भारतीय समय मान में सावन मान के अनुसार एक साल में 360 दिन होते है। इन दिनों में लगभग 40 दिन नवरात्र के होते है। अश्विनी से अश्लेषा नक्षत्र तक नौ नक्षत्रों में मेष , वृष , मिथुन , कर्क , राशियों का एक भाग आता है। मघा से ज्येष्ठा तक सिंह ,कन्या , तुला , वृश्चिक , राशि का दूसरा भाग है। तथा मूल रेवती तक धनु , मकर , कुम्भ , मीन ,राशि का एक भाग है। यही 9 -9 नक्षत्र रूपी राह का 27 नक्षत्रों का मार्ग 3 भागों में विभाजित है। इसी राह पर 12 राशियों में चन्द्रमा भ्रमण करता है। जिसे दक्ष वृत्त कहते है।
40 नवरात्र दिनों में उत्तर परमक्रांति , दक्षिण परमक्रांति , शरद सम्पात , और बसंत सम्पात नामक चार सम्वतसर बिन्दुओ से संबंध रखने वाले चार नवरात्र मुख्य माने जाते है। दक्षिणायन वाले नवरात्र पितृ नवरात्र और उत्तरायण में आने वाले नवरात्र देव नवरात्र कहलाते है। ये गुप्त नवरात्र कहलाते है। मानव जाति का संबंध पृथ्वी से है और संवत्सर वृत्त के बीच में स्थित बृहती छन्द नामक विषुवद वृत्त से माना गया है। इसलिए चैत्र नवरात्र बासंतिक , और आश्विन मास वाले शारदीय नवरात्र शक्ति का ह्वास करने वाले होते है। इन्हें यमदृष्टा भी कहते है। इसलिए इस समय में शक्ति संयम विशेष उपासना की जाती है। इसलिये शारदीय नवरात्र को उपासना के लिए अच्छा माना जाता है।
शारदीय नवरात्र में हर व्यक्ति ये ही सोचता है कि इस समय किसकी पूजा की जाये। कैसे की जाये। भारतीय पूजा परम्परा में सात सौ श्लोकों की दो सप्तशती है। एक तो गीता और दूसरी दुर्गा सप्तशती। गीता मोक्ष दिलाती है। और दुर्गा सप्तशती धर्म ,अर्थ , काम आदि की प्राप्ति करवाती है। रावण को पराजित करने के लिए श्रीराम ने नवरात्र काल में शक्ति प्राप्ति करके रावण हराया था। महाभारत के युद्ध से पहले श्रीकृष्ण ने अर्जुन को माँ भगवती पीतांबरा की आराधना करने को कहा था।
शारदीय नवरात्र लगभग तुला संक्रांति के आस पास आते है। इसमें नव दुर्गा की उपासना की जाती है। नवग्रहों कोई भी ग्रह अनिष्ट फल दे रहा हो तो शक्ति उपासना विशेष लाभ देती है। शक्ति उपासना में स्थापना मुहूर्त में करनी चाहिए। जिससे कोई भी बाधा न आये।
यदि सूर्य कमजोर हो और तबियत ठीक नहीं रहती हो तो माता शैलपुत्री की उपासना करनी चाहिए। राहु की महादशा हो या नीच का राहु हो तो माता ब्रह्मचारिणी की उपासना करनी चाहिए। केतु के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए माता चंद्रघंटा की पूजा करनी चाहिए। चन्द्रमा के अशुभ फल को दूर करने के लिए , वाक् सिद्धि प्राप्त करने के लिए माता कुष्मांडा देवी की आराधना करनी चाहिए। मंगल के शुभ फल के लिए माता स्कंध , बुध के शुभ फल लिए माता कात्यायनी , गुरु को बली करने के लिए महागौरी , शुक्र के लिए माता सिद्धिदात्री , तथा शनि की शुभता प्राप्त करने के लिए माँ कालरात्रि की उपासना करनी चाहिए।
40 नवरात्र दिनों में उत्तर परमक्रांति , दक्षिण परमक्रांति , शरद सम्पात , और बसंत सम्पात नामक चार सम्वतसर बिन्दुओ से संबंध रखने वाले चार नवरात्र मुख्य माने जाते है। दक्षिणायन वाले नवरात्र पितृ नवरात्र और उत्तरायण में आने वाले नवरात्र देव नवरात्र कहलाते है। ये गुप्त नवरात्र कहलाते है। मानव जाति का संबंध पृथ्वी से है और संवत्सर वृत्त के बीच में स्थित बृहती छन्द नामक विषुवद वृत्त से माना गया है। इसलिए चैत्र नवरात्र बासंतिक , और आश्विन मास वाले शारदीय नवरात्र शक्ति का ह्वास करने वाले होते है। इन्हें यमदृष्टा भी कहते है। इसलिए इस समय में शक्ति संयम विशेष उपासना की जाती है। इसलिये शारदीय नवरात्र को उपासना के लिए अच्छा माना जाता है।
शारदीय नवरात्र में हर व्यक्ति ये ही सोचता है कि इस समय किसकी पूजा की जाये। कैसे की जाये। भारतीय पूजा परम्परा में सात सौ श्लोकों की दो सप्तशती है। एक तो गीता और दूसरी दुर्गा सप्तशती। गीता मोक्ष दिलाती है। और दुर्गा सप्तशती धर्म ,अर्थ , काम आदि की प्राप्ति करवाती है। रावण को पराजित करने के लिए श्रीराम ने नवरात्र काल में शक्ति प्राप्ति करके रावण हराया था। महाभारत के युद्ध से पहले श्रीकृष्ण ने अर्जुन को माँ भगवती पीतांबरा की आराधना करने को कहा था।
शारदीय नवरात्र लगभग तुला संक्रांति के आस पास आते है। इसमें नव दुर्गा की उपासना की जाती है। नवग्रहों कोई भी ग्रह अनिष्ट फल दे रहा हो तो शक्ति उपासना विशेष लाभ देती है। शक्ति उपासना में स्थापना मुहूर्त में करनी चाहिए। जिससे कोई भी बाधा न आये।
यदि सूर्य कमजोर हो और तबियत ठीक नहीं रहती हो तो माता शैलपुत्री की उपासना करनी चाहिए। राहु की महादशा हो या नीच का राहु हो तो माता ब्रह्मचारिणी की उपासना करनी चाहिए। केतु के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए माता चंद्रघंटा की पूजा करनी चाहिए। चन्द्रमा के अशुभ फल को दूर करने के लिए , वाक् सिद्धि प्राप्त करने के लिए माता कुष्मांडा देवी की आराधना करनी चाहिए। मंगल के शुभ फल के लिए माता स्कंध , बुध के शुभ फल लिए माता कात्यायनी , गुरु को बली करने के लिए महागौरी , शुक्र के लिए माता सिद्धिदात्री , तथा शनि की शुभता प्राप्त करने के लिए माँ कालरात्रि की उपासना करनी चाहिए।