Saturday 15 February 2020

nave bhav me mangal ka shubh ashubh fal/ नवें भाव में मंगल का शुभ अशुभ फल

Posted by Dr.Nishant Pareek
कुंडली के नवें भाव में मंगल का शुभ अशुभ फल:-


कुंडली के नवें भाव के कारक गुरु और सूर्य होते हैं। इस भाव से भाग्य, प्रारब्ध, धर्म, वैभव, पुण्य, तीर्थ यात्रा का विचार किया जाता है। 
शुभ फल : भाग्यस्थान के मंगल के फल मिश्रितस्वरूप के हैं-ऐसा आचार्यों का मत है। नवमभाव में मंगल होने से जातक कुशाग्रमति-तीक्ष्णबुद्धि होता है। जातक तेजस्वी होता है। शीलवान् तथा विद्यानुरागी होता है। जातक प्रसिद्ध होता है। 28 वें वर्ष भाग्योदय होता है। जातक नौकरी करता है। व्यापार के लिए नाव में घूमता है। जातक नेता, अधिकारी, यशस्वी, एवं विख्यात, पराक्रमी होता है। यह राजयोग होता है। डस्टि्रक्टबोर्ड, लोकलबोर्ड, असैम्वली आदि में चुनाव जीतते हैं। 

इस स्थान के मंगल से विदेशयात्रा संभव है। विदेश में भाग्योदय होता है। जातक के आय के स्रोत अच्छे रहते हैं, इसलिए किसी सीमा तक समाज में मान्यता मिल जाती है। व्यक्ति को प्रचुर धन लाभ, राज समाज में सम्मान, सुखोपभोग प्राप्त करता है। प्रारब्धदत्त अर्थात् भाग्यदत्त धन से धनवान् होता है। मंगल नवम भाव में हो तो जातक राजकुलमान्य, सबसे वंदनीय, भाग्यवान्, ग्रामों में सुख पानेवाला होता है। राजा का मित्र होता है-राजा से (सरकार से) मान आदर बहुत मिलता है।    
   मंगल पुरुषराशि में होने से बहिनों को तारक और भाइयों को मारक होता है।  कर्क में नवम मंगल होने से अच्छा फल मिलता है। इस योग में डाक्टर अच्छी कीर्ति पाते हैं। इन्हें किसी वस्तु की कमी नहीं रहती। शुभग्रहों से युक्त, अथवा उनकी राशियों में हो तो पुण्यवान् होता है। इंजीनियर फिटर, सुनार, लोहार आदि के लिए यह मंगल लाभदायक है।       पुलिस तथा आबकारी अफसरों के लिए भी यह योग विशेष फलदाता नहीं इन्हें अपने अफसरों से लड़-झगड़ कर उन्नति प्राप्त करनी होती है।       

मेष, सिंह, धनु, कर्क, वृश्चिक तथा मीनराशि में राजमान्य, धनवान्, प्रसिद्ध होना, ये शुभफल मिलते हैं। मेष, सिंह तथा मकर को छोड़कर अन्य राशियों मे होने से जातक विद्वान् किन्तु धर्महीन होता है।  मेष, सिंह, धनु, कर्क तथा वृश्चिक राशियों में मंगल होने से जातक अधिकारी, फुर्तीले, उदार तथा मिलनसार होते हैं।  

 अशुभफल : नवम भावस्थ मंगल होने से जातक कठोर स्वभाव का, क्रोधी, अभिमानी, द्वेषी, ईर्ष्यालु, झूठ बोलनेवाला, प्रवासी, शंकाशील, दुराग्रही, असन्तुष्ट होता है। नवम भावस्थ मंगल के प्रभाव में उत्पन्न जातक धर्महीन, हिंसक, पापी होता है तथा पापकर्म में रुचि होती है। नवमभाव के मंगल से जातक दुराचारी, व्यभिचारी, पौरुषहीन, नीचों की संगति में रहनेवाला, कू्रर तथा कष्टयुक्त होता है। 

नवमभाव में मंगल होने से जातक की मानसवृत्ति हिंसा की ओर रहती है। धर्म पर अल्प श्रद्धा होती है। अध्यात्म के बारे में दुराग्रही विचार होते हैं। पराक्रम व्यर्थ होता है-भारी परिश्रम-भारी यत्न वा भारी उद्योग करने भी लाभ बहुत थोड़ा होता है। उद्योग परिश्रम या शारीरिक कष्ट से चाहे जितना भी यत्न धनार्जन के लिए किया जावे उसका फल परिश्रम की तुलना में नगण्यी होगा। बुद्धिमता से बनाई गई किसी भी योजना को नवममंगल फलीभूत होने नहीं देगा। 

जातक कार्य में निपुण नहीं होता, लोग इससे द्वेष करते हैं। जातक परस्त्रियों का उपभोग करनेवाला (परस्त्रीगामी), भाग्यहीन, पुण्यहीन, तथा धनहीन होता है। बेकार घूमने वाला होता है। लोग जातक से द्वेष करते हैं। जातक लोगों का घात करता है। जातक के पास वस्त्र अच्छे नहीं होते। अनेक लोगों से घिरा हुआ, भाग्यहीन होता है। अभागा होता है। प्रसिद्ध होते हुए भी अभागे होते हैं। जातक भ्रातृविरोधी होता है। जातक को बड़ा साला या जेठा सगा भाई नहीं होता है। अर्थात् जातक जेठे साले और जेठे भाई के सुख से वंचित ही रहेगा। 

पुरुषराशि में होने से भाई की मृत्यु होती है। दो भाइयों की मृत्यु होती है। नवमभाव में मंगल के होने से जातक के पिता का अनिष्ट होता है। पिता का सुख नहीं मिलता है। माँ का सुख कम मिलता है। नवमभावस्थ मंगल के युवक नई रौशनी के, तथा सुधारक प्रवृत्ति के होते हैं। इन्हें-विवाह पर 'यह एक पवित्र तथा स्थायी बंधन है" ऐसा विश्वास नहीं होता है-चाहे कैसी स्त्री से सम्बन्ध हो जाए-ऐसी इनकी प्रवृत्ति होती है। इस योग में अविवाहित रहजाना भी संभव है। द्विभार्यायोग भी संभव है। पहली स्त्री के बच्चों की देखभाल के लिए-घर-गृहस्थी चलाने के लिए दूसरे विवाह की भारी आवश्यकता होती है। पत्नी के संबंधियों से हानि होती है। 

नवमभाव में मंगल होने से जातक बहुत रोगी, आंख, हाथ तथा शरीर लाल-पीले रंग के होते हैं। जातक को विष तथा आग से पीड़ा होती है। पांव में रक्त रोगवाला, दुर्बल होता है। नवममंगल से आँखें नष्ट हो जाना, त्वचारोग-आदि शरीर संबंधी अशुभफल होते हैं। उच्च अथवा स्वगृह में होने से गुरुपत्नी से व्यभिचार करता है। संतान अभागी होती है। माँ बाप को कष्टकारक होती है। वकीलों के लिए यह योग बहुत अच्छा नहीं है।       अशुभ ग्रहों की दृष्टि होने से जातक उद्धत और दुरभिमानी होता है। मन पर संयम नहीं होता। चाहे जैसा वर्ताव करता है।       अग्निराशि में होने से जातक उद्वत होता है।
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