श्राद्ध क्या है
- भारतीय संस्कृति मे श्राद्ध् का बहुत महत्व रखता है जो भी पदार्थ ठीक समय पात्र स्थान के अनुसार विधि द्वारा पितरों को लक्ष्य करके श्रद्धा पूर्वक ब्राह्मणों को दिया जाता है वह श्राद्ध कहलाता है यह श्राद्ध की परिभाषा ब्रह्मपुराण में दी गई है याज्ञवल्क्य स्मृति में कहा है कि पितरों का उद्देश्य करके उनके कल्याण के लिए श्रद्धा पूर्वक किसी वस्तु का या उनसे सम्बंधित किसी द्रव्य का त्याग करना ही श्राद्ध है कल्पतरु में कहा है कि पितरों का उद्देश्य करके उनके लाभ के लिए यज्ञीय वस्तुओ का त्याग तथा ब्राह्मणों द्वारा उसका ग्रहण ही प्रधान श्राद्ध स्वरूप है याज्ञवल्क्य स्मृति तथा अग्नि पुराण में कहा है कि पितर गन यथा वसु रूद्र तथा आदित्य जो श्राद्ध के देवता है श्राद्ध से संतुष्ट होकर मानवों के पूर्व पुरुषों को संतुष्टी देते है
- यह बात स्पष्ट है कि मनुष्य तीन पूर्वजों अर्थात पिता पितामह तथा प्रपितामह क्रम से पितृदेव अर्थात वसु रूद्र तथा आदित्य आदि देवता के समान है और श्राद्ध करते समय उनको पूर्वजों का प्रतिनिधि मानना चाहिए। कुछ लोगो के मतानुसार श्राद्ध से हवन पिंडदान तथा ब्राह्मण तर्पण समझा जाता है। किन्तु श्राद्ध शब्द का प्रयोग इन तीनों के साथ गौण अर्थ में उपयुक्त समझा जाता है पुनर्जन्म कर्म तथा कर्मविपाक के सिद्धांतों में अटल विश्वास रखने वाले व्यक्ति इस सिद्धांत के साथ पिंडदान करते है कि इससे तीन पूर्व पुरुषों की आत्मा को संतुष्टि प्राप्त होती है
- पुनर्जन्म के सिद्धांत के अनुसार आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरे नवीन शरीर में प्रविष्ट होती है परन्तु तीन पूर्वजों के पिंडदान का सिद्धांत यह बताता है कि तीनों पूर्वजों की आत्माएं लगभग ९०० वर्षों के बाद भी वायु में भ्रमण करते हुए चावल के पिंडों की सुगंध या सारतत्व वायव्य शरीर ग्रहण करने में समर्थ होती है
- इसके आलावा मत्स्य पुराण तथा अग्नि पुराण में कहा है कि पितर श्राद्ध में दिए गए पिंडों से स्वयं संतुष्ट होकर अपने वंशजों को जीवन संतान विद्या धन स्वर्ग मोक्ष सभी सुख साधन तथा राज्य प्रदान करते है मत्स्य पुराण में ऋषियों द्वारा एक प्रश्न पूछा गया है कि वह भोजन जिसे ब्राह्मण खाता है या जो अग्नि में डाला जाता है क्या वह उन मृतात्माओं द्वारा खाया जाता है जो मृत्युपरांत अच्छे या बुरे शरीर धारण कर चुके होंगे
- उसका उत्तर यह दिया गया है कि पिता पितामह तथा प्रपितामह वैदिक उक्तियों के अनुसार क्रम से वसुओं रुद्रों तथा आदित्यों के समान माने गए है मृत व्यक्ति के नाम एवम गौत्र उच्चरित मंत्रो तथा श्राद्ध की आहुतियों को पितरों के पास ले जाते है यदि किसी के पिता अपने अच्छे कर्मों के कारण देवता हो गए तो श्राद्ध में दिया भोजन अमृत हो जाता झाई और उनके देवत्व की स्थिति में उनका अनुसरण करता है यदि वे असुर हो गए है तो वह भोजन उनके पास भांति भांति के आनंदों के रूप में पहुँचता है यदि वे पशु बन गए हो तो वह उनके लिए घास हो जाता है और यदि वे सर्प हो गए है तो श्राद्ध भोजन वायु बनकर उनकी सेवा करता है