तीसरे भाव में गुरु का शुभ अशुभ सामान्य फल
शुभ फल : तीसरे स्थान में स्थित बृहस्पति के कारण जातक साहस संपन्न, बलवान् होता है। गुरु धार्मिक और आध्यात्मिक वृत्ति का पोषक है, जातक विचारशील और बुद्धिमान् होता है। जितेन्द्रिय, आस्तिक, शास्त्रज्ञ, अनेक प्रकार के धार्मिक कृत्य सम्पादित करने वाला होता है। जातक तेजस्वी-काम करने में चतुर होता है, जिस काम का संकल्प करता है उसमें सफलता मिलती है। प्रवासी, पर्यटनशील एवं तीर्थयात्राएँ करने वाला होता है। जातक को सगे इसे भाई-बहनों और कुटुंब का सुख मिलता है।
तीन या पांच भाई बहन होते हैं। सर्वदा अपने भाइयों को उत्तमसुख और कल्याण करनेवाला होता है। जातक का भाई प्रतिष्ठित व्यक्ति होता है। मित्र तथा आप्तजनों के सुख से संपन्न होता है। स्त्री के साथ प्रेम होता है। राजा द्वारा सम्मानित होता है। सैकड़ों लोगों का स्वामी होता है। जातक की बुद्धि अच्छी होती है। लेखन से लाभ होता है। आप्तों से इसे धन लाभ होता है।
गुरु अग्नितत्व की राशियों में होने से संसार में विजय मिलती है। धनु या मीन में गुरु होने से भ्रातृसुख विशेष मिलता है। तृतीय स्थान का गुरु पुरुषराशि में होने से तीन भाई तक संभव हैं। 'सैंकड़ों लोगों का स्वामी होता है" ऐसा यवनमत है, ऐसे फल का अनुभव पुरुषराशियों में संभव है।
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अशुभफल : तीसरेस्थान में बृहस्पति हो होने से बहुत क्षुद्र होता है। नीच प्रकृति का होता है। जातक कृतघ्न होता है, किसी के उपकार को माननेवाला नहीं होता है। जातक सज्जन नहीं होता है- उदासीन, और आलसी होता है। तृतीयभावस्थ गुरु का जातक कृपण अर्थात् अदाता और कंजूस होता है। लोक में अपमानित, पापी और दुष्टबुद्धि होता है।
तीसरे स्थान पर बैठा बृहस्पति जातक को धनहीन, विलासी, परदाराप्रिय बनाता है। मित्रों के साथ मित्रों जैसा व्यवहार नहीं करता है, अर्थात् यह विश्वसनीय मित्र नहीं होता है। भाग्योदय होने पर भी संतोषजनक द्रव्योपलब्धि नहीं होती है। परन्तु राजा के घर में प्रसिद्धि पाकर भी स्वयं सुख भोगनेवाला नहीं होता है। स्त्री से पराजित होता है। स्त्री तथा पुत्रों और मित्रों से प्रेम नहीं होता है। भूख नहीं लगती है और यह दुर्बल होता है। अग्निमन्दता या मन्दाग्नि रहती है। जातक के शत्रु बढ़ते हैं, धन का क्षय होता है।
तृतीयभावगत गुरु भाइयों की एकसाथ प्रगति में रुकावट डालता है-सभी एकसाथ प्रगतिशील नहीं होंगे। कोई एक निठल्ला अवश्य ही बैठेगा और कुछ उपयोगी न होगा। इस परिस्थिति में पृथकत्व अच्छा रहेगा। युक्तिवाद करता है और मत बदलता रहता है। तृतीयेश के साथ पापीग्रह होने से धैर्यहीन, जडबुद्धि तथा दरिद्रता युक्त होता है। कू्ररग्रह की दृष्टि होने से भाइयों पर विपत्ति आती है। क्रूर और शत्रुग्रहों की दृष्टि होने से भाइयों का सुख कम मिलता है। तृतीयेश के साथ पापीग्रह होने से भाइयों का नाश होता है, इनसे संबंध अच्छे नहीं रहते हैं।
तृतीयस्थान का गुरु पुरुषराशि में होने से बड़े भाई होते हैं परन्तु बड़ी बहिनें नहीं होतीं। पुरुषराशि में तृतीयस्थान का गुरु शिक्षा के लिये अशुभ है, शिक्षा पूरी नहीं होती है। तृतीयस्थान का गुरु पुरुषराशि में होने से उपजीविका नौकरी द्वारा होती है पहिला चला हुआ स्वतंत्र व्यवसाय भी बंद करना होता है और नौकरी करनी होती है।