Auspicious Results :
Sun in the house of wealth signifies some position in the government. One is liberal and charitable. The person will win over enemies with one's behaviour and good relationship. One's speech is sweet and logical. Sun in the second house means one is wealthy and fortunate. One will be the owner of valuable metals like gold, silver and copper. The person will be a good spender of money, especially for auspicious work. One may have plenty of servants at home. One may possess four legged animals like horses, cows, goats and buffaloes. There may always be heat in one's body and one's eyes and limbs may always be warm. One will be interested in eating the best of food, wearing the best of clothes and will take special care in keeping the clothes clean. Sun in the house of wealth is favorable for doctors and lawyers.
The person's desire to set up one's independent business is fulfilled.
शुभ फल : धनभाव
का सूर्य राजयोग करता है। जन्मलग्न से दूसरे स्थान में सूर्य होने से जातक उदार,
त्यागी (दानी) होता है।
अपने व्यवहार तथा बर्ताव से शत्रुओं को भी अपने अनुकूल कर लेने वाला होता है। भाषण
मधुर और तर्कानुकूल होता है। दूसरे भाव या धन भवन में सूर्य होने से जातक धनवान्,
भाग्यवान् होता है।
मूल्यवान धातु-सोना-चाँदी और ताँबे आदि का स्वामी होता है। पैसा बहुत जल्दी खर्च
करनेवाला, शुभकर्म में खर्च
करता है। घरपर नौकर-चाकर होते हैं। चतुष्पात् अर्थात चौपायों गाय-भैंस बकरी
हाथी-घोड़ा आदि का सुख रहता है। शरीर मे उष्णता रहती है, आँख, हाथ और पाव हमेशा गर्म रहते हैं। उत्तम-उत्तम अन्न खाने में
विशेष रुचि, कपड़ों की
उत्तमता-इन्हें साफ रखने की ओर विशेष ध्यान रहता है। धनस्थान का रवि वकीलों और
डाक्टरों के लिये अनुकूल रहता है। धनेश बलवान् हो, अर्थात् वक्री, अस्तंगत, मंदगामी, अतिचारी न हो और किसी पापग्रह से युक्त भी न हो
तो जातक की स्वतंत्र धन्धा करने सम्बन्धी इच्छाएँ पूरी होती हैं।
Inauspicious Results :
Sun in the house of wealth makes a person short tempered, talkative, stingy and arrogant. Because of one's proud nature, one is unable to do any auspicious work of a permanent nature. One lacks humility and is arrogant, boastful and proud. One has a lean and weak physique, red eyes and bad hair. One is dull, lacks intelligence and is a fool. One may have a tendency to forget everything. When Sun is in the house of wealth, one is not a scholar and one's education remains incomplete. One lacks goodwill and sponsorship and therefore all of one's friends and relatives desert him.
One's wealth is seized by the landlord or the king. One will be careless and may destroy one's wealth. One may lose one's wealth, specially one's paternal inheritance. Any work done with the intention of making money is in vain. The person's fortunes are dependent on one's father's fortunes. One may be unable to do business or work independently. There may not be a mutual rapport between father and son. The person's wealth may be seized by others or there may be some government penalty. In one's 25th year, one may lose money due to some penal punishment. One may not have the comfort of a good vehicle, horse or cart. One may also suffer from ailments of the mouth, ear and teeth. One may not be clear in speech, may stutter and express himself with difficulty. Enlightenment is related to the eyes, hence Sun in the second house denotes eye ailments and a weak vision.
Due to one's spouse, there may be some conflict in the family. One may even fight with one's spouse and quarrel with one's friends and be enmical towards them. One may be deprived of the happiness of a spouse or son. Inspite of having a family, one does not set up one's household in one place. One always stays in other's houses and is unhappy. One does not peform any work of a permanent nature which may keep one's name alive or bring him fame. Trivial auspicious deeds tend to be destroyed in a short period of time. Sun in the house of wealth is not suitable for astrologers.
Inauspicious fruits predicted by one are easily experienced while auspicious happenings take time. As a result of this, one is defamed. One may speak slowly and lazily. Inspite of efforts, wealth cannot be accumulated. Failure in efforts persist. Family members expire before the person's eyes. The person may be extremely poor. One may not even get food to eat for even eight days at a stretch and they pine for food.
