब तक कार्य सफल न हो, तब तक उस मन्त्र (चैपाई, दोहा) आदि का प्रतिदिन कम-से-कम १०८ बार प्रातःकाल या रात्रि को, जब सुविधा हो, जप करते रहना चाहिये।
कोई दो-तीन कार्यों के लिये दो-तीन चैपाइयों का अनुष्ठान एक साथ करना चाहें तो कर सकते हैं। पर उन चैपाइयों को पहले अलग-अलग हवन करके सिद्ध कर लेना चाहिये।
सभी तरह की विपत्तियों के नाश हेतुः-
“राजिव नयन धरें धनु सायक। भगत बिपति भंजन सुखदायक।।”
हर तरह के संकट नाश हेतुः-
“जौं प्रभु दीन दयालु कहावा। आरति हरन बेद जसु गावा।।
जपहिं नामु जन आरत भारी। मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ मम संकट भारी।।”
किसी कठिन क्लेश के नाश हेतुः-
“हरन कठिन कलि कलुष कलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू”
सभी विघ्नों की शांति हेतुः-
“सकल विघ्न व्यापहिं नहिं तेही। राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही”
किसी तरह के खेद नाश हेत ुः-
“जब तें राम ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए”
हर तरह की चिन्ता समाप्ति हेतुः-
“जय रघुवंश बनज बन भानू। गहन दनुज कुल दहन कृशानू॥”
अनेक रोगों तथा उपद्रवों की शान्ति हेतुः-
“दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज काहूहिं नहि ब्यापा”
मानसिक पीड़ा दूर करने करने हेतुः-.
“हनूमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भागे।।”
प्रत्येक विष नाश के नाश हेतुः-.
“नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।”
अकाल मृत्यु निवारण हेतुः-
“नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।”
सभी तरह की आपत्ति के नाश व भूतप्रेत निवारण हेतुः-
“प्रनवउँ पवन कुमार, खल बन पावक ग्यान घन।
जासु ह्रदयँ आगार, बसहिं राम सर चाप धर”
नजर काटने हेतुः-
“स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननी तृन तोरी।।”
गुम हुई वस्तु वापस प्राप्त करने हेतुः-
“गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।”
आजीविका प्राप्ति करने हेतुः-
“बिस्व भरण पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।”
गरीबी मिटाने हेतुः-
“अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद धन दारिद दवारि के।।”
धनलक्ष्मी प्राप्ति हेतुः-
“जिमि सरिता सागर महुँ जाही। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ।।”
पुत्र प्राप्ति हेतुः-
“प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।’
सम्पत्ति की प्राप्ति हेतुः-
“जे सकाम नर सुनहि जे गावहि।सुख संपत्ति नाना विधि पावहि।।”
ऋद्धि-सिद्धि प्राप्ति हेतुः-
“साधक नाम जपहिं लय लाएँ। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएँ।।”
सभी सुख प्राप्ति हेतुः-
सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई।।
मनोरथ पूर्ण करने हेतुः-
“भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि।।”
कुशल क्षेम हेतुः-
“भुवन चारिदस भरा उछाहू। जनकसुता रघुबीर बिआहू।।”
कोर्ट केस जीतने हेतुः-
“पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।”
शत्रु का सामना करने हेतुः-
“कर सारंग साजि कटि भाथा। अरिदल दलन चले रघुनाथा”
शत्रु को मित्र बनाने हेतुः-
“गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई।।”
शत्रुतानाश हेतुः-
“बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई”
वार्तालाप में सफलता हेतुः-
“तेहि अवसर सुनि सिव धनु भंगा। आयउ भृगुकुल कमल पतंगा”
विवाह करने हेतुः-
“तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि सँवारि कै।
मांडवी श्रुतकीरति उरमिला, कुँअरि लई हँकारि कै”
यात्रा सफल करने हेतुः-
“प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा”
परीक्षा व शिक्षा में सफलता हेतुः-
“जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती”
आकर्षण करने हेतुः-
“जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू”
स्नान से पुण्य प्राप्ति हेतुः-
“सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग।
लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग।।”
निन्दा निवारण हेतुः-
“राम कृपाँ अवरेब सुधारी। बिबुध धारि भइ गुनद गोहारी।।
विद्या प्राप्ति हेतुः-
गुरु गृहँ गए पढ़न रघुराई। अलप काल विद्या सब आई
उत्सव प्राप्ति हेतुः-
“सिय रघुबीर बिबाहु जे सप्रेम गावहिं सुनहिं।
तिन्ह कहुँ सदा उछाहु मंगलायतन राम जसु।।”
यज्ञोपवीत धारण करके उसे सुरक्षित करने हेतुः-
“जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।
पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।”
प्रेम बढाने हेतुः-
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती
कातर रक्षा हेतुः-
“मोरें हित हरि सम नहिं कोऊ। एहिं अवसर सहाय सोइ होऊ।।”
भगवत्स्मरण करते हुए कष्टरहित मृत्यु हेतुः-
रामचरन दृढ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग ।
सुमन माल जिमि कंठ तें गिरत न जानइ नाग ।।
विचार शुद्धि हेतुः-
“ताके जुग पद कमल मनाउँ। जासु कृपाँ निरमल मति पावउँ।।”
संशय निवृत्ति हेतुः-
“राम कथा सुंदर करतारी। संसय बिहग उड़ावनिहारी।।”
प्रभु से अपराध की क्षमा चाहने हेतुः-
”अनुचित बहुत कहेउँ अग्याता। छमहु छमा मंदिर दोउ भ्राता।।”
वैराग्य प्राप्ति हेतुः-
“भरत चरित करि नेमु तुलसी जे सादर सुनहिं।
सीय राम पद प्रेमु अवसि होइ भव रस बिरति।।”
ज्ञान प्राप्ति हेतुः-
“छिति जल पावक गगन समीरा। पंच रचित अति अधम सरीरा।।”
भक्ति प्राप्ति हेतुः-
“भगत कल्पतरु प्रनत हित कृपासिंधु सुखधाम।
सोइ निज भगति मोहि प्रभु देहु दया करि राम।।”
श्री हनुमान् जी की प्रसन्नता हेतुः-
“सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपनें बस करि राखे रामू।।”
मोक्ष प्राप्ति हेतुः-
“सत्यसंध छाँड़े सर लच्छा। काल सर्प जनु चले सपच्छा।।”
श्री सीतारामजी के दर्शन हेतुः-
“नील सरोरुह नील मनि नील नीलधर श्याम ।
लाजहि तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम”
श्रीरामचन्द्रजी को वश में करने के लिये:-
“केहरि कटि पट पीतधर सुषमा सील निधान।
देखि भानुकुल भूषनहि बिसरा सखिन्ह अपान।।”