सातवें भाव में गुरु का शुभ अशुभ सामान्य फल
शुभ फल : सातवें स्थान के बृहस्पति के प्रभाव से जातक सुन्दर देह और आकर्षक व्यक्तित्व का धनी, बलाढ़्य होता है। जातक से मिलकर लोग प्रसन्न होते हैं अर्थात् यह मिलने में आकर्षक और वश में करनेवाला होता है। जातक की वाणी अमृत के समान मधुर होती है। वक्ता, बोलने में-सभा में भाषण देने में कुशल होता है। सप्तम भावगत गुरु प्रभावान्वित जातक कुशाग्रबुद्धि होता है। श्रेष्ठ-बुद्धिमान् और विद्या-सम्पन्न होता है। जातक की सद्-असद् विवेकाकारिणी बुद्धि बहुत फलदायिनी होती है।
जातक ज्योतिष, काव्य साहित्य, कला-पे्रमी, शास्त्र परिशीलन में बहुत आसक्त रहता है। अच्छी रुचिवाला, उदार, कृतज्ञ, धैर्यसंपन्न, विनम्र, विनययुक्त होता है। जातक भाग्यवान और गुणी होता है। जातक गुणों में अपने पिता की अपेक्षा श्रेष्ठ होता है। अपने पिता से अधिक उदार होता है। अपने भाई-बहनों से सशक्त होता है अथवा अपने कुलके लोगों में श्रेष्ठ होता है। स्वयं सुन्दर होता है। प्रधान, प्रवासी, सुन्दर, प्रसिद्ध होता है। सप्तमस्थ बृहस्पति के अनुसार व्यक्ति प्रतापी, यशस्वी, प्रसिद्ध होता है। जातक स्त्रियों के प्रति आसक्त नहीं होता। स्त्रियों को केवल उपभोग का साधन मानता है, बंधना नहीं जानता। जातक की पत्नी सुन्दर, सुलोचना, गौर वर्ण की, धर्मनिष्ठ, पतिव्रता-पतिपरायणा होती है। पति या पत्नी उदार, न्यायी, सुस्वभावी, प्रामाणिक और स्नेहल होती है। पत्नी या पति उच्चकुल का धनवान् और सुखी होता है।
विवाह के कारण भाग्योदय होकर धन, सुख, श्रेष्ठपद और मान्यता मिलती है। जातक की पत्नी गुणवती और पुत्रवती होती है। साझीदार अच्छे होने से साझे के व्यवहार में और कचहरी के मामलों में यश मिलता है। जातक का वैभव तथा ऐश्वर्य गगनचुम्बी होता है। जातक को राजकुल से पूर्ण धन का लाभ होता है। राजा के समान सुख प्राप्त होता है। बृहस्पति सप्तमभाव में होने से जातक शीघ्र परम उच्चस्थान को प्राप्त करता है। अच्छी और शुभ मंत्रणा देनेवाला, अच्छा सलाहकार होता है। पुत्र उत्तम बुद्धिमान् और सुंदर होते हैं। चित्रकर्मा-विचित्र काम करनेवाला अथवा चित्रकार-फोटोग्राफर होता है। न्याय के कार्य में यश मिलता है। शत्रुता दूर होती है, अच्छे मित्र मिलते हैं। वकीलों के लिए सप्तम में गुरु बलवान् होने से अच्छा योग होता है। क्योंकि ये समझौता करने में कुशल होते हैं। पिता से सुख मिलता है। जातक को 34 वें वर्ष में प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।
मेष, सिंह, मिथुन वा धनु में सप्तमभावस्थ गुरु शिक्षा के लिए अच्छा है। पूर्ण शिक्षा प्राप्त कर लेने के अनन्तर जातक विद्वान् बुद्धिमान् शिक्षक, प्राध्यापक वकील, बैरिस्टर और न्यायाधीश भी हो सकता है। शिक्षा-विभाग में नौकरी के लिए यह अच्छा योग है। सप्तम स्थान के स्वामी के साथ शुभग्रह होने से, या बृहस्पति उच्च में (कर्कराशि में) अथवा अपने गृह (धनु-मीन) में होने सेे एक ही पत्नी वाला होता है और स्त्री के द्वारा बहुत धनवाला तथा सुखी होता है। ग्रन्थकरों के बतलाए शुभफलों का अनुभव पुरुषराशियों में प्राप्त हो सकता है ।
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अशुभफल : जातक अत्यंत अभिमानी भी होता है। सातवें भाव में गुरु होने से जातक अतिकामुक होता है और रतिक्रीड़ा विचक्षणा स्त्री में अत्यंत आसक्त होता है। सप्तमस्थान का स्वामी निर्बल होने से, अथवा राहु, केतु, शनि और मंगल ग्रह बैठे होने से या पापग्रह की दृष्टि होने से परदारोपभोक्ता एवं परस्त्रीरत होता है। जातक का ब्राह्मणी से अवैध संबंध होता है। पुत्रों की चिंता होती है। जातक पिता और गुरुजनों से द्वेष करनेवाला होता है। वैद्यनाथ ने सप्तम स्थान के गुरु का फल अशुभ भी बतलाया है, "पितृगुरुद्वेषी" ऐसा अशुभफल कहा है। इसी प्रकार जातकालंकार कर्ता ने भी "पुत्रचिन्ता" यह अशुभफल बतलाया है। इनका अनुभव स्त्रीराशियों में आएगा। गुरु अशुभयोग में या कन्याराशि में होने से विशेष लाभ नहीं होता। सप्तमस्थान में गुरु पुरुषराशि में होने से स्त्री पर प्रेम होता है।