अशुभ फल : धनभाव में सूर्य होने से जातक क्रोधी,
वाचाल, कृपण, दांभिक होता है अत: अहंकारवश कोई स्थायी शुभ कार्य नहीं
होता है। विनयभाव नहीं होता, अर्थात् उद्धत और घमंडी होता है। शरीर दुबला-पतला होता है। आँखे लाल होती हैं।
केश बुरे होते हैं। जातक ज्ञानहीन, मंदबुद्धि अर्थात् मूर्ख होता है। सब कुछ भूलजाने वाला होता है। धनभाव में
सूर्य होने से जातक विद्वान नहीं होता है। शिक्षा अधूरी रह जाती है। सौजन्य तथा
सौहार्दहीन होता है अतएव अपने लोग और मित्रवर्ग छोड़कर चले जाते हैं। धन का अपहरण
भूमिपति अर्थात् राजा कर लेता है। बेफिक्र और संपत्ति खतम कर देनेवाला होता है। धन
का-विशेषतया पैतृक सम्पदा का नाश करता है।
द्रव्यलाभ के निमित्त जातक जो काम करता है वह व्यर्थ होता है। धनस्थानगत
सूर्य के प्रभाव में उत्पन्न मनुष्य भाग्योदय पिता पर ही अवलंबित रहता है। स्वयं
नौकरी वा कोई धन्धा नहीं कर सकता है। बाप-बेटे में परस्पर सौमनस्य नहीं रहता है।
जातक का धन राजदंड से और चोरों से अपहृत हो जाता है। 25 वें वर्ष में राजदण्ड द्वारा धनहानि होती है।
उत्तम वाहन घोड़ा-गाड़ी-पालकी आदि का सुख नहीं मिलता है। मुख के रोग, कर्ण-दन्तरोग भी इसके कारण हो जाया करते हैं।
वाणी स्पष्ट नहीं होती-अर्थात् यह अटक-अटक कर बोलता है और अपने भाव कष्ट से प्रकट
कर सकता है। तेजस्तत्व का सीधा सम्बंध आँखों से है इसलिये दूसरे भाव में स्थित
सूर्य आँखों की बीमारी का भी कारण बनता है। दृष्टि कमजोर होती है। स्त्री के
निमित्त से अपने कुटुम्ब में भी कलह-क्लेश होता है। स्त्री से कलह भी कराता है।
बन्धुओं के साथ वैमनस्य और झगड़ा रहता है। स्त्री सुख और पुत्र-सुख नहीं मिलता है।
गृहस्थी होकर, कहीं एक स्थान
में घर बनाकर नहीं रहता है अतएव दु:खी होता है। दूसरों के घर में रहता है। कोई
चिरस्थायी शुभकर्म नहीं हो पाता जो कीर्तिघ्वजा को फहराता रहे। छोटे-छोटे शुभकर्म
कुछ काल में अनन्तर नष्ट-भ्रष्ट हो जाते हैं। ज्योतिषियों के लिए धनभावस्थ रवि
अनुकूल नहीं होता है। इनके बतलाए हजुए अशुभफल शीघ्र ही अनुभव में आते हैं शुभफलों
का अनुभव देर से होता है-अत: परिणाम अपयश होता है। सूर्य के साथ बुध भी हो तो मनुष्य अटक-अटक
कर, धीरे-धीरे बोलता है। धनस्थान का सूर्य वृष, कन्या वा मकर राशि में होने से - (1) धन का संचय नहीं होता चाहे कोई भी यत्न किया
जावे। (2) प्रयत्न विफलता पल्ला नहीं छोड़ती। (3) कुटुम्बियों की मृत्यु जातक के सामने होती
है। वृश्चिक, धनु, मकर या कुंभ लग्न हो, रवि धनस्थान में हो, धनस्थान का स्वामी गुरु या शनि वक्री हो और ये 2-4-6-8-12
वें स्थान में हो तो यह
योग महान् दरिद्रता का योग है। जिन जातकों को यह योग पड़ता है तो इन अभागों को
अन्न खाने को नहीं मिलता आठ-आठ दिन भूखे पड़े रहना होता है। अन्न के लिए तड़पना
पड़ता है।